नैगम शासन या कारर्पोरेट प्रशासन का अर्थ | भारत में कार्पोरेट प्रशासन का महत्ता | प्रबन्धकीय निर्णय एवं विश्लेषण के उद्देश्य | प्रबन्ध निर्णय विश्लेषण प्रतिवेदन | Meaning of corporate governance or corporate governance in Hindi | Importance of Corporate Governance in India in Hindi | Objectives of Managerial Decision and Analysis in Hindi | Management Decision Analysis Report in Hindi
नैगम शासन या कारर्पोरेट प्रशासन का अर्थ
(Meaning of corporate Governance)
नैगम शासन या ‘कम्पनी शासन’ या कॉरपोरेट शासन प्रक्रियाओं, रिवाजों, नीतियों, कानून और संस्थाओं की एक व्यवस्था है, जिनसे निगम (या कंपनी) निर्देशित, प्रशासित या नियंत्रित होती है। कॉर्पोरेट प्रशासन में कई हितधारकों के बीच संबंध और लक्ष्य भी शामिल हैं, जिनके लिए निगम नियंत्रित होती है। प्रमुख हितधारकों में हैं, शेयरधारक/सदस्य, प्रबंधन और निदेशक मंडल, अन्य हितधारकों में शामिल हैं, श्रमिक (कर्मचारी), प्राहक, लेनदार (जैसे, बैक, बांड धारक), आपूर्तिकर्ता, नियामक और सामान्य रूप समुदाय लाभेतर-निगमों या अन्य सदस्ता संगठनों के लिए नीचे पाठ में “शेयरधारक” से तात्पर्य (यदि लागू हो) “सदस्यों” से है। कॉर्पोरेट प्रशासन, एक बहुआयमी विषय है। कॉर्पोरेट प्रशासन का एक महत्वपूर्ण विषय, संगठन में कुछ व्यक्तियों की जवाबदेही को ऐसे तंत्र के सहारे सुनिश्चित करना है, जो मालिक-एजेंट समस्या को खत्म करने की कोशिश करते हैं। संबंधित, लेकिन कुछ अलग बातचीत का सूत्र शेयरधारकों के कल्याण पर ज्यादा जोर सहित, आर्थिक दक्षता में कार्पोरेट प्रशासन प्रणाली के प्रभाव चर्चा को केंद्रित करती है। 2001 के बाद से आधुनिक निगमों के कॉर्पोरेट प्रशासन व्यवहार में, विशेषकर U.C, फर्म एनरॉन निगम और MCI Inc. (पूर्व वर्ल्डकॉम) जैसे प्रभावशाली प्रोफाइल वाली कई बड़ी कंपनियों के ढह जाने की वजह से ताजा दिलचस्पी दिखाई देती है। 2002 में, अमेरिकी संघीय सरकार ने कार्पोरेट प्रशासन में जनता के विश्वास को जगाने के इरादे से सरबेन्स-ऑक्सले अधिनियम पारित किया।
भारत में कार्पोरेट प्रशासन का महत्ता
भारत में कार्पोरेट प्रशासन की महत्ता निम्नलिखित कारणों से है:
(1) एक अच्छे कार्पोरेट प्रशासन युक्त कम्पनी अपने अंशधारियों को अत्यधिक विश्वास में रखती है।
(2) कार्य संलग्न निदेशक (Active Directors) जो कि सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं, वित्तीय बाजार में कम्पनी के अंशों को ऊंचे मूल्य पर रखने में सफल होते हैं।
(3) अच्छा कार्पोरेट प्रशासन विदेशियों को भी उस कम्पनी में निवेश हेतु आकर्षित करता है।
(4) कार्पोरेट प्रशासन न केवल कम्पनी के प्रबन्ध को नियान्त्रित करता है अपितु अंशधारियों, स्टेकहोल्डर्स, तथा विश्व में भारतीय अर्थव्यवस्था को अपनी पहचान बनाने में मदद करती है।
(5) भारतीय कम्पनी अधिनियम 2013, नये मापक एवं नियामक सुधारों को लागू किया है, परिणामस्वरूप उद्योगों के विकास में सहायता मिलती है। उद्योग विदेशी विनियोग को आकर्षित करते हैं तथा अन्तराष्ट्रीय मूल्य स्तर को बनाये रखने में सक्षम होती है।
(6) कार्पोरेट प्रशासन के द्वारा शेयर होल्डर्स का कम्पनी में भागीदारी में वैध होती है।
प्रबन्धकीय निर्णय एवं विश्लेषण के उद्देश्य
प्रबन्धकीय निर्णय एवं विश्लेषण के उद्देश्य निम्नलिखित है :
(1) कम्पनी के वित्तीय विवरणों की विस्तृत व्याख्या करना जिससे कि विनियोगकर्त्ता (Investors) कम्पनी को प्रबन्ध की दृष्टि से देख सकें।
(2) वित्तीय विवरणों की पारदर्शिता को प्रकट करना और विवरणों को सूचना योग्य बनाना।
(3) कम्पनी की विश्वसनीयता एवं प्रगति को विनियोगकर्ता के लिए उपलब्ध कराना एवं कम्पनी के नकद प्रवाह एवं लाभदायकता के बारे में अवगत कराना।
(4) कम्पनी की क्रियाओं (Operational activities) के बारे में सूचना उपलब्ध कराना।
(5) S.K303 (a) (3) के अनुसार, यदि सामग्री क्रय या श्रमिक लागत में किन्हीं कारणों से वृद्धि हो रही है तो इसे वार्षिक रिपोर्ट में सूचित करना।
(6) शुद्ध विक्रय में बृहद वृद्धि के बारे में अवगत कराना।
(7) आय (Revenue) तथा खर्चे के महत्वपूर्ण कारकों के बारे में सूचना प्रकट करना।
प्रबन्ध निर्णय विश्लेषण प्रतिवेदन
(Management Decisions Analysis Reporting)
प्रबन्ध निर्णय विश्लेषण प्रतिवेदन से आशय S-K303 (a) (3) के अनुसार कम्पनी की क्रियाओं के परिणामों का प्रतिवेदन प्रस्तुत करने से है जो कि न केवल आय विवरण के सांख्यिकीय समंकों से हैं अपितु एक निश्चित समय से निश्चित समय तक के परिवर्तन के कारणों को प्रस्तुत करने से भी है।
प्रतिवेदन की मुख्य बातें: (Main disclosure of Reporting)
- यदि वार्षिक रिपोर्ट में वित्तीय सूचनाओं का प्रारूप उचित रूप में प्रस्तुत किया गया है तो वित्तीय सूचनाओं को अंशधारियों हेतु S-X Article 11 के रूप में देना चाहिए।
- रिपोर्ट में हाल ही के वित्तीय वर्ष के बारे में सूचनाओं को संकलित करना चाहिए। प्रतिवेदन के साथ Footnote Proforma ASC 805 के अनुसार संलग्न करना चाहिए।
- रिपोर्ट में वित्तीय विवरण को तैयार करने की विधि, पीरियड, आय में वृद्धि लागत में वृद्धि आदि का पूर्ण विवरण होना चाहिए।
- बैलेन्स शीट का विवरण SK 303 (a) (4) के अनुसार होना चाहिए। सम्भाव्य दायित्व, मार्केट रिस्क, कम्पनी के भविष्य की योजनाओं आदि के बारे में जानकारी देनी चाहिए।
- तरलता में वृद्धि के स्रोतों एवं कमियों का उल्लेख भी करना चाहिए।
- ऋणों, गारन्टी, पूंजी संसाधन आदि तथ्यों का उल्लेख करना चाहिए।
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