शिक्षाशास्त्र

व्यक्तियों के मापन की विधियाँ | व्यक्तियों के गुणों के मापन की विधि का वर्णन

व्यक्तियों के मापन की विधियाँ | व्यक्तियों के गुणों के मापन की विधि का वर्णन

व्यक्तियों के मापन की विधियाँ

प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व अपने ढंग का होता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व की प्रभावोत्पादकता और शक्ति अलग-अलग होती है। इसलिए पाठशाला में बालकों के तथा विभिन्न व्यवसायों के अभ्यर्थियों के व्यक्तित्व के मूल्यांकन की आवश्यकता पड़ती है। मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व मूल्यांकर की अनेक विधियों का आविष्कार किया है। उनमें से प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं-

(1) निरीक्षण विधि-

इस विधि का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति के उन गुणों को आँकने का प्रयल करना जो ज्ञानेन्द्रियों द्वारा समझे जा सकते हैं। इस विधि में मापने वाला व्यक्ति देखकर और सुनकर व्यक्तित्व के विभिन्न शारीरिक, मानसिक और व्यावहारिक गुणों को समझने का प्रयल करता है। ऐसी तालिका को (Observation Schedule) कहते हैं और उन्हीं के अनुसार निरीक्षण किया जाता है। निरीक्षण करने के बाद तुलना द्वारा निरीक्षण गुणों का मूल्यांकन किया जाता है। किन्तु यह विधि बहुत वैज्ञानिक नहीं समझी गयी क्यों कि इसमें निरीक्षित बातों के अर्थ निकालने में निरीक्षणकर्ता के मन का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है, यह विधि काफी आत्मनिष्ठ (Subjective) है। इसलिए विश्वसनीय नहीं है।

(2) साक्षात्कार विधि-

बालक या वयस्क जिसके व्यक्तित्व की माप करनी है उससे मनोवैज्ञानिक तरह-तरह के प्रश्न पूछते हैं और बातों के सिलसिले में उसके विचारों को जानने की कोशिश करते हैं। बातों-बातों में उसकी मानसिक रचना का भी अध्ययन कर लिया जाता है। बालक के व्यक्तित्व का अध्ययन करने के लिए उसके अभिभावक माता- पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची इत्यादि से भी साक्षात्कार करने की आवश्यकता पड़ती है। साक्षात्कार विधि द्वारा व्यक्तित्व के अध्ययन करने में साक्षात्कार सूची (Interview- Schedule) बना ली जाती है अर्थात् किसी नोटबुक में जितनी आवश्यक बातों से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त करनी होती है उन्हें क्रम से नोट कर लिया जाता है। ताकि कोई बात छूटे नहीं।

साक्षात्कार विधि के गुण- इस विधि के अनेक गुण हैं-

(1) इसमें समय की बड़ी बचत होती है। (2) इसमें खर्च कम होता है। (3) अस्तु यह सस्ती है। (4) यह एक परिवर्तनशील विधि है। इसमें काफी लचीलापन है। इसे आवश्यकतानुसार परिवर्तित किया जा सकता है। (5) इस विधि में व्यक्ति का पूरा व्यक्तित्य सामने रहता है और उसको पूरी तरह से समझा जा सकता है।

साक्षात्कार विधि के दोष- यह विधि कुछ गम्भीर दोषों से युक्त है।

(1) इसका पहला गम्भीर दोष आत्मनिष्ठता (Subjectivity) है। साक्षात्कारकर्ता की अपनी विचारधाराएँ और पूर्वाग्रह (prejudices) प्रश्नों को बनाने, पूछने का ढंग अपनाने उत्तरों का अर्थ निकालने और उनसे व्यक्तिल की विशेषताओं का मूल्यांकन करने की क्रिया को प्रभावित करते है। जरा इस विधि से पचा और सत्य निष्कर्ष हमेशा नहीं प्राप्त होते।

(2) थोड़े समय में व्यकिल के हर पमा पर प्रश्न नहीं पूछे जा सकते। इसलिए व्यक्तित्व का एक बड़ा पा जाता रह जाता है। चुने हुये प्रश्नों के उत्तरों को सम्पूर्ण व्यक्तित्व से सम्बन्धित जानकारी प्रदान करने की विधि बना ली जाती है। इससे कभी-कभी गलत निष्कर्ष भी निकल जाते हैं।

(3) इस विधि का प्रयोग करके जिन व्यक्तियों का अध्ययन किया जाता है उनकी परस्पर तुलना नहीं की जा सकती। इसका कारण यह है कि व्यक्ति के अनुसार प्रश्नों के स्वरूप और उनके कम में अन्तर हो जाता है। अतः एक प्रकार के उत्तर नहीं प्राप्त हो पाते । अक्सर अलग अलग प्रश्न पूछे जाते हैं। इसलिए तुलना करने में कठिनाई होती है।

इस विधि से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि इसके साथ एक निर्माण मान का प्रयोग किया जाये तथा प्रश्न और उनके उत्तर पहले से निश्चित कर लेना चाहिये ताकि प्रश्न साक्षात्कार के समय ही न बनाने पड़े और व्यर्थ समय न नष्ट हो।

(3) प्रश्नावली विधि-

इस विधि के अन्तर्गत प्रश्नों की एक तालिका बना ली जाती है और उसे व्यक्ति को दे देते हैं। वह उनके उत्तर लिखित रूप से या मौखिक रूप से देता है। जब किसी विषय से सम्बन्धित जानकारी अनेक व्यक्तियों से करनी होती है तो इस तालिका को छपवा लेते हैं और व्यक्तियों में उसे वितरित कर देते हैं। इसका एक विशेष लाभ यह है कि अनेक प्रश्नों के उत्तर जिन्हें व्यक्ति आमने-सामने बैठकर नहीं दे पाता लिखित रूप से देता है उत्तर प्राप्त होने के बाद फिर उन उत्तरों से निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

(4) निर्धारण-मान विधि-

किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत के मूल्यांकन में इस विधि का प्रयोग ऐसे निर्णायकों द्वारा किया जाता है जो उस व्यक्ति को जानते हों। इसके दो तरीके हैं-

(अ) निरपेक्ष निर्धारण-मान- व्यक्तित्व की विभिन्न विशेषताओं को अलग-अलग विभिन्न कोटियों में रख लिया जाता है। जो संख्या में, 3,5,7, 11, 15 या उससे अधिक भी हो सकती है। जैसे ईमानदारी के गुण को अलग तीन कोटियों में बाँटें तो ‘उत्तम’, ‘मध्यम’ और ‘निम्न’ ये तीन कोटियाँ हो सकती हैं। जब निर्णायक विभिन्न व्यक्तियों के ईमानदारी के गुण के सम्बन्ध में निर्णय देने लगता है तो जिनको वह अधिक ईमानदार समझता है उन्हें ‘उत्तम’ कोटि में, जिन्हें औसत ईमानदार समझता है उन्हें ‘मध्यम’ और जिन्हें ईमानदार नहीं समझता अथवा बहुत कम ईमानदार समझता है उन्हें ‘निम्न’ कोटि में रखता है। इन कोटियों को कभी-कभी शब्द के स्थान पर अंकों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है और अंकों के अर्थ लिख दिये जाते हैं जैसे-

‘उदारता’ नामक गुण को इस मान पर दिखाया गया है–

  1. अत्यधिक उदार
  2. अधिक उदार
  3. उदार
  4. कम उदार
  5. बहुत कम उदार

मान पर जाँच बिन्दु लिये गये हैं। सबके अर्थ लिख दिये गये हैं और अब जितने भी व्यक्ति मापन हेतु सामने आते हैं उन्हें इस गुण की अधिकता या कमी के आधार पर इनमें से किसी बिन्दु पर रखने की कोशिश की जाती है।

इस प्रकार के निरपेक्ष निर्धारण-मान पर व्यक्तित्व के गुणों का मूल्यांकन करते समय यह ध्यान में रखना चाहिये कि निर्णायक न तो बहुत कठोर हो और न बहुत उदार । व्यक्तियों की कोटियों के अनुसार श्रेणीबद्ध करने में सामान्य वितरण को ध्यान में रखना चाहिये।

(ब) सापेक्ष निर्धारण-मान- इस निर्धारण-मान में जितने व्यक्तियों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करना होता है उन्हें हम श्रेष्ठता के क्रम में रखते हैं। इस प्रकार श्रेणीबद्ध करते समय सभी व्यक्तियों की परस्पर तुलना की जाती है। उदाहरणार्थ यदि किसी कक्षा में 10 बालक हैं और उनकी वाक् योग्यता का मूल्यांकन करना है तो जो सबसे अधिक कुशल वक्ता होगा उसे प्रथम स्थान पर, उससे कम वाले को द्वितीय स्थान पर, उससे कम वाले को तृतीय स्थान और इसी प्रकार अन्त में सबसे कम वाक योग्यता वाले बालक को 10वें स्थान पर (निम्नतम स्थान पर) रखा जायगा। यह थोड़ी संख्या वाली कक्षा या समूह पर ही लागू हो सकती है। अधिक संख्या हो जाने पर तुलना करने में बड़ी कठिनाई होती है क्योंकि उनके बीच के सूक्ष्म अन्तर का पता लगाना असम्भव हो जाता है।

इस विधि की भी अनेक सीमाएँ हैं। इसके प्रयोग में भी निर्णायक की विचार धारा उसके निर्णय को प्रभावित कर देती है। प्रायः व्यक्ति के कुछ गुणों के विषयों में उसकी धारणा उसके अन्य गुणों के मूल्यांकन को प्रभावित कर देती है।

(5) वस्तुस्थिति परीक्षण-

इसे परिस्थिति परीक्षण भी कह सकते हैं। इसके अनुसार किसी व्यक्ति के गुण ही माप करने के लिए उसे उससे सम्बन्धित किसी वास्तविक परिस्थिति में रख कर और उसके व्यवहार का निर्माण करके उसके गुण का मूल्यांकन किया जाता है। इस प्रकार का परीक्षण लेते समय उसे यह विशेष रूप से ध्यान में रखना  पड़ता है कि वह व्यक्ति जिसके किसी गुण का मूल्यांकन किया जा रहा है उसे मूल्यांकन का तनिक भी आभास न होने पाये। उसे स्वाभाविक रूप से कार्य करने का मौका देकर उसके व्यवहार का मूल्यांकन हो रहा है तो वह सतर्क हो जाता है और उसकी क्रिया में कृत्रिमता आ जाती है। इसलिए वस्तुस्थिति परीक्षण में परिस्थिति की स्वाभाविकता को बनाये रखना आवश्यक है।

इस विधि का दोष यह है कि एक समय में किसी भी परिस्थिति में व्यक्ति के व्यक्तित्व के कुछ पहलू ही प्रकाश में आते हैं सम्पूर्ण व्यक्तित्व नहीं। दूसरा दोष यह है कि तनिक भी आभास हो जाने पर व्यक्ति अपने व्यवहार को संभाल लेता है, उसमें अस्वाभाविकता आ जाती है।

इसका गुण यह है कि बालकों को खेलने में निरीक्षण करके उनके व्यक्तित्व का अध्ययन किया जा सकता है। दूसरा गुण यह है कि इसमें समय कम लगता है और यह विधि खर्चीली नहीं है।

(6) शरीर विज्ञान मूलक विधि-

व्यक्तित्व के निर्माण में हाथ बँटाने वाले शारीरिक तत्त्वों की माप करने के लिए कुछ यत्रों का निर्माण किया गया है। वे इस प्रकार है-

(i) स्फिग्मोग्राफ- इस यन्त्र का प्रयोग नाड़ी की गति नापने के लिए किया जाता है (ii) प्लेन्थिस्मोग्राफ- यह यन्त्र रक्त का चाप नापता है। (iii) एलेक्ट्रो कार्डायोग्राफ- वह यन्त्र हृदय की गति नापने के लिए प्रयोग किया जाता है। इससे कुछ हृदय रोगों का पता लग सकता है। (iv) न्यूमोग्राफ- यह यन्त्र फेफड़ों की गति नापने के लिए प्रयोग किया जाता है। (v) साइको गैलवेनोमीटर- इसके द्वारा त्वचा में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है।

(7) व्यक्ति इतिहास विधि-

यह पद्धति विशेष रूप से समस्यात्मक बालकों के व्यक्तित्व का अध्ययन करने के लिए प्रयोग की जाती है। व्यक्ति के भूतकाल के जीवन के अध्ययन द्वारा उसकी वर्तमान मानसिक और व्यावहारिक रचना को समझने की कोशिश की जाती है। इसके लिए व्यक्ति के माता-पिता, चाचा-चाची, भाई-बहिन, दादा-दादी; मित्र-पड़ोसी, सम्बन्धी आदि से सम्पर्क स्थापित करके भूतकालीन जीवन की अधिक बातों को जानने की कोशिश की जाती है और उस ज्ञान के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व को समझने का प्रयास किया जाता है। उसके वर्तमान व्यवहार की असामान्यताओं के कारणों की खोज भूतकाल के जीवन से ही की जाती है।

(8) व्यावहारिक परीक्षण विधि-

यह विधि बालकों की वास्तविक परिस्थिति में ले जाकर उनके व्यवहार का अध्ययन करने में विश्वास करती है। व्यक्ति को कुछ व्यावहारिक कार्य करने को दिए जाते हैं और उन्हीं के माध्यम से और व्यवहार सम्बन्धी लक्षणों से व्यक्ति के व्यक्तित्व से सम्बन्धित निष्कर्ष निकाले जाते हैं। उदाहरणार्थ बालकों के एक समूह को एक पुस्तकालय में ले जाया गया। और उन्हें उसमें स्वतन्त्र छोड़ दिया गया फिर वे जो कुछ भी वहाँ करते हैं, जिन पुस्तकों को वे पढ़ते हैं जिस प्रकार की वार्ता करते हैं उनसे व्यक्तित्व को आँकने की कोशिश की जाती है।

(9) आत्मकथा विधि-

इस विधि में परीक्षक जीवन का कोई पहलू चुन लेता है और उससे सम्बन्धित एक शीर्षक पर व्यक्ति को अपने जीवन से सम्बन्धित एक आत्मकथात्मक निबन्ध लिखने को कहता है। उस निबन्ध द्वारा व्यक्ति को अनेक बातों पर प्रकाश पड़ता है। इस सम्बन्ध में व्यक्ति को यह विश्वास पहले ही दिला दिया जाता है कि उसके जीवन सम्बन्धी बातों को गोपनीय रखा जाएगा।

(10) व्यक्तित्व परिसूची-

व्यक्तित्व परिसूची कथनों की एक लम्बी तालिका होती है। इसके कथन व्यक्तित्व और जीवन के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित होते हैं। जिस व्यक्ति के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करना होता है उसके सामने वह तालिका रख दी जाती है। व्यक्ति हर कथन के सम्मुख खाली जगह में ‘हाँ’ या ‘नहीं’ अथवा (√) या (x) का चिह्न बना देता है। यदि वह कथन उसके सम्बन्ध में सही होता है तो वह ‘हाँ’ (√) लिखता है और यदि वह उसके सम्बन्ध में सही नहीं होता तो वह ‘नहीं’ (x) का चिह बनाता है। बाद में इन उत्तरों के विश्लेषण से व्यक्तियों के गुणों को समझने का प्रयास किया जाता है। इंग्लैण्ड और अमेरिका में ऐसी अनेक सूचियाँ प्रचलित हैं।

भारत में मनोविज्ञानशाला, उत्तर-प्रदेश इलाहाबाद द्वारा भी एक व्यक्तित्व परिसूची का निर्माण किया गया है। इसको चार भागों में बाँटा गया है-

(1) ‘तुम्हारा घर तथा परिवार’ (2) ‘तुम्हारा स्कूल’ (3) ‘तुम और दूसरे लोग’ (4) ‘तुम्हारा स्वास्थ्य तथा अन्य समस्याएँ।’

इस परीक्षा में कुल 145 समस्याएँ हैं जिनमें से पहले भाग में 30 समस्यायें दूसरे भाग में 40 समस्याएँ तीसरे भाग में 35 समस्याएँ. चौथे भाग में 40 समस्याएँ हैं।’

व्यक्तित्व परिसूची विधि के गुण- (1) व्यक्तित्व मूल्यांकन की अन्य विधियों से दूसरे लोगों का मूल्यांकन किया जाता है कि इस विधि में व्यक्ति स्वयं अपना मूल्यांकन करता है। (2) प्रतापीकृत परिसूचियाँ अन्य विधियों की अपेक्षा अधिक वैध और विश्वसनीय होती हैं। (3) इसका प्रयोग सामूहिक रूप से होता है इसलिए थोड़े समय में अधिक लोगों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन हो जाता है। इस प्रकार समय की बचत होती है। (4) इसमें धन की भी बचत होती है क्योंकि साक्षात्कार लेने वाले और निर्णायकों की आवश्यकता नहीं होती।

व्यक्तित्व परिसूची विधि के दोष- (1) इस विधि से व्यक्तित्व के चेतन पक्ष की ही जानकारी हो पाती है। अचेतन और अर्द्धचेतन पक्ष अछूते रह जाते हैं। (2) यदि परीक्षार्थी जान बूझकर गलत उत्तर देना चाहें तो उसे रोका नहीं जा सकता। (3) व्यक्ति द्वारा दिए हुये सभी प्रकार के गलत उत्तरों की जाँच नहीं की जा सकती।

(11) सोशियोग्राम-

किसी भी सामाजिक उत्सव या समारोह के अवसर पर सभी बालकों को कार्य करने को कहा जाता है। वे अपनी सामर्थ्य और क्षमताओं के अनुसार चुनकर कार्य करने लगते हैं। फिर प्रत्येक बालक का उसके समूह में क्या स्थान है इसका एक चार्ट तैयार किया जाता है। उनमें कुछ कोटियाँ निर्धारित होती हैं और प्रत्येक बालक को हम उसकी कोटि में रखने का प्रयल करते हैं। इस प्रकार सामाजिक स्तर के अनुसार बालकों का मूल्यांकन किया जाता है।

(12) प्रक्षेपी विधियाँ-

फ्रायड द्वारा प्रतिपादित अचेतन मन के सिद्धान्त को अब काफी मान्यता मिल गई है। उसकी क्रियाओं में से एक है ‘प्रक्षेपण’। इस क्रिया का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति अपने दोष दूसरों पर थोप देता है। इस प्रकार इन दोषों के कारण वह मानसिक उलझन और क्लेश से बच जाता है।

व्यक्ति के अध्ययन की प्रक्षेपी विधि इसी ‘प्रक्षेपण’ की क्रिया पर आधारित है। इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति अपनी अनुभूतियों, भावों, विचारों, संवेदनाओं और चितन मन की दबी हुई भावनाओं को किसी वस्तु पर किसी कार्य के माध्यम से अप्रत्यक्ष रुप से व्यक्त कर देता है। ऐसे बहुत से साधन हैं जिनके द्वारा व्यक्ति अपने भावों को व्यक्त करता है। विषयों; के सामने ऐसी सामग्री रखी जाती है जो अस्पष्ट और अनिश्चित होती है। उसके अर्नेक अर्थ लगाये जा सकते हैं किन्तु विषय को उसके प्रति अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त करने होते हैं। सामग्री प्रस्तुत होने पर वह प्रतिक्रियाएँ करता है और अपने विचार, संवेग, अभिवृत्तियों, मनोभाव, इच्छाओं आदि को व्यक्त करता है। उसकी अभिव्यक्तीकरण का अध्ययन और विश्लेषण करके परीक्षक उसके विभिन्न पक्षों की जानकारी प्राप्त करता है। ये प्रविधियों मानसिक चिकित्सा और व्यक्तिगत निर्देशन में सहायक होती हैं। प्रक्षेपी प्रविधियों के अन्तर्गत कई प्रकार की प्रविधियाँ शामिल हैं-

(1) रोशा- स्विट्जरलैण्ड के विख्यात मनोविकृति चिकित्सक हरमन रोशा ने 1921 में इस परीक्षण का निर्माण किया। इस प्रविधि के अन्तर्गत स्याही के दस धब्बे होते हैं जो कार्डों पर बने होते हैं। धब्बे इस प्रकार बनाये जाते हैं कि बीच की रेखा के दोनों ओर एक जैसी आकृति वाले होते हैं। पाँच कार्डों के धब्बे काले-भूरे, दो कार्डों में काले-भूरे और बीच-बीच में लाल रंग के तथा तीन धब्बे कई रंग के होते हैं। इनमें से एक-एक कार्ड व्यक्ति के सामने प्रस्तुत किये जाते हैं। वह इन्हें देखकर धब्बों में जो आकृतियाँ उसे दिखाई पड़ती है, उन्हें बताता है। परीक्षक कार्ड प्रस्तुत करने के साथ-साथ विराम घड़ी चला देता है। वह व्यक्ति के प्रति क्रियाकाल तथा उसकी प्रतिक्रिया अर्थात् उत्तर दोनों को नोट कर लेता है। साथ ही वह परीक्षार्थी के व्यवहार और उद्गारों को भी नोट कर लेता है। वह परीक्षार्थी के उत्तरों के विषय में भी उनसे पूछ-ताछ करता है। कार्ड को जिस ओर घुमाया जाता है वह भी अंकित कर लिया जाता है। इस प्रकार प्राप्त सूचनाओं के आधार पर परीक्षक व्यक्ति का मूल्यांकन करता है। यह परीक्षण निर्देश तथा उपचारात्मक निदान के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होता है।

(2) चित्र कथात्मक परीक्षण- इस प्रसिद्ध व्यक्तित्व परीक्षण के बनाने वाले मार्गन तथा मरे हैं। इस परीक्षण के अन्तर्गत 30 चित्रों का संग्रह है-इनमें से 10 पुरुषों के लिए, 10 स्त्रियों के लिए और 10 स्त्री-पुरुष दोनों के लिए हैं। जब व्यक्ति का परीक्षण लेना होता है उसके सामने उसे लिंग से सम्बन्धित 20 चित्र प्रस्तुत किये जाते हैं। उनमें से एक कार्ड ऐसा रहता है जिस पर कुछ भी नहीं बना होता है। एक बार में केवल 10 कार्ड ही प्रस्तुत किये जाते हैं जिनमें से एक कार्ड रिक्त रहता है।

इसकी विधि यह है कि एक-एक करके चित्र परीक्षार्थी के सम्मुख रखे जाते हैं और उससे प्रत्येक चित्र के बारे में एक कहानी की कल्पना करने को कहा जाता है। कहानी की कल्पना में उसे मुख्य रूप से चार बातों का ध्यान रखना पड़ता है- (1) चित्र में जो घटना दिखाई गई है उसमें पहले क्या बात हुई, (2) इस समय क्या हो रहा है, (3) चित्र में कौन लोग हैं और उसके मन में क्या विचार उठ रहे हैं, (4) कहानी का अन्त क्या होगा।

इस प्रकार परीक्षार्थी चित्र में चित्रित किसी पात्र से आत्मीकरण कर लेता है और उसी के द्वारा अपने विचार, भाव, संवेग और अन्तर्द्वन्द्व आदि व्यक्त करता है। उसके द्वारा कही हुई कहानी का विश्लेषण करके व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों का मूल्यांकन किया जाता है।

भारत में मनोविज्ञानशाला, उत्तर-प्रदेश इलाहाबाद ने इस परीक्षण को भारतीय परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलित किया है और इसका प्रयोग व्यक्तिगत निर्देशन, मानसिक चिकित्सा और रोगों के निदान और उपचार में किया जाता है।

(3) वाक्य-पूर्ति तथा कहानी-पूर्ति परीक्षण- इस परीक्षण में परीक्षार्थियों को अधूरे वाक्य और अधूरी कहानियाँ पूरी करने को दी जाती हैं। उनको वे अपने विचारों के अनुसार पूरी करते हैं और इस प्रकार अपनी विचारधारा और भावों को अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्त कर देते हैं। रोडे, पैनी और हिल्ड्रेय आदि ने इस प्रकार के अनेक परीक्षणों की रचना की है।

(4) चित्र तथा निर्माण परीक्षण- इस परीक्षण की रचना स्नीइमैन ने की है। इसमें 67 आकृतियों तथा 22 पृष्ठभूमि के चित्र होते हैं। इनकी सहायता से चित्र बनाकर उनके सम्बन्ध में कहानी बनानी होती है। परीक्षार्थी द्वारा बनाए गए चित्रों की व्याख्या उसी प्रकार की जाती है जैसे चित्रकथानक परीक्षण में व्याख्या की जाती है।

(5) संसार परीक्षण- इस परीक्षण के अन्तर्गत बालक के सामने नाना प्रकार के खिलौने प्रस्तुत किये जाते हैं तथा उसे ट्रे भी दी जाती है जिसमें वह उन सभी खिलौनों को अपनी इच्छानुसार सजाता है। इस प्रकार उसकी व्यवस्था को देखकर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

(6) शब्द-साहचर्य परीक्षण- शब्द-साहचर्य परीक्षण दो प्रकार का होता है-

(अ) नियन्त्रित शब्ब-साहचर्य परीक्षण- इसमें 50 से 100 उद्दीपक शब्दों की एक सूची होती है। युंग (Yung) की शब्द-सूची में 100 शब्द हैं। रेपेपर्ट, गिल, केन्ट तथा रोजेनक ने भी अपनी-अपनी सूचियों बनायी हैं। मनोविज्ञानशाला, उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद ने इस प्रकार की एक सूची हिन्दी में प्रस्तुत की है। परीक्षाण लेते समय परीक्षार्थी को सामने बैठाकर सूची का एक-एक शब्द उसके सामने बोला जाता है और वह उसे सुनकर जो पहला शब्द उसके मन में जाता है उसे बोल देता है। परीक्षक उस शब्द को तथा अनुक्रिया करने में लगे हुये समय को नोट कर लेता है। उत्तरों के आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

(ब) मुक्त शब्द-साहचर्य परीक्षण- इसमें भी उद्दीपक शब्दों की सूची का प्रयोग किया जाता है लेकिन उत्तर देने में कुछ अधिक छूट रहती है। एक शब्द सुनने के बाद परीक्षार्थी के मन में जितने भी शब्द आते जाते हैं वह उन्हें एक निश्चित समय तक बोलता जाता है। इस प्रकार एक उद्दीपक शब्द के उत्तर में अनेक शब्द क्रम से आते-जाते हैं तथा परीक्षार्थी की मानसिक प्रक्रिया की अधिक विशद व्याख्या हो जाती है। इसके द्वारा व्यक्तित्व के सभी पक्ष अधिक विस्तार से सामने आते हैं।

(7) स्वप्न विश्लेषण- स्वप्न क्यों आते हैं? इस प्रश्न के उत्तर कई प्रकार से दिये जाते हैं और एक उत्तर जो मनोविश्लेषणवादियों द्वारा प्रस्तुत किया गया है वह यह है कि स्वप्न मन की दबी हुई भावनाओं को व्यक्त करता है। इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति अपने स्वप्नों को नोट करता रहता है। और परीक्षक उसका विश्लेषण करके व्यक्ति के व्यक्तित्व को समझने की चेष्टा करता है।

इनके अलावा कुछ अन्य प्रक्षेपी विधियों निम्नलिखित हैं–

(i) कहानी-कहना (ii) खेल-विधि (iii) साइको ड्रामा, (iv) हस्तलेख, (v) रंगा हुआ चित्र, (vi) चित्रपूर्ति परीक्षा (vii) राचेन्जविग का पिक्चर फ्रास्ट्रेशन स्टडी, (viii) लावेनफील्ड का मोजायक इत्यादि।

ये सब प्रमुख प्रक्षेप प्रविधियाँ हैं जिनका प्रयोग व्यक्तित्व के मूल्यांकन में किया जाता है। इनके निष्कर्ष निकालने में परीक्षक की बहुत कुछ कल्पना और अनुमान का भी प्रयोग करना पड़ता है।

उपसंसहार-

उपर्युक्त सभी विधियाँ जो व्यक्तित्व के मापन में प्रयोग की जाती है, अपनी-अपनी जगह पर उपयोगी और मूल्यवान हैं। कहीं एक ही विधि से काम चल जाता है, कहीं-कहीं कई विधियों का प्रयोग एक साथ किया जाता है। अतः कई विधियों के आधार पर निष्कर्ष निकालना अधिक लाभदायक होता है।

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Pankaja Singh

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