इतिहास

विस्मार्क की गृहनीति | Home Policy of Bismark in Hindi

विस्मार्क की गृहनीति | Home Policy of Bismark in Hindi

विस्मार्ग की गृहनीति (Home Policy of Bismark)-

विस्मार्क 1862 ई० में प्रशा का चांसलर बना और अपनी कूटनीतिक सूझ-बूझ एवं सैन्य बल से तीन लड़ाइयों को जीतकर उसने जर्मनी का एकीकरण किया। जर्मनी में 1870 ई० में एकीकरण के बाद विस्मार्क ने नीति घोषणा के दौरान बताया कि ‘जर्मनी एक सन्तुष्ट राज्य है’ और इस तरह उसने जर्मनी के बिस्तार सम्बन्धी आशंकाओं को दूर करने की चेष्टा की। फिर भी जर्मनी की आन्तरिक समस्याएं 1890 ई० तक विस्मार्क को उलझाए रहीं और अन्त में उसे अपना त्याग पत्र देना पड़ा।

(क) विस्मार्क की समस्याएं-

जर्मनी के नवीन साम्राज्य की स्थापना होते ही यहाँ संस्कृति की रक्षा का एक संघर्ष आरम्भ हुआ। जो रोमन कैथोलिक चर्च एवं सरकार के मध्य अनेकों वर्षों तक निरन्तर चलता रहा। जर्मनी में रोमन कैथोलिक धर्म प्रबल था और राज्य की ओर से उसे पूर्णतः स्वतन्त्रता प्राप्त थी। प्रशा के लोग प्रोटेस्टेंट धर्म के अनुयायी थे। जबकि जर्मनी के अन्य राज्यों की प्रजा अधिकांशतः कैथोलिक धर्म की अनुयायी थी। कैथोलिक लोग विस्मार्क के एकीकरण के नीति के प्रबल विरोधी थे। क्योंकि उन्हें भय था कि एकीकरण की हालत में उन्हें प्रोटेस्टेंट प्रशा के वश में रहना पड़ेगा। इसके अलावा विस्मार्क भी कैथोलिकों का दमन करना चाहता था क्योंकि वे जर्मन साम्राज्य के प्रति भक्ति न रखकर पोप के प्रति भक्ति व श्रद्धा रखते थे। आस्ट्रिया और फ्रांस के साथ युद्ध कर और उन्हें पराजित कर विस्मार्क ने जर्मनी के कैथोलिकों के साथ मनमुटाव कर लिया, क्योंकि आस्ट्रिया और फ्रांस कैथोलिक देश थे। जर्मनी के कैथोलिक नागरिक क्रुद्ध हो उठे। उन्होंने जर्मनी में कैथोलिक केन्द्रीय दल नायक एक दल की स्थापना की। जिसका लक्ष्य पुनः पोप की सत्ता को जर्मनी में बहाल करना था। 1870 ई० में रोम के पोप ने चर्च के मामलो में सरकार के हस्तक्षेप का विरोध किया था और उसने पादरियों को आदेश दिया था कि समस्त विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा दी जाए। विस्मार्क के लिये यह असहनीय था।

इसके अलावा प्रशा में औद्योगीकरण एकीकरण होने के पहले शुरू हो गया था। जर्मनी के एकीकरण के बाद औद्योगीकरण की गति और तेज हो गयी। देश के सभी भागों में विशेष कर देहातों से मजदूर आकर शहर में कारखानों में काम करने लगे। मजदूरों की भलाई के लिए कोई काम नहीं किया गया। फलतः आर्थिक और सामाजिक स्थिति खराब होने लगी। इसी समय समाजवादी लैसेल और मार्क्स का प्रभाव बढ़ने लगा और औद्योगिक मजदूर जागरूक होने लगे। समाजवादियों से विस्मार्क भयभीत था और उनको अपना एक प्रबल शत्रु मानता था।

इसके अलावा पूरे जर्मनी में कई तरह के कानून व्याप्त थे, यातायात के साधनों की कमी थी और आर्थिक संसाधनों के अभाव में देश की आर्थिक प्रगति बाधित हो रही थी। इन समस्याओं के समाधान के लिये क्रमिक कदम उठाये गये। देश की तरक्की के लिये उठाये गये कदम में तो सफलता मिली लेकिन कैथोलिक एवं समाजवादियों के साथ उसके टक्कर में विस्मार्क को ही झुकना पड़ा।

(ख) देश की तर्की के लिए उठाए गए कदम-

विस्मार्क ने जर्मनी के छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर एक बड़े राज्य में बदल दिया और उस संघ का नाम जर्मन रखा। लेकिन इतने से ही जर्मन साम्राज्य में एकता स्थापित होना सम्भव नहीं था। उसके अनेक राज्यों में विभिन्न तरह के कानून थे, अनेक प्रकार की मुद्रा थी, यातायात में अनेक बाधाएँ थीं। इन सबमें एकता लाए बिना सच्चे अर्थ में जर्मनी का एकीकरण संभव नहीं था।

विस्मार्क ने जर्मनी की भावात्मक एकता के लिए विभिन्न राज्यों में प्रचलित कानूनों को स्थगित कर दिया और ऐसे कानूनों का निर्माण किया जो सम्पूर्ण साम्राज्य में समान रूप से प्रचलित हो। आर्थिक एकता के लिये उसने पूरे जर्मनी में एक ही प्रकार की मुद्रा का प्रचलन कराया। यातायात की सुविधा के लिये रेलवे बोर्ड की स्थापना की गई और उसी से टेलीग्राफ को सम्बद्ध कर दिया गया। साम्राज्य की आर्थिक उन्नति के लिये राज्यों की ओर से बैंकों की स्थापना की गई। जर्मन साम्राज्य में सैनिक शिक्षा अनिवार्य कर दी तथा यह निश्चय गया कि साम्राज्य में स्थायी रूप से चार लाख सैनिक रहेंगे।

(ग) धार्मिक नीति या कुल्टुर कैम्फ (Kultur Kamf)-

विस्मार्क की गृहनीति का एक महत्त्वपूर्ण अंग कैथोलिक सम्प्रदाय का विरोध करना था। वह राजनीति और धर्म दोनों को दो विषय मानता था। कैथोलिक चर्च से विस्मार्क की लड़ाई को कुल्टुर कैम्फ (Cultor Kaml) अर्थात संस्कृति विषयक लडाई कहते हैं। इस संघर्ष का प्रधान कारण कैथोलिक सम्प्रदाय के अनुयायियों का एक राजनीतिक दल बनाकर जर्मन साम्राज्य का विरोध करना था। जर्मन साम्राज्य का प्रधान राज्य प्रशा था। और वहां की अधिकांश जनता प्रोटेस्टैण्ट संप्रदाय के अनुयायियों को मानता था। कैथोलिक लोग पोप के प्राचीन सत्ता की स्थापना के इच्छुक थे। लेकिन इटली के एकीकरण के बाद पोप की सारी शक्ति और क्षमता समाप्त प्राय हो गयी। जर्मनी की अधिकांश जनता प्रोटैस्टैण्ट धर्म को मानने वाली थी। केन्द्रीय सरकार में भी ऐसे लोगों का बहुमत था। अतः कैथोलिक लोगों को भय था कि कानून बनाकर उन्हें परेशान किया जायेगा। 1971 ई० के निर्वाचन में 63 कैथोलिक सदस्य लोकसभा में सदस्य थे, उनके कार्यकलाप से बिस्मार्क इस नतीजे पर पहुंचा कि वे जर्मन साम्राज्य के विघटन के लिए उत्प्रेरित है। उनके कार्यों से जर्मनी और पोप के सम्बन्ध खराब होते गये और अन्त में नवम पोप पायस ने घोषणा की कि कैथोलिक धर्मावलम्बियों को किसी अन्य धर्म के प्रति सहानुभूति नहीं प्रदर्शित करनी चाहिए और चर्च को राज्यों के अधीन रखना धर्म के विरुद्ध है। इस घोषणा से जर्मनी के कैथोलिक दो भागों में विभक्त हो गये। कुछ लोगों ने पोप की इस घोषणा का विरोध किया जिन्हें पुराना कैथोलिक कहा गया। अन्य लोगों ने पोप का साथ दिया। पोप ने पुराने कैथोलिकों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की। उन्हें स्कूल तथा अन्य सामाजिक संस्थाओं से हटने के लिये बाध्य किया गया। दक्षिण जर्मनी में पोप के समर्थकों की संख्या अधिक थी जबकि प्रशा में पुराने कैथोलिक थे। विस्मार्क ने पुराने कैथोलिको का साथ दिया। पोप के समर्थकों ने यह प्रचार करना शुरू कर दिया कि इसाई जनता के सम्बन्ध में राजा को किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।

(घ) चर्च के विरुद्ध कानून-

पोप की उपर्युक्त घोषणा से विस्मार्क के कान खड़े हो गये। उसने इसका अर्थ लगाया कि पोप राज्य के अधिकारों का अतिक्रमण कर रहा है और कैथोलिक लोग अब पोप के कहने पर राज्य के आदर्शों की अवहेलना कर लेंगे। इससे विस्मार्क क्रुद्ध हुआ और चर्च के विरुद्ध कानून पास किए। सन् 1872 ई० में जेसुइट समाज का वहिष्कार कर दिया और प्रशा तथा पोप का सम्बन्ध विच्छेद हो गया। 1873 ई० में कई कानून पास किए गये। जिन्हें सामूहिक रूप से May laws कहा जाता इस कानून के अनुसार विवाह राज्य कर्मचारियों की आज्ञा से होने लगा। जिसमें चर्च की कोई आवश्यकता नहीं रह गई। शिक्षण संस्थाओं पर राज्य का अधिकार हो गया। चर्च की कोई आवश्यकता नहीं रह गई। यह भी कानून बना कि सरकार की अनुमति के बिना किसी भी पादरी की नियुक्ति नहीं उचित मानी जायेगी। चर्च को मिलने वाली सरकारी सहायता बंद कर दी गयी। पोप ने इन सभी नियमों को धर्म के विरुद्ध घोषित कर दिया। कैथोलिको ने भी राज्य का घोर विरोध किया। विस्मार्क ने घोषणा की कि वह ‘कैनोसा’ नहीं जायेगा।’ विस्मार्क की दमन नीति के समक्ष कैथोलिक लोग झुके नहीं बल्कि शहीद होते रहे उनकी कुर्बानी देखकर बहुत से लोग उनके साथ सहानुभूति दिखाने लगे। परिणामस्वरूप लोकसभा में कैथोलिकी की संख्या बढ़ गयी। विस्मार्क समझ गया कि कैथोलिकों को दबाना आसान नहीं है। उसे यह भी भय हुआ कि केन्द्रीय संसद में कहीं और समाजवादी सदस्य न जाये । वह समाजवादियों को भी अपनी नीति के लिए कम खतरनाक नहीं समझता था। इसीलिए कैथोलिकों से समझौता करने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो गया। इसी समय नवम पोप पायस की मृत्यु हो गयी और उसके स्थान पर तेरहवाँ लियो पोप नियुक्त हुआ। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ था। वह विस्मार्क से समझौता करने को इच्छुक था। विस्मार्क ने नीति परिवर्तन के तहत कैथोलिकों के विरुद्ध कानून रद्द कर दिये और जेसुइट समाज को फिर वापस आने की आज्ञा दे दी। उसने पोप से राजनीतिक सम्बन्ध स्थापित किये।

इस प्रकार हम देखते हैं कि ‘विस्मार्क को कैनोसा जाना पड़ा ? और अंत में कैथोलिकों की जीत हुयी। विस्मार्क की निगाहों में कैथोलिकों से भी खतरनाक समाजवादी थे और समाजवादियों से निपटने के लिये कैथोलिकी को विश्वास में लेना आवश्यक था।

(ड) विस्मार्क का समाजवादियों से संघर्ष-

विस्मार्क ने 1878 ई० में समाजवादी दल के बढ़ते हुए प्रभाव को समाप्त करने की ओर ध्यान दिया। इस दल की स्थापना 1848 ई० में जर्मनी में फर्जीनेंस लासले ने की थी और बाद में मार्क्स ने भी समाजवादी विचारधारा का अपनी पुस्तक ‘दास कैपिटल’ में समर्थन किया। लासले तथा मार्क्स ने जर्मनी की तत्कालीन आर्थिक नीति की निंदा की और एलान किया कि जर्मनी के उत्पादन के साधनों पर पूंजीपतियों का अधिकार सर्वथा अनुचित है। उन्होंने सरकार से मांग की कि वह इन साधनों पर स्वयं अधिकार करे और उद्योगधन्धों का राष्ट्रीय एकीकरण कर देश के श्रमिकों का कल्याण करे। समाजवादियों के इस सिद्धान्त से जर्मनी की जनता प्रभावित होने लगी क्योंकि जर्मनी का औद्योगीकरण हो रहा था और मजदूरों का जमघट शहरों में लग रहा था। ये मजदूर समाजवादी विचारधारा से काफी प्रभावित हुये

संस्कार के समक्ष समाजवादियों ने अपनी विभिन्न मांगों को रखा। उन्होंने मांग की कि ‘जर्मनी की सरकार श्रमिकों को ही समस्त आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकार दे, क्योंकि वे ही वास्तविक उत्पादक है। उन्होंने सार्वजनिक, मताधिकार, समाचार पत्रों की स्वतंत्रता, सभा करने को स्वतन्त्रता, निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा श्रमिकों के काम करने का न्यायोचित समय, रविवार का अवकाश, स्वास्थ्य संरक्षण इत्यादि की मांग की। समाजवादियों का उद्देश्य समाजवादियों के सिद्धान्तों पर आधृत एक नवीन समाज की स्थापना करना था। जर्मनी की पार्लियामेंट में समाजवादी दल के सदस्यों की संख्या भी बढ़ने लगी।

समाजवादियों के बढ़ते प्रभाव से राजतन्त्रवादी एवं कुलीनों का पक्षपाती शासक-वर्ग अप्रत्याशित रूप से चिंतित हो गया। विस्मार्क समाजवादी अथवा प्रजातान्त्रिक सिद्धान्त का कट्टर विरोधी था। अतः उसने समाजवादियों का दमन करने का निश्चय किया। अक्टूबर, 1878 में जर्मनी की पूंजीवादी संसद ने विस्मार्क के संकेत पर एक अत्यन्त कठोर अधिनियम पास किया जिसका प्रमुख लक्ष्य था समाजवादी दल और समाजवादियों का पूर्णतया सफाया करना। समाजवादियों को सभा करने की मनाही कर दी गयी। प्रमुख नेताओं को जेल में डाल दिया गया। समाजवादी साहित्य पर कठोर पावबन्दी लगा दी गयी। समाचार पत्रों पर नियन्त्रण कायम किया गया और उनके संपादकों को कैद कर लिया गया। सरकार ने उनकी सारी व्यक्तिगत सम्पत्ति जब्त कर ली। इस अधिनियम के तहत पुलिस कर्मचारी को हस्तक्षेप करने तथा, बंदी बनाने, देश निष्काशन के विस्तृत अधिकार दे दिये गये। समाजवादियों के अनुसार, इस अधिनियम के आधार पर 1400 पुस्तकें जब्त कर ली गयी, 900 समाजवादियों को देश निष्काशन की सज़ा मिली और 1500 समाजवादियों को जेल की सजा मिली। इतना ही नहीं मकान मालिकों को यह चेतावनी दी गयी की अगर सभा करने के लिये समाजवादियों को किराये पर मकान देंगे तो उन्हें कठोर सजा दी जायेगी। 1878 ई० का यह अधिनियम चार वर्ष तक चला। कालान्तर में इसका दो बार नवीनीकरण किया गया और इस प्रकार यह 1890 ई० तक लागू रहा।

लेकिन समाजवादियों का मनोबल इससे गिरा नहीं, बल्कि स्विटजरलैण्ड से काम करने लगे। स्विटजरलैण्ड से एक साप्ताहिक समाचार पत्र प्रकाशित किया गया। जिसकी हजारों प्रतियों की बिक्री जर्मनी के श्रमिकों के बीच की जाती थी। जर्मनी ने भी अब साजवादियों का साथ देना शुरू कर दिया और वहाँ चुनावों में उत्तरोत्तर समाजवादियों को अधिक मद मिलने शुरु हुये। 1890 ई० के बाद जर्मनी की सरकार ने दमनकारी अधिनियम का नवीनीकरण नहीं किया, क्योंकि जर्मनी एवं संसद में विस्मार्क का विरोध बढ़ रहा था और संसदीय क्षेत्र में जिन समाजवादियों ने सफलता पाई थी, उनकी संख्या अब पहले से तिगुनी अधिक हो चुकी थी।

फिर भी विस्मार्क दमनकारी नीति से सन्तुष्ट नहीं था। उसने मजदूरों समाजवादियों से अलग करने के लिए राज्य समाजवाद (State Socialism) का प्रयोग करना शुरू कर दिया। इस समाजवादी प्रयोग के द्वारा उसने मजदूरों को यह दर्शाया की राज्य स्वयं मजूदरों की भलाई के लिये सचेष्ट है। मजदूरों की भलाई के लिये उसने अनेक बीमा योजनाएं लागू की। एक विस्तृत बीमा-प्रणाली के द्वारा मजदूरी की बीगारियों, दुर्भाग्यवश घटनाओं, बुढ़ापा एवं क्षमताशून्य होने की दशाओं में रहने वाले मजदूरों को राज्यों की ओर से पेंशन दी जानी चाहिए। वह अपनी इस नीति को कालान्तर में 1883 के रोग बीमा कानून, 1884-85 के दुर्घटना बीमा कानून और 1889 में वृद्धावस्था बीमा कानून द्वारा ही कार्यान्वित किया गया। 1887 ई० में स्त्रियों एवं बालकों के काम करने के घंटों को निश्चित करने के लिये अधिनियम बनाये गये और रविवार को अवकाश का दिन माना गया। सामाजिक भागों को पूरा करने में विस्मार्क का यह महान कार्य था जिसकी 19वीं शताब्दी में सर्वोपरि महत्ता स्वीकार की जाती है।

लेकिन इन नियमों के पारित होने पर पर भी जर्मनी के समाजवादियों ने विस्मार्क का साथ नहीं दिया, क्योंकि वे इन्हें अत्यंत कम समझते थे और इन्हें सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिये अपर्याप्त समझकर इसकी तीव्र आलोचना करते थे। फिर भी विस्मार्क ने उनकी आलोचना की कुछ भी परवाह नहीं की। उसके विचार अन्य देशों में ही ग्रहण किये गये और कुछ मत जो पूर्णरूपेण स्वीकार कर लिये गये। उसका राज्य समाजवाद इंग्लैण्ड और फ्रांस के सामाजिक कानूनों के निर्माण के लिये आदर्श बन गया, लेकिन बिस्मार्क का राज्य जर्मनी में लोकप्रिय नहीं हो सका। समाजवादी दिन पर दिन शक्तिशाली हो गये। संसद में इस दल के 45 सदस्य पहुँच गये और कालान्तर में भी समाजवादी अबाध रूप से शक्तिशाली होते गये।

(च) संरक्षण की नीति-

विस्मार्क जर्मनी के औद्योगिक विकास के लिये सचेष्ट था। जर्मनी के एकीकरण होने पर उसने घोषणा की थी कि जर्मनी की भूमि से जर्मनी संतुष्ट है। लेकिन जर्मनी के उद्योगों के लिये बाजार की जरूरत थी। जर्मनी की तुलना में यूरोपीय देशों के औद्योगिक उत्पादन अच्छे किस्म के होते थे। जिसके कारण यूरोपीय उत्पादों की देशों की बिक्री जर्मनी में धड़ल्ले से होती थी। जर्मनी के औद्योगिक इकाइयों को बढ़ावा देने के ख्याल से विस्मार्क ने जर्मनी के बने हुये माल जर्मनी में ही नहीं बिक पाते और चूँकि जर्मनी का कोई उपनिवेश नहीं था, अतः ये सामान बाजार के भाव में बिक नहीं पाते थे। और अंत में जर्मनी के उद्योगों को बन्द करना पड़ता था। इस संरक्षण की नीति के कारण 1880 ई० के उपरांत जर्मनी के उद्योगों की प्रशंसनीय वृद्धि हुयी। विस्मार्क की इस नीति का अवलम्बन इंग्लैण्ड को छोड़कर यूरोप के अन्य राष्ट्रों ने किया और वहाँ भी औद्योगीकरण हुआ।

जर्मन उद्योगों को अपना तैयार माला बेचने के लिये नयी मंडियों की आवश्यकता थी लेकिन जर्मनी फ्रांस और इंग्लैण्ड से औपनिवेश प्रतिद्वंदिता मोल नहीं ले सकता था, क्योंकि उसके पास जहाजी बेड़े नहीं थे। फिर भी हेम्वर्ग एवं बौमैन के सम्पन्न व्यापारियों ने अफ्रीका और प्रशान्त महासार के द्वीपों में अपने व्यापारिक केन्द्र कायम किये। इन व्यक्तिगत कम्पनियों को सहायता देने के लिये जर्मनी सरकार से माँग की गयी। 1880 ई० में जर्मनी में एक औपनिवेशिक दल भी कायम हुआ, जो आगे चलकर अत्यन्त महत्वपूर्ण बन गया। 1884 ई० में विस्मार्क ने व्यक्तिगत, व्यापारियों को कार्य में सहायता देकर एक दृढ़ औपनिवेशिक नीति का अनुसरण किया। उस वर्ष जर्मनी ने अफ्रीका के पूर्वी और दक्षिणी पश्चिमी भागों में अनेक व्यापारिक चौकियों को ध्वस्त कर लिया। इस तरह विस्मार्क ने जर्मनी के औपनिवेशिक साम्राज्य की नींव रखी।

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Pankaja Singh

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