अर्थशास्त्र

भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के विकास | भारत में स्वतन्त्रता से पूर्व विकास | भारत में स्वतन्त्रता के बाद सार्वजनिक या लोक क्षेत्र का विकास

भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के विकास | भारत में स्वतन्त्रता से पूर्व विकास | भारत में स्वतन्त्रता के बाद सार्वजनिक या लोक क्षेत्र का विकास

भारत में सार्वजनिक क्षेत्र का विकास

(Growth of Public Sector in India)

(A) स्वतन्त्रता से पूर्व विकास-

ब्रिटिश सरकार मुक्त व्यापार नीति की समर्थक थी इसलिए 1947 से पहले भारत में लोक क्षेत्र का विकास नहीं हो पाया था। साथ ही ब्रिटिश सरकार को भारत के लोक क्षेत्र की वृद्धि में रुचि भी नहीं थी।

स्वतन्त्रता से पूर्व केवल सामरिक महत्त्व के उद्योग व परिवहन के कुछ साधनों को ही लोक क्षेत्र में लिया गया था।

भारत में लोकतन्त्र के विकास का प्रारम्भ 1839 से होता है जबकि तत्कालीन सरकार ने प्रथम तार लाइन का निर्माण किया था। 1851 में ‘भारत का भू-भागीय सर्वेक्षण’ नामक संस्था स्थापित की गयी थी।

1853 में देश में प्रथम सरकारी रेल व्यवस्था प्रारम्भ की गयी। सन् 1882 में कलकता बम्बई व मद्रास में सरकारी टेलीफोन एक्सचेंज क्रियाशील हुए।

20वीं सदी के प्रारम्भ में सरकार ने सिंचाई व विद्युत मण्डल, आल इण्डिया रेडियो वैज्ञानिक व औद्योगिक शोध परिषद की स्थापना की। 1944 में केन्द्रीय तकनीक शक्ति मण्डल 1945 में केन्द्रीय विद्युत मण्डल स्थापित किया गया। जनवरी, 1947 में तत्कालीन सरकार के समुद्रपारीय संचार सेवा को सरकारी स्वामित्व में ले लिया।

स्वतन्त्रता से पूर्व सरकार ने छोटे-छोटे संयुक्त उद्योगों में भी हिस्सा लिया।

(B) स्वतन्त्रता के बाद सार्वजनिक या लोक क्षेत्र का विकास-

स्वतन्त्रता के बाद 1948 की औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र को प्रमुख स्थान दिया गया। निजी व सार्वजनिक क्षेत्र को प्रमुख स्थान दिया गया। निजी व सार्वजनिक क्षेत्र की कार्य सीमाओं का निर्धारण किया गया। भारतीय संविधान के नीति निर्देशक सिद्धान्तों में भी सार्वजनिक क्षेत्र को प्रमुख स्थान दिया गया।

(1) प्रथम योजना काल में सार्वजनिक क्षेत्र- प्रथम योजना काल में इसके महत्त्व को देखते हुए इस क्षेत्र की आधारशिला रखी गयी। योजना के प्रारम्भ में केन्द्रीय सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के कारखानों की संख्या केवल 5 थी जिनकी संख्या बढ़कर योजना के अन्त में 21 हो गयी। यहाँ विनियोजित पूँजी 29 करोड़ रुपये से बढ़कर 81 करोड़ रुपये हो गयी।

इस योजना में सिंदरी खाद कारखाना, पैराम्बूर का रेल के डिब्बों का कारखाना, पिंथरी का पेनेसिलीन कारखाना, चितरंजन का रेल इन्जन कारखाना, बंगलौर का हवाई जहाज का कारखाना, इलाहाबाद का टेलीफोन निर्माण कारखाना, नैपानगर का अखबारी कागज कारखाना लगाये गये। 1956 की नई औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र को प्रोत्साहित करने की नीति तय की गयी।

प्रथम योजना में वृहत् उद्योगों के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण लोक उपक्रमों की स्थापना की गयी। इनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं। (a)हिन्दुस्तान केबल्स लि0 (1952)

(b) हिन्दुस्तान शिपयार्ड लि0 (1952)

(c) एयर इण्डिया (1953)

(d) हिन्दुस्तान हाउसिंग फैक्ट्री लि0 (1953)

(e) इण्डियन एयरलाइन्स (1953)

(f) हिन्दुस्तान एण्टी बायोटिक्स (1954)

(g) राष्ट्रीय उद्योग विकास निगम (1954)

(h) राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लि0 (1955)

(2) द्वितीय योजना में सार्वजनिक क्षेत्र का विकास- यह योजना उद्योग प्रधान थी, अतः औद्योगिक विकास को प्राथमिकता प्रदान की गयी। इस योजना में सार्वजनिक उपक्रमों की संख्या 21 से बढ़कर 48 हो गयी। विनियोजित पूँजी 81 करोड़ रुपये से बढ़कर 953 करोड़ रुपये के बराबर थी। इस योजना में स्थापित प्रमुख इकाइयाँ निम्न प्रकार हैं

(i) भिलाई, दुर्गापुर व राउरकेल में लोहा इस्पात कारखाने।

(ii) भोपाल में हैवी इलेक्ट्रिकल्स, खाद निगम, जीवन बीमा निगम व कोला विकास निगम।

(iii) रांची में हैवी इन्जीनियरिंग कारखाना।

(3) तृतीय योजना में सार्वजनिक क्षेत्र का विकास- इस योजना में सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों की संख्या 48 से बढ़कर 74 हो गयी। यहाँ विनियोग 953 करोड़ रुपये से बढ़कर 2415 करोड़ रुपये हो गये।

पिछली दो योजनाओं की तुलना में यहाँ सार्वजनिक क्षेत्र का अधिक विकास हुआ। वहाँ द्वितीय योजना में प्रारम्भ किये गये उद्योगों को पूरा करने व उनकी उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर बल दिया गया। इस योजना में स्थापित प्रमुख इकाइयाँ निम्नलिखित हैं-

(i) मिग विमाव व टैंक विमान के कारखाने।

(ii) कोयली में तेलशोधक कारखाना।

(iii) गोरखपुर, नेवेली व ट्राम्बे में तीन कारखाने।

(iv) बंगलौर में घड़ी बनाने का कारखाना।

तीन वार्षिक योजनाओं में विकास- इसमें सार्वजनिक उपक्रमों की संख्या 74 से बढ़कर 85 हो गयी व विनियोग 2415 करोड़ रुपये से बढ़कर 3,902 करोड़ रुपये हो गया।

(4) चतुर्थ योजना सार्वजनिक क्षेत्र का विकास- इस योजना में चालू-उपक्रमों को पूरा करने व उत्पादन क्षमता के पूर्ण उपयोग पर बल दिया गया। यहाँ उपक्रमों की संख्या 85 से बढ़कर 122 व विनियोग 3,902 करोड़ रुपये से बढ़कर 6,237 करोड़ रुपये के तुल्य थे।

(5) पांचवीं योजना में सार्वजनिक क्षेत्र का विकास- इस योजना में चालू उपक्रमों पर 2812 करोड़ रुपये व नयी योजनाओं पर 4217 करोड़ रुपये व्यय करने का प्रावधान था। 200 करोड़ रुपये प्रतिस्थापन के लिए व 600 करोड़ रुपये इन्वेन्ट्रीज में वृद्धि के लिए व्यय किये जाने का लक्ष्य रखा गया। इस योजना में आधारभूत क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र का योगदान बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया व आयात किये जाने वाले माल के स्थान पर देश में ही माल उत्पादित करने का प्रयत्न किया गया।

उद्योग के अतिरिक्त खनिज शोधन, बागानों व मुख्य संस्थाओं की सहायता से शोध व तकनीकी कार्यक्रमों पर बल दिया गया। 31 मार्च, 1979 को लोक क्षेत्र के उपक्रमों की संख्या, 176 व विनियोजित पूँजी 15,602 करोड़ रुपये थी।

(6) छठी योजना में सार्वजनिक क्षेत्र का विकास- इस योजना में लघु उद्योगों पर अधिक बल दिया गया। वृहत् उद्योगों में इस्पात का एक नया कारखाना चालू किया गया। योजनाकाल में उर्वरक के 9 कारखाने खोले जाने थे जिनमें से 6 सार्वजनिक क्षेत्र में थे।

पिछले समय में लोक इकाइयों की स्थापना का क्रम नये उद्योग क्षेत्र में भी काफी तेजी से हुआ। इन इकाइयों में अणु-शक्ति, इस्पात, टेक्नोलोजी, विद्युत उर्वरक, तेल, शोधन, सूती वस्त्र, डबल रोटी, बिस्कुट व चमड़े का सामान, होटल, कागज आदि बड़े उद्योग तेजी से विकसित हुए।

रासायनिक पदार्थ, औषधि, कीटाणुनाशक पदार्थ, प्रतिरक्षा, समुद्री जहाज, वायुयान, डीजल इन्जन, रेलवे रोलिंग, स्टॉक आदि के क्षेत्र में भी देश प्रगति कर रहा है। व्यापार व वाणिज्य में भी लोक क्षेत्र की प्रगति तेजी से हुई है।

(7) सातवीं योजना में सार्वजनिक क्षेत्र का विकास- इस योजना में सार्वजनिक क्षेत्र में परिव्यय की राशि (जिसमें चालू विकास व्यय भी सम्मिलित है।) 1,80,000 करोड़ रुपये निर्धारित की गयी। इसमें विनियोग का अंश 1,54,218 करोड़ रुपये है तथा चालू व्यय 25,782 करोड़ रुपये है। 31 मार्च, 1989 को भारत में सार्वजनिक उपक्रमों की संख्या 234 थी, जिनमें विनियोजित रकम 85,564 करोड़ रुपये थी। सार्वजनिक क्षेत्र के परिव्यय 2,21,435 करोड़ रुपये के थे तथा विनियोग की राशि लगभग 2,00,000 करोड़ रुपये थी जो देश के कुल निवेशों का लगभग 52.6 प्रतिशत था।

आठवीं पंचवर्षीय योजना- इस पंचवर्षीय योजनाकाल में सार्वजनिक क्षेत्र के सम्भावित विनियोग 3,61,000 करोड़ रुपये करने के रखे गये थे जो कुल राष्ट्रीय विनियोग के 45.2 प्रतिशत थे। इसकी तुलना में निजी क्षेत्र का विनियोग तुलनात्मक अधिक 4,37,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान था।

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Pankaja Singh

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