निगमीय प्रबंधन

कम्पनी प्रबन्ध एवं नियंत्रण | निगमीय प्रबन्ध में कम्पनी प्रबन्ध एवं नियंत्रण की विवेचना

कम्पनी प्रबन्ध एवं नियंत्रण | निगमीय प्रबन्ध में कम्पनी प्रबन्ध एवं नियंत्रण की विवेचना | Company Management and Control in Hindi | Discussion of company management and control in corporate management in Hindi

कम्पनी प्रबन्ध एवं नियंत्रण

(Corporate management & control)

कम्पनी प्रबन्ध एवं नियंत्रण हेतु बोईस (Boards) को वृहत शक्तियां एवं अधिकार दिये गये हैं इनका विवरण निम्नलिखित है:

  1. कम्पनी के सभी अधिकार संचालक मण्डल को होना– कम्पनी के संचालक मण्डल उन सब अधिकारों का प्रयोग कर सकते हैं तथा वे सब काम कर सकते हैं जो एक कम्पनी कर सकती है। परन्तु वे ऐसे कार्य नहीं कर सकते जिन्हें कि इस अधिनियम या पार्षद सीमा नियम या अन्तर्नियमों के अनुसार या अन्य किसी आधार पर कम्पनी की साधारण सभा द्वारा ही किया जाना चाहिए। संचालकों को अपने अधिकारों का प्रयोग करते समय इस सम्बन्ध में कम्पनीज अधिनियम, पार्षद सीमा नियम या अन्तर्नियमों द्वारा लगाये गये प्रतिबन्धों को ध्यान में रखना चाहिए।
  2. संचालकों के अधिकार के प्रयोग में अंशधारियों का बाधा डालने का अधिकार का होना- संचालक-मण्डल कम्पनी के प्रबन्ध सम्बन्धी कार्य कर सकते हैं और अंशधारियों को उनके प्रबन्ध सम्बन्धी कार्य में बाधा डालने का कोई अधिकार नहीं है। अगर अंशधारी उनके कार्य से असंतुष्ट है, तो वे उन्हें अन्तर्नियमों में दिये हुए नियमों द्वारा निकाल सकते हैं।
  3. संचालकों को कम्पनी के अफसरों पर नियंत्रण करने का अधिकार- संचालक कम्पनी के अफसरों के कार्य पर भी नियंत्रण करते हैं-

(i) लेखाकर्म की पुस्तकें और अन्य पुस्तकें तथा प्रपत्र व्यावसायिक अवधि में निरीक्षण करने का अधिकार संचालकों को है।

(ii) प्रत्येक संचालक को संचालकों की प्रत्येक सभा को नोटिस पाने का अधिकार है। यह नोटिस ऐसे संचालक को जो उस समय भारत में है, लिखित दिया जाना चाहिए। अन्य संचालकों को उनके सामान्य पते पर दिया जाना चाहिए।

संचालक-मण्डल के विशेष अधिकारः

संचालक-मण्डल के निम्नलिखित विशेष अधिकार हैं-

  1. आकस्मिक रिक्त स्थानों की पूर्ति- आकस्मिक स्थान पर नये संचालक की नियुक्ति करने का अधिकार।
  2. अंश, ऋणपत्र, ऋण, विनियोग आदि से सम्बंधित अधिकार- अंशधारियों पर योजनाएँ करने का अधिकार, ऋणपत्र निर्गमन करने का अधिकार, ऋणपत्रों के अतिरिक्त अन्य प्रकार से राशियों के उधार लेने का अधिकार, कम्पनियों की राशियों को विनियोग करने का अधिकार, और ऋण देने का अधिकार।
  3. अधिकारों का हस्तान्तरण- संचालक मण्डल उपर्युक्त अधिकारों को दी हुई सीमाओं के अधीन, संचालकों की किसी कमेटी, प्रबन्ध संचालक, मैनेजर या कम्पनी के अन्य प्रमुख अधिकारी या कम्पनी के शाखा कार्यालय की दशा में, शाखा के प्रमुख अधिकारी को संचालक मण्डल की सभा में प्रस्ताव पास करके हस्तान्तरित कर सकता है।
  4. प्रबन्ध संचालक नियुक्त करने का अधिकार- किसी ऐसे व्यक्ति को प्रबन्ध संचालक नियुक्त करना जो किसी एक अन्य कम्पनी का प्रबन्ध संचालक पहले से ही हो।
  5. मैनेजर नियुक्त करने का अधिकार- किसी ऐसे व्यक्ति को मैनेजर नियुक्त करना जो पहले से ही किसी अन्य कम्पनी में मैनेजर या प्रबन्ध संचालक हो।
  6. कुछ व्यवस्थओं के अधीन कम्पनी का व्यवसाय चलाने का अधिकार- संचालक- मण्डल को कम्पनी के व्यापार चलाने का अधिकार कुछ व्यवस्थाओं के अधीन है।

कम्पनीज अधिनियम में संचालक मण्डल के अधिकारों पर प्रतिबन्ध

  1. कुछ कार्यो का कम्पनी की सहमति के बिना न करना- एक पब्लिक कम्पनी या उसकी सहायक प्राइवेट कम्पनी या संचालक-मण्डल अप्रांकित कार्यों को तब तक नहीं कर सकता है जब तक कि उस कम्पनी की सहमति इसकी साधारण सभा में न ले ले। इसीलिए इन्हें संचालकों के अधिकारों पर प्रतिबंध कहा जाता है।

(i) कम्पनी का कारोबार बेचना-कम्पनी के सम्पूर्ण अथवा लगभग सम्पूर्ण उपक्रम की बिक्री करना, पट्टे पर उठाना या अन्य प्रकार से देना;

(ii) संचालक द्वारा देय ऋण को समाप्त करना या अधिक समय देना- किसी संचालक द्वारा देय ऋण को remit करना या उसके भुगतान के लिए समय देना, परन्तु यह नियम एक बैंकिंग कम्पनी द्वारा व्यापार की साधारण दशा में अपने किसी संचालक को दिये गये अग्रिम (advance) के नवीनीकरण या चालू (renewal or continuance) रखने पर नहीं लगता है।

(iii) कम्पनी द्वारा प्राप्त क्षतिपूर्ति के धन को ट्रस्ट प्रतिभूतियों के अतिरिक्त अन्य प्रतिभूतियों में विनियोग करना- कम्पनी की सम्पत्ति को बेचने से मिली हुई क्षतिपूर्ति को संचालक, ट्रस्ट प्रतिभूतियों के अतिरिक्त अन्य प्रतिभूतियों में नहीं लगा सकते हैं।

(iv) कम्पनी के लिए ऋण लेना- इस अधिनियम के शुरू होने के बाद कम्पनी के लिए इतनी अधिक रकम उधार लेना कि उधार ली जाने वाली रकम और उस समय तक उधार ली हुई रकम को जोड़ कम्पनी की चुकती और स्वतंत्र संचय के योग से अधिक हो, परन्तु इन ऋणों के योग में वे अल्प अवधि के ऋण (temporary loans) शामिल नहीं किये जाते हैं, जो कम्पनी ने अपने बैंक से अल्प-अवधि के बाद लिये हों। यहाँ अल्प-अवधि से आशय उस ऋण से है जो माँग पर देय हो या 6 माह में देय हो।

  1. संचालक-मण्डल द्वारा राजनीतिक दलों अथवा राजनीतिक कार्य के लिए दान पर प्रतिबन्ध- सरकारी कम्पनी तथा ऐसी कम्पनी जिस तीन वित्तीय वर्ष से कम हुए हों कोई भी दान की राशि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी राजनीतिक दल को या राजनैतिक उद्देश्य के लिए किसी भी व्यक्ति को नहीं दे सकती है।
  2. राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में दान देना- संचालक मण्डल या कम्पनी के संचालक मण्डल के अधिकारों का प्रयोग करने वाला व्यक्ति या साधारण सभा द्वारा कम्पनी, राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा मान्य प्राप्त अन्य किसी फण्ड में जितनी राशि उचित समझे, दे सकती है। इस राशि को प्रत्येक कम्पनी उसके अपने लाभ-हानि खाते में दिखायेगी जिस वर्ष यह दान दिया जाता है।
  3. निस्तारक की नियुक्ति पर संचालक के अधिकारों की समाप्ति – कम्पनी के ऐच्छिक समापन की दशा में कभी भी कम्पनी के प्रबन्ध में कोई संचालक हस्तक्षेप नहीं करेगा।
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Pankaja Singh

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