सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा | सामाजिक परिवर्तन के प्रतिमान | सामाजिक परिवर्तन के प्रकार | सामाजिक परिवर्तन तथा सांस्कृतिक परिवर्तन में अन्तर
सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा
(1) मैकाईवर तथा पेज – ‘उस परिवर्तन को ही केवल सामाजिक परिवर्तन मानेंगे जो इनमें (अर्थात् सामाजिक सम्बन्धों) हो।”
(2) जोन्स – “सामाजिक परिवर्तन वह शब्द है जो सामाजिक प्रक्रियाओं, सामाजिक प्रतिमानों, सामाजिक अन्तक्रियाः या सामाजिक संगठन के किसी अंग में अन्तर अथवा रूपान्तर को वर्णित करने में प्रयोग किया जाता है।’
(3) के. डेविस – “सामाजिक परिवर्तन से केवल वे ही परिवर्तन समझे जाते हैं जो सामाजिक संगठन के अर्थात समाज के ढांचे और कार्यों में घटित होते हैं।“
सामाजिक परिवर्तन के प्रतिमान या प्रकार
सामाजिक परिवर्तन का स्वरूप हमेशा एक जैसा नहीं होता है। अतः हमें सामाजिक परिवर्तन के स्वरूप के संदर्भ में उसके प्रतिमान या प्रकार पर विचार करना चाहिए।
सामाजिक परिवर्तन के अनेक प्रतिरूप देखने को मिलते है। मैकाइवर व पेज ने सामाजिक परिवान के तीन स्वरूपों की चर्चा करते हैं-
(क) सामाजिक परिवर्तन कभी-कभी क्रमबद्ध तरीके से एक ही दिशा में निरंतर चलता रहता है, भले ही परिवर्तन का आरम्भ एकाएक ही क्यों न हो। उदाहरण के लिए, हम विभिन्न आविष्कारों के पश्चात् परिवर्तन के क्रमों की चर्चा कर सकते हैं। ऐसे परिवर्तन को हम रेखीय परिवर्तन कहते हैं। अधिकांश उद्विकासीय समाजशास्त्री पर रेखीय सामाजिक परिवर्तन में विश्वास करते है।
(ख) कुछ सामाजिक परिवर्तनों में परिवर्तन की प्रकृति ऊपर से नीचे तथा नीचे से ऊपर जाने को होती है, इसलिए इसे उतार-चढ़ाव परिवर्तन (fluctuating changes) के नाम से भी हम जानते है। उदाहरण के लिए भारतीय सांस्कृतिक परिवर्तन की चर्चा कर सकते हैं। पहले। भारत के लोग अध्यात्मवाद की ओर बढ़ रहे हैं जबकि आज व उसके विपरीत भौतिकवाद की ओर बढ़ रहे हैं। पहले सामाजिक मूल्य त्याग पर जोर देता था, जबकि आज का सामाजिक मूल्या ‘भोग एवं संचय पर जोर देता है। इस प्रतिरूप के अंतर्गत यह निश्चित नहीं होता कि परिवर्तन कब और किस दिशा में उन्मुख होगा।
(ग) परिवर्तन के तृतीय प्रतिरूप को तंरगीय परिवर्तन के नाम से जाना जाता है। इस परिवर्तन के अंतर्गत उतार-चढ़ावदार परिवर्तन में परिवर्तन की दिशा एक सीमा के बाद विपरीत दिशा में उन्मुख हो जाती है। इसमें लहरों की भांति एक के बाद दूसरा परिवर्तन आता है। ऐसा कहना मुश्किल होता है कि दूसरी लहर पहली लहर के विपरीत है। हम यह भी कहने की स्थिति में नहीं है कि दूसरा परिवर्तन पहले की तुलना में उन्नति या अवनति का सूचक हैं। इस प्रतिरूप का सटीक उदाहरण फैशन है। हर समाज में नये-नये फैशन की लहरें आती रहती है। हर फैशन में लोगों को कुछ न कुछ नये परिवर्तन दिखाई देते हैं। ऐसे परिवर्तनों में उत्थान, पतन और प्रगति की चर्चा फिजूल है।
सामाजिक परिवर्तन तथा सांस्कृतिक परिवर्तन में अन्तर
सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन में निम्नलिखित अन्तर है-
(क) सामाजिक परिवर्तन मात्र सामाजिक संबंधों में होने वाला परिवर्तन है। जबकि सांस्कृतिक परिवर्तन धर्म, ज्ञान, विश्वास, कला, साहित्य, प्रथा, कानून आदि सभी क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तन है।
(ख) सामाजिक परिवर्तन में सामाजिक संरचना में परिवर्तन का बोध होता जबकि सांस्कृतिक परिवर्तन से संस्कृति के विभिन्न पक्षों में होने वाले परिवर्तनों का बोध होता है।
(ग) सामाजिक परिवर्तन चेतन एवं अचेतन दोनों परिवर्तनों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है, जबकि सांस्कृतिक परिवर्तन प्रायः सचेत प्रयत्नों से घटित होता है।
(घ) सामाजिक परिवर्तन की गति काफी तीव्र भी हो सकती है, जबकि सांस्कृतिक परिवर्तन की गति अपेक्षाकृत कम तीव्र होती है। इसका तात्पर्य यह है कि सामाजिक संबंधों में परिवर्तन तेजी से भी हो सकता है जबकि धर्म, विश्वास जीव के मूल्यों आदि में परिवर्तन धीमी रफ्तार से होता है।
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