
हिंदी लिंग-विधान | हिंदी लिंग-विधान पर एक लेख
हिंदी लिंग-विधान
प्रकृति में वस्तुतः तीन वर्ग मिलते हैं- पुरुष, स्त्री और नपुंसक। नामवाचक शब्दों को इन्हीं तीन वर्गों या श्रेणियों में विभक्त किया जाता है। पुरुष जातीय वस्तुवाचक शब्दों को पुल्लिंग, स्त्रीजातीय वस्तुवाचक शब्दों को स्त्रीलिंग तथा नपुंसकजातीय-वस्तुवाचक शब्दों को नपुंसकलिंग से अभिहित किया जाता है। अनेक भाषाओं में विशेष प्रयत्नों तथा विभक्तियों द्वारा नाम-शब्दों का लिंगपार्थक्य प्रदर्शित किया जाता है।
प्राचीन-भारतीय-आर्य-भाषा (संस्कृत) में प्रत्ययों के आधार पर लिंग-विधान किया गया था। म० भा० आ० भाषाओं तक में लिंग-विधान प्राकृतिक अवस्था का द्योतक न होकर व्याकरणिक ही रहा परंतु शब्द-रूपों में एकरूपता लाने की प्रवृत्ति के फलस्वरूप अपभ्रंश में ही नपुंसकलिंग लुप्त-प्राय हो चला था। नापुसंकलिंग का पुलिंग से पार्थक्य मिट सा गया। हिन्दी में नपुंसकलिंग सर्वथा समाप्त हो गया। आधुनिक-भारतीय-आर्यभाषाओं में से मराठी, गुजराती में ही नपुंसकलिंग बच रहा है। हिंदी में लिंग के केवल दो भेद रह गए, पुलिंग एवं स्त्रीलिंग-भेद भी व्याकरणिक ही है।
यद्यपि हिंदी में नपुंसकलिंग नहीं है परंतु प्रकृत्यानुसारी पुलिंग और नपुंसकलिंग का थोड़ा सा भेद कर्मकारक के परसर्ग को प्रयोग में अवश्य दिखाई देता है। साधारणतया कर्म कारक के परसर्ग को का अप्राणीवाचक शब्दों के साथ प्रयोग नहीं किया जाता है। हिंदी के वाग्यवहार के अनुसार, धोबी को बुलाओ, गाय को खोल दो, तो कहते हैं, परंतु कपड़ों को लाओ, घास को काटो न कहकर कपड़े लाओ घास काटो ही कहा जाता है।
पुलिंग एवं स्त्रीलिंग तद्भव शब्दों का लिंग हिंदी में साधरणतया वही है जो संस्कृत या प्राकृत अपभ्रंश में है। परंतु प्रा. भा. आ. भाषा के प्रत्यय हिंदी तक आते-आते इतने घिस गये हैं कि उनके मूल रूप को पहचान लेना जनसाधारण के लिए दुष्कर कार्य है। अतः अहिंदी प्रदेश के लोगों को हिंदी शब्दों का लिंग निर्णय करने में बहुत अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है और जनसाधारण की यह धारणा हो गई है कि हिंदी का लिंग-विधान सर्वथा अनियमित है। परंतु भारतीय आर्य भाषा के विकास क्रम को ध्यान में रखने पर हिंदी के लिंग की सरलतया व्याख्या की जा सकती है।
हिंदी में नपुंसक-लिंग का लोप हो जाने के कारण प्रा० भा) आ0 के नपुंसक-लिंग शब्द पुल्लिंग अथवा स्त्रीलिंग में अंतर्भूत हो गए हैं। इसके कारण भी हिंदी शब्दों के लिंग-विधान बहुत कुछ दुर्बोध हो गया है। इसके अतिरिक्त हिंदी में प्रा० भा० आ0 से ग्रहीत अनेक शब्दों का लिंग संस्कृत से भिन्न है यथा- सं० अग्नि पुल्लिंग है, किंतु हिंदी में इसका तद्भव रूप आग स्त्रीलिंग हैं। सं0 देवता शब्द स्त्रीलिंग है, परंतु सही शब्द हिंदी में पुल्लिंग हैं। इस लिंग-व्यत्यर्य का कारण है एकरूपता की प्रवृत्ति और हिंदी के अन्य शब्दों के साथ साम्य।
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