जर्मनी में नाजीवाद | नाजी दल का उत्थान | नाजीवाद के उत्कर्ष के कारण | जर्मनी में नाजीवाद के उदय के कारण

जर्मनी में नाजीवाद | नाजी दल का उत्थान | नाजीवाद के उत्कर्ष के कारण | जर्मनी में नाजीवाद के उदय के कारण

जर्मनी में नाजीवाद

प्रथम महायुद्ध (1914-18) में जर्मनी पराजित हुआ और वहाँ के राजतन्त्र की समाप्ति हुई तथा वाइमर गणतन्त्र की स्थापना हुई। युद्ध के पश्चात् जर्मनी की आर्थिक अवस्था बहुत बिगड़ गई, मुद्रा का मूल्य बहुत गिर गया, बेकारी बहुत फैल गयी और कीमतें आसमान छूने लगीं। देश में अनेक स्थानों में उपद्रव हुए और साम्यवादियों की शक्ति बहुत बढ़ गई। वर्साय की कठोर सन्धि ने जर्मनों के आत्म-सम्मान को गहरा आघात पहुँचाया और युद्ध अपराध उन पर थोपे जाने से वे बहुत क्रोधित हुए।

ऐसी स्थिति में जर्मनी में अनेक राष्ट्रवादी दलों का निर्माण हुआ, जिनका उद्देश्य जर्मनी को पुनः शक्तिशाली और गौरवमय बनाना था। इन दलों में नाजी दल भी एक था; जिसकी स्थापना का वास्तविक श्रेय रूडोल्फ हिटलर को है।

नाजी दल का कार्यक्रम- 1921 में नाजी दल ने अपना कार्य आरम्भ किया। आरम्भ में इसके सदस्यों की संख्या केवल सात थी, लेकिन धीरे-धीरे इस संख्या में वृद्धि होने लगी और भूतपूर्व सैनिक और सेनापति, जैसे लुडोनडर्फ गोरिंग आदि तथा राष्ट्रवादी इसके सदस्य बनने लगे। नाजी दल का कार्यक्रम निम्नलिखित था-

(i) वर्साय की अन्यायपूर्ण सन्धि का अन्त करना,

(ii) मिशन जर्मन साम्राज्य की स्थापना

(iii) जर्मनी से छीने गए उपनिवेश पुनः प्राप्त करना,

(iv) यहूदियों के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव को समाप्त करना,

(v) उन दलों और संस्थाओं का अन्त करना, जो देश के हितों के विरुद्ध हों,

(vi) साम्यवाद का विरोध तथा अन्त करना,

(vii) संसदीय शासन व्यवस्था के बजाय जर्मनी के लिए उपयुक्त शासन व्यवस्था स्थापित करना।

नाजी दल ने अर्द्धसैनिक स्वयंसेवक दल का संगठन किया, जिसका कार्य विरोधियों से संघर्ष करना था। दल का सर्वोच्च नेता हिटलर (फ्यूहरर) था, जो मुसोलिनी की तरह जर्मनी में भी क्रान्ति के द्वरा नाजीवाद स्थापित करना चाहता था।

सत्ता प्राप्ति के लिए असफल विद्रोह- जब नाजी दल के सदस्यों की संख्या पर्याप्त हो गई तो हिटलर ने पहले बवेरिया प्राप्त में सत्ता हथियाने की योनजा बनाई। उसे विख्यात जर्मन जनरल वुडानडोर्फ का सहयोग मिल गया। बवेरिया की राजधानी म्यूनिख में नाजी दल ने एक जुलूस निकाला जिसे वहाँ की सरकार ने गोलियाँ चलवाकर विद्रोह शान्त कर दिया। हिटलर बन्दी बनाकर चार वर्ष के लिए कारागृह भेज दिया गया, जहाँ उसे अपनी आत्मकथा ‘मीन केम्फ’ (मेरा संघर्ष ) लिखी। यह पुस्तक नाजी दल की बाइबिल मानी जाती थी।

नाजी दल का उत्थान-

हिटलर एक वर्ष बाद ही जेल से छोड़ दिया गया। अब उसने पूरे देश के साथ नाजी दल का पुनः संगठन किया । कुछ परिस्थितियों ने भी हिटलर का साथ दिया। 1929 के आर्थिक संकट और इससे उत्पन्न व्यापक बेरोजगारी ने नाजी दल की सदस्यता बहुत बढ़ा दी। जर्मनी की संसद में नाजी सदस्यों की संख्या बढ़ने लगी और 1932 तक वह उसका सबसे बड़ा दल बन गया। साम्यवाद का कटु विरोधी होने के कारण जर्मन पूँजीपतियों से भी हिटलर को बहुत सहायता मिली।

1932 के राष्ट्रपति चुनाव में हिटलर को प्रख्यात सेनापति हिन्डनबर्ग के विरुद्ध करोड़ 34 लाख मत मिले । यद्यपि वह चुनाव हार गया किन्तु इतने अधिक मत हिन्डनबर्ग के विरुद्ध प्राप्त करना एक आश्चर्यजनक बात थी। हिटलर अब चांसलर बनने का प्रयल करने लगा। किन्तु हिन्डनबर्ग और अन्य दलों के विरोध के कारण वह असफल रहा। 1932 के अन्त में उसे वान पापेन की सहायता मिलना शुरू हो गया, जो भूतपूर्व चांसलर एक प्रभावशाली राजनीतिज्ञ और हिन्डनबर्ग का मित्र था।

हिटलर का चांसलर बनना- 30 जनवरी, 1933 के दिन हिटलर को राष्ट्रपति हिन्डनबर्ग का चांसलर बनने का निमन्त्रण मिला। यद्यपि संसद में नाजी दल का बहुमत नहीं था, फिर भी कुछ सहयोगी दलों के साथ हिटलर ने मिली-जुली सरकार बना ली। सत्ता में आते ही हिटलर ने साम्यवादी और अन्य दलों का कठोरतापूर्वक दमन किया और आगामी चुनावों में उसे भारी बहुमत मिल गया। अगस्त, 1934 में राष्ट्रपति हिन्डनबर्ग की मृत्यु हो गयी। हिटलर ने राष्ट्रपति और चांसलर का पद संयुक्त कर सम्पूर्ण सत्ता अपने हाथ में ले ली।

नाजीवाद के उत्कर्ष के कारण

जर्मनी में नाजीवाद के उत्कर्ष के निम्नलिखित कारण थे-

  1. वर्साय की कठोर सन्धि- जर्मनी में नाजीवाद के उत्थान और उसकी सफलता का कारण वर्साय की कठोर सन्धि गो। इस सन्धि ने जर्मनी से अलसास लारेन के प्रान्त, मालमेडी साइलेशिया का अधिकांश भाग, डाजिंग, मेगल आदि के अतिरिक्त समस्त उपनिवेश छीन लिए, उसे निःशस्त्रीकरण तथा युद्ध अपराध स्वीकार करने के लिये विवश किया गया। इन शर्तों से अतिरिक्त हर्जाने की भारी रकम जर्मनी पर थोप दी गई, जिससे उसकी आर्थिक दशा बहुत बिगड़ गई।

ऐसी स्थिति में अभिमानी जर्मन जाति को ऐसे दल और नेता की आवश्यकता थी जो जर्मनी के गौरव की पुनः स्थापना करें, हर का बदला ले तथा जर्मनी के साम्राज्य का विस्तार करे। जर्मन धीरे-धीरे वाइमर गणतन्त्र की नीतियों से असन्तुष्ट होने लगा और ऐसे दल की कामना करने लगे। जो जर्मनी को शीघ्र ही एक महान और शक्तिशाली राष्ट्र बना दे। नाजी दल और हिटलर ने जनता की इच्छानुसार कार्यक्रम बनाकर ऐसा ही करने का वायदा किया। हिटलर ने घोषित किया, ”मैं वर्साय की सन्धि द्वारा जर्मन के 6 करोड़ लोगों के दिल और दिमाग में जड़ता तथा घृणा के इतने भाव भर दूंगा कि समस्त राष्ट्र ज्वालाओं का अग्नि सागर बन जाये और इससे यही जयघोष निकले कि हम पुनः हथियार उठायेंगे।” हिटलर ने वर्साय की सन्धि को निरस्त कराने तथा जर्मनी के गौरव को पुनः प्राप्त करने का आश्वासन दिया जिससे हजारों व्यक्ति नजी दल का समर्थन करने को तैयार हो गए।

  1. देश की शोचनीय आर्थिक स्थिति- इस समय जर्मनी की आर्थिक स्थिति बहुत शोचनीय हो गयी थी। जर्मन मुद्रा का मूल्य बहुत गिर गया था, कीमतें बहुत बढ़ गई थीं, उत्पादन बहुत गिर गया था और बेकारी व्याप्त हो गयी थी। 1929 के आर्थिक संकट ने तो स्थिति और भी अधिक शोचनीय कर दी। नाजीदल और हिटलर ने जनता से वायदा किया कि वह सत्ता में आने पर कुछ ही महीनों में जर्मनी की आर्थिक दशा सुधार देंगे। कुछ वर्षों तक जर्मन जनता ने वाइगर गणतन्त्र के शासकों से आशा लगाये रखी की वे स्थिति में सुधार कर देंगे, किन्तु जब वे असफल रहे तो जनता नाजी दल की ओर झुकने लगी। 1932 के चुनाव में लोकसभा में ‘नाजी दल को 608 स्थानों में से 280 स्थान प्राप्त हुए।
  2. साम्यवाद का भय- रूसी क्रान्ति ने जर्मनी पर बहुत प्रभाव डाला था और वहाँ का साम्यवादी दल पर्याप्त रूप से शक्तिशाली हो गया था। जर्मन के उद्योगपतियों और पूँजीपतियों को साम्यवाद के प्रसार से बहुत भय हो गया था। नाजी दल ने साम्यवाद के विरुद्ध धुआँधार प्रचार किया और उनसे उसकी मुठभेड़ सभाओं, सड़कों व गलियों में हुआ करती थी। अतः जर्मनी के पूँजीपतियों और उद्योगपतियों ने नाजीदल को आर्थिक और अन्य कई प्रकार की सहायता की।
  3. यहूदियों के विरुद्ध जर्मन भावनाएँ- जर्मनी के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक जीवन पर यहूदियों का बहुत प्रभाव था। डॉक्टर, वकील, बैंकर आदि अधिकतर यहूदी थे और व्यापार का बहुत बड़ा भाग उनके हाथों में था। अतः जर्मनी में पहले से ही यहूदी विरोधी भावनायें पर्याप्त मात्रा में विद्यमान थी। नाजी दल ने इस स्थिति का लाभ उठाकर यहूदियों के विरुद्ध विषैली प्रचार किया और यह वायदा किया कि सत्ता में आने पर वे उनका समस्त प्रभाव हैही नष्ट नहीं कर देंगे, वरन् उन्हें देश की नागरिकता से भी बंचित कर देंगे तथा देश के बाहर खदेड़ देंगे। नाजी दल ने अपने 12-13 वर्ष के शासन-काल में अपने वायदे को पूर्ण किया और यहूदियों पर विभिन्न प्रकार के अत्याचार किए तथा लाखों की संख्या में यहूदियों को जर्मनी से ही नहीं, वरन् संसार से ही विदा कर दिया।
  4. नाजी दल का उच्चकोटि का संगठन- नाजी दल का संगठन और अनुशासन अत्यन्त उच्चकोटि का था। इसके सदस्य पूर्णतः आज्ञाकारी और अनुशासित होते थे। हिटलर इस दल का सर्वोच्च नेता था, जिसका शब्द ही दल के सदस्यों के लिए कानून था। नाजी जल में नेतृत्व का आन्तरिक विवाद एक-दो बार ही हुआ जिसमें हिटलर ही विजयी हुआ। अन्य दलों में इस प्रकार के विवाद साधारण बात थी। इसके अतिरिक्त नाजी दल के अत्यन्त अनुशासित व अर्द्धसैनिक स्वयंसेवक दल का भी संगठन किया गया जिरका कार्य विरोधियों की सभा में विघ्न डालना और उनसे सड़कों और गलियों में भिड़ना था। वैसे तो अन्य दलों के स्वयंसेवक दल में भूतपूर्व सैनिक भी बड़ी संख्या में थे, क्योंकि वे नाजी दल के कार्यक्रम से बहुत प्रभावित थे।
  5. नाजी दल के विरोधियों में एकता का अभाव- नाजी दल के विरोधी अन्य जर्मन दलों में एकता का नितान्त अभाव था। साम्यवादी दल नाजी दल को सोशल डेमोक्रेटिक दल के समान ही समझता था और उसने नाजी दल के विरुद्ध भी संयुक्त मोर्चा नहीं बनाया। इसका परिणाम यह हुआ कि जर्मन संसद में तथा इसके बाहर का प्रभाव द्रुतगति से बढ़ने लगा। सत्ता में आने के बाद हिटलर ने समस्त बिखरे हुए दलों को समाप्त कर दिया।
  6. जर्मन सेना की सहानभूति- अधिकांश जर्मन सैनिकों और सेनापतियों में नाजी दल के प्रति सहानुभूति थी, क्योंकि नाजी दल बारम्बार यह कहता था कि गत युद्ध में वीर जर्मन सेना हारी नहीं थी वरन् देश के ही शत्रुओं ने उसकी पीठ में छुरा भोंका था। इस बात से जर्मन सेना बहुत प्रसन्न हुई थी। इसके अतिरिक्त नाजी दल ने यह भी वायदा किया कि सत्ता में आने पर वह वर्साय सन्धि द्वारा थोपे गये सभी सैनिक नियन्त्रण समाप्त कर देगा। इससे भी जर्मन सेना का नाजी दल की ओर झुकाव हुआ।
  7. वाइमर गणतन्त्र की अलोकप्रियता- वाइमर गणतन्त्र जर्मनी की आर्थिक और अन्य समस्यायें सुलझाने में असमर्थ रहा। पराजित और अपमानित जर्मन जाति को वाइमर गणतन्त्र के नेताओं के फ्रांस आदि से मित्रता करने के प्रयत्न कभी पसन्द नहीं आये। वे वाइमर गणतन्त्र की शान्तिपूर्ण और दब्बू नीति से क्रोधित होने लगे क्योंकि मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी को द्वितीय श्रेणी का राष्ट्र मानना जारी रखा। ऐसी स्थिति में नाजी दल के आकर्षक कार्यक्रम के प्रति जर्मन जनता का झुकना स्वाभाविक था। इसके अतिरिक्त इंग्लैण्ड, फ्रांस आदि ने भी वाइमर गणतन्त्र को स्थायी और लोकप्रिय बनाने का कोई प्रयल नहीं किया यदि राष्ट्र वाइमर गणतन्त्र से समानता का व्यवहार करते और वे रियासत या उसका कुछ भाग उसे दे देते जो उनको विवश होकर बाद में हिटलर को देना पड़ा तो वाइमर गणतन्त्र को स्थायित्व और जर्मन जनता को आदर प्राप्त हो जाता और वह नाजी दल की ओर न झुकता, परन्तु मित्र राष्ट्रों ने वाइमर गणतन्त्र को अलोकप्रिय रहने दिया जिससे जर्मनी से लोकतन्त्र लुप्त हो गया।
  8. हिटलर का प्रभावशाली व्यक्तित्व- हिटलर एक कुशल वक्ता और कट्टर देशभक्त था। उसका व्यक्तिगत जीवन दोषरहित था। उसने सत्ता का दुरुपयोग अपने या अपने परिवार के सदस्यों के हित में कभी नहीं किया। नाजी नेताओं और जर्मन जनता को हिटलर के व्यक्तित्व ने बहुत प्रभावित किया और फिर नाजी प्रचारकों ने हिटलर के गुणों का बढ़ा-चढ़ा कर प्रचार कर उसे महान और रहस्यमय नेता बना दिया। दूसरी ओर, विरोधी दलों के पास हिटलर जैसे व्यक्तिगत वाले नेता का नितान्त अभाव था।
  9.  जर्मन जाति की सैनिक प्रवृत्ति- जर्मन जाति ने सैनिकवाद का सदैव आदर किया है। वहाँ की शिक्षा में अनुशासन और आज्ञापालन पर बहुत जोर दिया जाता है। जर्मनी में लोकतन्त्र कभी सफल नहीं हो सका। जर्मन जनता ने सदैव एक ऐसे नेता की इच्छा की जो देश को शक्तिशाली बनाये और उसके गौरव में वृद्धि करे। जर्मन दार्शनिकों, जैसे- हीगल, नीत्शे आदि ने राज्य और नेता को सर्वोपरि बताया । अतः यह स्वाभाविक था कि जर्मन जनता हिटलर जैसे नेता को अपनी निष्ठा अर्पित करे।
  1. नवयुवकों, सैनिकों एवं नौकरशाही का समर्थन- नाज दल को जर्मन नवयुवकों, सैनिकों तथा नौकरशाही का पर्याप्त समर्थन प्राप्त था। विश्वविद्यालयों से निकलने वाले छात्रों को रोजगार नहीं मिल पा रहा था। हिटलर के उग्र राष्ट्रवादी कार्यक्रम से सैनिक वर्ग नाजी दल की ओर आकृष्ट हुआ। नौकरशाही ने भी नाजी दल को समर्थन दिया क्योंकि उसकी गणतन्त्रीय शासन-प्रणाली के प्रति आस्था नहीं थी।
  2. हिटलर का आकर्षक कार्यक्रम- हिटलर ने जर्मन जनता के सामने ऐसा कार्यक्रम प्रस्तुत किया जो जर्मनी के सभी वर्ग के लोगों के लिए रुचिकर था। हिटलर ने वर्साय की अपमानजनक सन्धि का विरोध किया। उसने गणतन्त्रीय व्यवस्था की आलोचना की और एक सुदृढ़ सरकार की स्थापना पर बल दिया। उसने नवयुवकों और सैनिकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सैनिकवाद का नारा दिया। इस प्रकार हिटलर के विचार जर्मन जाति की परम्परा तथा आकांक्षाओं के अनुकूल थे। अतः हिटलर को लाखों जर्मन लोगों का समर्थन प्राप्त हुआ।

निष्कर्ष-

हिटलर की मृत्यु और जर्मन में नाजीवाद के अन्त के 35-36 वर्षों बाद भी अधिकांश विद्वानों व इतिहासकारों के लिए यह एक पहेली बनी हुई है कि जर्मनी में हिटलर और नाजीवाद का उत्कर्ष क्यों और किस प्रकार सम्भव हुआ? आज भी यह बहस जारी रहने का मुख्य कारण यह है कि 1945 में पूर्णतः तबाह और परास्त हो जाने के बाद उसके एक बड़े भू- भाग पर रूस और पोलैण्ड द्वारा कब्जा किये जाने एवं उनके दो भागों में विभक्त कर दिये जाने के बावजूद पश्चिमी जर्मनी कभी विश्व के तीन-चार चोटी के देशों में गिना जाता था। जर्मनी जैसी परिश्रमी, बुद्धिमानी, साहसी, अनुशासित, सभ्य व सुसंस्कृत जाति ने क्यों और कैसे नाजीवाद जैसी क्रूर, असमानता पर आधारित, असभ्य और जीवन के उच्च मूल्यों के प्रतिकूल विचारधारा को स्वीकार कर लिया ? क्योंकि वे हिटलर और नाजीवाद की गलत और मूर्खतापूर्ण नीतियों व कार्यक्रमों के विरुद्ध नहीं हो सके ?

इतिहास – महत्वपूर्ण लिंक

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