शिक्षाशास्त्र

व्यक्ति के प्रकार | व्यक्ति के भेद | व्यक्तित्व के भेदों की उदाहरण सहित व्याख्या

व्यक्ति के प्रकार | व्यक्ति के भेद | व्यक्तित्व के भेदों की उदाहरण सहित व्याख्या

व्यक्ति के प्रकार या भेद

व्यक्तिगत विभिन्नताएँ विश्वव्यापी हैं। प्रत्येक व्यक्ति दूसरे से भिन्न होता है। किन्तु ऐसा होते हुए भी हम व्यक्तियों को कुछ मोटे वर्गों में रख सकते हैं क्योंकि उनमें प्रवृत्ति के अनुसार समानता पाई जाती है। मनोविज्ञान में व्यक्तिगत भिन्नता में निहित समानता को प्रारूप (Type) कहते हैं। व्यक्ति को कई प्रकार से वर्गीकृत किया गया है।

(1) शारीरिक रूप-रेखा के आधार पर क्रेशनर का वर्गीकरण- क्रेशनर (Kreichner) ने 400 व्यक्तियों का अध्ययन किया और शारीरिक रूपरेखा के अनुसार उन्हें चार विभागों में विभाजित किया-

(अ) अथलेटिक- इस प्रकार के लोग मजबूत हड्डी, स्वस्थ पेशियाँ, चौड़ा सीना, हाथ-पैर और लम्बे चेहरे वाले होते हैं। वे क्रियाशील होते हैं, कार्यों में रुचि लेते हैं, चिन्ता बहुत थोड़ी करते हैं और अपनी इच्छानुसार कार्यों की व्यवस्थापना कर लेते हैं। (ब) ऐसथेनिक- इस प्रकार के व्यक्तियों के भुजा व पैर लम्बे और दुबले, तिकोना चेहरा, चपटा, सीना और ठोढ़ी विकसित होती है। ये लोग दूसरों की निन्दा तो करते हैं किन्तु अपनी निन्दा सुनने के लिए तैयार नहीं होते। (इ) पिकनिक- इस प्रकार के लोगों का सिर और धड़ बड़ा, पैर छोटे गोल-सीना, कन्धे, हाथ, पैर छोटे। ये व्यक्ति बहिर्मुखी होते हैं। (ई) डिसप्लैटस्टिक- ये मिश्रित प्रकार के होते हैं। ग्रन्थीय रोगों से ग्रस्त रहते हैं। इनका शरीर साधारण होता है।

(2) शारीरिक गुणों पर आधारित शेल्डन का वर्गीकरण- शेल्डन (Sheldon) ने शरीर विज्ञान और विकास विज्ञान के आधार पर 400 व्यक्तियों का अध्ययन किया और उन्हें निम्न वर्गों में बाँटा है-

(अ) कोमल तथा गोल शरीर वाले- ऐसे व्यक्ति देखने में तो मोटे किन्तु कोमल होते हैं। (ब) हष्ट-पुष्ट- इस प्रकार के लोगों का शरीर हृष्ट-पुष्टं शक्तिशाली, भारी व मजबूत होता है और इनकी त्वचा पतली होती है। (स) शक्तिहीन- ये शक्तिहीन किन्तु शीघ्र उत्तेजित होने वाले व्यक्ति होते हैं। अस्तु, वे अपनी क्रियाओं को शीघ्रता से करते हैं।

(3) शारीरिक आधार पर वारर्नर का वर्गीकरण- वारर्नर ने शारीरिक आधार पर व्यक्तित्व के दस रूप बताये हैं-(1) सामान्य, (2) अविकसित शरीर वाले, (3) अपरिपुष्ट, (4) स्नायुविक, (5) अंगरहित, (6) सुस्त और पिछड़ा हुआ, (7) असाधारण बुद्धि वाला, (8) मन्द बुद्धि, (9) मृगी ग्रस्त, (10) स्नायु रोगी।

(4) बुद्धि-लब्धि पर आधारित टरमन का वर्गीकरण- टरमन ने बुद्धि लब्धि के आधार पर व्यक्तियों को निम्न वर्गों में रखा है-

(1) प्रतिभाशाली, (2) उपप्रतिभाशाली, (3) अत्युत्कृष्ट (4) उत्कृष्ट बुद्धि, (5) सामान्य बुद्धि वाले, (6) मन्द बुद्धि, (7) मूर्ख, (8) मूढ़ जड़, बुद्धि ।

(5) विचार शक्ति के अनुसार थार्नडाइक का वर्गीकरण- विचार शक्ति के अनुसार यार्नडाइक ने व्यक्तित्व के तीन प्रकार बतायें हैं-

(i) सूक्ष्म विचारक- ऐसे व्यक्ति कोई कार्य करने के पहले उसके पक्ष और विपक्ष पर पूर्ण रूप से विचार कर लेते हैं। ये गणित, तर्कशास्त्र और विज्ञान में रुचि लेते हैं।

(ii) प्रत्यय विचारक- ये लोग संख्या, शब्द और कुछ संकेतों के आधार पर विचार करते हैं।

(iii) स्थूल विचारक- इस कोटि के लोग स्थूल रूप से विचार करते हैं और क्रिया को अधिक महत्त्व देते हैं।

(6) व्यक्तित्व का सामान्य मनोवैज्ञानिक वर्गीकरण- आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व के निम्नलिखित तीन भेद बताये हैं-

(1) भाव-प्रधान व्यक्ति- इस कोटि में ऐसे व्यक्ति आते हैं जो भावनाओं को अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान देते हैं, ऐसे व्यक्ति मस्तिष्क की अपेक्षा हृदय पक्ष में बली होते हैं। वे भावुक होते हैं और भावावेश में अनेक असाध्य कार्य कर डालते हैं। इन व्यक्तियों को पुनः चार उपवर्गों में रखा गया है

(अ) प्रफुल्ल (Elated)- ऐसे व्यक्ति जो हमेशा प्रसन्न रहते हैं, ये आशावादी होते हैं किन्तु किसी बात पर गम्भीरतापूर्वक विचार नहीं करते; अस्तु, विपत्ति में पड़ जाते हैं।

(ब) उदास (Depressed)-  इस प्रकार के व्यक्ति सदैव दुःखी और उदास रहते हैं तथा निराशावादी हुआ करते हैं।

(स) चिड़चिड़े (Irritable)-  ऐसे व्यक्ति बहुत जल्दी चिढ़ जाते हैं। थोड़ी-सी बात से दुःखी हो जाते हैं और खीझ उठते हैं।

(द) अस्थिर (Unstable)-  इस प्रकार के व्यक्तियों की भावनाओं और स्वभाव को समझना कठिन होता है क्योंकि वे अपने स्वभाव को नियन्त्रित नहीं कर पाते। इनका कोई निश्चित व्यक्तित्व नहीं होता।

(2) विचार प्रधान व्यक्ति- इस श्रेणी में वे लोग आते हैं जो अपने कार्यों को करने के पहले बहुत सोच-विचार करते हैं और बहुत आगा-पीछा देखकर कार्य करते हैं, ऐसे व्यक्ति अच्छे विचारक होते हैं। विचार द्वारा वे बड़े-बड़े सिद्धान्तों का प्रतिपादन कर देते हैं और बड़ी-बड़ी समस्याओं का हल निकाल लेते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने मस्तिष्क को अधिक क्रियाशील रखते हैं। किन्तु कुछ अवास्तविक बातों से ही अपना सम्बन्ध रखते हैं-कल्पना जगत के प्राणी होते हैं। इस प्रकार विचार प्रधान व्यक्तियों में कवि, विचारक, लेखक, निबन्धकार, कहानीकार, नाटककार आदि आते हैं।

(3) क्रिया-प्रधान व्यक्ति- समाज में कुछ व्यक्ति अथवा शिक्षालय में कुछ बालक सदैव कुछ-न-कुछ कार्य करते रहने की प्रवृत्ति बाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति रचनात्मक होते हैं। वे हाथ के कामों में अधिक रुचि लेते हैं। पढ़ने में मन कम लगता है। ये व्यक्ति आगे चलकर सैनिक, कलाकार, खिलाड़ी, कारीगर, मैकेनिक, पहलवान आदि बनते हैं।

(7) सामाजिकता के आधार पर युंग का वर्गीकरण- युंग ने समाज से सम्पर्क स्थापित करने की क्षमता या सामाजिकता के आधार पर व्यक्ति को प्रमुख रूप से दो वर्गों में रखा है (1) बहिर्मुखी एवं (2) अन्तर्मुखी।

(1) बहिर्मुखी (Extrovert)-  ऐसे व्यक्ति जो सामाजिक कार्यों में रुचि लेते हैं और जिनमें सामाजिकता की भावना बहुत अधिक होती हैं, बहिर्मुखी कहलाते हैं। इनकी विशेषतायें निम्नलिखित हैं-

(1) बहिर्मुखी व्यक्तियों में कार्य करने की इच्छा दृढ़ होती है और बहादुरी के कार्यों में अधिक रुचि रहती है। (2) ये व्यक्ति चिन्तायुक्त होते हैं। (3) ये अपनी अस्वस्थता और पीड़ा की परवाह कम करते हैं। (4) ये व्यक्ति प्रायः धारा प्रवाह बोलने वाले और मित्रों जैसा व्यवहार करने वाले होते हैं। (5) इस श्रेणी के व्यक्ति बहुत अद्वैतदादी और अनियन्त्रित होते हैं। (6) ये शान्त और आशावादी होते हैं, तथा परिस्थिति और आवश्यकतानुसार अपने को ढाल लेते हैं। (7) शासन करने और नेतृत्व करने की इच्छा वाले और शीघ्र न घबड़ाने वाले होते हैं। (8) समाज के लोगों से शीघ्र मेल-जोल बढ़ा लेते हैं। समाज की दशा पर विचार करते हैं और सुधार करने के लिए प्रयलशील होते हैं।

बहिर्मुखी व्यक्तियों में से विचार प्रधान दे व्यक्ति होते हैं, जो कुशल शासक या प्रबन्धक बनने की इच्छा रखते हैं, और इस ओर प्रयत्नशील होते हैं। ये व्यवहार कुशल होते हैं, समाज सुधारक भी इस कोटि में आते हैं।

भाव-प्रधान वे व्यक्ति होते हैं जो शीघ्र भावनाओं के वशीभूत हो जाते हैं। स्त्रियाँ इनमें प्रधान स्थान रखती हैं। वे पुरुष भी जो दूसरों का दुःख देखकर पिघल जाते हैं, इसी श्रेणी में आते हैं।

(2) अन्तर्मुखी (Introvert)-  वे व्यक्ति जो स्वयं अपने में ही सीमित होते हैं, समाज के कार्यों में रुचि नहीं लेते, एकान्त सेवी होते हैं, संकोची होते हैं, अन्तर्मुखी व्यक्तित्व वाले होते हैं। इनकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

(1) ये लोग कम बोलनेवाले, लज्जाशील, संकोची और पुस्तक तथा पुस्तिकाओं और पत्र-पत्रिकाओं को पढ़नेवाले होते हैं। (2) ये आज्ञाकारी होते हैं और शीघ्र घबड़ानेवाले होते हैं। (3) ये चिन्तनशील होते हैं और चिन्ताओं से घिरे रहते हैं। (4) ये बहुत सन्देही होते हैं और इसीलिए अपने काम में बड़े सावधान होते हैं। (5) ये अच्छे लेखक होते हैं किन्तु वक्ता नहीं होते।

इनमें भी कुछ विचार प्रधान होते हैं। ये व्यक्ति समाज से दूर रह कर सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक समस्याओं पर विचार करते रहते हैं। अपने भावों को लेखों द्वारा व्यक्त भी कर देते हैं किन्तु समाज में सामने आकर व्यावहारिक कार्य नहीं कर पाते । वैसे इनमें कुछ अपवाद भी पाये जाते हैं।

कुछ अन्तर्मुखी व्यक्ति भाव-प्रधान होते हैं। वे काल्पनिक जगत् में विचरण करते हैं, इनका एक उदाहरण कवि है।

वस्तुतः समाज में ऐसे इने-गिने व्यक्ति ही होंगे जो या तो विशुद्ध रूप से बहिर्मुखी हों या विशुद्ध रूप से अन्तर्मुखी हों। समाज के अधिकांश व्यक्तियों का व्यक्तित्व दोनों के बीच का होता है अर्थात् सामान्य रूप से व्यक्तियों में अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी दोनों के गुण पाये जाते हैं। व्यक्तित्व प्रायः मिश्रित रूप में देखने को मिलते हैं। ऐसे व्यक्ति को विकासोन्मुख (Ambivert) कहते हैं।

उपर्युक्त कुछ आधार है जिनके अनुसार हम व्यक्तियों के व्यक्तित्व को विभाजित कर सकते हैं। अन्य अनेक प्रकार के वर्गीकरण भी किये जा सकते हैं। किन्तु इस प्रकार व्यक्तित्व का अध्ययन कर लेने में हमें व्यक्तित्व की समस्याओं को समझने में सहायता मिलती है।

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