अपूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा | अपूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण
अपूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा (एकाधिकारात्मक) –
अपूर्ण प्रतियोगिता का तात्पर्य पूर्ण प्रतियोगिता के लिए आवश्यक किसी भी दशा का अभाव होने से है। जैसे-यदि क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या अधिक नहीं है अथवा इनकी संख्या तो अधिक है, किन्तु वस्तु एक रूप नही है तो अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति कही जायेगी।
अपूर्ण या एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता में फर्म का साम्य व कीमत निर्धारण-
अपूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य एकाधिकार की दशा के समान निर्धारित होता है, पूर्ण प्रतियोगिता की दशा के समान नहीं। कारण, अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत बाजार छोटे-छोटे भागों में विभक्त हो जाता है और प्रत्येक भाग में वहाँ के उत्पादक की स्थिति एक एकाधिकारी के समान होती है, जो अपने उद्योग से अधिकतम लाभ कमाना चाहता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपूर्ण एकाधिकार भी वहाँ तक उत्पादन बढ़ायेगा जहाँ पर कि उसे अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके। अधिकतम लाभ उसे तब होने लगता है जबकि उसकी उत्पादित वस्तु की सीमान्त लागत बेची गयी अन्तिम इकाई से प्राप्त आय अर्थात सीमान्त आय के बराबर हो जाये। यदि वह अपने उत्पादन कार्य को ऐसी समानता का बिन्दु पहुँचने के पूर्व ही रोक दे या पहुँचने के बाद भी जारी रखे, तो सीमान्त आय और सीमान्त लागत में अन्तर रहेगा और फलस्वरूप उत्पादक अधिकतम लाभ नहीं कमा सकेगा। यदि वह उस बिन्दु से कम उत्पादन या बिक्री जारी रखे तो सीमान्त लागत सीमान्त आय से कम रह जायेगी, जिससे उत्पादक को अभी अपना लाभ बढ़ाने का क्षेत्र रहेगा। दूसरी ओर यदि वह बिन्दु से आगे भी उत्पादन या बिक्रि करना जारी रखे तो सीमान्त लागत आय से अधिक रहने लगेगी और इस प्रकार उसे घाटा होगा, जिससे बचने के लिए वह उत्पादन व बिक्री को कम करना पसन्द करेगा। स्पष्ट है कि सीमान्त आय (MR) और सीमान्त लागत (MC) की समानता का बिन्दु ही उसके सर्वोत्तम लाभ की स्थिति है।
निम्न चित्र में OX पर उत्पादन व विक्रय की मात्रा और OY पर मूल्य प्रदर्शित किया गया है। सीमान्त आय और सीमान्त लागत रेखाएँ (MR तथा MC)E पर मिलती हैं। इस बिन्दु से OX पर लम्ब डालने से यह औसत आय रेखा (AR) को C पर औसत लागत रेखा (AC) को B पर मिलेगा.
तथा Ox (मात्र रेखा) को M पर मिलेगा। ऐसी दशा में BM प्रति इकाई लागत को BC प्रति इकाई लाभ को MC प्रति इकाई मूल्य को और BE अपूर्ण प्रतिस्पर्धा के फलस्वरू अतिरिक्त लाभ प्रदर्शित करेगा। ABCD अपूर्ण प्रतिस्पर्धा के कुल लाभ को दिखलाता है जबकि AOMB कुल लागत को। अत: स्पष्ट है कि अपूर्ण प्रतिस्पर्धा में अधिकतम लाभ तब होता है जबकि उत्पादन व बिक्री की सीमान्त आय सीमान्त लागत की समानता के बिन्दु पर रोक दें, न कम रखें और न आगे ही बढायें। साथ ही ध्यान दीजिए कि अपूर्ण प्रतिस्पर्धा का मूल्य (=MC) सीमान्त आय (= ME) नहीं है वरन उससे ऊँचा होता है (किन्तु पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य को सीमान्त आय के बराबर देखा जाता है)।
माँग की लोच का प्रभाव-
यदि वस्तु की माँग लोचदार है तो अधिकतम लाभ की प्राप्ति के लिए उत्पादक वस्तु का मूल्य कम रखेगा, जिससे बाजार में उस वस्तु की माँग बढ़े और उसकी बिक्रि अधिक हो। यदि वस्तु की माँग बेलोच या कम लोचदार है, तो वह मूल्य अधिक रखेगा क्योंकि वह जानता है कि ऊँचे मूल्य रखने से माँग पूर्ववत रहेगी और अधिक मूल्य रखकर वह अधिक लाभ कमा सकेगा।
उत्पत्ति के नियमों का प्रभाव-
अपूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य का निर्धारण करते समय उत्पादक जिस दूसरी बात का ध्यान रखता है वह उत्पत्ति के नियम की कार्यशीलता है।
(अ) उत्पत्ति वृद्धि नियम-यदि वस्तु का उत्पादन क्रमशः उत्पत्ति वृद्धि नियम के अन्तर्गत किया जा रहा है, तो उत्पादन की मात्रा बढ़ने से प्रति इकाई लागत घटने लगती है।
(ब) उत्पत्ति ह्रास नियम- यदि वस्तु का उत्पादन क्रमश: उत्पत्ति ह्रास नियम के अन्तर्गत किया जा रहा है, तो उत्पादन की मात्रा बढ़ाने पर प्रति इकाई लागत घटने लगती है।
तालिका 1 : उत्पत्ति ह्रास नियम के कार्यशील होने की दशा
उत्पादन इकाइयों में |
कुल लागत |
औसत लागत |
सीमांत लागत रु. |
मूल्य या औसत आय रु. |
कुल आय रु. |
सीमान्त आय रु. |
कुल लाभ रु. |
1 |
400 |
400 |
400 |
1000 |
1000 |
1000 |
600 |
2 |
850 |
425 |
450 |
975 |
1950 |
950 |
1100 |
3 |
1350 |
450 |
500 |
950 |
2850 |
900 |
1500 |
4 |
1950 |
487.5 |
600 |
925 |
3700 |
850 |
1750 |
5 |
2650 |
530 |
700 |
880 |
4400 |
700 |
1750 |
6 |
3400 |
566.7 |
750 |
825 |
4950 |
550 |
1550 |
7 |
4170 |
595.7 |
770 |
764.3 |
5350 |
400 |
1180 |
8 |
4970 |
621.3 |
800 |
706.3 |
5650 |
300 |
680 |
9 |
5820 |
646.7 |
850 |
650 |
5850 |
200 |
630 |
जैसा कि उपर्युक्त तालिका को देखने से स्पष्ट है, उत्पादक पाँचीं इकाई के आगे उत्पाद नहीं बढ़ायेगा। यहाँ सीमान्त आय और सीमान्त लागत दोनों बराबर हैं (= 700 रु.) और उत्पादक अधिकतम लाभ 1,750 रु. है।
संलग्न चित्र में ध्यान दीजिए कि उत्पत्ति ह्रास नियम के अन्तर्गत औसत लागत की अपेक्षा सीमान्त लागत तेजी से बढ़ती है (जबकि उत्पत्ति वृद्धि के अन्तर्गत सीमान्त लागत औसत लागत की अपेक्षा तेजी से बढ़ती है) इसलिए MC रेखा AC रेखा के ऊपर रहेगी (किन्तु उत्पत्ति वृद्धि नियम के अन्तर्गत AC रेखा MC के ऊपर रहेगी) (चित्र)।
उत्पत्ति समता नियम- यदि वस्तु का उत्पादन क्रमशः समता नियम के अन्तर्गत होता है, तो उउत्पाद घटाने-बढ़ाने से प्रति इकाई उत्पादन व्यय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। ऐसी दशा में उत्पादक वस्तु की लोच से प्रभावित होकर उत्पादन करेगा और मूल्य निर्धारण करेगा। यह बात तालिका 2 के आधार पर समझाई जा सकती है-
जैसा कि निम्न तालिका 2 देखने से स्पष्ट है, माँग लोचदार होने के कारण उत्पादक इकाई मूल्य कम करता हुआ और इस प्रकार अधिक बिक्री सम्भव बनाता हुआ अधिकतम लाभ के बिन्दु पर पहुँच जाता है। यह बिन्दु गर्वी इकाई है, जिसकी सीमान्त लागत और सीमान्त आय दोनों 400 रु. है। यदि वह आठवी इकाई का उत्पादन करे और उसे मूल्य कम करके बेचना चाहे, तो उसका कुल लाभ कम हो जाता है। अत: केवल 7 इकाइयों का उत्पादन करेगा।
तालिका 2 : उत्पत्ति समता नियम के लागू होने की दिशा
उत्पादन इकाइयों में |
कुल लागत |
औसत लागत |
सीमांत लागत रु. |
मूल्य या औसत आय रु. |
कुल आय रु. |
सीमान्त आय रु. |
कुल लाभ रु. |
1 |
400 |
400 |
400 |
1000 |
1000 |
1000 |
600 |
2 |
800 |
400 |
400 |
975 |
1950 |
950 |
1100 |
3 |
1200 |
400 |
400 |
950 |
2850 |
900 |
1650 |
4 |
1600 |
400 |
400 |
925 |
3700 |
850 |
2100 |
5 |
2000 |
400 |
400 |
880 |
4400 |
700 |
2400 |
6 |
2400 |
400 |
400 |
825 |
4950 |
550 |
2520 |
7 |
2800 |
400 |
400 |
764.3 |
5350 |
400 |
2550 |
8 |
3200 |
400 |
400 |
706.3 |
5650 |
300 |
2450 |
9 |
3600 |
400 |
400 |
650 |
5850 |
200 |
2250 |
चित्र से स्पष्ट है कि उत्पादक को OM इकाइयों का उत्पादन करना चाहिए क्योंकि यहाँ MR और MC बिन्दु D पर मिलते हैं। ABCD अधिकतम लाभ है, जो कि वह कमा सकता है। यदि वह उत्पादन बढ़ाकर OM, कर दे तो कुल AMBO आय से बढ़कर A’B’M’O हो जायेगी किन्तु कुल लागत भी बढ़ेगी और OMDC के बजाय OMD’C हो जायेगी। किन्तु MM उत्पादन अधिक करने से लागत तो बढ़ेगी DD’M’M के बराबर जबकि आय BBDD से कुछ कम बढ़ेगी। स्पष्ट है कि लागत वृद्धि से अधिक होगी। अतः उसका | कुल लाभ कम हो जायेगा।
दीर्घकाल एवं अल्पकाल में अपूर्ण प्रतियोगिता का मूल्य-
पूर्ण प्रतियोगिता की भाँति | अपूर्ण प्रतियोगिता के भी अन्तर्गत केवल अल्पकाल में ही असामान्य लाभ प्राप्त होने की सम्भावना है। किन्तु दीर्घकाल में केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होगा। इसका कारण यह है कि दोनों (पूर्ण व अपूर्ण प्रतियोगिता) स्थितियों में प्रतियोगिता और नयी फर्मों के प्रवेश के लिए न्यूनाधिकार अवसर व क्षेत्र रहता है। नयी फमें पुरानी फर्मों के अधिक निकट स्थापान्न वस्तुएँ उत्पन्न करने का प्रयास करेंगी। नयी व पुरानी फर्मों को पारस्परिक प्रतियोगिता के कारण पुरानी फर्मों का अतिरिक्त लाभ कम होने लगात है। अन्ततः (दीर्घकाल में) सभी फर्मे केवल सामान्य लाभ कमाती हैं। सामान्य लाभ प्राप्त होने का ककार भी यह है कि इतना लाभ न मिले तो कुछ फर्मों को बन्द होना पड़ जायेगा या उत्पादन घटाना पड़ेगा।
पूर्ण प्रतियोगिता और अपूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में यह फर्क रहता है कि जहाँ पूर्ण प्रतियोगिता में अनुकूलतम मात्रा का उत्पादन किया जाता है और कीमत कम होती है वहाँ अपूर्ण प्रतियोगिता में अनुकूलतम मात्रा से कम उत्पादन किया जाता है और कीमत अपेक्षाकृत अधिक होती है।
चित्र को तुलनात्मक अध्ययन की सुविधा हेतु यह मानते हुए बनाया गया है कि पूर्ण एवं अपूर्ण प्रतियोगिता दोनों में माँग व लागत सम्बन्धी दशाएँ एक-सी हैं। पूर्ण प्रतियोगिता में माँग रेखा AR=MR बिन्दुदार रेखा द्वारा दर्शायी गयी है। अपूर्ण प्रतियोगिता की माँग रेखा AR= DR द्वारा दर्शायी गयी है। चित्र से स्पष्ट है कि अपूर्ण प्रतियोगिता का मूल्य PQ> पूर्ण प्रतियोगिता मूल्य MN और अपूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादन OQ< पूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादन मात्रा ON I
अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
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