इतिहास

महात्मा गाँधी और भारतीय समाज | महात्मा गाँधी के सांस्कृतिक योगदान | गांधी जी की विचारधारा का भारतीय समाज तथा संस्कृति पर प्रभाव

महात्मा गाँधी और भारतीय समाज | महात्मा गाँधी के सांस्कृतिक योगदान | गांधी जी की विचारधारा का भारतीय समाज तथा संस्कृति पर प्रभाव

महात्मा गाँधी और भारतीय समाज

गाँधी जी भारत के केवल राजनीतिक नेता ही नहीं थे। उनका कार्य-क्षेत्र धर्म, समाज सुधार, शिक्षा, यहां तक कि चिकित्सा शास्त्र तक भी फैला हुआ था। मानव जीवन से सम्बन्धित शायद ही कोई क्षेत्र हो, जिसमें उन्होंने कुछ कार्य न किया हो। भारतीय समाज के प्रति उनकी सेवाओं पर विचार करते हुए हमें क्रमशः स्वाधीनता संग्राम, साम्प्रदायिकता का विरोध, हरिजन-उद्धार, नारी स्वतन्त्रता, मद्य-निषेध, कुटीर उद्योग, स्वदेशी आन्दोलन, राष्ट्रभाषा प्रचार, बुनियादी तालीम आदि पर विचार करना होगा।

(1) स्वाधीनता संग्राम का नेतृत्व- जब गांधी जी अफ्रीका से भारत लौटे, तब भारत में कांग्रेस पर गरम दल वालों का प्रभुत्व था, जिनके नेता लोकमान्य तिलक थे। परन्तु गांधी जी के आते ही कांग्रेस की बागडोर-उनको सौंप दी गई। वह देश के सबसे बड़े नेता माने गये। सत्य और अहिंसा के, सत्याग्रह और असहयोग के नवीन शस्त्रों का प्रयोग करके उन्होंने स्वाधीनता संग्राम को एक नया रूप दिया। इस बारे में मतभेद हो सकता है कि ये नये शस्त्र किस सीमा तक सफल रहे, परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि गांधी जी ने स्वाधीनता संग्राम को आराम कुर्सियों के क्षेत्र से हटा कर देश के गांव-गांव और शहर-शहर तक पहुँचा दिया। उन्होंने देशवासियों में अभूतपूर्व राजनीतिक चेतना उत्पन्न कर दी। अनेक असफलताओं के बाद भी वह निराश नहीं हुए। डा० सत्यकेतु विद्यालंकार ने लिखा है कि “गांधी जी के नेतृत्व की भारत को सबसे बड़ी देन यही है कि उन्होंने स्वराज्य आन्दोलन को सर्वसाधारण जनता तक पहुँचा दिया।’

(2) साम्प्रदायिकता का विरोध या हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए प्रयत्न- गांधी जी ने भारत में आते ही यह देख लिया था कि अंग्रेज हिन्दुओं और मुसलमानों को आपस में लड़ा कर इस देश पर राज्य करते रहना चाहते हैं। राजनीतिक दृष्टि से तथा सहिष्णुतापूर्ण धार्मिक दृष्टि से भी गांधी जी का यह दृढ़ मत बना कि चाहे जैसे भी हो, हिन्दुओं और मुसलमानों में एकता स्थापित होनी चाहिए। उन्होंने इसके लिए भरसक प्रयत्न किया। इसमें उन्हें सफलता न मिली; इसका बड़ा कारण यह था कि अंग्रेजी सरकार साम्प्रदायिक तत्त्वों को भड़का कर गांधी जी के सब प्रयत्नों पर पानी फेर देती थी। परन्तु गांधी जी मृत्यु-पर्यन्त निष्ठापूर्वक इस प्रयत्न में जुटे रहे और इसके लिए उन्होंने गौआखाली की पैदल यात्रा जैसे जोखिम भी अपने सिर लिये। दिल्ली में उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम दंगे को रोकने के लिए अनशन भी किया।

(3) हरिजन-उद्धार- साम्प्रदायिकता की भांति एक समस्या हरिजनों की भी थी। हरिजन हिन्दू समाज के दलित वर्ग थे। इनकी दशा सचमुच शोचनीय थी। सवर्ण हिन्दू इन्हें अछूत मानते थे और तरह-तरह से इनका शोषण करते थे। अंग्रेज सरकार ने इन दलित वर्गों को, जिन्हें बाद से ‘अनुसूचित जातियाँ’ कहा जाने लगा, हिन्दू समाज से अलग करने के लिए उन्हें पृथक् मताधिकार देने का निर्णय किया। इस साम्प्रदायिक निर्णय (कम्यूनल अवार्ड) के अनुसार इन अनुसूचित जातियों के प्रतिनिधियों का निर्वाचन अलग इन अनुसूचित जातियों के मतदाताओं द्वारा ही होना था। बाकी हिन्दू उसमें भाग नहीं ले सकते थे। यदि इस योजना को मान लिया जाता, तो ये अनुसूचित जातियों हिन्दू समाज से सदा के लिए उसी प्रकार पृथक् हो जातीं, जिस प्रकार मुसलमान हो गये थे। अतः गांधी जी ने एक ओर तो इस साम्प्रदायिक निर्णय के विरुद्ध आमरण अनशन किया और दूसरी ओर सवर्ण हिन्दुओं पर हरिजनों की दशा सुधारने के लिए भारी दबाव डाला। उनके प्रयल से साम्प्रदायिक निर्णय रद्द हुआ और सवर्ण हिन्दुओं ने हरिजनों की दशा सुधारने के लिए क्रान्तिकारी कदम उठाये। उन्हें मन्दिरों में प्रवेश का अधिकार दिया गया, अस्पृश्यता समाप्त की गई; उनके साथ खान-पान भी शुरू किया गया। परन्तु सच्चाई यह है कि हरिजन आज भी एक पृथक् वर्ग ही बने हुए हैं। जिस बात से गाँधी जी बचना चाहते थे, उससे बचा नहीं जा सका।

(4) नारी-स्वतन्त्रता- सन् 1914 के आसपास भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति भी बड़ी दयनीय थी। पुरुषों की तुलना में उन्हें कुछ भी अधिकार नहीं थे। हिन्दू या मुसलमान पुरुष कई स्त्रियों से विवाह कर सकता था। हिन्दू स्त्री तलाक नहीं ले सकती थी। स्त्री-शिक्षा नहीं के बराबर थी। बाल-विवाह की प्रथा आम थी। विधवाओं के विवाह नहीं होते थे। गांधी जी नारी-स्वतंत्रता के पक्षपोषक थे। उनका विचार था कि स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार मिलने चाहिए। उन्होंने स्त्री- शिक्षा के लिए प्रयल किया और सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा, विजयलक्ष्मी पंडित, राजकुमारी अमृत कौर, कमला नेहरू आदि को स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

(5) मद्य निषेध- गांधी जी ने मद्यपान की बुराइयों को निकट से देखा था। मद्य निषेध उनके रचनात्मक कार्यक्रम का प्रधान अंग था। उनका कहना था कि “यदि मुझे केवल एक घंटे के लिए स्वराज्य मिल जाये, तो मेरा पहला काम यह होगा कि शराब की सब दुकानों और कारखानों को बिना मुआवजा दिये तुरन्त बन्द कर दिया जाये।” स्वाधीनता संग्राम के दिनों में शराब की दुकानों पर धरना दिया गया। सन् 1937 में जब प्रान्तों में पहली बार कांग्रेसी मंत्रिमंडल बने, तब मद्य निषेध किया गया। परन्तु भारत के पूर्ण स्वाधीन होने पर देश भर में मद्य-निषेध नहीं किया जा सका।

(6) कुटीर उद्योग- गांधी जी का विचार था कि बड़े उद्योग भारत के लिए हितकारी नहीं हैं। इनसे पूंजी कुछ थोड़े से लोगों के हाथों में संचित हो जाती है और धन का समाज में उचित वितरण नहीं हो पाता। इसलिए उन्होंने खादी तथा कुटीर उद्योगों का समर्थन किया था।

(7) स्वदेशी आन्दोलन- विदेशी वस्तुओं को खरीदने से देश का धन बाहर जाता है। इसलिए विदेशी वस्तु केवल वही खरीदनी चाहिए, जो स्वदेश में न बनती हो और जिसके बिना काम न  चल सकता हो। गांधी जी ने विदेशी कपड़े का बहिष्कार करने और स्वदेशी वस्त्र पहनने का आग्रह किया।

(8) राष्ट्रभाषा प्रचार- गांधी जी अनुभव करते थे कि अंग्रेजी इस देश की राष्ट्रभाषा नहीं बन सकती; अतः उन्होंने राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी (हिन्दुस्तानी) को अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने इस राष्ट्रभाषा के प्रचार के लिए वर्धा में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’ और मद्रास में दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार समिति’ की भी स्थापना करवाई। वह अपना साप्ताहिक पत्र ‘हरिजन सेवक’ हिन्दी में भी निकालते थे। गांधी जी का विश्वास था कि यह राष्ट्रभाषा सारे देश को एकता के सूत्र में बांध सकती है।

(9) बुनियादी तालीम- गांधी जी का विचार था कि अंग्रेजों द्वारा भारत में चलाई गई शिक्षा पद्धति दूषित है। यह केवल अक्षरज्ञान कराती है। यह छात्र को अपने पैरों पर खड़ा होने में समर्थ नहीं बनाती। इसका देश की अर्थ-व्यवस्था से कोई सम्बन्ध नहीं है। इस शिक्षा को पाकर देश के युवक बेरोजगारों की संख्या को बढ़ाते हैं। शिक्षित हो जाने के बाद वे शारीरिक श्रम के काम करना नहीं चाहते। इसलिए गांधी जी ने बुनियादी तालीम की योजना बनाई थी, जो अपने क्षेत्र के कृषि आदि व्यवसायों पर आधारित होनी थी। लक्ष्य यह था कि अक्षरज्ञान के साथ-साथ छात्र को कुछ ऐसी कलाएं या शिल्प भी सिखा दिये जायें, जिनसे वह आसानी से अपनी जीविका कमा सकें और नौकरी की खोज में मारा-मारा न फिरे।

(10) प्राकृतिक चिकित्सा- गांधी जी का प्रवेश चिकित्सा के क्षेत्र में भी था। वह बहत्तर वर्ष की आयु में भी स्वस्थ और सक्रिय थे। उन्होंने अपने ऊपर अनेक प्रयोग किये थे और वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक चिकित्सा का अधिकाधिक सहारा लेना चाहिए। वह अन्य रोगियों की चिकित्सा भी करते थे।

(11) गांधी जी का धर्म- यों गांधी जी हिन्दू थे, परन्तु उनका धर्म निराला ही था। वह सर्वधर्मसमन्वयवादी थे। उनका कहना था कि सब धर्मों में अच्छी-अच्छी बातें हैं। हमें उन्हें ग्रहण करना चाहिए। उनके मन में कट्टरता का अभाव था और सब धर्मों के प्रति सहिष्णुता की भावना थी। उनकी दैनिक प्रार्थना में वेद, गीता, कुरान, बाइबिल आदि अनेक धर्मग्रंथों के अंशों का पाठ होता था। वस्तुतः गांधी जी की धर्म की धारणा बहुत कुछ अशोक या अकबर की सी थी। वह ईश्वर में दृढ़ विश्वास रखते थे। सत्य और अहिंसा को उन्होंने अपना प्रधान व्रत बनाया था और इनके लिए वह प्रसिद्ध हो गये थे। उन्होंने धर्म को राजनीति के साथ मिला दिया था। उनका कहना था कि मेरी अहिंसा निर्बलों और कायरों की अहिंसा नहीं, अपितु वीरों और बलवानों की अहिंसा है। अपने इन विचारों से उन्होंने एक निहत्थे राष्ट्र को संसार के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य के विरुद्ध लड़ने के लिए कटिबद्ध कर दिया। यह संयोग की बात थी कि भारत की स्वाधीनता प्राप्ति का लक्ष्य उनके जीवन काल में ही पूरा हो गया।

गांधी जी की विचारधारा का भारतीय समाज तथा संस्कृति पर प्रभाव

सत्याग्रह और असहयोग की भावना- गांधी जी ने इन उपायों का अवलम्बन विदेशी सरकार से लड़ने के लिए किया था। लोगों ने इन उपायों का प्रयोग सीख लिया।

अनशन और हड़तालें गांधी जी ने इन उपायों का प्रयोग स्वाधीनता प्राप्ति के लिए किया था। लोगों ने अपनी उचित-अनुत्तित सब माँगें मनवाने के लिए इनका प्रयोग शुरू कर दिया।

खद्दर और गांधी टोपी- एक लम्बे समय तक भारत के राष्ट्रवादियों का वेश बना रहा।

हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य- गांधी जी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जितना जोर दिया, उतना ही मुसलमान हिन्दुओं से दूर हटते गये। परिणाम देश का विभाजन हुआ।

सत्य और अहिंसा- गांधी जी के प्रिय सिद्धान्त थे। भारतवासियों पर इनका कोई बड़ा प्रभाव दिखाई नहीं पड़ता। अन्यथा देश में इतना भ्रष्टाचार न होता।

मद्य निषेध- अपनाने के बाद त्याग दिया गया।

बुनियादी तालीम- केवल दिखाने के लिए शुरू की गई थी, फिर छोड़ दी गई।

हरिजन आन्दोलन- हरिजनों को हिन्दू समाज का अभिन्न अंग रखने के लिए गांधी जी ने अनशन किया था। पर हरिजन एक पृथक् इकाई बन ही गये।

प्राकृतिक चिकित्सा- गांधी जी को प्रिय थी। परन्तु उसका विशेष प्रचार नहीं हुआ।

नारी-कल्याण- गांधी जी ने स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए प्रयत्न किया था। उसमें सफलता मिली। देश में स्त्रियों की स्थिति सुधर गई है।

आवश्यकताएं घटाने का उपदेश गांधी जी सदा करते रहे। पर जनता पर उसका कोई प्रभाव नहीं दीखता।

बड़े उद्योगों- का गांधी जी विरोध करते थे। पर बड़े उद्योग खूब पनपे हैं।

गांधी जी के अधिकांश सदुपदेशों और विचारों को जनता ने ग्रहण नहीं किया। अनशन, हड़ताल आदि का दुरुपयोग किया गया।

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Pankaja Singh

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