विपणन प्रबन्ध

विज्ञापन के उद्देश्य | विज्ञापन के लाभ या महत्व | विज्ञापन के दोष

विज्ञापन के उद्देश्य | विज्ञापन के लाभ या महत्व | विज्ञापन के दोष | Advertising Objectives in Hindi | Benefits or Importance of Advertising in Hindi | advertising flaws in Hindi

विज्ञापन के उद्देश्य

(Objects of Advertisement)

विज्ञापन के उद्देश्यों का विधिवत् अध्ययन करने के लिए इन को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है- (1) मुख्य उद्देश्य एवं (2) सहायक उद्देश्य। इनका वर्णन अमलिखित है –

विज्ञापन के मुख्य उद्देश्य (Main Objects of Advertisement) – (1) नव- वस्तुओं के सम्बन्ध में जनता को उचित जानकारी देना। (2) वस्तुओं या सेवाओं की माँग को उत्पन्न करना। (3) वस्तुओं या सेवाओं की माँग को स्थिर बनाए रखना। (4) वस्तुओं या सेवाओं की माँग को बढ़ाना। (5) जन साधारण को वस्तु एवं सेवाओं के उपयोग समझाना। (6) विक्रेताओं के प्रयत्नों में सहायता पहुँचना। (7) व्यावसायिक सम्बन्धों में सुधार करना। (8) उत्पादक या निर्माता की ख्याति में वृद्धि करना।

II विज्ञापन के सहायक उद्देश्य (Subsidiary Objects of Advertisement) –

विज्ञापन के सहायक उद्देश्य निम्नलिखित हैं- (1) अन्धविश्वासों एवं कुरीतियों के दोष समझाकर उन्हें समाप्त करना, नौकरी प्राप्त करने तथा जीवन साथी चुनने जैसे अनेक सामाजिक कार्य सम्पन्न करने में सहायता प्रदान करना। (2) व्यक्तियों या संस्थाओं का प्रचार करना। (3) आर्थिक योजना को सफल बनाने में सहायता प्रदान करना। (4) उत्पादन एवं वितरण लागत को कम करना। (5) जनता को महत्वपूर्ण सूचनायें देना।

विज्ञापन के लाभ या महत्व

(Advantages or Importance of Advertisement)

आधुनिक प्रतिस्पर्धा के युग में विज्ञापन का महत्वपूर्ण स्थान है। विज्ञापन के द्वारा नयी- नयी वस्तुओं का परिचय उपभोक्ताओं से कराया जाता है, ग्राहकों को वस्तुएं खरीदने के लिए प्रेरित किया जाता है, वस्तु की माँग बढ़ाकर बड़े पैमाने पर उत्पादन सम्भव होता है जिससे उत्पादक और उपभोक्ता दोनों प्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होते हैं। उत्पादक को बड़े पैमाने के उत्पादन की मितव्ययितायें मिलती हैं और उपभोक्ताओं को सस्ती एवं प्रभावित वस्तुयें मिलती हैं। अतः विज्ञापन वस्तु की माँग उत्पन्न करता है – पूर्ण रूपेण सत्य है। इसी कारण यह तथ्य भी सत्य प्रतीत होता है कि “विज्ञापन पर किया गया व्यय विनियोग होता है, व्यर्थ नहीं।” विज्ञापन के द्वारा सभी वर्ग लाभान्वित होते हैं। इनका वर्णन निम्नलिखित है-

  1. माँग उत्पन्न करना – निर्माता अपनी नयी वस्तु का विज्ञापन कराकर ग्राहकों को उस वस्तु से अवगत कराके अपनी वस्तु की माँग उत्पन्न करते हैं।
  2. वस्तु की बिक्री में वृद्धि – विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य वस्तु की बिक्री को बढ़ाना है। बड़े पैमाने पर उत्पादन करके उसको बड़े पैमाने पर बेचने के लिए विज्ञापन का सहारा लिया जाता है। विज्ञापन के द्वारा नये ग्राहक आकर्षित होते हैं और निरन्तर विज्ञापन कराने से पुराने ग्राहकों का वस्तु के प्रति आकर्षण बना रहता है। विज्ञापन के द्वारा वस्तु के नये-नये प्रयोगों को समझाकर ग्राहकों में उत्सुकता उत्पन्न की जाती है। इन सबका प्रभाव यह होता है कि बिक्री में वृद्धि हो जाती है।
  3. ‘माँग में स्थिरता- विज्ञापन वस्तुओं की माँग में होने वाले मौसमी परिवर्तनों को कम कर देता है। यह विज्ञापन का ही परिणाम है कि चाय की बिक्री गर्मियों के मौसम में भी होती है।
  4. शीघ्र बिक्री- सुव्यवस्थित विज्ञापन के द्वारा बाजार में अनुकूल वातावरण बन जाता है और वस्तु की बिक्री तेजी से होने लगती है। वस्तु की शीघ्र बिक्री हो जाने के कारण व्यापारी को उस वस्तु का अधिक समय के लिए स्टाक नहीं रखना पड़ता है।
  5. प्रतिस्पर्धा में सफलता- विज्ञापन के द्वारा वस्तु के प्रति जनता की माँग को स्थायी बनाया जा सकता है। यदि कोई प्रतिस्पर्धी हमारी वस्तु के प्रति गलत तथ्यों का प्रचार करता है तो उनका खण्डन किया जा सकता है। विज्ञापन के द्वारा ग्राहकों को यह समझाया जा सकता है कि उसकी वस्तु अन्य वस्तुओं से किस प्रकार श्रेष्ठ है। अतः प्रतिस्पर्धा में सफलता प्राप्त करने में विज्ञापन महत्वपूर्ण योगदान देता है।

विज्ञापन के दोष

(Demerits of Advertisement)

विज्ञापन के दोष निम्नलिखित हैं-

  1. विलासिता का विकास- विज्ञापनों से आकर्षित होकर उपभोक्ता ऐसी वस्तुओं को भी खरीदने लगते हैं जिनकी उन्हें आवश्यकता नहीं है। अतः विलासिता के विकास में विज्ञापन का बहुत हाथ रहा है।
  2. ठग विद्या का विकास- विज्ञापन के द्वारा ठग विद्या का विकास हुआ है। उत्पादक या विक्रेता अपनी वस्तु की झूठी प्रशंसा करके भोले-भाले उपभोक्ताओं को ठगते रहते हैं। डाक द्वारा व्यापार करने वालों को विज्ञापन द्वारा ग्राहकों को ठगने का अच्छा अवसर मिल गया है जैसे- 15 रु० में एक समय देने वाली सुन्दर घड़ी, 5 रू0 में जो चाहोगे वहीं मिलेगा- तांत्रिक अंगूठी आदि।
  3. समाज का नैतिक पतन – मानव कमजोरियों को उभारने वाले अश्लील विज्ञापन दिये जाते हैं जिससे समाज का नैतिक पतन होता है।
  4. स्वतन्त्र चुनाव में बाधक – विज्ञापनों के कारण कभी उपभोक्ता इस असमंजस में पड़ जाता है कि वह किस वस्तु का क्रय करे क्योंकि सभी निर्माता अपनी वस्तु की प्रशंसा अलग-अलग ढंग से करते हैं। कभी-कभी उपभोक्ता विज्ञापन से प्रभावित होकर ऐसी वस्तु को खरीद लेता है जो कि उसके लिए अनुपयोगी है।
  5. शहरों के प्राकृतिक सौन्दर्य का विनाश- दीवारों, चौराहों पर होने वाले विज्ञापनों से शहर का प्राकृतिक सौन्दर्य ही नष्ट हो जाता है क्योंकि शहरों में जगह-जगह पोस्टर और साइन बोर्ड दिखाई देते हैं।
  6. देश के साधनों का अपव्यय- विज्ञापन के द्वारा फैशन में परिवर्तन होता रहता है जिससे देश का बहुत सा उत्पादन पुराना एवं अप्रचलित हो जाता है। इस कारण देश के साधनों का अपव्यय होता है। इसके अतिरिक्त उत्पादन के साधनों का प्रयोग विज्ञापन में किया जाता है, जिससे प्रत्यक्ष रूप में उत्पादन में वृद्धि नहीं होती।
  7. सामाजिक बुराइयों को प्रोत्साहन- बहुत से विज्ञापनों के द्वारा बीड़ी, सिगरेट, शराब आदि को आधुनिकता का प्रतीक बनाया जाता है। ऐसे विज्ञापनों से प्रभावित होकर अनेक व्यक्ति इन दुर्व्यसनों को अपना लेते हैं और फिर ये आसानी से नहीं छूटते हैं।
  8. असफलता की स्थिति- यदि विज्ञापन करने पर भी कोई वस्तु न बिक पाये तो संस्था को काफी हानि होती है क्योंकि विज्ञापन पर किया गया व्यय व्यर्थ हो जाता है।

निष्कर्ष- उपरोक्त दोषों का अध्ययन करने के पश्चात तो यह कहा जा सकता है कि विज्ञापन पर किया व्यय व्यर्थ है या विज्ञापन एक विलासिता है या विज्ञापन एक सामाजिक अपव्यय होता है। लेकिन वास्तविकता इससे बहुत भिन्न है, क्योंकि उपयुक्त दोषों का यदि गहराई से अध्ययन किया जाये तो ज्ञात होगा कि ये दोष विज्ञापन के नहीं हैं, अपितु विज्ञापन के दुरुपयोग के कारण उत्पन्न होते यदि विज्ञापन के दुरुपयोग को रोका जाये तो विज्ञापन से होने वाली हानियों काफी कम किया जा सकता है और ऐसी स्थिति में विज्ञापन व्यावसायिक जगत के लिए वरदान सिद्ध होगा।

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Pankaja Singh

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