शिक्षाशास्त्र

लाभ वुड का घोषणा पत्र 1854 | वुड के घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशें | वुड के घोषणा पत्र का मूल्यांकन

लाभ वुड का घोषणा पत्र 1854 | वुड के घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशें | वुड के घोषणा पत्र का मूल्यांकन

लाभ वुड का घोषणा पत्र 1854

सन् 1833 ई० के बाद सन् 1853 ई० में कम्पनी के आज्ञा पत्र को बदलने का अवसर आया। आज्ञा पत्र का नवीनीकरण प्रति 20 वर्ष बाद होता था। परिणामस्वरूप कम्पनी की शिक्षा नीति में परिवर्तन होना आवश्यक था। भारतीय शिक्षा की प्रगति की जाँच करने के लिये एक संसदीय समिति की स्थापना की गई। समिति ने जाँच करने के उपरांत यह बताया कि भारत की शैक्षिक आवश्यकताओं को अधिक दिनों तक टालना हितकर नहीं है और भारतीय जनता को शिक्षित करने में कोई राजनैतिक हानि नहीं है। इस समिति के सुझावों के अनुसार 19 जुलाई, 1854 को कम्पनी के संचालकों ने भारतीय शिक्षा सम्बन्धी अपनी नीति की घोषणा की। इस समय कम्पनी के बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल’ का सभापति सर चार्ल्स वुड था। उसी के नाम से यह घोषणा-वुड का घोषणा-पत्र’ कहलायी। इस घोषणा-पत्र में 190 अनुच्छेद हैं जिनमें भारतीय शिक्षा की समस्या पर विचार किया गया और महत्वपूर्ण सिफारिशें की गयी।

वुड के घोषणा-पत्र की प्रमुख सिफारिशें Main Recommendations of the Wood’s Despatch)

(1) शिक्षा का उत्तरदायित्व-वुड के घोषणा- पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि शिक्षा का उत्तरदायित्व कम्पनी को देना चाहिये ! घोषणा-पत्र में कहा गया है-

“अनेक महत्वपूर्ण विषयों में से अन्य कोई भी विषय हमारा इतना ध्यान आकर्षित नहीं करता है जितना कि शिक्षा । वह हमारे पुनीत कर्त्तव्यों में से एक है।”

(2) शिक्षा के उद्देश्य- घोषणा-पत्र में शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित करते समय अंग्रेजी शासन के हितों का ध्यान रखा गया है। घोषणा-पत्र में शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बताये गये हैं-

(अ) मानसिक विकास करना, (ब) चरित्र निर्माण करना, (स) शासन के प्रति वफादार व्यक्तियों का निर्माण करना, (द) राज्य पदों के लिये सुयोग्य व्यक्ति ।

घोषणा-पत्र में शिक्षा के उद्देश्य बताते हये कहा गया है-

“शिक्षा द्वारा भारतीयों की बौद्धिक एवं चारित्रिक उन्नति करने के साथ ही ऐसे व्यक्तियों को उत्पन्न करना था जो राज्य को सुदृढ़ बना सकें और विश्वास के साथ राजपदों पर नियुक्त किये जा सकें।”

(3) पाठ्यक्रम- घोषणा-पत्र में संस्कृत, अरबी तथा फारसी को उपयोगी बताते हुये पाठ्यक्रम में रखने का सुझाव दिया गया है। इन भाषाओं को कानून की दृष्टि से उपयोगी माना गया है। इन भाषाओं के साथ ही पाश्चात्य साहित्य तथा विज्ञान को भी पाठ्यक्रम में रखने का सुझाव दिया गया है। पाठ्यक्रम के सम्बन्ध में घोषणा-पत्र में कहा गया है-

“हम बलपूर्वक घोषित करते हैं कि जिस शिक्षा का प्रसार हम भारत में करना चाहते हैं, उसका उद्देश्य यूरोपीय उच्च कला, विज्ञान, दर्शन और यूरोपीय साहित्य अर्थात् संक्षेप में यूरोपीय ज्ञान है।”

(4) शिक्षा का माध्यम शिक्षा के माध्यम के संबंध में कहा गया है कि भारतीय भाषाओं में पाठ्य- पुस्तकों की कमी के कारण शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी ही रहेगा। परन्तु जिन लोगों को अंग्रेजी का समुचित ज्ञान नहीं है उन्हें भारतीय भाषाओं में शिक्षा दी जानी चाहिये । अतः अंग्रेजी और देशी भाषाओं दोनों को शिक्षा का माध्यम बनाने को कहा गया है। घोषणा-पत्र के अनुसार-

“हम यूरोपीय ज्ञान के प्रसार के लिये अंग्रेजी भाषा और भारत की देशी भाषाओं को शिक्षा के माध्यम के रूप में साथ-साथ देखने की आशा करते हैं।”

(5) शिक्षा विभागों की स्थापना- वुड के घोषणा-पत्र में सुझाव दिया गया है कि भारत के प्रान्त में एक जन शिक्षा विभाग’ की स्थापना की जाये। प्रत्येक विभाग का एक सर्वोच्च अधिकारी जन-शिक्षा-संचालन नियुक्त होना चाहिये। जन-शिक्षा संचालन के कार्यों में सहायता करने के लिये उप-शिक्षा संचालकों, विद्यालय निरीक्षकों की नियुक्ति होनी चाहिये।

(6) क्रमबद्ध विद्यालयों की स्थापना- धोषणा-पत्र में देश के क्रमबद्ध विद्यालयों की स्थापना करने का सुझाव दिया गया। घोषणा-पत्र के अनुसार विद्यालयों का क्रम इस प्रकार होना चाहिये-

विश्वविद्यालय

            ↓ ↑

           महाविद्यालय

                        ↓ ↑

                        हाई स्कूल

                                 ↓ ↑

                                  मिडिल स्कूल

                                                ↓ ↑

                                                 देशी प्राथमिक विद्यालय

(7) विश्वविद्यालयों की स्थापना- घोषणा-पत्रों में विश्वविद्यालयों की स्थापना लन्दन विश्वविद्यालय के आदर्श मानकर करने को कहा गया था। विश्वविद्यालय मुम्बई, कोलकाता और यदि आवश्यक हो तो मद्रास में भी स्थापित किये जायें। इन विश्वविद्यालयों में कुलपति, उपकुलपति और मनोनीत अभि-सदस्यों की नियुक्ति की जानी चाहिये। विश्वविद्यालय की स्थापना के सम्बन्ध में घोषणा-पत्र में कहा गया है-

“अब भारत में विश्वविद्यालय की स्थापना का समय आ गया है, जो साहित्यिक उपाधियाँ प्रदान करके शिक्षा के नियमित और उदार पाठ्यक्रम को प्रोत्साहित करें…)

(8) प्रशिक्षण विद्यालयों की स्थापना- शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिये “शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालयों” की स्थापना की जानी चाहिये । भारत के प्रत्येक प्रान्तों में एक प्रशिक्षण विद्यालय होना चाहिये। प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे प्रत्येक छात्र को छात्रवृत्ति दी जानी चाहिये और प्रशिक्षण के बाद उन्हें आकर्षक वेतन पर नियुक्त करना चाहिये। इस प्रकार राज्य के अन्य विभागों के समान शिक्षा विभाग भी उतना ही आकर्षक बन जायेगा।

(9) जनसाधारण की शिक्षा का विस्तार– घोषणा-पत्र में स्वीकार किया गया कि कम्पनी द्वारा ‘निस्यन्दन-सिद्धान्त’ स्वीकार करके जनसाधारण की शिक्षा के लिये अधिक से अधिक धन व्यय करना चाहिये। मेधावी और निर्धन छात्रों को छात्रवृत्तियाँ दी जानी चाहिये, ताकि वे अपनी शिक्षा पूर्ण कर सकें । विद्यालयों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिये । देशी विद्यालयों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये । घोषणा-पत्र में कहा गया है-“अब हमारा ध्यान इस महत्वपूर्ण समस्या की ओर जाना चाहिये जिसकी अभी तक उपेक्षा की गयी है। अर्थात् जीवन के सभी अंगों के लिये लाभदायक एवं व्यावहारिक शिक्षा इस विशाल समूह को किस प्रका शिक्षा प्राप्त करने में पूर्णत: असमर्थ है।”

(10) सहायता अनुदान प्रणाली- जनसाधारण की शिक्षा के लिये धन की आवश्यकता थी। विद्यालयों को धन की सहायता देने के लिये सहायता अनुदान प्रणाली’ प्रारम्भ करने के लिये सुझाव दिया गया। विद्यालयों को  भवन निर्माण, पुस्तकालयों, प्रयोगशालाओं, अध्यापकों को वेतन आदि के लिये अलग-अलग अनुदान देने का सुझाव दिया गया। घोषणा-पत्र के अनुसार-“हमने भारत में उसी सहायता अनुदान प्रणाली को अपनाने का निश्चय किया है, जो इस देश में अत्यधिक सफलता से सम्पादित की गयी है।

(11) व्यावसायिक शिक्षा- शिक्षा देने के लिये प्रत्येक प्रान्त में ऐसे विद्यालय तथा महाविद्यालय खोले जाने चाहिये जिनमें व्यावसायिक शिक्षा दी जा सके । व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करके व्यक्ति बेकार नहीं रहेंगे। उन्हें नौकरी मिल जाने से वे शासन के भक्त बनेंगे।

(12) स्त्री शिक्षा-  घोषणा पत्र में स्त्री शिक्षा पर विशेष बल देने को कहा गया था, इसके लिये सरकार को उदारतापूर्वक सहायता देनी  उन लोगों की भी सराहना की गई, जिन्होंने स्त्री शिक्षा के लिये धन दिया था।

(13) मुसलमानों की शिक्षा- घोषणा पत्र में मुसलमानों की शिक्षा की गिरी हुयी स्थिति को देखते हुये उसे बढ़ावा देने के लिये कहा गया है । कम्पनी को मुसलमानों की शिक्षा के लिये विशेष प्रबन्ध करने को कहा गया है।

(14) प्राच्य साहित्य और देशी भाषाओं को प्रोत्साहन-  घोषणा-पत्र के अनुसार प्राच्य साहित्य और देशी भाषाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये । पाश्चात्य साहित्य के साथ-साथ प्राच्य साहित्य का भी अध्ययन किया जाना चाहिये। साहित्य तथा विज्ञान की पुस्तकों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने का सुझाव दिया गया। देशी भाषाओं में पुस्तकें लिखवाना चाहिये और उनके लेखकों को पुरस्कार देने चाहिये।

(15) शिक्षा और सरकारी नौकरी- घोषणा-पत्र के अनुसार अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों को सरकारी नौकरियों में लिया जाना चाहिये । घोषणा-पत्र में लिखा है-“जो बातें हम चाहते हैं, वे यह हैं कि यदि सरकारी नौकरियों के लिये उम्मीदवारों की अन्य योग्यतायें समान हों तो उस व्यक्ति की तुलना में जिसने अंग्रेजी की अच्छी शिक्षा प्राप्त नहीं की है उस व्यक्ति को वरीयता दी जाये, जिसने अच्छी शिक्षा प्राप्त की है।”

वुड के घोषणा-पत्र का मूल्यांकन (Evaluation of Wood’s Despatch)

इस घोषणा-पत्र के मूल्यांकन के समय निम्न बिन्दु उभरकर सामने आते हैं-

वुड के घोषणा पत्र के गुण (Merits of Wood’s Despatch)

दुड के घोषणा-पत्र के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-

(1) घोषणा-पत्र द्वारा शिक्षा का उत्तरदायित्व प्रथम बार अंग्रेज सरकार ने स्वीकार किया।

(2) वुड के घोषणा-पत्र से भारतीय शिक्षा में एक नये युग का आरम्भ होता है इसलिये इसे भारतीय शिक्षा का महाधिकार-पत्र कहते हैं।

(3) शिक्षा के उद्देश्यों को निर्धारित करके उसे एक निश्चित दिशा दी गयीं।

(4) पाठ्यक्रम में संस्कृत, अरबी और फारसी को उपयोगी बताते हुये उन्हें उचित स्थान दिया गया।

(5) प्राथमिक विद्यालयों से लेकर विश्वविद्यालय शिक्षा तक ध्यान दिया गया। विद्यालयों की स्थापना करने को कहा गया।

(6) विश्वविद्यालयों की आवश्यकता को देखते हुये उनकी स्थापना का सुझाव दिया गया।

(7) अंग्रेजी और देशी भाषा दोनों को ही शिक्षा का माध्यम बनाया गया।

(8) जन शिक्षा का विस्तार करने के लिये सहायता अनुदान प्रणाली को प्रचलित करने का सुझाव दिया गया।

(9) घोषणा-पत्र द्वारा प्रथम बार शिक्षा विभागों की स्थापना का सुझाव दिया गया।

(10) निस्पन्दन सिद्धान्त को अस्वीकार करके जन-साधारण की शिक्षा पर ध्यान दिया गया।

(11) व्यावसायिक शिक्षा का प्रबन्ध करने को कहा गया, जिससे बेकारी समाप्त हो सके।

(12) घोषणा-पत्र द्वारा अध्यापकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करने का सुझाव दिया गया।

(13) शिक्षा प्राप्त लोगों को सरकारी नौकरियाँ देने का सुझाव दिया गया।

(14) स्त्री शिक्षा और मुस्लिम शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये कहा गया।

(15) प्राच्य साहित्य को प्रोत्साहित करने को कहा गया, इसके लिये पुस्तकें लिखायी जायें और उनके लेखकों को पुरस्कार दिये जायें।

वुड के घोषणा पत्र के दोष (Demerits of Wood’s Despatch)

वुड के घोषणा-पत्र के प्रमुख दोष को निम्न प्रकार सष्ट किया जा सकता है-

(1) इस घोषणा-पत्र द्वारा भारत की स्वतन्त्र शिक्षा प्रणाली का अन्त हो गया और उस पर राज्य का पूर्ण आधिपत्य हो गया।

(2) अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने से देशी भाषाओं का स्थान गौण हो गया।

(5) सरकारी नौकरियाँ केवल अंग्रेजी स्कूलों में पढ़े लोगों को दी जाने लगी जिससे अंग्रेजी को बढ़ावा मिला।

(4) पाठ्यक्रम के पश्चात् साहित्य तथा ज्ञान-विज्ञान को अधिक महत्व दिया गया।

(5) शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना न रहकर सरकारी नौकरी प्राप्त करना हो गया।

(6) विद्यालयों में सीनेट के सभी सदस्य मनोनीत हुआ करते थे। ये लोग शिक्षा से अनभिज्ञ थे तथा कंपनी का समर्थन करते थे।

(7) विश्वविद्यालयों की स्थापना लन्दन विश्वविद्यालय को आदर्श मानकर की गयी। इसमें यहाँ की परिस्थितियों से लाभ की अपेक्षा हानि अधिक हुयी।

(8) ईसाई धर्म का प्रचार और प्रसार करने की छूट दी गयी।

(9) शिक्षा का धर्म से अलग करके पूर्णत: लौकिक बना दिया गया इससे छात्रों का आध्यात्मिक विकास कम हो गया।

(10) शिक्षा विभागों की स्थापना करके शिक्षा को यांत्रिक बना दिया गया। शिक्षा लचीलापन समाप्त हो गया।

(11) नुरुल्ला और नायक के अनुसार, हमें उन अतिश्योक्तिपूर्ण शब्दों में जिनमें कुछ इतिहासकारों ने घोषणा-पत्र का वर्णन किया है और इसे ‘भारतीय शिक्षा का महाधिकार-पत्र’ कहा है. कोई औचित्य नहीं दिखता है।”

(12) एम० आर० परांजय के अनुसार, “1854 में घोषणा-पत्र का चाहे जो भी महत्व हो पर इस समय उनको शिक्षा का अधिकार-पत्र कहना हास्यास्पद होगा।”

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Pankaja Singh

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