संगठनात्मक व्यवहार

संगठनात्मक व्यवहार की सीमायें एवं दुर्बलतायें | Limitations and Shortcoming of Organisational Behaviour in Hindi

संगठनात्मक व्यवहार की सीमायें एवं दुर्बलतायें | Limitations and Shortcoming of Organisational Behaviour in Hindi

संगठनात्मक व्यवहार की सीमायें एवं दुर्बलतायें

(Limitations and Shortcoming of Organisational Behaviour)

(1) सिद्धान्तों पर बल, व्यवहार पर नहीं- आलोचकों का कथन है कि संगठनात्मक व्यवहार अधिकांशतः एक सैद्धान्तिक विषय है, यह व्यवहार में सुधार लाने पर अधिक बल नहीं देता। के० अश्वथप्पा का कथन है कि, “जो व्यक्ति व्यवहारवादी विषयों का अच्छा ज्ञान एवं तैयारी रखते हैं, वे स्वयं के पारिवारिक जीवन में पूर्णतः असफल (Wrecks) सिद्ध हुये हैं।”

(2) औद्योगिक सम्बन्धों में सुधार नहीं- संगठनात्मक व्यवहार विषय संस्था में औद्योगिक विवादों, झगड़ों व उत्पादन अवरोधक गतिविधियों को रोकने में सफल नहीं हुआ है। संगठनात्मक व्यवहार की प्रक्रियाओं को लागू करने के बावजूद भी संस्थाओं में हड़तालों, तालाबन्दी, तोड़फोड़, घेराव जैसी घटनाओं में कमी नहीं आयी है। प्रबन्ध एवं श्रमिक के बीच सम्बन्धों में समरसता उत्पन्न नहीं हुयी है।

(3) केवल वर्णनात्मक, निर्देशात्मक नहीं- कई आलोचकों का यह मत रहा है कि संगठनात्मक व्यवहार केवल एक विवरणात्मक विषय है। यह समस्या समाधान के लिये कोई हल आदेश या निर्देश प्रस्तुत नहीं करता है। यह सुझावात्मक नहीं है। यह समस्याओं के केवल प्रकटीकरण तक ही सीमित है। यह उनको दूर करने के लिये कोई सुझाव प्रस्तुत नहीं करता। यह ‘अवांछित व्यवहार’ का वर्णन कर सकता है, उसकी पुनरावृत्ति को नहीं रोक सकता।

(4) प्रबन्धकों की सनक- कुछ लोगों का मत है कि संगठनात्मक व्यवहार आधुनिक प्रबन्धकों की सनक (Fad) का परिणाम है यह प्रबन्ध में मात्र नये परिवर्तन करने पर बल देता है, किन्तु इससे कर्मचारियों एवं प्रबन्धकों की प्रवृत्तियों में कोई परिवर्तन नहीं आया है। उनके व्यवहार में बदलाव लाने का कोई प्रयास नहीं किया जाता है।

(5) दोहरा व्यक्तित्व- यह भी कहा जाता है कि ‘संगठनात्मक व्यवहार’ प्रबन्ध में केवल दोहरा चरित्र ही बन पाया है। प्रबन्धक परिवर्तन या विकास के नाम पर केवल आदर्श की बातें करते हैं, किन्तु उनका स्वयं का व्यवहार दोहरा होता है। वे स्वयं में बदलाव लाये बिना कर्मचारियों के व्यवहार एवं अभिवृत्तियों में परिवर्तन लाने पर जोर देते हैं। दिखावे के लिये प्रबन्धक कर्मचारी सहभागिता, समान अवसरों तथा खुली नीतियों की चर्चा करते हैं, किन्तु इन आदर्श नीतियों के पीछे वास्तविकता कुछ और ही होती है। प्रबन्धक कर्मचारियों को नौकर का दर्जा देते हैं, उनके साथ अति कड़ा व अमानवीय व्यवहार करते हैं। यह सब उनके दोहरे व्यक्तित्व प्रकट करता है।

(6) केवल प्रबन्ध हित में- कुछ आलोचकों के अनुसार, संगठनात्मक व्यवहार केवल प्रबन्धकों के उद्देश्यों की पूर्ति करता है। इसकी प्रकृति निष्पक्ष नहीं है, यह कर्मचारियों के हितों की उपेक्षा करता है।

(7) पूँजीवादी समाजों का परिणाम- कुछ आलोचक ‘संगठनात्मक व्यवहार को पूँजीवादी समाजों का परिणाम मानते हैं। उनके अनुसार “इसकी प्रकृति स्वार्थी एवं शोषक है।” यह अभिप्रेरण, कार्यकुशलता एवं उत्पादकता पर अत्यधिक बल देकर कर्मचारियों में पारस्परिक प्रतिस्पर्द्धा व ईर्ष्या को बढ़ाता है।

(8) समस्याओं का हल नहीं- कीथ डेविस का मत है कि संगठनात्मक व्यवहार केवल सुधार का मार्ग प्रशस्त करता है, किन्तु यह समस्याओं का निरपेक्ष उत्तर नहीं है। यह व्यवहार के सन्दर्भ में संघर्ष एवं निराशा को दूर नहीं कर सकता, केवल उन्हें कम कर सकता है। यह बेरोजगारी औद्योगिक अशान्ति जैसी समस्याओं का हल निकालने में असफल रहा है।

(9) कुप्रबंध का परिपूरक नहीं- संगठनात्मक व्यवहार व्यक्ति की स्वंय की कमियों का पूरक नहीं है। यह कमजोर नियोजन, अयोग्य संगठन या प्रभावहीन नियन्त्रण व्यवस्था का विकल्प नहीं है।

(10) अधिक बल से ऋणात्मक परिणाम- संगठनात्मक व्यवहार की अवधारणा पर अत्यधिक बल देने से प्रायः उसके प्रतिकूल परिणाम अथवा प्रतिक्रियायें प्रकट होने लगती हैं। कर्मचारियों के व्यवहार का अत्यधिक विश्लेषण उनमें निराशा, आक्रोश, प्रतिक्रिया, विरोध आदि को जन्म देता है।

(11) शोषण तकनीक- कुछ आलोचक संगठनात्मक व्यवहार को व्यक्तियों के शोषण की एक तकनीक मानते हैं। इसमें कर्मचारियों को प्रबन्ध के हितों की पूर्ति का एक साधन मान लिया जाता है। उनकी आवश्यकताओं व भावनाओं की आड़ में प्रबन्धक अपने निजी स्वार्थों को पूरा करते हैं।

निष्कर्ष-

उपर्युक्त कमियों के बावजूद संगठनात्मक व्यवहार विषय के योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता। यह मानव व्यवहार के विश्लेषण एवं ज्ञान का सर्वोत्मक उपाय है। यह संगठनों को प्रभावशील बनाने, वैयक्तिक एवं समूह व्यवहार का अध्ययन करने, कर्मचारियों का मानसिक विकास करने, उन्हें अपनी सम्भावनाओं एवं अप्रकट क्षमता के प्रति जागरूक बनाने तथा मानवीय समस्याओं को हल करने की मानवीय पद्धति है।

संगठनात्मक व्यवहार – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!