विपणन का सामाजिक पक्ष | विपणन का नैतिक पक्ष | विपणन का कानूनी पक्ष | The Social Side of Marketing in Hindi | The Ethical Side of Marketing in Hindi | the legal side of marketing in Hindi
विपणन का सामाजिक पक्ष
(Social Aspect of Marketing)
विपणन का सामाजिक पहलू या पक्ष भी है। इसमें सामाजिक विचारों या कारण या प्रथा को स्वीकार करने के लिए कहा जाता है। यह विचार स्वास्थ्य से सम्बन्धित या सामाजिक समानता से सम्बन्धित या मानव अधिकार से सम्बन्धित या परिवार नियोजन से सम्बन्धित या वातावरण को सुरक्षित बनाए रखने से सम्बन्धित जैसे हो सकते हैं। इसके लिए अनेक संस्थाएँ हैं जो विज्ञापन के माध्यम से विचारों को स्वीकार करने के लिए कहती हैं। यह विचार इस प्रकार के होते हैं जैसे: धूमपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, शराब पीकर गाड़ी नहीं चलानी चाहिए, नशीली दवाइयों का प्रयोग न करें, शान्ति सेना में शामिल होना चाहिए, शहर को स्वच्छ बनाए रखिए, पान मसाला या गुटखा खाना कैन्सर को आमन्त्रित करता है, प्रदूषण से बचिए, प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, शराब मीठा जहर है, वनों की सुरक्षा कीजिए, यह आपको स्वच्छ एवं साफ वायु प्रदान करते हैं।
आजकल के व्यस्त जीवन में सामाजिक विपणन का अपना स्थान है। लगभग सभी देशों में इस प्रकार की संस्थाएँ हैं जो इस ओर विशेष ध्यान दे रही है। यह कार्य सामाजिक सेवा संस्थाओं के द्वारा या फिर सरकार के द्वारा किया जाता है। कहीं-कहीं पर कुछ प्रमुख उद्योगपति भी हैं जो इस प्रकार के विपणन पर भी ध्यान देकर अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को निभा रहे हैं। भारत में इस प्रकार का कार्य टाटा समूह की विभिन्न कम्पनियों द्वारा किया जा रहा है।
विपणन का नैतिक पक्ष
(Ethical Aspect of Marketing)
वर्तमान में विपणन के नैतिक पक्ष की ओर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है। इसलिए अधिकांश बड़े व्यापारिक घरानों में “कारपोरेट विपणन नैतिक नीतियाँ’ बनायी जाती हैं जिसे संस्था के प्रत्येक व्यक्ति को अपनाना आवश्यक है। इन नीतियों में वितरण सम्बन्ध, विज्ञापन स्टैन्डर्ड, ग्राहक सेवा, मूल्य, वस्तु विकास व अन्य सामान्य नैतिक प्रमाप आदि का विस्तृत विवरण होता है। विपणन में नैतिकता से अर्थ ईमानदारी से है। यह ईमानदारी वस्तु के प्रति, देश के नियमों के प्रति, समाज के प्रति, उपभोक्ता के प्रति व सरकार आदि के प्रति हो सकती है। इसमें किसी को हानि पहुँचाना या धोखा देना उचित नहीं माना जाता है।
एक विपणनकर्ता का नैतिक उत्तरदायित्व है कि उसकी वस्तु से सभी सम्बद्ध पक्षों, ग्राहकों, संगठनों व समाज को कोई हानि न हो और यदि ऐसा होता है तो उसका उत्तरदायित्व उसी पर होगा तथा जिसके परिणामों या हानियों के लिए वह जिम्मेदार माना जाएगा। विपणनकर्त्ता को जानबूझकर ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे आम जनता या उपभोक्ता को हानि हो। इसी प्रकार उसको देश के सभी कानूनों एवं नियमों का पालन करना चाहिए।
एक विपणनकर्ता को विपणन कार्यक्रम इस प्रकार बनाना चाहिए जिससे कि यह पता चले कि वह उपभोक्ता, कर्मचारी, सप्लायर, वितरक एवं जनता आदि के प्रति ईमानदार है। वस्तु का उपयोग सुरक्षित है और इसके उपयोग से कोई हानि नहीं होती है।
विज्ञापन में सत्यता होनी चाहिए। विज्ञापन में कोई ऐसी बात नहीं होनी चाहिए जिसमें धोखा हो अर्थात् जो सत्य न हो। विज्ञापन में बात बढ़ा-चढ़ाकर नहीं की जानी चाहिए।
यदि किसी वस्तु या सेवा के उपयोग से हानि हो सकती है तो उसका उल्लेख वस्तु के पैकेजिंग पर अवश्य होना चाहिए।
विपणन में नैतिकता के लिए केवल लिखे हुए कोड से काम नहीं चलता बल्कि उसको व्यावहारिक रूप किस प्रकार दिया जाये इससे काम चलता है। इसके लिए संस्था का प्रत्येक सदस्य उसके प्रति उत्तरदायी होना चाहिए। यह उस संस्था की निगमित संस्कृति में विद्यमान होना चाहिए।
विपणन का कानूनी पक्ष
(Legal Aspect of Marketing)
प्रत्येक देश में व्यापार को नियमित करने के लिए अनेक कानून हैं। इन कानूनों का उद्देश्य उपभोक्ता को अनुचित व्यापारिक व्यवहार से बचाना व समाज के हित को सुरक्षित रखना है। अतः एक विपणनकर्त्ता को इन कानूनों का पूरा-पूरा ज्ञान होना चाहिए। “लगभग प्रत्येक विपणन क्रिया कानून व नियमों की विस्तृत श्रेणी के अधीन होती है।”
भारत में इस प्रकार के कई कानून हैं, जैसे- व्यापार एवं व्यापारिक चिन्ह अधिनियम (The Trade & Merchandise Marks Act) 1951, एकाधिकार एवं अवरोध व्यापारिक व्यवहार अधिनियम (Monopolies and Restrictive Trade Practices Act) 1969, आवश्यक वस्तु पूर्ति अधिनियम (Essential Commodities (Supply) Act), 1955,. पैकेज्ड वस्तु नियमन आदेश (Packaged Commodities Regulation Order), 1975, बांट एवं माप अधिनियम (Standards of Weights and Measures Act), 1976, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act), 1976, औषधि एवं सौन्दर्य अधिनियम (Drugs & Cosmetic Act), 1940, खाद्य मिलावट निवारण अधिनियम (Prevention of Food Adulterations Act), 1954 आदि।
स्वतन्त्रता के बाद भारत में व्यापार सम्बन्धी कानूनों में काफी वृद्धि हुई है अतः एक विपणनकर्त्ता को इन कानूनों के सम्बन्ध में संचालन ज्ञान अवश्य ही होना चाहिए। सामान्यतया व्यापारिक संस्थाएं इन कानूनों के सम्बन्ध में अपने कर्मचारियों को समय-समय पर जानकारी उपलब्ध कराती है जिससे कि वे न केवल जानकारी प्राप्त कर सकें बल्कि उनसे किस प्रकार बच सकते हैं यह भी बताया जाता है। ऐसा होने से व्यापारिक संस्थाएं इन कानूनों की दण्डात्मक प्रक्रिया से बच जाती है और उपभोक्ता को पूरी-पूरी जानकारी देकर उसको अपनी ओर आकर्षित करने में सहायक होती है।
विपणन सम्बन्धी नियम व कानून समय-समय पर बदलते रहते हैं। कोई कानून किसी समय उस वस्तु पर लागू नहीं होता है जो बाद में उस पर लागू हो जाता है या जिस पर पहले लागू होता था अब नहीं होता। इस प्रकार एक विपणनकर्ता को इसका पूरा-पूरा ज्ञान होना चाहिए।
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