पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत फर्म के संतुलन की व्याख्या | फर्म के साम्य से आशय | Explain the equilibrium of a firm under perfect competition in Hindi | Equity of the firm in Hindi
वर्ल्ड प्रतियोगिता के अंतर्गत फर्म की मांग रेखा (पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत फर्म के संतुलन की व्याख्या)–
पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत एक फर्म के लिए उसकी वस्तु की मांग रेखा पूर्णतया लोचदार होती है।
फर्म के साम्य से आशय–
एक फर्म साम्य की दशा मैं उस समय होगी जबकि उसके उत्पादन में कोई परिवर्तन ना हो और फर्म अपने उत्पादन में उस समय कोई परिवर्तन नहीं करेगी जबकि वह अधिकतम लाभ कमा रही है। इस प्रकार फर्म के साम्य से आशय उस स्थिति से है जिसमें फर्म का उत्पादन स्थिर रहता है अर्थात साम्यावस्था में फर्म उत्पादन की उस मात्रा पर पाई जाएगी जिस पर उसे अधिकतम लाभ या अधिकतम शुद्ध आय होती है।
- प्रो. वाटसन के अनुसार, “फर्म वहइकाई है जो लाभ प्राप्त करने की दृष्टि से बिक्री के लिए उत्पादन करती है। इसका उद्देश्य लाभ को अधिकतम करना होता है।”
- प्रो. हेन्सन के अनुसार “एक फर्म उस समय संतुलन में होगी जब उत्पाद की कमियां वृद्धि उसके लिए लाभकारी नहीं होगा।”
अधिकतम लाभ की स्थिति या साम्य स्थिति को 2 रीतियों से दर्शाया जा सकता है-(अ) कुल आगम तथा कुल व्यय रीति;(ब) सीमांत आय तथा सीमांत व्यय रीति।
फर्म का साम्य कुल आगम और कुल लागत रेखाओं की रीति से–
उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर फर्म का लाभ जानने के लिए एक ही चित्र में उसकी कुल लागत की रेखा को एक साथ दिखाते हैं। चित्र में TR रेखा कुल लागत रेखा है जबकि TC रेखा कुल लागत रेखा विभिन्नउत्पादन स्तरों पर इन रेखाओं के बीच खड़ी दूरी फर्म के लाभ को मानती है।
यदि फर्म Oq 1 से कम मात्रा में उत्पादन करे तो उसे हानि होगी, क्योंकि O से q 1 तक के क्षेत्र में TC रेखा TR से ऊपर बनी रहती है। यदि q 1 इकाइयों का उत्पादन किया जाए तो फर्म A बिंदु पर होगी, जहां TC = TR अर्थात न लाभ, न हानि। q से q 2 क्षेत्र के अंदर फार्म को लाभ होगा, क्योंकि TC रेखा TR से नीचे रहती है, अर्थात TC < TR किंतु B बिंदु पर न लाभ न हानि है और, इस बिंदु के आगे फर्म हानि में होगा, क्योंकि TC रेखा पुनः TR के ऊपर पहुंच जाती है जिसमें TC > TR।
दोष- इस रीति में कमियां हैं-एक तो TC और TR के बीच खड़ी दूरी कोई एक दृष्टि में सदैव आसानी से नहीं जाना जा सकता, दूसरी कुल् आगम (TR) को देखते ही बताया जा सकता है (जैसे- यह Oq उत्पादन स्तर पर Mq है) लेकिन प्रतीक आई कीमत को नहीं। प्रतीक आई कीमत को मालूम करने हेतु Mq में Oq का भाग देना पड़ता है।
फर्म का साम्य सीमांत और औसत रेखाओं की रीति से
- फार्म को अधिकतम लाभ की स्थिति वह है जिसमें MC और MR बराबर हों- चाहे बाजार स्थिति पूर्ण प्रतियोगिता की हो या एकाधिकार या अपूर्ण प्रतियोगिता की,प्रत्येक दशा में होने पर ही फर्म को अधिकतम लाभ होगा और वह उत्पादन में परिवर्तन नहीं करेगी, अर्थात फर्म साम्य की स्थिति में होगी। इसे फर्म की ‘सामान्य साम्य-दशा’ कहते हैं।
चित्र में बिंदु निम्नतम लाभ बिंदु है, क्योंकि यहां रेखा रेखा को ऊपर से काटती है और MC = MR है (MC मैं सामान्य लाभ शामिल हैं)। बिंदु B पर MC = MR किंतु MC रेखा MR को नीचे काटती हैं
A बिंदु से आगे MR > MC क्योंकि MR रेखा MC से ऊपर है। अतः फर्म अपने उत्पादन को बढ़ाएगी, क्योंकि ऐसा करने से वह अपने लाभ में वृद्धि कर सकेगी। B बिंदु पर पहुंचकर फर्म उत्पादन को नहीं बढ़ाएगी,क्योंकि यहां लाभ को अधिकतम करने की संभावनाएं समाप्त हो गई हैं। यहां MC = MR अर्थात एक अतिरिक्त इकाई को उत्पादित करके बेचने से प्राप्त आगम (अर्थात MR) उस अतिरिक्त इकाई को उत्पादन लागत (अर्थात MC) की बराबर हो जाता है। इस प्रकार OQ उत्पादन की साम्य मात्रा है।
यदि MR < MC जैसा कि बिंदु B के आगे हैं, तो फर्म अपने उत्पादन को घटाएं गीता की उसकी हानि कम हो। उत्पादन घटाने की प्रवृत्ति B बिंदु आने पर रुक जाएगी, क्योंकि यहां के। यहां MR = MC के। यहां पर अधिकतम लाभ की प्राप्ति के कारण फर्म साम्य की दशा में होगी।
- पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म के बारे में दूसरी महत्वपूर्ण बात उसकी मांग रेखा अर्थात औसत आगम रेखा (AR रेखा) एक खड़ी हुई रेखा होती है एवं AR =MR के होता है– उद्योग में कुल कुल पूर्ति (SS) और कुल मांग (DD) द्वारा वस्तु का मूल्य PQ निर्धारित होता है। इसे फर्म दिया हुआ मान लेगी और इस प्रकार फर्म के लिए मूल्य रेखा (या मांग रेखा या औसत आगम रेखा) PL पड़ी हुई होगी। फर्म PQ (= OP) मूल्यानुसार अपने उत्पादन को निश्चित करेगी। इस मूल्य पर वह q 1 ,q तथा q 3 (जितनी भी मात्रा चाहे) भेज सकती है।
यदि उद्योग में मांग पूर्ति संबंधी दशाएं बदल जाए, जैसे-मांग कम हो जाए जब की पूर्ति वही रहे, तो नहीं मांग रेखा D1 D1 होगी, जोधपुर की रेखा SS को बिंदु P1 पर काटेगी। अतः नया मूल्य P1 Q1 होगा और फर्म की AR रेखा P2 L2 हो जाएगी। यदि मांग बढ़ जाती, तो नया मूल्य होता है और फर्म की नई रेखा होती है। (चित्र अ)
चुकी फर्म के लिए कीमत दी हुई और उस पर चाहे जितनी मात्रा बेच सकती है, इसलिए एक अतिरिक्त इकाई को बेचने से प्राप्त आगम (MR) सही होगी जो कि वस्तु की कीमत (AR) है अर्थात AR = MR के।(चित्र ब)
- पूर्ण प्रतियोगिता में AR (कीमत) और MC बराबर होते हैं– चूंकी समय की स्थिति में MR = MC के और पूर्ण प्रतियोगिता में, AC = MR के, इसलिए AR = MR = MC के अथवा, AR (कीमत) =MC के।
- अल्पकाल में फर्म का साम्य-चूंकी अल्पकाल मेंसमय इतना कम होता है कि मांग में होने वाले परिवर्तनों के अनुरूप पूर्ति को घटाना-बढ़ाना संभव नहीं होता, इसलिए फर्म के साम्य की दशा में उसको लाभ, शून्य (सामान्य लाभ मात्र) या हानि हो सकती है।
चित्र में RL फर्म के लिए उद्योग (कुल मांग और कुल पूर्ति)द्वारा निर्धारित कीमत रेखा है जिसे दिया हुआ मान फर्म वस्तु के उत्पादन की मात्रा पर निर्धारित करेगा, जहां MC रेखा को नीचे से काटती है, अर्थात MC = MR के और इसलिए बिंदु P अधिकतम लाल बिंदु है (जबकि A निम्नतम लाभ बिंदु है, क्योंकि यहां MC रेखा MR को ऊपर से काटती है), P बिंदु पर फर्म साम्यमैं है। यह उत्पादन में परिवर्तन करने का प्रयास नहीं करेगी। फर्म के कुल लाभ को जानने हेतु AR और AC रेखाओं के बीच खड़ी दूरी (=PS) पर ध्यान दीजिए। कुल लाभ =(प्रति इकाई लाभ) × इकाइयां = PS × ST =Rectangle PSTR.
चित्र में फर्म के लिए उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत RL है,साम्य बिंदु P है जहां MC = MR और MC रेखा MR रेखा के नीचे से काटती है। ध्यान दीजिए कि AR रेखा AC देखा को न्यूनतम बिंदु पर स्पर्श करती है अर्थात बिंदु P पर AR (कीमत) = AC के। चूंकी कीमत ठीक औसत लागत के बराबर है इसलिए फर्म को मात्र सामान्य लाभ (जोकि लागत को ही अंग माना जाता है) क्या आप तो होगा पर विराम अतिरिक्त लाभ होगा। फर्म OQ मात्रा का उत्पादन करेगा, जबकि कीमत होगी।
संलग्न चित्र में फर्म के लिए दी हुई मूल्य रेखा RL है, जिसकी दशा AR = MR की हैं। फर्म P बिंदु पर साम्यावस्था में है, क्योंकि वहां MR = MC के और MC रेखा को नीचे से काटती है। इस अवस्था में जब हम AR और AC रेखाओं पर विचार करते हैं तो पता चलता है कि फर्म हानि उठा रही है, क्योंकि AC रेखा कीमत रेखा RL के ऊपर है। कुल हानि =प्रति इकाई हानि × उत्पादन इकाइयों की संख्या = NP × OQ = NP × NK = Rectangle NPJK। जहां प्रश्न उठता है कि हानी होते हुए भी क्या फर्म उत्पादन करना जारी रखेगी?
उपायुक्त प्रश्न के उत्तर हेतु हमें AVC (औसत परिवर्तनशील लागत) रेखा की सहायता लेनी होगी। काल में फर्म अपनी जितनी वस्तु उस कीमत पर बेचेगी, जिससे उसकी कुल औसत लागतें (= Total Averge Costs = स्थाई लागतें + परिवर्तनशील लागतें) निकल आए।यदि कीमत कम है और उसकी कुल 68 वसूलना हो सके, तो वह उत्पादन बंद कर देगा। परंतु अल्पकाल में यदि उसकी परिवर्तन से लगतें ही वसूल हो जाए, तो भी वह उत्पादन जारी रखेगा चाहे स्थिर लगतें पूर्णतया अथवा आंशिक रूप से वसूल न हो पाने के कारण वह हानि ही उठाएं। चित्र में जब सीमांत रेखा JZ के बजाय BT हो जाती है तो वस्तु की कीमत (AR) ठीक AVC के तुल्य होगी, क्योंकि नई कीमत रेखा AVC को S बिंदु पर मिलती है। इस बिंदु से नीचे की मौत होने पर उसकी परिवर्तनशील लगतें भी वसूल न हो सकेगी, जिससे वह अल्पकाल में भी उत्पादन बंद कर देगी। इस प्रकार S बिंदु उत्पादन बंद होने का बिंदु (Shut Down Point) है। यहां OQ 1 अल्पकाल में निम्नतम उत्पादन मात्रा है। BT ‘उत्पादन बंद कर देने की कीमत रेखा’ (Cease Production Price Line) है।
- दीर्घकाल में फर्म का साम्य- दिल के काल में वस्तु की पूर्ति की मांग के अनुरूप ही समायोजित करने हेतु पर्याप्त समय मिल जाता है। अतः दीर्घकाल में फर्म केवल सामान्य लाभ कमा सकेगी। अतिरिक्त लाभ या हानि नहीं होगी। कारण यदि फर्म को लाभ (अतिरिक्त) हो रहा है अर्थात AR > AT तो अन्य उद्योग में प्रवेश करके पूर्ति को बढ़ा देगी जिससे कीमत (AR) घटकर ठीक औसत लागत (AC) के बराबर हो जाएगी। यह फर्म की हानि हो रही है अर्थात AR < AC तो वह है और उस जैसी अन्य फर्में उद्योग से निकल जाएंगी या उत्पादन घटा देंगी जिससे पूर्ति कम होकर AR ठीक AC ही बराबर हो जाएगी।
इस प्रकार दीर्घकाल में फर्म के साम्य की दोहरी शर्त होगी- प्रथमत: MR = MC के और द्वितीय AR = AC के अर्थात AR = MR = MC = AC (अर्थात कीमत = सीमांत आगम = सीमांत लागत = औसत लागत) । चूंकि दीर्घकाल में AR, MR, MC और AC सब बराबर होती हैं।इसलिए कहा जाता है कि दीर्घकाल में पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत फर्म के साम्यके लिए सब चीजें बराबर हैं। यही स्थिति उपर्युक्त चित्र में दिखाई गई है। P बिंदु शून्य लाभ (या मात्र सामान्य लाभ) बिंदु है, क्योंकि यहां दीर्घकालीन औसत लागत, दीर्घकालीन सीमांत लागत, और सीमांत आगम सब बराबर है। ध्यान दीजिए कि P बिंदु पर AC न्यूनतम है और कीमत (AR) उसके बराबर है। अतः दीर्घ काल में पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत साम्यावस्था वाली फर्म एक न्यूनतम लागत फर्म (Least Cost Firm) होगी।
अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
- अनुकूलतम साधन संयोग का अर्थ | उत्पादन के संतुलन की व्याख्या
- उत्पादक का संतुलन या साधनों का अनुकूलतम सहयोग का वर्णन | Description of productive balance or optimal support of resources in Hindi
- दीर्घ काल में लागत व्यवहार का विश्लेषण | Cost behavior analysis over the long term in Hindi
- पैमाने के प्रतिफल से आप क्या समझते हैं? । पैमाने के वर्धमान प्रतिफल का उदाहरण देकर संक्षेप में वर्णन
- परिवर्तनशील लागत नियम | परिवर्तनशील अनुपात नियम की परिभाषा | परिवर्तनशील अनुपात नियम की मान्यताएं
- पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत में मूल्य का निर्धाणन | Determination of price in full competition in Hindi
- पूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा | पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की विशेषताएं
Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com