निगमीय प्रबंधन

प्रबन्धकीय पारिश्रमिक की गणना हेतु शुद्ध लाभ का निर्धारण | Determination of Net Profit for Calculation Managerial Remuneration in Hindi

प्रबन्धकीय पारिश्रमिक की गणना हेतु शुद्ध लाभ का निर्धारण | Determination of Net Profit for Calculation Managerial Remuneration in Hindi

प्रबन्धकीय पारिश्रमिक की गणना हेतु शुद्ध लाभ का निर्धारण (धारा 198)

(Determination of Net Profit for Calculation Managerial Remuneration) [ Section 198]

संचालकों, प्रबन्ध संचालकों तथा प्रबन्धक को पारिश्रमिक दिए जाने के उद्देश्य से शुद्ध लाभ के निर्धारण से सम्बंधित प्रावधानों का उल्लेख भारतीय कम्पनी अधिनियम की धारा 197 में किया गया है। वस्तुतः प्रबन्धकीय पारिश्रमिक की गणना हेतु जिस शुद्ध लाभ का प्रयोग किया जाता है, वह कम्पनी के लाभ हानि विवरण में प्रदर्शित शुद्ध लाभ से भिन्न होता है। इसलिए शुद्ध लाभ का निर्धारण निम्न प्रकार किया जाता है:

(1) कम्पनी के सकल लाभ में निम्नलिखित मद को जोड़ा जाता है:

कम्पनी को सरकार से या सरकार द्वारा अधिकृत सार्वजनिक संस्थान (Public Authority) से प्राप्त आर्थिक सहायता या पारितोषिक, जब तक कि केन्द्र सरकार इसके विपरीत निर्देश न दे।

(2) कम्पनी के सकल लाभ में निम्नलिखित मदों को नहीं जोड़ा जाएगा:

(i) कम्पनी द्वारा निर्गमित किए गए अथवा बेचे गए अंशों एवं ऋणपत्रों पर प्रीमियम के रूप में प्राप्त लाभ की राशि।

(ii) कम्पनी द्वारा हरण किए गए अंशों के विक्रय पर प्राप्त लाभ।

(iii) कम्पनी के किसी उपक्रम या उसके भाग के विक्रय पर प्राप्त लाभ को शामिल करते हुए पंजीकृत प्रकृति के लाभ।

(iv) कम्पनी की किसी स्थायी सम्पत्ति के विक्रय से प्राप्त होने वाला लाभ, बशर्ते जब तक कि कम्पनी का व्यवसाय ऐसी सम्पत्तियों के क्रय-विक्रय का न हो। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि कम्पनी का व्यवसाय ही ऐसी सम्पत्तियों के क्रय-विक्रय का है तो उनके क्रय-विक्रय पर होने वाला लाभ, व्यवसाय का सामान्य लाभ ही माना जाएगा और लाभ की यह राशि सकल लाभ में जोड़ी जाएगी।

(v) समता कोषों में मान्यता प्राप्त किसी सम्पत्ति या दायित्व की धारित रकम में परिवर्तन, जिसके अन्तर्गत उचित मूल्य पर सम्पत्ति या दायित्व के माप के आधार पर लाभ-हानि विवरण में आधिक्य शामिल है।

(3) कम्पनी के सकल लाभ में से निम्नलिखित मदों को घटाया जाएगा :

(i) सम्पूर्ण सामान्य कार्यशील व्यापारिक व्यय।

(ii) संचालकों का पारिश्रमिक।

(iii) कम्पनी के कर्मचारियों, इंजीनियरों, तकनीशियनों या किसी अन्य व्यक्ति को दिया जाने वाला बोनस या कमीशन, जो चाहे पूर्णकालिक हों या अंशकालिक।

(iv) केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचित कोई ऐसा कर जो अतिरिक्त या असामान्य लाभों पर लगाया गया है।

(v) व्यावसायिक लाभों पर लगाया गया कर जिसे केन्द्र सरकार ने विशेष कारणों से अथवा विशेष परिस्थितियों में लगाया हो।

(vi) कम्पनी द्वारा निर्गमित किए गए ऋणपत्रों पर व्याज।

(vii) कम्पनी द्वारा चल और अचल सम्पत्तियों को बंधक रखकर लिए गए ऋणों एवं अग्रिमों पर ब्याज

(viii) असुरक्षित ऋणों एवं अग्रिमों पर ब्याज

(ix) सम्पत्तियों की मरम्मत पर किया गया व्यय बशर्ते कि वह पूंजीगत प्रकृति का न हो।

(x) धारा 181 के अन्तर्गत किए गए अंशदानों की राशि।

(xi) ह्रास-धारा 123 में निर्धारित सीमा तक।

(xii) यह अधिनियम लागू होने के समय या बाद में यदि शुद्ध लाभ की गणना में आय पर व्यय का आधिक्य हो और इसे बाद के वर्ष में शुद्ध लाभ ज्ञात करने हेतु घटाया नहीं गया हो।

(xiii) किसी वैधानिक उत्तरदायित्व के अन्तर्गत तथा अनुबंध भंग करने से उत्पन्न दायित्व को शामिल करते हुए, के बदले में भुगतान की गई कोई क्षतिपूर्ति पर नुकसान।

(xiv) उपर्युक्त क्रमांक (xiii) में वर्णित वैधानिक उत्तरदायित्व से उत्पन्न जोखिम के विरुद्ध बीमा के रूप में किया भुगतान।

(xv) अशोध्य ऋण, जिसे लेखा कार्य वर्ष के दौरान अशोध्य मानकर अपलिखित अथवा समायोजित कर दिया गया हो।

(4) कम्पनी के सकल लाभ में से निम्नलिखित मदों को नहीं घटाया जाएगा:

(i) भारतीय आयकर अधिनियम, 1961 के अन्तर्गत कम्पनी द्वारा देय आयकर,

(ii) कम्पनी द्वारा स्वेच्छा से भुगतान किया गया कोई नुकसान या क्षतिपूर्ति की राशि, एवं

(iii) पूंजीगत प्रकृति की हानियां। इसमें वह हानि भी शामिल होती है जो उपयुक्त या उसके किसी भाग को बेचने से होती है। परन्तु किसी सम्पत्ति के हटाने, गिरा देने या नष्ट करने या बेचने से प्राप्त विक्रय मूल्य पर अपलिखित मूल्य के आधिक्य को शामिल नहीं किया जाता है क्योंकि इस आधिक्य को लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित कर दिया जाता है।

(iv) निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व व्यय

(v) समता कोषों में मान्यता प्राप्त किसी सम्पत्ति या दायित्व की धारित रकम में परिवर्तन, जिसके अन्तर्गत उचित मूल्य पर सम्पत्ति या दायित्व के माप के आधार पर लाभ-हानि विवरण में आधिक्य शामिल है।

इस प्रकार उपर्युक्त तत्वों को ध्यान में रखते हुए उस शुद्ध लाभ का निर्धारण किया जाता है जिसके आधार पर संचालकों, प्रबन्ध संचालकों और प्रबन्धक को कम्पनी द्वारा पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है।

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Pankaja Singh

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