इतिहास

वैदिक-युग | वैदिक युग की परिभाषा | वैदिक युग से तात्पर्य | वैदिक युग का समय निर्धारण | वैदिक युग का विभाजन

वैदिक-युग | वैदिक युग की परिभाषा | वैदिक युग से तात्पर्य | वैदिक युग का समय निर्धारण | वैदिक युग का विभाजन

वैदिक-युग

प्रागैतिहासिक युग को पार करती हुई भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति ने सिन्धु घाटी की सभ्यता और संस्कृति के युग में चरण रखे। ऐतिहासिक उत्थान एवं पतन की गाथा को चरितार्थ करती हुई यह संस्कृति भी धराशायी हो गई। ठीक इसी समय भारत भूमि पर एक नवीन सभ्यता उदित हुई। इस सभ्यता के प्रणेता आर्य थे। आर्यों के आगमन के उपरान्त जिस सभ्यता एवं संस्कृति ने पनपना प्रारम्भ किया-उसे मोटे तौर पर वैदिक युग के नाम से जाना जाता है।

‘वैदिक युग’ की परिभाषा-

‘वेद’ शब्द संस्कृत भाषा के ‘विद’ शब्द से सम्बन्धित है। ‘विद’ का अर्थ है ‘जानना’ या ‘ज्ञान होना।’ इस सन्दर्भ में हम कह सकते हैं कि, क्योंकि ‘वेद’ ज्ञान । एवं जानकारी के भण्डार हैं अतः वैदिक युग’ उस युग का नाम है जिसकी सभ्यता एवं संस्कृति का आधार वेदों में निहित ज्ञान एवं दर्शन था।

वैदिक युग से तात्पर्य-

 वैदिक युग की उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट होता है कि वैदिक सभ्यता एवं संस्कृति का निर्धारण वेदों के आधार पर ही किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में वैदिक युग से हमारा तात्पर्य उस युग की सभ्यता तथा संस्कृति से है जिसका ज्ञान वैदिक साहित्य के आनुशीलन द्वारा प्राप्त होता है।

‘वैदिक युग’ का समय निर्धारण

वैदिक युग के समय अथवा काल का निर्धारण वेदों की प्राचीनता के अनुसार ही किया जा सकता है। वेद इतने प्राचीन हैं कि उनके रचनाकाल के विषय में अनेक दृष्टिकोणों के अनुसार अनेकानेक अनुमान लगाये हैं। जैकोबी महोदय ने ध्रुव नक्षत्र की स्थिति के अनुसार वेदों का रचना काल 1500 ई० पू० माना है। लोकमान्य तिलक का विचार है कि वेदों की संहिताओं में नक्षत्र गणना मृगशिरा से होती है और चूँकि यह स्थिति आज से 6500 ई० पू० थी अतः वेदों का रचना काल वहीं रहा होगा। डा० सम्पूर्णानन्द ने वैदिक साहित्य के ज्योतिष सम्बन्धी उल्लेखों के आधार पर इनका रचना काल 25000 वर्ष पूर्व का माना है। मैक्समुलर महोदय ने भाषा विज्ञान के आधार पर वेदों को लगभग 1200 ई० पू० के समय का माना है। मेकडोनेल महोदय ने बोगाजकाई शिलालेख को प्रमाण तथा आधार मान कर वेदों के सर्वप्रथम ग्रन्थ ऋग्वेद को 1300 ई० पू० के लगभग की रचना स्वीकार किया है। डा० ए० सी० व्यास ने भूगर्भ विज्ञान के आधार पर वेदों का रचना काल 25000 वर्ष पूर्व का ठहराया है। डा० विन्टपनिट्रज का विचार है कि वेदों की रचना महात्मा बुद्ध से 1000 वर्ष पूर्व में हुई थी।

उपरोक्त परस्पर विरोधी मतों के विभिन्न निष्कर्षों द्वारा वैदिक युग का ठीक-ठीक समय निर्धारण करना असंभव–सा प्रतीत होता है। फिर भी हम इतना तो निश्चित रूप से कह सकते हैं कि ऋग्वेद होमर या ‘ओल्ड टेस्टामेन्ट’ से भी प्राचीन है। वेदों के अन्तिम अंश यथा उपनिषदों की रचना पाइथागोरस तथा प्लेटो से पहले हो चुकी थी। वेदों के अध्ययन द्वारा सहज ही यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वेद किसी एक व्यक्ति तथा एक ही काल की रचना नहीं थे। ऋग्वेद सर्व प्राचीन है, इसके उपरान्त अन्य वेद और तत्पश्चात् ब्राह्मणों, उपनिषदों आदि की रचना हुई थी। इस साहित्यिक विकास में निश्चय ही हजार, डेढ़ हजार वर्ष लगे होंगे। वैदिक संस्कृति तथा सभ्यता का सम्पूर्ण रूप वैदिक साहित्य में प्रतिबिम्बित है, अतः हम वैदिक युग की प्राचीनतम तिथि (सिन्धु घाटी की सभ्यता के अन्त होने की तिथि के बाद ठहराते हुए) लगभग 2500 वर्ष ई० पू० मान सकते हैं। ऐतिहासिक गणनानुसार लगभग 200 वर्ष ई० पू० तक का समय विशुद्ध ‘वैदिक युग’ माना जा सकता है। इस प्रकार विभिन्न दृष्टिकोणों को दृष्टिगत करते हुए हम आनुमानिक आधार पर कह सकते हैं कि वैदिक युग का समय लगभग 2500 ई० पू० से लेकर लगभग 200 ई० पू० तक विद्यमान रहा।

वैदिक युग का विभाजन-

सैद्धान्तिक रूप से किसी भी संस्कृति का स्पष्ट रूप से काल विभाजन करना उचित नहीं है। संस्कृति की धारा अविच्छिन्न होती है परन्तु व्यावहारिक रूप से संस्कृति तथा सभ्यता का अध्ययन करने के लिये काल विभाजन करना अति आवश्यक है। अतः व्यावहारिकता के दृष्टिकोण से वैदिक युग को दो भागों में विभाजित किया गया है-(1) पूर्व वैदिक काल (इसे ऋग्वैदिक काल भी कहा जाता है।) (2) उत्तर वैदिक काल

निष्कर्ष

‘वैदिक युग’ की उपरोक्त परिभाषा, तात्पर्य, समय निर्धारण तथा विभाजन के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि वेद आर्यों के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं तथा उनके अनुशीलन से हमें आर्यों की जिस सभ्यता, संस्कृति, धर्म, दर्शन आदि के सम्बन्ध में जिस दिशा तथा दशा का बोध होता है उसे ‘वैदिक युग’ के नाम से पुकारा जाता है।

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Pankaja Singh

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