दीर्घ काल में लागत व्यवहार का विश्लेषण | Cost behavior analysis over the long term in Hindi

दीर्घ काल में लागत व्यवहार का विश्लेषण | Cost behavior analysis over the long term in Hindi

दीर्घ काल में लागत व्यवहार का विश्लेषण

दीर्घकाल वा समयावधि होती है जी सच में कोई भी उत्पादक या फर्म अपने सभी साधनों में परिवर्तन कर सकता है। दीर्घकाल में निम्नलिखित दो प्रकार की लागते होती हैं-

  1. दीर्घकालीन औसत लागत,
  2. दीर्घकालीन सीमांत लागत
  3. दीर्घकालीन औसत लागत वक्र

किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा को उत्पादित करने की न्यूनतम संभव लागत को दर्शाने वाला वक्र ही दीर्घकालीन औसत लागत वक्र कहलाता है। जबकि सभी उत्पादित के साधनों को घटाया या बढ़ाया जा सकता है। दीर्घ काल में फर्म अपने प्लांट में इच्छा अनुसार परिवर्तन कर सकती है, फर्म चाहे तो वह अपने संपूर्ण संयंत्र को ही बदल शक्ति है। जैसे-दीर्घकाल में यदि किसी वस्तु की मांग बढ़ जाती है तो इस बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए फर्म अपने प्लांट का विस्तार कर सकती है। काल में प्रत्येक फार्म विभिन्न आकारों के प्लांटों का प्रयोग कर सकती हैं। दीर्घकाल में एक फार्म वस्तु एक निश्चित मात्रा का उत्पादन करने के लिए उस प्लांट का प्रयोग करेगी जिससे कि उत्पादन लागत न्यूनतम हो जाए और इसके लिए एक विशेष प्रकार का प्लांट उपयुक्त रहता है।

अब हम दीर्घकालीन औसत लागत वक्र के व्यवहार की व्याख्या करेंगे और इसके लिए हम यह मान लेते हैं कि फर्म प्लांट के तीन संभव आकारों जिन्हें तीन अल्पकालीन औसत लागत वक्र व्यक्त करते हैं,मैं से चुनती है। दीर्घकाल में फर्म को इस बात का निर्णय लेना होता है कि किस अल्पकालीन औसत लागत वक्र से या कौन से आकार के प्लांट से वह एक भी हुई उत्पादन की मात्रा को उत्पादित करें जिससे कि उसकी लागत न्यूनतम हो। इस स्थिति की व्याख्या संलग्न चित्र में की गई है।

चित्र में तीन अल्पकालीन अवसर लागत वक्रों के द्वारा तीन विकल्पों को दर्शाया गया है। उत्पादक इन तीनों विकल्पों अर्थात संयंत्रों में से किस संयंत्र का चुनाव अपने उत्पादन के लिए करेगा यह उत्पादन की मात्रा पर निर्भर करता है। में यदि फर्म उत्पादन की OQ 1 मात्रा का उत्पादन करती है तो वह न्यूनतम आकार वाले संयंत्र का चुनाव करेगी। यदि फर्म उत्पादन OQ 2 की मात्रा का उत्पादन करती है तो वह पहले संयंत्र को छोड़कर मध्य आकार वाले संयंत्र का प्रयोग करेगी। इसका कारण यह है कि यदि फार्म OQ 2 माता का उत्पादन पहले ही संयंत्र पर करती है तो इसकी लागत OP 1 आती है जबकि इसी OQ 2 माता का उत्पादन दूसरे मध्यम आकार वाले प्लांट से करने पर लागत OP 2 आती है  और OP 2 औसत लागत पहले प्लांट की OP 1 लागत से कम है। अतः उत्पादक के लिए ऊंचे लागत वाले प्लांट से कम लागत वाले प्लांट पर जाना अधिक लाभदायक हो रहेगा। उत्पादन की मात्रा OQ 1 तक फार्म न्यूनतम आकार वाले प्लांट का ही प्रयोग करेगी क्योंकि उत्पादन किस मात्रा की लागत पहले वाले प्लांट से न्यूनतम आ रही है। लेकिन जब उत्पादन का स्तर OQ 1 हो जाता है जैसा कि चित्र स्पष्ट है तब न्यूनतम एवं मध्यम दोनों ही प्लांटों से एक समान औसत लागत AQ 1 आती है, अतः यही बिंदु फर्म के लिए तटस्थता का बिंदु है फिर वह किस प्लांट का चुनाव करें। किंतु उत्पादन स्तर OQ 1  से अधिक होने पर न्यूनतम लागत वालाप्लांट्स उत्पादन स्तर की ऊंची लागत का हो जाएगा तथा फर्म कम लागत वाले प्लांट SAC 2 ‘ पर आ जाएगी। इस प्रकार उत्पादक OQ 2 ‘ उमात्रन की मात्रा तक मध्यम आकार वाले प्लांट का प्रयोग करेगी किंतु OQ 2 ‘से यदि उत्पादन स्तर अधिक हो जाता है तो उत्पादक या फर्म तीसरे प्लांट SAC 3 पर चली जाएगी। इस प्रकार हम देखते हैं कि दीर्घकाल में यह फरमाया उत्पादक प्लांट के प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र रहती है और वस्तु की एक भी हुई मात्रा का उत्पादन करने के लिए वह ऐसे प्लांट का प्रयोग करेगी जिससे कि आवश्यक लागत न्यूनतम हो।

  1. दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र

सीमांत लागत वक्र अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन दोनों ही अवधियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अतः यह जानना आवश्यक है कि दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र किस प्रकार प्राप्त किया जाता है। दीर्घकालीन सीमांत लागत वह दीर्घकालीन औसत लागत वक्र की सहायता से प्राप्त किया जा सकता है। दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र का भी दीर्घकालीन औसत लागत वक्र से वही संबंध होता है जो कि अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र का अल्पकालीन औसत लागत वक्र से होता है। दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र दीर्घकालीन औसत लागत वक्र से किस प्रकार प्राप्त किया जाता है इसे संलग्न चित्र द्वारा दर्शाया गया है।

संलग्न चित्र में इस बिंदु पर अल्पकालीन औसत लागत वक्र (SAC) दीर्घकालीन औसत लागत वक्र (LAC) कोई स्पर्श करता है। उस बिंदु पर संबंधित अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र (SMC) तथा दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र (LMC) परस्पर बराबर होते हैं। जब तक LAC नीचे की ओर गिर रहा होता है तब तक SMC तथा LMC कि यह समानता SAC तथा LAC वक्रों के स्पर्श बिंदुओं से नीचे रहती है जहां SAC तथा LAC दोनों वक्र अपने न्यूनतम बिंदुओं पर परस्पर स्पर्श करते हैं वहीं पर LMC तथा SMC दोनों आपस में इस प्रकार बराबर होती है- LMC =SMC =LAC =SAC । यह प्लांट का अनुकूलतम आकार होता है। इस बिंदु के बाद SMC तथा LMC की समानता का बिंदु SAC और LAC के स्पर्श बिंदु से ऊपर स्थिर होता है। इस प्रकार LAC तथा LMC मैं वही संबंध होता है जो SAC तथा SMC के बीच में होता है।

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