अर्थशास्त्र

सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र | सार्वजनिक उपक्रमों से आशय | सार्वजनिक उपक्रमों की परिभाषाएँ | सार्वजनिक क्षेत्र के उद्देश्य | सार्वजनिक उपक्रमों की विशेषताएँ | सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में अन्तर

सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र | सार्वजनिक उपक्रमों से आशय | सार्वजनिक उपक्रमों की परिभाषाएँ | सार्वजनिक क्षेत्र के उद्देश्य | सार्वजनिक उपक्रमों की विशेषताएँ | सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में अन्तर

सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र

Public and Private Sector

आर्थिक विकास के प्रारम्भिक युग में राज्य का प्रमुख कार्य जनता को आन्तरिक एवं बाहरी सुरक्षा प्रदान करना तथा जनसामान्य की सम्पत्ति की सुरक्षा करना ही था, परन्तु धीरे-धीरे सभी देशों की सरकार अपने आपको कल्याणकारी सरकार मानने लगी है। अतः राज्य जन- कल्याण के क्षेत्र में विशेष कार्य करने लगा है। श्री एस०एस० खेरा (S.S. Khera) के शब्दों में, “आज राज्य आर्थिक प्रक्रिया का केवल निष्क्रिय दर्शक मात्र ही नहीं रह गया है, वरन् नागरिकों एवं उद्योगों के संरक्षक, नियन्त्रक और अभिभावक के रूप में सक्रिय भागीदार बन गया है।”

वर्तमान आर्थिक क्रियाकलापों में हस्तक्षेप करना सरकार का एक महत्वपूर्ण कार्य बन गया है। समाज के हितों की रक्षा करना और संवर्द्धन करना, आर्थिक असन्तुलन को समाप्त करना तथा आर्थिक-विकास को गति प्रदान करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में उद्योगों की स्थापना करना वर्तमान सरकार का एक अनिवार्य दायित्व बन गया है।

सार्वजनिक उपक्रमों से आशय

(Meaning of Public Enterprises)

लोक उद्योगों या सार्वजनिक उपक्रमों का विकास वर्तमान समय में व्यापक स्तर पर किया जाने लगा है किन्तु फिर भी इनकी एक सर्वमान्य परिभाषा देना कठिन कार्य है। विभिन्न देशों के राजनैतिक तथा प्रशासनिक ढाँचे के अनुसार इन देशों में सार्वजनिक उपक्रमों को अलग- अलग दृष्टिकोण से परिभाषित किया जाता है। सार्वजनिक उपक्रमों का आधार तो एक ही है, परन्तु इनके क्षेत्र की व्यापकता भिन्न-भिन्न है जिसके कारण से इनको परिभाषित करना कठिन है। प्रो० केनन ने राजकीय उपक्रमों के अर्थ को स्पष्ट करने में आने वाली कठिनाई को व्यक्त करते हुए लिखा है कि “जिस प्रकार राजकीय उपक्रम शब्दों में लाल या नीले रंग की परिभाषा नहीं कर सकते हैं, ठीक उसी प्रकार हमें उपयुक्त शब्द का अर्थ नपे-तुले शब्दों में देना सम्भव नहीं है।” इसका प्रमुख कारण है, राजकीय उपक्रम शब्द की, (i) नवीनता नवीनत कि प्राचीनकाल में भी राजकीय उपक्रमों के कुछ उदाहरण मिलते हैं, किन्तु अब इस शब्द का प्रयोग एवं प्रचलन अधिक बढ़ गया है। समय एवं आर्थिक विकास के साथ-साथ राजकीय उपक्रमों का क्षेत्र अब अधिक विस्तृत या व्यापक होता जा रहा है। व्यापकता से हमारा आशय है कि राजकीय उपक्रमों का क्षेत्र अब अधिक विस्तृत या व्यापक होता जा रहा है। पहले जहाँ केवल जन-उपयोगी सेवाओं के क्षेत्र में ही राजकीय-उपक्रमों की स्थापना की जाती थी, आजकल यह औद्योगिक, वाणिज्यिक तथा प्रत्यक्ष सेवाओं आदि सभी क्षेत्रों में स्थापित की जाने लगी है। ज्यों-ज्यों राजकीय उपक्रमों का क्षेत्र विकसित होता जा रहा है, इनकी मान्यताएँ भी बदलती जा रही हैं, अतः इनको एक अर्थ में परिभाषित करना कठिन हो गया है।

सार्वजनिक उपक्रमों की परिभाषाएँ

(Definitions of Public Enterprises)

विभिन्न विद्वानों द्वारा सार्वजनिक उपक्रमों की निम्नलिखित परिभाषायें दी गई हैं-

  1. श्री एन० एन० माल्या के अनुसार, “सार्वजनिक उपक्रमों से आशय सरकारी स्वामित्व में स्थापित एवं नियन्त्रित ऐसी स्वशासित अथवा अर्द्ध-स्वशासित कम्पनियों और निगमों से है जो औद्योगिक एवं वाणिज्यिक क्रियाओं में लगी हों।”
  2. एस० एस० खेरा (S.S. Khera) के अनुसार, “सार्वजनिक उपक्रमों से आशय केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा या इनके द्वारा मिलकर संचालित औद्योगिक, वाणिज्यिक और आर्थिक क्रियाओं से है।”
  3. राय, चौधरी एवं चक्रवर्ती के अनुसार, “सार्वजनिक उपक्रम व्यवसाय का ऐसा स्वरूप है जो सरकार द्वारा नियन्त्रित या संचालित होता है और सरकार स्वयं इसकी एकमात्र स्वामी होती है अथवा इसके अधिकांश अंश सरकार के पास होते हैं।”
  4. प्रो0 टी0 आर0 शर्मा के अनुसार, “सार्वजनिक उपक्रम एक ऐसी संस्था है जिस पर या तो राज्य का स्वामित्व हो अथवा जिसकी व्यवस्था राजकीय तन्त्र द्वारा संचालित की जाती हो अथवा ये दोनों राज्य के अधीन हों।”
  5. एनसाइक्लोपीडिया बिटानिका के अनुसार, “सार्वजनिक उपक्रम या लोक उद्योग से आशय एक ऐसे उपक्रम से है जिस पर केन्द्रीय, प्रान्तीय या स्थानीय सरकार का स्वामित्व होता है। वे उपक्रम मूल्य के बदले में वस्तुओं तथा सेवाओं की पूर्ति करते हैं और सामान्यतः स्व-समर्थित आधार पर संचालित किये जाते हैं। ये उपक्रम अन्तर्राष्ट्रीय या अन्तन्तिीय प्रकृति के होते हैं।”
  6. प्रो० हैन्सन (Hansen) के अनुसार, “सार्वजनिक उपक्रम से आशय सरकार के स्वामित्व एवं संचालन के अन्तर्गत बनाये जाने वाले औद्योगिक, कृषि, वित्तीय तथा वाणिज्यिक संस्थानों से है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि “सार्वजनिक उपक्रम से आशय एक ऐसे उपक्रम से है जिसका स्वामित्व, प्रबन्ध एवं संचालन केन्द्र, राज्य या स्थानीय सरकार अथवा किसी लोक संस्था के पास हो।” यहाँ पर यह स्पष्ट करना उचित होगा कि राजकीय उपक्रमों को लोक उद्योग, सार्वजनिक उपक्रम, सार्वजनिक क्षेत्र आदि अनेक नामों से जाना जाता है। इन सब शब्दों का एक ही अर्थ होता है।

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्देश्य

लोक-क्षेत्र के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) आर्थिक विकास की गति को तीव्र करना,

(2) विशिष्ट एवं भारी उद्योगों की स्थापना करना तथा उनका विस्तार करना,

(3) आधारभूत सेवायें जल-पूर्ति, विद्युत, परिवहन प्रदान करना,

(4) राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये प्रतिरक्षा उद्योगों- वायुयान, जलयान एवं अस्त्र-शस्त्र आदि उद्योगों की स्थापना करना,

(5) सीमित मात्रा में उपलब्ध प्राकृतिक साधनों की सुरक्षा एवं उनका विदोहन करना,

(6) एकाधिकार पर नियन्त्रण करना,

(7) आय तथा धन का निर्धन वर्ग के पक्ष में पुनर्वितरण करना,

(8) देश का सन्तुलित आर्थिक एवं औद्योगिक विकास करना,

(9) क्षेत्रीय विषमताओं को दूर करना,

(10) आर्थिक विकास के लिए वित्तीय स्रोतों को जुटाना,

(11) समाजवादी समाज की स्थापना करने में सहायक होना,

(12) रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना,

सार्वजनिक उपक्रमों की विशेषताएँ

(Characteristics of Public Enterprises)

सार्वजनिक उपक्रमों की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं-

(1) राज्य का स्वामित्व- सार्वजनिक उपक्रमों की एक प्रमुख विशेषता तो यह होती है कि इनका स्वामित्व सरकार के पास होता है या किसी सार्वजनिक संस्था के पास होता है। इन उपक्रमों का स्वामित्व केन्द्रीय सरकार के हाथ में भी हो सकता है अथवा राज्य सरकार के पास हो सकता है अथवा केन्द्र एवं राज्य सरकार दोनों के पास हो सकता है अथवा दो या अधिक राज्य सरकारों के पास हो सकता है। यह स्वामित्व शत-प्रतिशत भी सरकार के पास हो सकता है और 51 प्रतिशत या इससे अधिक भी हो सकता है।

(2) सरकारी तन्त्र द्वारा प्रबन्ध- सार्वजनिक उपक्रमों का प्रबन्ध एवं संचालन सरकारी तन्त्र द्वारा किया जाता है। सरकारी अधिकारी इन उपक्रमों के प्रबन्धक होते हैं तथा इन उपक्रमों के निर्णयन एवं नीति-निर्धारण में सरकार द्वारा पूर्ण निर्देश दिये जाते हैं। यद्यपि इन उपक्रमों में काम करने वाले कर्मचारी सभी परिस्थितियों में सरकारी कर्मचारी नहीं होते हैं, अपितु विभागीय संगठनों में काम करने वाले कर्मचारी सरकारी कर्मचारी ही होते हैं। सरकार के प्रशासनिक अधिकारियों की इन उपक्रमों में प्रतिनियुक्ति की जाती है।

(3) सरकारी स्रोतों द्वारा धन की प्राप्ति- सार्वजनिक उपक्रमों की एक प्रमुख विशेषता यह होती है कि इनमें संचालन एवं स्थापना के लिए आवश्यक वित्त की व्यवस्था भी सरकारी खजाने से ही की जाती है। यदि राजकीय उपक्रम सार्वजनिक निगम या सरकारी कम्पनी होती है तो इसके सम्पूर्ण या अधिकांश अंश सरकार द्वारा ही क्रय किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त विभागीय संगठनों में सम्पूर्ण राशि सरकारी खजाने से ही प्राप्त होती है। सरकार करों के रूप में या सार्वजनिक ऋणों के रूप में यह धनराशि एकत्रित करती है।

(4) सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्य- इन सार्वजनिक उपक्रमों का प्रमुख उद्देश्य लाम कमाना नहीं होता। इनके अनेक सामाजिक एवं जन-कल्याण सम्बन्धी उद्देश्य भी होते हैं। यद्यपि ये उपक्रम भी इतना लाभ तो अवश्य कमाते हैं कि इनके कोषों की रक्षा की जा सके, परन्तु पूर्ण रूप से वाणिज्यिक आधार पर इनका संचालन नहीं किया जाता है। मूल रूप से ये उपक्रम सामाजिक समृद्धि के लिए कार्य करते हैं। उपभोक्ताओं को सस्ती एवं अच्छी किस्म की वस्तुएँ उपलब्ध कराते हैं, जिससे समाज का जीवन-स्तर ऊँचा उठ सके। सन्तुलित आर्थिक विकास करना तथा गरीब व अमीर के बीच की खाई को पाटने का कार्य राजकीय उपक्रमों के माध्यम से किया जाता है।

(5) जनता के प्रति हिसाबदेयता- सार्वजनिक उपक्रमों मे विनियोजित धनराशि सरकारी खजाने से आती है, जिसका संकलन सरकार जनता से करों आदि के रूप में करती है। इस धनराशि को दूसरे शब्दों में, सार्वजनिक धन भी कहा जा सकता है। इन उपक्रमों में सार्वजनिक धन का विनियोजन होने के कारण इनका जनता के प्रति हिसाबदेयता अधिक होती है। जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों तथा संसद एवं विधानसभा सदस्यों को इन उपक्रमों की जानकारी देना आवश्यक होता है। संसद एवं विधानसभाओं में इन उपक्रमों की प्रगति तथा प्रगति प्रणाली का ब्यौरा प्रस्तुत किया जाता है तथा जन-प्रतिनिधियाँ द्वारा दिये गये सुझावों को भी महत्व दिया जाता है। जन-प्रतिनिधियों को राजकीय उपक्रमों के बारे में अपने विचार संसद में प्रस्तुत करने का पूर्ण अधिकार होता है।

(6) मधुर औद्योगिक सम्बन्ध- सार्वजनिक उपक्रमों की एक प्रमुख विशेषता यह होती है कि सरकार अपने-आप में एक आदर्श नियोक्ता होती है। अतः अपने कर्मचारियों को इन उपक्रमों में सरकार द्वारा अधिकाधिक सुविधायें प्रदान की जाती हैं। इन उपक्रमों द्वारा कर्मचारियों के विकास के लिए हर सम्भव प्रयास किये जाते हैं, परिणामस्वरूप निजी उद्योगों द्वारा भी इनका अनुसरण किया जाता है। इस प्रकार औद्योगिक सम्बन्धों में सुधार होता है जिससे राष्ट्रीय समृद्धि में सहायता मिलती है।

(7) राष्ट्रीय उपक्रम राष्ट्रीय योजना का अंग होते हैं- यदि गहराई से अध्ययन किया जाये तो हम पायेंगे कि सरकार की योजनाएँ राजकीय उपक्रमों की ही योजनायें होती हैं। प्रो० हैन्सन ने स्पष्ट कहा है कि बिना योजना सार्वजनिक उपक्रम कुछ प्राप्त कर सकते हैं, बिना राजकीय उपक्रमों के योजनायें केवल कागजों पर ही रह जायेंगी। राजकीय उपक्रमों पर खर्च किये जाने वाले धन को बजट के खर्च में दिखाया जाता है तथा इन उपक्रमों से होने वाली आमदनी को बजट की आमदनी मद में दिखाया जाता है। इसी प्रकार राजकीय उपक्रमों के विकास की भी गहन योजना तैयार की जाती है।

सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में अन्तर

(Difference between Public Sector and Private Sector)

अन्तर का आधार

1

सार्वजनिक क्षेत्र

2

निजी क्षेत्र

3

1.स्वामित्व सार्वजनिक क्षेत्र के उप- क्रमों का या तो पूर्ण स्वामित्व सरकार के पास होता है या 51% से अधिक पूँजी सरकार द्वारा लगाई जाती है। निजी क्षेत्र के उपक्रमों का स्वामित्व निजी उद्योगपतियों के हाथों में होता है।
2. उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र का प्रमुख उद्देश्य लाभ कमाना न होकर जनहित एवं जनकल्याण करना होता है। निजी क्षेत्र का प्रमुख उद्देश्य लाभ कमाना होता है। लाभ कमाने के लिए निजी व्यवसायी जन-कल्याण को भी तिलांजलि दे देते हैं।
3. वित्त व्यवस्था सार्वजनिक उपक्रमों के लिए आवश्यक वित्त की व्यवस्था सरकारी खजाने से की जाती है। निजी उपक्रमों के लिए आवश्यक वित्त की व्यवस्था व्यवसायियों द्वारा अपने निजी स्रोतो से की जाती है तथा निजी स्रोतों के अभाव में अपनी स्वयं की जमानत पर ऋण लेते हैं।
4. राजकीय नियन्त्रण की जाती है। सार्वजनिक उपक्रमों के प्रबन्ध पर सरकार का नियन्त्रण स्रोतों से की जाती है तथा निजी स्रोतों के अभाव में अपनी स्वयं की जमानत पर ऋण लेते हैं। निजी उपक्रमों में निजी व्यवसायियों द्वारा अपने निजी
5. राजकीय नियंत्रण सार्वजनिक उपक्रमों के प्रबन्ध पर सरकार का नियन्त्रण होता है और नीति-निर्धारण में सरकारी आदेशों का पालन किया जाता है। निजी उपक्रमों में निजी व्यवसायियों का ही नियन्त्रण होता है तथा वे अपने तरीके से ही निर्णय लेते हैं।
6. हिसाबदेयता सार्वजनिक क्षेत्र के  उपक्रमों का प्रबन्ध जनता एवं संसद के प्रति जवाबदेह होता है  और इनकी आकांक्षाओं को ध्यान में रखा जाता है। निजी उपक्रमों का प्रबन्धसंसद एवं जनता के प्रति जवाबदेह नहीं होता है।
7. संगठन के प्रारूप सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लिए विभागीय संगठन, सार्वजनिक निगम, कम्पनी, बोर्ड व जनप्रन्यास आदि प्रारूप अपनाये जाते हैं। निजी क्षेत्र के उपक्रमों के संगठन के लिए एकाकी व्यापार तथा साझेदारी एवं कम्पनी प्रारूप अपनाये जाते हैं
8. औद्योगिक सम्बन्ध सार्वजनिक उपक्रमों में श्रमिकों एवं कर्मचारियों की सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा जाता है तथा श्रमकल्याण सम्बन्धी सनियमों का पालन किया जाता है। इस प्रकार औद्योगिक सम्बन्धो में सुधार होता है। निजी उपक्रमों में राजकीय उपक्रमों की तुलना में श्रमिकों तथा कर्मचारियों की सुविधाओं पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है, अतः औद्योगिक सम्बन्ध खराब होते हैं।
9. राजनैतिक प्रभाव सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की कार्यप्रणाली, विचारधारा तथा नीतियाँ उस राजनैतिक दल की नीतियों के अनुरूप होती हैं जो दल सत्ता में होता है। निजी क्षेत्र के उपक्रमों में राजनैतिक प्रभाव नहीं के बराबर होता है।
10. आवश्यकता राष्ट्रीय महत्त्व, सामरिक महत्त्व तथा जनोपयोगी सेवाओं वाले उद्योगों का संचालन ससेवाओं वाले उद्योगों का सम्भव है। निजी क्षेत्र में किसी भी प्रकृति के उद्योग का संचालन किया जा सकता है।
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Pankaja Singh

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