व्यापार को शर्ते | वस्तु व्यापार की शर्ते | वस्तु व्यापार की शर्तों की सीमाएं
व्यापार को शर्ते
व्यापार की शर्ते उस दर को बताती हैं जिस दर पर एक देश की वस्तुओं का दूसरे देश की वस्तुओं से विनिमय होता है। यह दर किसी देश के आयातों के रूप में उस देश के निर्यातों की क्रय शक्ति का माप है और उस देश की निर्यात कीमतों तथा आयात कीमतों के बीच सम्बन्ध के रूप में व्यक्त की जाती है। जब किसी देश की आयात कीमतों की सापेक्षता में उस देश की निर्यात कीमतें बढ़ती हैं तो कहा जाएगा कि उसकी व्यापार-शर्ते बेहतर हो गई हैं। देश को व्यापार से लाभ होता है क्योंकि यह निर्यात की दी हुई मात्रा के बदले आयातों की अधिक मात्रा प्राप्त कर सकता है। दूसरी ओर, यदि उस देश की निर्यात कीमतों की सापेक्षता में आयात कीमतें बढ़ती हैं, तो कहा जाएगा कि उसकी व्यापार-शर्ते प्रतिकूल हो गई हैं। उस देश का व्यापार से लाभ कम हो जाएगा क्योंकि यह निर्यातों की दी हुई साख के बदले आयातों की कम मात्रा प्राप्त कर सकेगा।
जेकब वाइन’ तथा जी. एम. मायर (GM. Meier) ने अनेक प्रकार की शर्तों की चर्चा की है। यहाँ हम उनमें से प्रत्येक पर क्रमशः विचार करेंगे।
वस्तु व्यापार की शर्ते (Commodity of Terms of Trade)
व्यापार की वस्तु अथवा निवल वस्तु-विनिमय शर्ते किसी देश की निर्यात वस्तुओं तथा आयात वस्तुओं की कीमतों का अनुपात होती हैं और प्रतीकात्मक रूप में इसे यों व्यक्त किया जा सकता है Tc=px/Pm, जहाँ Tc व्यापार की वस्तु-विनिमय शर्तों को, P कीमत को, x निर्यातों और m आयातों को व्यक्त करता है।
किसी अवधि में व्यापार की वस्तु-विनिमय शर्तों में हुए परिवर्तनों को मापने के लिए आयाता कीमतों में परिवर्तन से निर्यात कीमतों में परिवत्रन का अनुपात लिया जाता है, तो व्यापार केकी वस्तु-विनिमय शर्तों का सूत्र यT
Tc = Pxi Pm1/Pxo Pmo
जहाँ 0 तथा 1 आधार तथा अन्तिम अवधियों की ओर संकेत करते हैं।
सन् 1971 को आधार वर्ष मानकर और भारत की निर्यात कीमतों तथा आयात कीमतों को 100 के रूप में व्यक्त करने पर यदि हम देखें कि 1981 के अन्त तक निर्यात कीमतों क सूचक (index) गिरकर 90 पर आ गया था और आयात कीमतों का सूचक बढ़कर 110 पर पहुंच गया था, तो व्यापार की शर्तों में निम्नलिखित परिवर्तन हुआ था।
90
Tc=(90/100)/(110/100) = 81.82
इसका मतलब है कि भारत की व्यापार-शर्त 1971 के मुकाबले 1981 में लगभग 18 प्रतिशत गिर गई थी अर्थात् व्यापार की शर्ते पहले से खराब हो गई थीं।
यदि निर्यात-कीमतों का सूचक बढ़कर 180 हो जाता है और आयात-कीमतों का सूचक 150 हो जाता, तो व्यापार की शर्ते 120 होतीं। इसका मतलब यह है कि 1971 के मुकाबले 1981 में व्यापार की शर्ते 20 प्रतिशत बेहतर हो गई।
व्यापार की वस्तु अथवा निवल वस्तु-विनिमय शर्तों की संधारणा को अर्थशास्त्रियों ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से होने वाले लाभ को मापने के लिए प्रयोग किया है। मिल मार्शल विश्लेषण में प्रस्ताव वक्रों द्वारा निर्धारित व्यापार की शर्ते वस्तुत; व्यापार की वस्तु-विनिमय शर्तों से सम्बद्ध हैं।
इसकी सीमाएं (Its Limitations)-
यद्यपि इसे व्यापार से लाभों की गति की दिशा मापने के साधन के रूप में प्रयोग किया जाता है, तथापि इस सिद्धान्त की कुछ महत्त्वपूर्ण सीमाएं हैं।
- सूचकांक की समस्याएँ (Problems of Index, Numbers)- वस्तुओं की संख्या, आधार वर्ष तथा गणना की विधि के रूप में सूचकांक से सम्बद्ध आम समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं।
- वस्तु की क्वालिटी में परिवर्तन (Change in Quality of Product)- व्यापार की वस्तु-विनिमय शर्ते निर्यात तथा आयात कीमतों के सूचकांकों पर आधारित होती हैं। परन्तु वे दो देशों के व्यापार में शामिल होने वाली वस्तुओ की क्वालिटी और संरचना में होने वाले परिवर्तनों पर ध्यान नहीं देतीं। बहुत हुआ तो व्यापार की वस्तु-विनिमय शर्तों का सूचक आधार-वर्ष में निर्यातित और आयातित वस्तुओं की सापेक्ष कीमतों में हुए परिवर्तनों को प्रदर्शित करता है। इस प्राकर व्यापार की निवल वस्तु विनिमय शर्ते उन बड़े परिवर्तनों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने में असमर्थ रहती हैं जो विश्व के बाजार में वस्तुओं की क्वालिटी में होते रहते हैं और उन नई वस्तुओं के बारे में कुछ नहीं बता पातीं जो अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में निरन्तर प्रवेश करती रहती है।
- अवधि के चयन की समस्या (Problem of Selection of Period)- जिस अवधि के दौरान व्यापार की शर्तों का अध्ययन और तुलना की जाती हैं, उस अवधि के चयन में भी समस्याएँ उतपन्न हो जाती हैं। यदि बहुत थोड़ी अवधि ली जाए, तो हो सकता है कि आधार तिथि और वर्तमान तिथि में कोई सार्थक परिवर्तन ही न दिखाई दे। दूसरी ओर, यदि बहुत लम्बी अवधि ली जाए,, तो हो सकता है कि देश के व्यापार का ढाँचा ही बदल चुका हो और दोनों तिथियों के बीच निर्यात तथा आयात वस्तु सामग्री की तुलना ही न की जा सके।
- कीमतों में परिवर्ततों के कारण (Causes of changes in Prices)- व्यापार की वस्तु-विनिमय शतों में एक बड़ी कठिनाई यह है कि वे केवल इतना ही बताती हैं कि निर्यात तथा आयात कीमतों में क्या परिवर्तन हुए हैं, परन्तु यह नहीं बतातीं कि वे परिवर्तन कैसे हुए हैं। वास्तव में, जब विदेशों में नियातों की मांग और घरेलू मजदूरी अथवा उत्पादन में परिवर्तनों के परिणामस्वरूप आयात कीमतों की सापेक्षता में निर्यात कीमतों में होने वाला परिवर्तन वस्तु विनिमय व्यापार-शतों के सूचक को बदल देता है, तो बहुत मात्रात्मक अन्तर पड़ जाता है। उदाहरणार्थ, जब विदेशों में निर्यात की अधिक माँग और देश में मजदूरी स्फीति के कारण आयात कीमतों की सापेक्षता में निर्यात कीमतें बढ़ जाती हैं, तो वस्तु विनिमय व्यापर शर्तों के सूचक में परिवर्तन हो सकता है। वस्तु विनिमय व्यापार की शर्तों का सूचक इस तरह के साधनों के प्रभावों पर ध्यान नहीं देता।
- आयात क्षमता (import Capacity) वस्तु-विनिमय व्यापर शर्तों का सिद्धान्त किसी देश की “आयात क्षमता” पर कोई प्रकाश नहीं डालता। मान लीजिए कि भारत की वस्तु- विनिमय व्यापार की शर्ते गिर गई हैं। इसका मतलब है कि भारतीय निर्यातों की दी हुई मात्रा के बदले पहले की अपेक्षा कम आयात खरीदे जा सकते हैं। इस प्रवृत्ति के साथ-साथ भारतीय निर्यातों की मात्रा बढ़ जाती है जिसका कारण शायद यह हो कि निर्यातों की कीमतें गिर गई हैं। हो सकता है कि ये दोनों प्रवृत्तियाँ एक-साथ चलती रह कर भारत की आयात करने की क्षमता अपरिवर्तित रखें अथवा उसे सुधार दें। इस प्रकार वस्तु-विनिमय व्यापार की शर्ते किसी देश की आयात करने की क्षमता पर ध्यान नहीं देती।
- उत्पादक क्षमता (Productive Capacity)-वस्तु-विनिमय व्यापार की शर्ते किसी देश की उत्पादक दक्षता की भी उपेक्षा कर देती हैं। मान लीजिए, किसी देश की उत्पादक दक्षता बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप उत्पादन की लागत और देश की निर्यात वस्तुओं की कीमतें गिर जाएंगी। निर्यात वस्तुओं की कीमतों में गिरावट होने से देश की वस्तु-विनिमय व्यापार शर्ते खराब हो जाएगी। परन्तु वास्तव में देश की स्थिति पहले से बुरी नहीं होगी। चाहे निर्यातों के दिए हुए मूल्य के बदले कम आयात प्राप्त होंगे, पर देश पहले से बेहतर स्थिति में होगा। इसका कारण यह है कि अब निर्यातों की दी हुई मात्रा का उत्पादन पहले की अपेक्षा कम संसाधनो से होगा और निर्यातों की दी हुई मात्रा का उत्पादन पहले की अपेक्षा कम संसाधनों से होगा और निर्यातों में प्रयुक्त संसाधनों के रूप में आयातों की वास्तविक लागत अपरिवर्तित रहेगी।
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