एडम की रिपोर्ट | एडम द्वारा प्रस्तावित शिक्षा योजना | एडम की रिपोर्ट का मूल्यांकन अथवा गुण-दोष विवेचन
एडम की रिपोर्ट (Adam’s Report)
विलियम एडम गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक एक कुशल प्रशासक था। 1834 में जब लॉर्ड मैकॉले गवर्नर जनरल की काउंसिल का कानूनी सलाहकार बनकर भारत आया तो बैंटिक ने उसे जन शिक्षा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया और उसे 1813 के आज्ञापत्र की धारा 43 का अर्थ स्पष्ट करने और साथ ही कम्पनी के अधीन भारतीयों की शिक्षा के स्वरूप के विषय में अपने सुझाव देने का कार्य सौंपा। उसी समय उसने बैस्टिस्ट मिशनरी सर विलियम एडम (Sir William Adam) को कम्पनी के अधीन तत्कालीन बंगाल और बिहार प्रान्त में शिक्षा की स्थिति का सर्वेक्षण करने का कार्य सौंपा और साथ ही उससे यह अपेक्षा की कि वह कम्पनी के अधीन भारतीय क्षेत्र में भारतीयों की शिक्षा व्यवस्था के विषय में अपने सुझाव प्रस्तुत करे। यहाँ पर यह ध्यान देने योग्य है कि भारतीयों की शिक्षा के सन्दर्भ में लॉर्ड मैकॉले पाश्चात्यवादी था और सर विलियम एडम प्राच्यवादी और गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक इन दोनों के सुझाव प्राप्त करने के बाद ही अपनी शिक्षा नीति का निर्धारण करना चाहता था परन्तु हुआ यह कि लॉर्ड मैकॉले ने अपना विवरण पत्र 2 फरवरी, 1835 को ही प्रस्तुत कर दिया और लॉर्ड बैंटिक उसके विचार एवं तर्कों से इतना प्रभावित हुआ कि उसने इस विवरण पत्र के आधार पर ही अपनी शिक्षा नीति की घोषणा कर दी। लॉर्ड विलियम बैंटिक उसी वर्ष 1835 में इंग्लैण्ड चला गया और उसके स्थान पर लॉर्ड ऑकलैण्ड (Lord Auckland) भारत का नया गवर्नर जनरल बनकर भारत आया।
विलियम एडम एक समर्पित एवं उत्साही मिशनरी था। उसने लॉर्ड बैंटिक द्वारा नई शिक्षा नीति की. घोषणा के बाद भी अपना सर्वेक्षण कार्य जारी रखा और अपनी रिपोर्ट लॉर्ड ऑकलैण्ड को तीन किस्तों में प्रस्तुत की। उनका संक्षेप में वर्णन निम्न प्रकार है-
प्रथम रिपोर्ट- एडम ने अपनी प्रथम रिपोर्ट जुलाई, 1835 में प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में उसने सम्पूर्ण बंगाल प्रान्त के स्कूल सम्बन्धी आँकड़े प्रस्तुत किए। उसने स्पष्ट किया कि उस समय बंगाल में ऐसा कोई गाँव नहीं था जिसमें प्राथमिक स्कूल न हो और कुल मिलाकर लगभग एक लाख स्कूल चल रहे थे। पर इन स्कूलों की स्थिति ठीक नहीं थी। इनमें कार्यरत शिक्षकों की मासिक आय भी बहुत कम थी।
द्वितीय रिपोर्ट- विलियम एडम ने अपनी द्वितीय रिपोर्ट दिसम्बर, 1836 में प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में उसने जिला राजशाही के थाना नतूर के शिक्षा सम्बन्धी आँकड़े प्रस्तुत किए हैं। रिपोर्ट के अनुसार उस समय थाना नतूर क्षेत्र की कुल जनसंख्या 1,95,297 थी और उस समय इसके क्षेत्र में 485 गाँव थे जिनमें केवल 27 स्कूल चल रहे थे और इनमें से 10 में बंगाली पढ़ाई जा रही थी, 11 में अरबी, 4 में फारसी और 2 में बंगाली और फारसी दोनों पढ़ाई जा रही थीं। इन स्कूलों में कुल 562 छात्र अध्ययनरत थे। हाँ, उस समय इस क्षेत्र में बच्चों को अपने ही घरों पर पढ़ाने का प्रचलन अपेक्षाकृत अधिक था,238 गाँवों में 1588 परिवार ऐसे थे जो अपने बच्चों की शिक्षा का प्रबन्ध अपने घरों पर ही कर रहे थे।
तृतीय रिपोर्ट- एडम ने अपनी तीसरी रिपोर्ट फरवरी, 1838 में प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में उसने मुर्शिदाबाद, बर्दवान, विरभुम, तिरहट और दक्षिण बिहार क्षेत्रों के सर्वेक्षण आँकड़े प्रस्तुत किए। इस रिपोर्ट के अनुसार उस समय इन क्षेत्रों में 2567 स्कूल चल रहे थे जिनमें बंगाली, संस्कृत, हिन्दी, अरबी और फारसी पढ़ाई जाती थी। इनके अतिरिक्त 8 स्कूल ऐसे थे जिनमें अंग्रेजी भाषा पढ़ाई जाती थी और बालिकाओं के लिए अलग से 6 स्कूल चल रहे थे। पर इन स्कूलों की दशा ठीक नहीं थी। स्कूलों के शिक्षकों के वेतन की व्यवस्था भी धनी वर्ग के कुछ लोग स्वेच्छा से कर रहे थे।
एडम द्वारा प्रस्तावित शिक्षा योजना
एडम प्राच्यवादी विचारधारा का था। उसने संस्कृत और बंगाली भाषाओं का अध्ययन भी किया था और वह इन भाषाओं की समृद्धता से परिचित था। उसने अपनी रिपोर्ट में बड़े स्पष्ट रूप में लिखा है कि भारत में जन शिक्षा की व्यवस्था को बहुत आवश्यकता है और इसकी व्यवस्था यहाँ की भाषाओं के माध्यम से ही की जा सकती है। एडम द्वारा प्रस्तावित जन शिक्षा योजना को निम्नलिखित रूप में क्रमबद्ध किया जा सकता है-
(1) निस्यन्दन सिद्धान्त जन शिक्षा विरोधी है अत: इसे लागू न किया जाए।
(2) भारत में जन शिक्षा के विकास के लिए यह भी आवश्यक है कि वह भारतीय आधार की हो, उसमें भारतीय भाषा एवं साहित्यों तथा ज्ञान-विज्ञान का अध्ययन कराया जाए।
(3) ग्रामीण स्कूलों को कृषि योग्य भूमि दी जाए। इससे दो लाभ होंगे-एक यह कि बच्चों को कृष की शिक्षा दी जा सकेगी और दूसरा यह कि इससे स्कूलों का कुछ व्यय भी निकलेगा।
(4) भारत में चल रहे देशी स्कूल (पाठशालाएँ, मकतब और मदरसे) राष्ट्रीय शिक्षा की रीढ़ हैं, इनकी उन्नति करके ही जन शिक्षा की व्यवस्था की जा सकती है और राष्ट्रीय शिक्षा योजना को सफल बनाया जा सकता है।
(5) भारत कृषि प्रधान देश है। यहाँ कृषि शिक्षा की व्यवस्था प्रारम्भ से ही की जाए।
(6) भारतीय तथा पाश्चात्य शिक्षा विशेषज्ञों की सहायता से प्राच्य भाषाओं में पाठ्य पुस्तकों का निर्माण कराया जाए।
(7) शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए नार्मल स्कूलों की व्यवस्था की जाए। सेवारत अप्रशिक्षित शिक्षकों के लिए प्रतिवर्ष 3-3 माह का प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाकर 4 वर्ष के अन्दर उनका प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा किया
जाए।
(8) विद्यालयों और शिक्षकों के निरीक्षण के लिए प्रत्येक जिले में निरीक्षक नियुक्त किए जाएँ।
(9) सभी देशी स्कूलों को सरकार की तरफ से आर्थिक सहायता दी जाए और इनकी दशा सुधारी जाए।
(10) छात्रों की परीक्षाएँ अपने निर्धारित समय पर सम्पन्न कराई जाएँ।
(11) इस योजना को कार्यरूप में परिणित करने के लिए प्रारम्भ में इसे कुछ ही जिलों में शुरू किया जाए और धीरे-धीरे समस्त जिलों में चलाया जाए।
(12) शिक्षकों के वेतन बढ़ाए जाएँ, उनकी दशा सुधारी जाए।
एडम की रिपोर्ट का मूल्यांकन अथवा गुण-दोष विवेचन
इसमें कोई सन्देह नहीं कि एडम भारत में जन शिक्षा का पक्षधर था और भारतीयों के लिए भारतीय पद्धति की शिक्षा का समर्थक था परन्तु उसकी सर्वेक्षण रिपोर्ट पर दो प्रश्न चिह्न उपस्थित होते हैं-एक यह कि उसने बंगाल और बिहार, दोनों प्रान्तों के सम्पूर्ण क्षेत्र की शिक्षा का पूर्ण सर्वेक्षण नहीं किया और जब सम्पूर्ण क्षेत्र का सर्वेक्षण नहीं किया तो यह कैसे कहा कि उस समय अकेले बंगाल प्रान्त में लगभग एक लाख स्कूल चल रहे थे और दूसरा यह कि सभी ग्रामों में स्कूल होने और नगरों में भी स्कूलों का जाल बिछा होने के बाद भी उस समय अकेले बंगाल प्रान्त में लगभग एक लाख स्कूल होना सम्भव नहीं दिखाई देता।
एडम ने भारत के लिए जो शिक्षा योजना प्रस्तुत की है वह भारतीयों के लिए उपयुक्त होते हुए भी एक अधूरी योजना है। उपयुक्त इसलिए कि इसमें निस्यन्दन सिद्धान्त का विरोध किया गया है और भारतीयों को भारतीय आधार की भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा देने का समर्थन किया गया है और साथ ही देशी स्कूलों की दशा सुधारने, शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करने, शिक्षकों के वेतन बढ़ाने और देशी स्कूलों की आर्थिक सहायता करने का सुझाव दिया गया है और अधूरी इसलिए कि न तो इस योजना में भारतीयों की शिक्षा के उद्देश्य स्पष्ट किए गए और न उसका पाठ्यक्रम निश्चित किया गया और ग्रामीण स्कूलों को कृषि योग्य भूमि देने का सुझाव तो दिया गया है पर यह स्पष्ट नहीं किया गया कि यह भूमि कौन और कहाँ से देगा।
एडम योजना की अस्वीकृति
तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड ऑकलैण्ड ने मैकॉले के विवरण पत्र, शिक्षा नीति, 1835 और एडम की तीनों रिपोर्टों का बारीकी से अध्ययन किया, उन पर विचार-विमर्श किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि उस समय सीमित साधनों से देश में जन शिक्षा की व्यवस्था नहीं की जा सकती थी। अतः उसने एडम द्वारा प्रस्तुत योजना को अस्वीकृत कर दिया और निस्यन्दन सिद्धान्त को लागू करने का फैसला किया।
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