विनिमय नियन्त्रण से आशय | विनिमय नियन्त्रण के उद्देश्य | विनिमय नियन्त्रण की सीमायें | विनिमय नियन्त्रण क्या है
विनिमय नियन्त्रण से आशय
(Meaning of Exchange Control)
हैबलर (Haberler) के अनुसार-‘विनिमय नियंत्रण का आशय विदेशी विनिमय बाजार में आर्थिक शक्तियों के स्वतन्त्र कार्यकलाप को समाप्त करके वहाँ राजकीय नियमन की स्थापना करना है।” पूर्ण विनिमय नियन्त्रण (Full-fledged system of exchange control) के द्वारा विदेशी विनिमय बाजारों पर पूर्ण सरकारी नियन्त्रण स्थापित किया जाता है। निर्यातों एवं अन्य स्रोतों सेसे जो विदेशी विनिमय प्राप्त । वह सब विनिमय-नियन्त्रण अधिकारियों के सुपुर्द कर देना पड़ता है। इससे अन्तर्राष्ट्रीय भुगतान लेने-देने के कार्य सरकारी हाथों में केन्द्रित हो जाते हैं। बाद में, विदेशी विनिमय की उपलब्ध पूर्ति का राष्ट्रीय आवश्यकताओं में एक प्राथमिकता क्रम (Scheine of priority) के अनुसार विभिन्न लाइसेंस प्राप्त आयातकों में, विभाजित कर दिया जाता है। पूँजी के निर्यात प्रायः निषिद्ध (Prohibited) होते हैं तथा केवल आवश्यक वस्तुओं के आयात को ही अनुमति दी जाती है। विलास एवं अनावश्यक वस्तुएँ देंश की आयात सूची में स्थान नहीं पाती हैं।
विनिमय नियन्त्रण के उद्देश्य
(Objects of Exchange Control)
सरकारों ने विनिमय नियन्त्रण की नीति विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु अपनाई है। प्रमुख उद्देश्य आगे समझाये गये हैं
- पूँजी के बर्हिगमन को रोकने के लिए- यदि पूँजी को, अचानक ही एक देश से दूसरे देशों में, विशाल मात्राओं में, जाने की छूट दी जाय, तो इससे उस देश के स्वर्ण व विदेशी- विनिमय-कोष एक बहुत ही अल्पकाल में खत्म हो जायेंगे। अत: ऐसे आवागमनों को विनिमय- नियन्त्रण द्वारा रोकना आवश्यक है। सोशलिस्ट व फासिस्ट सरकारों ने भी इसी उद्देश्य से विनिमय नियन्त्रण की नीति अपनाई थीं।
- पर्याप्त विदेशी मुद्रा उपलब्ध करना- विभिन्न देश विनिमय नियन्त्रणों को इस उद्देश्य से भी लागू करते हैं कि उनका विदेशी मुद्रा कोष पर्याप्त बना रहे जिससे कि विदेशों से आवश्यक वस्तुयें खरीदने में कभी कोई कठिनाई न हो।
- विभिन्न मुद्राओं के मध्य सम्बन्धों को स्थायी रखने के लिए- उदाहरणार्थ, सन् 1931 में जब इंग्लैण्ड ने स्वर्णमान का खण्डन कर दिया था तब, स्टलिंग-गुट के सदस्य-देशों ने पौंड-स्टलिंग में अपनी मुद्राओं के मूल्य स्थायी रखने की दृष्टि से ही विनिमय नियन्त्रण लागू किये थे।
- शत्रु राष्ट्रों द्वारा क्रय शक्ति का प्रयोग रोकने के लिये- इस हेतु देश की बैंकों में शत्रु राष्ट्र के निवासियों की जमा सम्पत्तियाँ जब्त कर ली जाती थीं।
- मूलधन और ब्याज के भुगतान के लिए विदेशी करैन्सियाँ प्राप्त करना- इस उद्देश्य ने भी अनेक ऋणी सरकारों को सन् 1920 और सन् 1930 मध्यावधि में विनिमय नियन्त्रण लागू करने के लिए प्रेरित किया था। उन्हें पुराने बकाया ऋण चुकाने हेतु नये ऋण नहीं मिल पाते थे। अत: वे अपने निर्यात-आधिक्य (Exports surplus) पर निर्भर थे जो कि विनिमय नियन्त्रण द्वारा ही उत्पन्न किया जा सकता था।
- अपनी मुद्राओं के अधिमूल्यन को समर्थन देने के लिए- मुद्रा के अधिमूल्यन कर देने पर युद्ध कार्य अथवा नागरिक उपभोग के हेतु आवश्यक वस्तुयें विदेशों से सस्ती कीमत पर आयात की जा सकेंगी। विदेशी ऋण के भार हो हल्का करने के लिए भी देश अपनी मुद्रा का अधिमूल्यन कर सकता है।
- स्वदेशी मुद्रा के अवमूल्यन को समर्थन देने के लिए- एक देश अपनी करेंसी का अवमूल्यन करने के उद्देश्य से भी विनिमय नियन्त्रणों को लागू करने पर विवश हो सकता है, जिससे उसके निर्यात बढ़ सकें तथा आयातों में कमी आ सके।
- विनिमय दरों में अस्थाई उतार-चढ़ाव रोकने के लिए- इस उद्देश्य से ब्रिटेन ने विनिमय नियन्त्रण की नीति को सन् 1932 व सन् 1939 की मध्यावधि में अपनाया था।
- प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन को ठीक करना- जब किसी देश के भुगतान सन्तुलन में स्थायी प्रतिकूलता आ जाती है तो सरकार द्वारा इसे ठीक करने के लिए विनिमय नियन्त्रण को अपनाकर विदेशी मुद्रा तथा स्वर्ण को देश से बाहर ले जाने पर चयनात्मक प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है।
- घरेलू उद्योगों को संरक्षण प्रदान करना- घरेलू उद्योगों को संरक्षण प्रदान करके उन्हें विदेशी कम्पनियों से प्रतिस्पर्धा करने लायक बनाया जाता है इसके लिए सरकार आयातों के स्वतन्त्र आवागमन को विनिमय नियन्त्रण अपना कर कम कर देती है।
- आर्थिक नियोजन हेतु- आयात निर्यातों का देश के आर्थिक विकास पर सीधा प्रभाव पड़ता है। ऐसी स्थिति में आर्थिक नियोजन को सफल बनाने के लिए सरकार विनिमय नियन्त्रण को अपनाती है। केवल उन्हीं आयातों के लिए विदेशी मुद्रा उपलब्ध करायी जाती है जो देश के तीव्र आर्थिक विकास के लिए अपरिहार्य होते हैं।
विनिमय नियन्त्रण की सीमायें
विनिमय नियन्त्रण से यद्यपि प्रतिकूल भुगतान को ठीक किया जा सकता है, विदेशी विनिमय का कम से कम प्रयोग करके आयात की आवश्यकताओं को पूरा करके देश का तेजी से आर्थिक विकास किया जा सकता है तथा देशवासियों को विदेशी वस्तुएँ सुगमतापूर्वक उपलब्ध करायी जा सकती हैं, तथापि विनिमय नियन्त्रण को लागू किये जाने से निम्न कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं-
(1) विनिमय नियन्त्रण से विभिन्न देशों के बीच आर्थिक सहयोग तथा पारस्परिक सहायता की भावना प्रतिकूल ढंग से प्रभावित होती है।
(2) इससे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के परिणाम में कमी आती है।
(3) बहुपक्षीय व्यापार के लाभ समाप्त हो जाते हैं।
(4) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में चुनाव के स्थान पर आवश्यक बाध्यता लागू हो जाती है।
(5) सरकारी अधिकारियों को विस्तृत शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं जो आयात एवं निर्यातकर्ताओं के शोषण का कारण बन जाती हैं।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि विनिमय नियन्त्रण के लिए अनेक रीतियाँ उपलब्ध हैं। कौन-सी रीति किस देश के लिए अधिक उपयुक्त होगी यह उस देश की आवश्यकताओं और परिस्थितियों पर निर्भर है। प्राय: एक साथ कई रीतियों को अपनाना आवश्यक हो जाता है।
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