अर्थशास्त्र

स्थैतिक अर्थशास्त्र । स्थैतिक अर्थशास्त्र का महत्व । स्थैतिक विश्लेषण की सीमाएं एवं दोष

स्थैतिक अर्थशास्त्र । स्थैतिक अर्थशास्त्र का महत्व । स्थैतिक विश्लेषण की सीमाएं एवं दोष

स्थैतिक विश्लेषण

अर्थशास्त्र में स्थैतिक यह ऐसी दशा है कि जिसमें प्रतिदिन तथा प्रतिवर्ष कार्य समान गति से सरलता पूर्वक चलता है। प्रोफ़ेसर पीगू का यह कथन इस संदर्भ में विशेष महत्वपूर्ण है, “जिन बूदों से मिलकर झरना बनता है, वे सदा बदलती रहती हैं किंतु झरना अपरिवर्तित ही रहता है।’’

वास्तव में, स्थैतिक दशा के संबंध में अर्थशास्त्रियों में काफी मतभेद है।

  • प्रोफ़ेसर मार्शल के शब्दों में “एक स्थैतिक अवस्था के सभी महत्वपूर्ण स्थान पर दृष्टिगोचर होते हैं जहां (अ) जनसंख्या और धन दोनों में वृद्धि हो रही हो और दोनों में वृद्धि की दर लगभग समान होती है, (ब) भूमि की कोई कमी नहीं होती,(स)उत्पत्ति की विधियों और दशाओं में बहुत कम परिवर्तन होता है और (द) जहां मनुष्य का चरित्र स्वयं स्थित रहता है।”
  • प्रोफ़ेसर हिक्स के अनुसार, “आर्थिक सिद्धांत के उन भागों को आर्थिक स्थैतिक कहा जाता है, जिनमें हम तिथि (Dating) का ध्यान नहीं रखते और प्रावैगिकअर्थशास्त्र उन भागों को कहते हैं जिनमें प्रत्येक इकाई या मात्रा का संबंध किसी तिथि से होता है।”
  • प्रोफ़ेसर मैकफाई ने स्थैतिक अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार की है, “किसी अर्थव्यवस्था को स्थिर दशा में कहा जाता है जबकि वे साधन जो कि उत्पादन, उपभोग, विनिमय और वितरण पर नियंत्रण करते हैं, स्थिर हो अथवा स्थिर मान लिए गए हो। जनसंख्या की प्रवृत्ति न घटने की ओर होती है तथा इसकी आए के ढांचे में परिवर्तन नहीं होता है। उत्पादन प्रणाली तथा कुल उत्पादन पूर्ववत रहते हैं या कम से कम जनसंख्या में वृद्धि होती है तो यह मान लिया जाता है कि कुल उत्पादन भी उसी दर से बढ़ रहा है।”

मैकफाई स्थैतिक अर्थशास्त्र को  ‘स्थिर अर्थव्यवस्था’ (Stationary Economy ) का ध्यान मानते हैं। प्रोफ़ेसर टिनबर्जन, स्टिगलर तथा प्रोफ़ेसर क्लार्क ने भी मैकफाई की तरह स्थैतिक अर्थशास्त्र को स्थिर अर्थशास्त्र का अध्ययन माना है। स्टिगलर नहीं ऐसी अर्थव्यवस्था को स्थैतिक कहां है जिसमें तीन आधारभूत तथ्यों-(अ) रुचि, (ब) साधनों और (स) प्रविधि में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

इस प्रकार उपर्युक्त व्याख्या से स्पष्ट है कि ‘स्थैतिक’शब्द के अर्थ के संदर्भ में अर्थशास्त्री एकमत नहीं हैं। प्रत्येक अर्थशास्त्री ने अपने अपने विचारों को अलग-अलग ढंग से प्रस्तुत किया है। स्थैतिक अर्थशास्त्र के कुछ उदाहरण हैं-

  1. यही कैसा जंगल है, जिसमें वृक्ष को गति और नष्ट होते रहते हैं परंतु वन के शुद्ध क्षेत्रफल में कोई विस्तार व संघ को नहीं होने पाता। मार्शल
  2. यह कैसी वाटर टैंक,जिसमें निरंतर पानी आ रहा है और साथ-साथ पानी बाहर निकल भी रहा है परंतु पानी घुसने व निकलने की गति इतनी नियमित तथा समान है कि टैंक का जलस्तर पूर्ववत बना रहता है। -पीग
  3. एक ऐसा ‘साम्य’जो कुछ समय के बाद भी भंग नहीं होता, स्थैतिकता का प्रतीक है। -जे.के. मेहता

स्थैतिक अर्थशास्त्र का महत्व

  1. परिवर्तन अर्थव्यवस्था के अध्ययन में सहायक

अर्थव्यवस्था की कार्यविधि अत्यंत कठिन है तथा आर्थिक तत्वों में निरंतर परिवर्तन होते रहते हैं। अतः इस परिवर्तनशील अर्थव्यवस्था का वैज्ञानिक अध्ययन अत्यंत कठिन है और इसके लिए हमें स्थैतिक प्रीति की सहायता लेनी पड़ती है। जैसा की प्रोफ़ेसर मेहता ने बताया कि गतिशील अर्थव्यवस्थाओं का अध्ययन, प्रावैगिक अवस्थाओं को छोटी-छोटी स्थैतिक अवस्थाओं में तोड़ देने से सुविधाजनक हो जाता है। इस प्रकार स्थैतिक को प्रावैगिक की की अवस्था में मान सकते हैं। मेहता के शब्दों में, “प्रावैगिक अर्थशास्त्र स्थैतिक अर्थशास्त्र की लगातार टीका (Running Commentary) है, अतः स्थैतिक अर्थशास्त्र के नियम प्रावैगिक अर्थशास्त्र में लागू किए जाने चाहिए।”

  1. उच्च गणित के ज्ञान की आवश्यकता नहीं

प्रावैगिक विश्लेषण के लिए उच्च गणित का ज्ञान आवश्यक होता है परंतु इस स्थैतिक विश्लेषण के लिए गणित के ज्ञान की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

  1. जटिल समस्याओं के समाधान में महत्व

आर्थिक स्थैतिक मेंहमें यह अध्ययन करते हैं कि एक व्यक्ति अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने के लिए अपनी सीमित आय को विभिन्न वस्तुओं में किस प्रकार बैठता है, एक उत्पादक दिए हुए उत्पादन साधनों को अनुकूलतम ढंग से मिलाकर कैसे अधिकतम लाभ प्राप्त करता है, वास्तुओंऔर सेवाओं की कीमतें कैसे निर्धारित होती है और राष्ट्रीय आय का विवरण पति के विभिन्न साधनों में किस प्रकार होता है। इस जटिल समस्याओं को हल करने में स्थैतिक विश्लेषण का बहुत अधिक महत्व है।

  1. प्रत्याशाएं-

प्रत्याशाएं प्रायः प्रावैगिक अर्थशास्त्र के क्षेत्र में आती है परंतु प्रत्याशाओं मैं एक बार समाप्त परिवर्तन के प्रयोग को स्थैतिक विश्लेषण के द्वारा अध्ययन किया जाता है। प्रोफ़ेसर हैरोड किस्मत से सहमति प्रकट करते हुए हिक्स ने अपनी पुस्तक  ‘व्यापार- चक्र’ में कीन्स के सामान्य सिद्धांत को पूर्ण रूप से स्थैतिक माना है क्योंकि इसमें प्रत्याशाए विद्यमान हैं।

  1. कीन्स का सिद्धांत

धनात्मक बचत के सिद्धांत को छोड़कर कीन्स विश्लेषण के सभी घटक स्थैतिक प्रकृति के हैं। अनैच्छिक बेरोजगारी, तरलता पसंदगी, पूंजी की सीमांत उत्पादकता और सीमांत उपभोग प्रवृत्ति इन सभी घटकों (चरों) की व्याख्या करते हुए कीन्स ने एक बार समाप्त परिवर्तन दिखाया है, जो स्थैतिक विश्लेषण का प्रयोग है।

स्थैतिक विश्लेषण की सीमाएं एवं दोष

  1. काल्पनिक

स्थैतिकअर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था का अध्ययन करता है परंतु वास्तविक संसार गतिशील एवं परिवर्तनशील है। इस प्रकार गतिशील संसार को स्थिर मानकर अध्ययन करना उचित नहीं है।

  1. अवास्तविक मान्यताएं-

स्थैतिक विश्लेषण अवास्तविक मान्यताओं, जैसे-पूर्ण गतिशीलता, जनसंख्या का निश्चित आकार, अनिश्चितता की उपस्थिति इत्यादि पर आधारित है। व्यवहार जीवन में यह मान्यताएं नहीं प्राप्त की जाती है। संसार की परिवर्तनशील दशाओं के विश्लेषण के लिए स्थैतिक जी टी का प्रयोग बहुत ही सीमित है।

निष्कर्ष के रूप में यह, कहा जा सकता है कि स्थैतिक अर्थशास्त्र का महत्व होते हुए भी वास्तविक जीवन की आर्थिक समस्याओं के अध्ययन, विश्लेषण और उनके समाधान में इनका सीमित योग है। स्थैतिक विश्लेषण कैसे मानचित्र की भांति है, जिसमें ऊंचाइयों का कोई संकेत नहीं है। इस प्रकार का चित्र केवल एक ऐसे क्षेत्र के संबंध में उपयोगी सिद्ध हो सकता है,जो समतल प्रदेश हो परंतु यदि हम इस क्षेत्र को वास्तविक दशा-नदी,समुद्र आदि का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं इस प्रकार के चित्र की व्यवहारिक उपयोगिता बहुत ही सीमित होगी।

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Pankaja Singh

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