अर्थशास्त्र

व्यापारिक बैंकों के कार्य | Functions of commercial banks in Hindi

व्यापारिक बैंकों के कार्य | Functions of commercial banks in Hindi

व्यापारिक बैंकों के कार्य

(1) जमा (निक्षेप) स्वीकार करना

(Acceptance of Deposits)-

बैंकों का प्रधान कार्य जमा या निक्षेपों को स्वीकार करना है। बैंकों की स्थापना में जनता के धन को जमा करना एक मौलिक कार्य समझा जाता है। इस प्रकार जनता बचतों को बैंकों में जमा करती है, इसके बदले बैंक ग्राहक को ब्याज प्रदान करती है। लेकिन जनता के निक्षेप को जनता द्वारा माँगने पर वह तुरन्त भुगतान करने का कार्य भी करती है। इस दृष्टि से बैंक की सम्पन्नता इस बात की निर्भर है कि वह कितना धन जनता से जमा कराने में सक्षम है। आधुनिक बैंक निक्षेप (जमा) को पांच प्रकार से रखती हैं-

(अ) सावधि जमा खाता (Fixed Deposit Account)- बैंकों में सावधि जमा की प्रक्रिया से तात्पर्य है कि जब जनता के धन को एक निश्चित अवधि के लिए जमा किया जाता है, जिस मूलधन एवं ब्याज की निकासी निर्धारित अवधि तक सम्भव नहीं होती है, तो उसे सावधि जमा कहते है। इस प्रकार की शर्तों पर धन जमा करने वाले ग्राहकों को अपेक्षाकृत ऊँचा ब्याज दिया जाता है।

(ब) चालू खाता (Current Account)- बैंकों में चालू खाता की क्रिया अति प्रचलित है। चालू खाता से तात्पर्य है कि जब बैंक जनता के धन को खाते में जमा करें, एवं उसकी इच्छा के अनुरूप जब चाहे तब धन की निकासी करने में सक्षम रहे, तो इसे चालू खाता कहते हैं। प्रायः व्यापारी वर्ग चालू खाता का प्रयोग दैनिक खर्चों के लिए करते हैं। ऐसे खातों से बैंक ऋण देने में असमर्थ रहती हैं, क्योंकि चालू खाते में जमा रकम की माँग कभी भी हो सकती है।

(स) बचत खाता (Saving Account)- बैंकों में तीसरे प्रकार का बचत खाता होता है; बचत खाता से तात्पर्य है कि जब बैंक खाते खोलने वाले ग्राहक को धन घर रखने के बजाय बैंक में जमा को प्रोत्साहित करती है, वेतन भोगी वर्ग के वेतन का भुगतान इसी खाते में जमा एवं निकासी की सुविधा देती है, ऐसे खाते से एक सप्ताह में एक बार अथवा दो बार धन निकासी की सुविधा प्राप्त होती है। निकासी के लिए बैंक एक चेक पुस्तिका ग्राहक को प्रदान करती है। ऐसे खातों में ब्याज की दर अपेक्षाकृत सावधि जमा से कम होती है।

(द) अनिश्चितकालीन जमा खाता (Indefinite Period Deposit Account)-अनिश्चितकालीन जमा खाता से तात्पर्य है कि जब बैंक अपने ग्राहकों से अनिश्चितकाल के लिए धन जमा कराती है, जिस पर सावधि जमा से ऊँचा ब्याज दिया जाता है। लेकिन मूलधन कुछ विशिष्ट दशाओं में ही निकाला जा सकता है। ऐसे खातों को अनिश्चित जमा कहते हैं। ऐसे खातों में जमाधारकों को नियमित रूप से ब्याज का भुगतान होता है। प्रायः लोग पेन्सन की भाँति ब्याज कमाने के उद्देश्य से ऐसे खाते खोलते हैं। ऐसे खाते दो प्रकार के होते हैं, जिसमें 7 वर्षीय जमा व उससे अधिक बैंक की इच्छानुसार। प्रायः निश्चित समय पूरा होने के पश्चात यदि जमाकर्ता चाहे तो उतनी ही अवधि पुनः बढ़ा सकता है।

(य) घरेलू बचत खाता (Home Saving Account)- बैंकों ने घरेलू छोटी-छोटी बचतों के प्रोत्साहन हेतु ऐसे खातों की व्यवस्था की है। घरेलू बचत खाता से तात्पर्य है कि जब बैंक ग्राहकों को एक बैंक से गोलक (Safe) प्रदान करती हैं, और उस गोलक को ग्राहक घर में रखता है, जिसकी चाबी बैंक के पास रहती है। ऐसे खातों पर बैंक नाम मात्र का ब्याज देती है। ग्राहकों को बैंक का निर्देश होता है कि गोलक को ग्राहक निश्चित अवधि के पश्चात लेकर आयेगा, उससे धन लेकर खाते में जमा कर दिया जाता है। ऐसे खाते को घरेलू बचत खाता कहते हैं।

(2) ऋण प्रदान करना

(Advancing of Loans)-

बैंकों का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य ऋण पत्र है। ऋणि देने से पूर्व बैंक जमा के आधार पर केन्द्रीय बैंक से ऋण प्राप्त करती है अथवा ऋण-पत्र निर्गमन से ऋण प्राप्त करती हैं। जब बैंक के पास ऋणों के लिए पर्याप्त पूँजी आ जात है तो बैंक ऋणदाता के रूप में कार्य करती है। बैंक की ऋण देने सम्बन्धी प्रक्रिया इतनी महत्त्वपूर्ण है कि ऋण पर ही बैंक की सफलता अथवा असफलता निर्भर करती है। अन्य शब्दों में, बैंक के ऋण सम्बन्धी कार्य का विवेचन करेंतो कह सकते है कि बैंक जब जनता के जमा धन पर ब्याज देता है, तो वह उस जमा पूँजी को विनियोग के लिये अपेक्षाकृत ऊंचे ब्याज पर प्रदान करती है ताकि ग्राहक के जमा पर ब्याज की अपेक्षा ऋण पर ब्याज ऊंचा लेकर बैंक को लाभ प्राप्त हो सके। उस ब्याज रूपी लाभ से बैंकिंग मशीनरी के खर्चे पूरे हो सकें। अतः बैंकिंग एक व्यवसाय है।

अब यहाँ प्रश्न है कि बैंक जनता के जमा से उधार देता है तो ऋण देते समय कौन- कौन सावधानियाँ रखता है। अतः बैंक की ऋण सम्बन्धी कुछ शर्ते होती हैं। जो निम्न है।

(1) ऋणी को ऋण प्राप्त करने का उद्देश्य एवं कार्य योजना का प्रारूप बैंक को देना पड़ता है।

(2) ऋण के लिए बैंक उचित जमानत लेती है। अतः ऋण प्राप्तकर्ता की भूमि, भवन सम्बन्धी अचल सम्पत्ति के खसरा खतौनी आदि को बैंक बन्धक रखती है ताकि ऋण पर ब्याज का भुगतान न होने पर सरलता से सम्पत्ति की नीलामी कर धन वसूल किया जा सके।

(3) बैंक द्वारा ऋणी चार प्रकार से ऋण प्राप्त कर सकते हैं जो निम्न हैं- (i) नकद ऋण, (ii) ऋण और अग्रिम, (iii) अधिविकर्ष, (iv) विनिमय बिलों को भुनाना।

(i) नकद ऋण (Cash-Credit)- नकद ऋण प्रणाली का जन्म स्काटलैण्ड में हुआ तत्पश्चात् सम्पूर्ण विश्व ने इसे अपनाया। नकद ऋण से तात्पर्य है कि जब बैंक ऋणी के अंशों, माल, स्टाक व प्रतिभूतियों के आधार पर ऋण प्रदान करता है, तो इसे नकद ऋण कहते हैं। लेकिन नकद ऋण की मात्रा जमानत (स्वीकृत प्रतिभूतियों एवं व्यापारिक माल) की राशि से कम होती है। ऐसे ऋण का सम्पूर्ण धन ऋणी के खाते में अंकित किया जाता है और ऋणी को एक चेक बुक दे दी जाती है। अतः ऋण प्राप्तकर्ता आवश्यकतानुसार उस खाते से धन प्राप्त करता है। लेकिन ब्याज उसी धन पर लिया जाता है, जो ऋणी चेक से निकालता लेकिन ऋण वापसी की अवधि से पूर्व ही निकासी हुए धन की वापसी आवश्यक है, ताकि उसी जमानत पर पुनः ऋण दिया जा सके। बैंकिंग के ऋण व्यवसाय में नकद  सरल होते हैं, क्योंकि बैंक का धन पूर्णतया सुरक्षित होता है। यदि ऋणी व्यक्ति ऋण की वापसी में अक्षम है तो बैंक अंश, स्टॉक, माल व स्वीकृत प्रतिभूतियों को बेचकर धन प्राप्त कर लेती है।

(ii) ऋण और अग्रिम (Loans and Advances)- ऋण और अग्रिम (लोन्स एण्ड एडवान्स) बैंक की ऋण प्रक्रिया है, जिसमें ऋणी व्यक्ति बैंक से सम्पूर्ण धन एक साथ निकाल लेता है। अतः लोन्स एण्ड एडवान्स से तात्पर्य है कि बैंक के ऋण का भुगतान पूरा हो जाने पर ह ऋण का अन्त होता है। ऐसे ऋणों पर यदि ऋणी कुछ अंश वापस कर भी देता है तो नया ऋण फिर भी नहीं प्रदान किया जा सकता है। ऋण और अग्रिम के अन्तर्गत बैंक ऋणी व्यक्ति को एक चेक बुक देती है, जिससे वह ऋण राशि निकाल सकता है लेकिन बैंक सम्पूर्ण राशि पर ब्याज प्राप्त करती है। इसलिये ऋणी प्रायः सम्पूर्ण धन को एक साथ नकल निकाल लेते हैं। इसीलिये बैंकों की इस ऋण नीति को अपेक्षाकृत अच्छा नहीं समझा जाता है। किन्तु बैंक ऋण और अग्रिम को पर्याप्त अथवा गारन्टी से संतुष्ट होकर ही ऐसे ऋण देती हैं।

(iii) अधिविकर्ष (Over draft)- बैंकों की प्रचलित भाषा में अधिविकर्ष को ओडी कहते हैं जो बैंक द्वारा अपने ग्राहक को उसके जमा (निक्षेप) से अधिक धन निकालने की अनुमति है। ऐसी सुविधा पुराने खातादारों को दी जाती है, वे सरकारी कार्यालय, गैर सरकारी कार्यालय अथवा व्यक्ति हो सकते हैं, जिनके चालू खातों में नियमित धन आता है। अधिविकर्ष की सीमा ग्राहकों के प्रतिभूतियों एवं साख के आधार पर बैंक द्वारा निश्चित की जाती है। लेकिन अधिविकर्ष अल्पकालीन वित्तीय सुविधा एवं ऊंचे ब्याज दर पर प्रदान की जाती है।

(iv) विनिमय बिलों को भुनाना (Discounting of bills of Exchange)- बैंकों की चौथे प्रकार की ऋण क्रिया विनिमय बिलों को भुनाकर सम्पन्न की जाती है। विनिमय बिलों को भुनाने से तात्पर्य है कि जब व्यापारिक बिलों की अवधि पूरी हुये बिना ही बैंक ऐसे बिलों को भुनाकर धन दे देता है तो इसे विनिमय बिलों को भुनाना कहते हैं कहते हैं। लेकिन ऐसे विनिमय बिलों के लिए धन देते समय बैंक बट्टा काटती है, जो बिल के ब्याज के बराबर ही होता है। जब विनिमय बिल (Exchange bills) की परिपक्कता अवधि पूरी हो जाती है तो बैंक अपने ऋण को ग्राहक से प्राप्त कर लेता है। ऐसे ऋणों का विदेशों में ऊँचा चलन है।

(3) अभिकर्ता सम्बन्धी कार्य

(Agency related functions)-

बैंकों के अभिकर्ता सम्बन्धी कार्य महत्त्वपूर्ण होते हैं। क्योंकि बैंक एजेन्सी प्रदान करके कुछ कार्य कराती है। इन अभिकर्ताओं को बैंक कमीशन देती हैं लेकिन कमीशन ग्राहक से वसूल होता है। यदि अभिकर्ता के कार्यों का विवेचन करें तो आधुनिक बैंकों में कार्य इतना अधिक बढ़ गया है कि बैंक अकेले समस्त कार्यभार उठाने में असमर्थ हैं फलतः अभिकर्ताओं के कार्य बैंकिग व्यवस्था की दृष्टि से अनिवार्य हो गये हैं। प्रमुख कार्य निम्न हैं-

(1) साख पत्रों का संग्रह (Collection of Trade Papers)- वर्तमान युग में बैंकों को व्यापारिक कार्यों के प्रयोग हेतु साख पत्र जैसे- चेक, ड्राफ्ट, बिल, हुण्डी आदि प्राप्त होते हैं, व्यापारिक कार्यों में इनका प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। अतः ऐसे साख पत्रों को व्यापारियों द्वारा नकद कराना समस्याप्रद पहलू है, इसलिए बैंक साख पत्रों पर भुगतान प्राप्त करके इस समस्या को सरल करते हैं।

(ii) भुगतान (Making of Payment)- अभिकर्ता सम्बन्धी दूसरा कार्य यह है कि बैंक ग्राहकों के आदेश के अनुरूप भुगतान भी करती हैं। जैसे- ग्राहक चेक के माध्यम से टैक्स, ऋण अदायगी, चन्दा, किराया अथवा ब्याज का भुगतान सम्बन्धित कार्यालय अथवा व्यक्ति को प्रदान कर देते हैं।

(iii) साख पत्र स्वीकार करना एवं भुगतान (Accepting of Credit Paper’s and Payment)- बैंक द्वारा गाहकों को चेक पुस्तिका प्रदान की जाती है। अतः वे अपने ग्राहकों के चेकों को स्वीकार करती हैं और भुगतान भी करती हैं। इसके साथ-साथ बैंक ग्राहकों के किराया, कमीशन, ब्याज आदि सभी भुगतानों को एकत्र करके उनका भुगतान करते हुए अमूल्य सेवाएँ देती हैं।

(iv) प्रतिभूतियाँ खरीदना एवं बेचना (Purchasing and Selling o Securities)- बैंक का कार्य प्रतिभूतियों को खरीदना व बेचना भी है। इससे व्यापारियों व ग्राहकों को सुविधा होती है।

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Pankaja Singh

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