विपणन प्रबन्ध

विपणन मिश्रण में परिवर्तन | विपणन मिश्रण के तत्व | विपणन मिश्रण के चल | विपणन मिश्रण के प्रकार | विपणन वातावरण के विश्लेषण के अध्ययन की आवश्यकता | विपणन वातावरण के विश्लेषण के अध्ययन का महत्व

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विपणन मिश्रण में परिवर्तन

(Changes in the Marketing Mix)

समय और परिस्थितियों के अनुसार विपणन मिश्रण में परिवर्तन करना आवश्यक होता है। एक बार निर्धारित या निश्चित किया गया विपणन मिश्रण हमेशा उपयोगी सिद्ध नहीं होता। आज परिवर्तनों का समय है। जीवन के सभी क्षेत्रों में तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। बाजारों की परिस्थितियाँ निरन्तर बदल रही हैं। उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं एवं रूचियों में आमूल परिवर्तन हो रहे हैं। अतः आवश्यकतानुसार उत्पाद, उसकी कीमत, वितरण वाहिकाओं, संवर्द्धन के तरीकों आदि में परिवर्तन किया जाना चाहिए। उन्नत वस्तु (Improved Product) को बाजार में प्रस्तुत करते समय भी विपणन मिश्रण में परिवर्तन आवश्यक हो जाता है। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि समयानुसार आवश्यकता के अनुरूप विपणन मिश्रण में परिवर्तन करते रहना चाहिए।

विपणन मिश्रण के तत्व

सामान्य रूप से विपणन मिश्रण के तत्वों में निम्नांकित को सम्मिलित किया सकता है –

(1) सामान्य नियोजन- (अ) एक स्वीकृत और सम्भावित विकास दर निर्धारित करना। (ब) बाजार का आकार और सीमा का निर्धारण करना, जहाँ लाभप्रद व्यवसाय किया जा सके। (स) लागतों और व्ययों का निर्धारण करना, जो व्यावसायिक क्रिया-कलापों के लिए आवश्यक हो। (द) आवश्यक वित्त का निर्धारण।

(2) उत्पाद नियोजन- (अ) प्रस्तुत किये जाने वाले उत्पादों या सेवाओं का निर्धारण (ब) उत्पाद में सम्भावित सुधार और नवाचार (स) ब्राण्ड और पैकिंग नीतियाँ।

(3) कीमत निर्धारण- (अ) कीमतों का स्तर और मनोवैज्ञानिक पहलू (ब) उचित लाभ सीमा (स) पुनः विक्रय कीमत अनुरक्षण (द) सरकारी नियन्त्रण, यदि कोई हो।

(4) वितरण वाहिकाएँ- (अ) थोक व्यापारियों द्वारा विक्रय (ब) अधिकृत विक्रय एजेन्सियों की नियुक्ति (स) उपभोक्ताओं तक प्रत्यक्ष रूप से जाने की सीमा।

(5) विक्रय शक्ति- (अ) व्यक्तिगत विक्रय की सीमा (ब) थोक विक्रेताओं और फुटकर विक्रेताओं के समीप जाने सीमा (स) उपभोक्ताओं तक प्रत्यक्ष रूप से जाने की सीमा।

(6) विज्ञापन और विक्रय संवर्द्धन- (अ) विज्ञापन कार्यक्रम (ब) प्रदर्शन को महत्व देना (स) उपभोक्ताओं के लिए किये गये विक्रय संवर्द्धन की सीमा (द) मध्यस्थों के लिए किये गये विक्रय संवर्द्धन की सीमा।

(7) भौतिक वितरण- (अ) परिवहन (ब) भण्डारण (स) स्कन्ध नीतियाँ (द) लागतों में सम्भावित कमी।

(8) विपणन अनुसंधान- (अ) विक्रय विश्लेषण (ब) क्षेत्र सर्वेक्षण (स) बाहरी एजेन्सियों का उपयोग।

यह उल्लेखनीय है कि उपर्युक्त तत्वों के आधार पर विपणन मिश्रण का निर्माण करते समय लाभदायकता का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि प्रत्येक विपणन क्रिया का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है। अतः विपणन प्रबन्धक को एक ऐसे विपणन मिश्रण की खोज करनी चाहिए जो बेचे जाने वाले उत्पादन पर अनुकूलतम (optimum) लाभ दे।

विपणन मिश्रण के चल (प्रकार)

विपणन मिश्रण किन विपणन चलों का मिश्रण है, इस सम्बन्ध में विद्वान एकमत नहीं है। प्रोफेसर एल्बोर्ट डब्ल्यू० फ्रे ने विपणन चलों को दो श्रेणियों में विभक्त किया है – (1) पहली श्रेणी में उन चलों को सम्मिलित किया गया है जो बाजार में प्रस्तुत की जाने वाली वस्तुओं से सम्बन्ध रखते हैं। इनमें उत्पाद, ब्राण्ड, कीमत, पैकेज एवं सेवा सम्मिलित हैं। (2) दूसरी श्रेणी में उन चलों को सम्मिलित किया गया है जो विधियों एवं उपकरणों से सम्बन्ध रखते हैं। इनमें वितरण वाहिकाएं, विज्ञापन, वैयक्तिक विक्रय, विक्रय संवर्द्धन तथा प्रचार सम्मिलित हैं। लेजर एवं केली ने विपणन चलों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया है- (1) उत्पाद एवं सेवा मिश्रण (2) वितरण मिश्रण तथा (3) संचार मिश्रण। लेकिन मेकार्थी द्वारा विकसित चार ‘पी’ (Four ‘P’s) का वर्गीकरण अन्य विद्वानों द्वारा बताये गये चलो को सम्मिलित करता है। मेकार्थी द्वारा बताये गये विपणन मिश्रण के चार ‘पी’ निम्न हैं- (1) उत्पाद (Product) (2) स्थान (Place) (3) प्रवर्तन या संवर्द्धन (Promotion) तथा (4) कीमत (Price) । यह चल अलग-अलग फर्मों में अलग- अलग होते हैं और निरन्तर बदलते रहते हैं। प्रत्येक फर्म विपणन पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए अपने मिश्रण का निर्धारण करती है।

विपणन वातावरण के विश्लेषण के अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्व

(Need and Importance of Analysis of Study of Marketing Environment)

विपणन वातावरण का विश्लेषण एवं अध्ययन निम्नलिखित मुख्य प्रमुख कारणों की वजह से आवश्यक एवं महत्वपूर्ण हो गया है।

  1. वातावरणीय जटिलता का ज्ञान- वातावरण की जटिलताओं से आशय उन सभी बाह्य घटकों एवं उन घटकों की विविधताओं की श्रेणी से लगाया जाता है, जिनके प्रति किसी संस्था के विपणन प्रबन्ध को प्रत्युत्तर देना होता है। चूँकि आधुनिक विपणन वातावरण को अनेक घटक प्रभावित करते हैं तथा उन घटकों का प्रभाव विविध रूपों में होता है, फलतः विपणन वातावरण में अत्यधिक जटिलताएं उत्पन्न हो गई हैं। इन जटिलताओं का मापन एवं ज्ञान करने के लिए विपणन वातावरण का अध्ययन करना अति आवश्यक हो गया है।
  2. परिवर्तनों का पूर्ण ज्ञान- विपणन कार्य एक गतिशील वातावरण में सम्पन्न किया जाता है, जिसमें सदैव परिवर्तन होते रहते हैं। उपभोक्ताओं की रूचियों, प्रतिस्पर्द्धा, तकनीक, उत्पाद के रंग, रूप, आकार, गुण, आराम एवं विलासिता की नवीन वस्तुओं की उपलब्धता आदि सभी में परिवर्तन होता रहता है। इन सबकी जानकारी प्राप्त करने के लिए वातावरण का निरन्तर व्यवस्थित अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।

घटकों के पारस्परिक प्रभाव का अध्ययन- विपणन वातावरण के अनेक घटक हैं। वे घटक आपस में एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। किन्तु एक घटक में परिर्वतन का दूसरे घटकों पर कैसा एवं कितना प्रभाव हो रहा है, इसका अध्ययन करने के लिए सम्पूर्ण विपणन वातावरण का अध्ययन आवश्यक है।

  1. विद्यमान योजनाओं एवं उद्देश्यों का मूल्यांकन- विपणन वातावरण का विश्लेषण करके विपणन प्रबन्धक अपनी विद्यमान योजनाओं एवं उद्देश्यों का मूल्यांकन भी कर सकते हैं। वे यह ज्ञात कर सकते हैं कि वर्तमान वातावरण में विद्यमान विपणन योजनाओं से विपणन उद्देश्यों की पूर्ति की जा सकती है अथवा नहीं। यदि नहीं तो उनमें किस प्रकार का एवं कितना परिवर्तन करना होगा, इस बात को भी ज्ञात किया जा सकता है। अतः विपणन वातावरण का विश्लेषण या अध्ययन आवश्यक हो जाता है।
  2. उच्चावचनों का पूर्ण ज्ञान – विपणन वातावरण के प्रत्येक घटक में अनेक उच्चावचन आते रहते हैं और वातावरण गतिशील बना रहता है। किन्तु उच्चावचनों की दर समान नहीं होती है। कभी यह दर अधिक होती है तो कभी कुछ कम। उदाहरणार्थ वर्तमान में इलेक्ट्रोनिक्स व्यवसाय के विपणन वातावरण के तकनीकी एवं प्रतिस्पर्द्ध घटकों में यह दर अधिक पायी जा रही है, जबकि सीमेन्ट, स्टील, चीनी उद्योग में उच्चावचनों की दर बहुत सामान्य ही है। इन सबका अध्ययन करने के लिए विपणन वातावरण का अध्ययन अति आवश्यक है।
  3. संसाधनों की प्राप्ति – विपणन प्रबन्ध को संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है। इन संसाधनों की न्यूनतम लागत पर प्राप्ति के लिए सम्पूर्ण बाह्य वातावरण का अध्ययन बहुत बहुत जरूरी है।
  4. उत्पादों या सेवाओं का वितरण- संस्था के उत्पादों या सेवाओं के प्रभावकारी एवं मितव्ययी वितरण के लिए भी विपणन वातावरण का अध्ययन परमावश्यक है। ऐसा न करने पर उत्पादों या सेवाओं से उचित एवं पर्याप्त लाभ नहीं मिल सकेगा।
  5. दीर्घकालीन या व्यूहरचनात्मक नियोजन- विपणन वातावरण के अध्ययन की आवश्यकता दीर्घकालीन या व्यूहरचनात्मक नियोजन के लिए भी पड़ती है। दीर्घकालीन विपणन नियोजन के लिए सर्वप्रथम विद्यमान वातावरण का विश्लेषण किया जाता है तथा भावी वातावरण का अनुमान लगाया जाता है। इन घटकों का अध्ययन करके ही दीर्घकालीन विपणान योजनाओं, व्यूहरचनाओं तथा उद्देश्यों को भली-भाँति निर्धारित किया जा सकता है।
  6. वातावरण या विभिन्न घटकों से समन्वय- हिक्स एवं गुलेट के अनुसार, “यदि किसी संस्था को सफल एवं समृद्ध होना है, तो इसे अपने वातावरण से निरन्तर रूप से समन्वय करना तथा अपने आपको इसके अनुरूप ढालना होगा।” वस्तुतः प्रत्येक संस्था का विपणन प्रबन्ध एक बाह्य वातावरण में कार्य करता है। इस बाह्य वातावरण में विभिन्न प्रभाव वाले अनेक घटक होते हैं। कोई भी विपणन प्रबन्ध इन घटकों को परिवर्तित करने में बहुत अधिक सफल नहीं हो सकता है। स्वयं विपणन प्रबन्ध को ही इन घटकों के साथ समन्वय करना पड़ता है। ऐसा करने के लिए वातावरण का अध्ययन बहुत जरूरी है।
  7. प्रभावकारी निर्णयन- प्रभावकारी एवं ठोस निर्णय वे होते हैं जो वातावरण की अपेक्षाओं एवं आवश्यकताओं के अनुरूप हो। परन्तु ऐसे अच्छे निर्णय वातावरण का अध्ययन किये बिना नहीं लिये जा सकते हैं। रेनकी तथा शॉल के शब्दों में, “वातावरण सम्बन्धी वास्तविकताओं का समुचित अध्ययन ही ठोस निर्णयों का आधार है।” अतः विपणन वातावरण का अध्ययन ठोस निर्णयों के लिए भी प्राथमिक आवश्यकता है।
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Pankaja Singh

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