अर्थशास्त्र

उत्तर प्रदेश की विभिन्न पंचवर्षीय योजना | उत्तर प्रदेश की विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान विकास दर की उपलब्धियों का समीक्षात्मक विवरण

उत्तर प्रदेश की विभिन्न पंचवर्षीय योजना | उत्तर प्रदेश की विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान विकास दर की उपलब्धियों का समीक्षात्मक विवरण | Various Five Year Plans of Uttar Pradesh in Hindi | Critical description of achievements of growth rate during various five year plans of Uttar Pradesh in Hindi

उत्तर प्रदेश की विभिन्न पंचवर्षीय योजना

उत्तर भारत में मार्च, 1950 में योजना आयोग के गठन किया गया। इसका गठन करते समय सरकार इस बात के लिए सचेत थी कि यदि देश में आर्थिक विकास की प्रक्रिया को तीव्र करने की आवश्यकता है तो यह भी आवश्यक हो जाता है कि आर्थिक विकास का लाभ सभी को समान रूप से प्राप्त हो, और आर्थिक विषमता न बढ़ने पाये।

चूँकि भारत मे संघीय ढांचे को अपनाया गया है इसीलिए देश में राज्य स्तर पर भी योजना आयोग का गठन किया गया ताकि सभी राज्य योजनाओं का कुशल निर्माण करके केन्द्रीय योजना आयोग के साथ सामंजस्य बिठा सके तथा साथ ही राज्यों की जनता को भी अधिकतम  लाभ पहुंचाया जा सके एवं अर्थव्यवस्था को वांचित गति व विशा प्रदान कर सकें। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश में राज्य योजना आयोग का गठन किया गया। उत्तर प्रदेश राजनैतिक दृष्टि से देश का सबसे महत्वपूर्ण राज्य है क्योंकि उत्तराखण्ड अलग होने के बाद भी लोकसभा की कुल 543 सीटों में से 30 सीट केवल उत्तर प्रदेश के द्वारा भरी जाती हैं। इतनी सीटें किसी अन्य राज्य के द्वारा नहीं भरी जाती है जब तक देश में कुल 12 प्रधानमंत्री बने हैं जिनमें से 7 उत्तर प्रदेश से रहे हैं और ये सर्वाधिक समय तक रहे हैं। यही नहीं भारत का हर छठ व्यक्ति उत्तर प्रदेश में निवास करता है।

योजना काल में आर्थिक वृद्धि-

उत्तर प्रदेश में भी भारतीय अर्थव्यवस्था की भाँति योजनाबद्ध तरीके से आर्थिक विकास की रणनीति अपनाई गई है प्रदेश में अब तक कुल दस पंचवर्षीय योजनाएं पूर्ण हो चुकी है तथा कई बार पंचवर्षीय योजनाओं को देश की ही भांति राज्य में भी लागू नहीं किया जा सका है। और ये वर्ष हैं-1966-69, 1979-80 तथा 1990-92।

इन वर्षों में राज्य में पंचवर्षीय योजनाएं चालू नहीं की जा सकी क्योंकि ये वर्ष किसी न किसी कारण से असामान्य वर्ष थे। फिर भी राष्ट्रीय नियोजन की भांति उत्तर प्रदेश में भी योजनाबद्ध विकास का कार्यक्रम बिना किसी विशेष बाधा के सफलता के साथ लागू किया जा रहा है।

अब हम उत्तर प्रदेश में सन् 1951 से प्रारम्भ किये गए योजनाबद्ध आर्थिक विकास की रणनीतियों का मूल्यांकन करेंगे। इससे हमें यह जानने में आसानी होगी कि विभिन्न योजनाओं के दौरान प्रदेश में आर्थिक उपलब्धियाँ किस प्रकार की रही हैं और देश में आर्थिक विकास का स्तर क्या रहा है? इस जानकारी के आधार पर हम अर्थव्यवस्था की कमजोरी एवं मजबूरी को समझ सकते हैं साथ ही भविष्य के लिए समुचित रणनीतियों का प्रतिपादन भी कर सकते हैं ताकि आर्थिक विकास की प्रक्रिया को दृढता एवं गति प्रदान की जा सके।

अब तक प्रदेश में दस पंचवर्षीय योजनाएं पूर्ण हो चुकी हैं जिनके दौरान राज्य में होने वाली विकास दर को गालिका-1 में प्रस्तुत किया गया है तालिका को देखने से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में नियोजन के प्रथम ढाई दशकों के दौरान अर्थात प्रथम पंचवर्षीय योजना से चौथी पंचवर्षीय योजना तक विकास की गति बेहद सुस्त बनी रही। इस दौरान राज्य में आर्थक विकास दर का औसत 2.0 प्रतिशत वार्षिक से अधिक नहीं हो पाया। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था में इस अवधि में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि दर लगभग गतिहीन सी बनी रही क्योंकि औसत वृद्धि दर इस अवधि में औसत रूप से आधा प्रतिशत भी हासिल नहीं कर सकी। यदि हम इस वृद्धि दर की तुलना राष्ट्रीय स्तर से करें तो यह राष्ट्रीय स्तर की उपलब्धि से बहुत पीछे थी। राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम तीन दशकों की अवधि में औसत वार्षिक वृद्धि दर 3.5 प्रतिशत तक सिमट कर रह गई। अतः राष्ट्रीय स्तर पर इस सुस्त वृद्धि दर को ‘हिन्दू वृद्धि दर’ की संज्ञा प्रदान की गई। ऐसे में प्रदेश में आर्थिक वृद्धि दर का राष्ट्रीय स्तर से और भी कम होना प्रदेश की गम्भीर आर्थिक स्थिति को बताती है।

पांचवी पंचवर्षीय योजना से प्रदेश में आर्थिक विकास की गति तीव्र हुई और यह वृद्धि दर 5.0 प्रतिशत वार्षिक से काफी आगे निकल गई। इसी अवधि में भारतीय अथव्यवस्था में भी आर्थिक विकास की प्रक्रिया तीव्र गति से आगे बढ़ने लगी। किन्तु उत्तर प्रदेश में यह ऊँची विकास की अवस्था अधिक समय तक टिक नहीं पथी। आठवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि से इसमें फिर से गिरावट की प्रवृत्ति आने लगी। और नवीं पंचवर्षीय योजना में यह 2.0 प्रतिशत वार्षिक तक ही रह गई जोकि प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि दर से नीचे थी। इसी वजह से नवीं पंचवर्षीय योजना में प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर ऋणात्मक हो गयी। जबकि दूसरी ओर भारतीय अर्थव्यवस्था में इसी दौरान मामूली उतार-चढ़ाव हुआ और फिर भी विकास की दर उच्च स्तर ही बनी रही। तथापि उत्तर प्रदेश में दसवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान विकास दर पुनः 5.0 प्रतिशत वार्षिक हो गई। इस सन्दर्भ में यह भी कहा जा सकता है कि वृद्धि दर बढ़ी तो जरूर है किन्तु इस वृद्धि दर का आधार कमजोर दिखता है। अतः उत्तर प्रदेश में विकास की प्रक्रिया उत्साहवर्द्धक नहीं रही है। यह भी कहा जा प्रदेश में वृद्धि दर सन्तोषजनक स्तर पर भी नहीं रही  है। इसके दो प्रमुख कारण हो सकते हैं। प्रथम उत्तर प्रदेश की विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में दो या तीन अवसरों को छोड़कर विकास की दर अब तक आशा से कम ही रही है। दूसरा कारण यह है कि विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान विकास दरों में व्यापक उतार चढ़ाव की स्थिति बनी रही है जो अर्थव्यवस्था में विश्वास की कमी को स्पष्ट करती है। प्रति व्यक्ति आय के सन्दर्भ में तो यह स्थिति और अधिक गम्भीरता के साथ लागू होती हैं,

किसी अर्थव्यवस्था या राज्य आय के तीन खण्ड या क्षेत्र होते हैं प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक। विकास की प्रारम्भिक अवस्था में प्राथमिक क्षेत्र (जिसमें कृषि एवं सम्बन्धित गतिविधियों को शामिल किया जाता है) की भूमिका सबसे अधिक होती है किन्तु एक विकासशील अर्थव्यवस्था को तीव्र विकास करने के लिए गैर कृषि क्षेत्रों (माध्यमिक क्षेत्र जिसमें कि औद्योगिक क्षेत्र को शामिल किया जाता है) और तृतीयक क्षेत्र (जिसे सेवा क्षेत्र भी कहते हैं और इसमें बैंकिंग, बीमा, संचार, यातायात, आदि को शामिल किया जाता है।) इन दोनों क्षेत्रों का तीव्रता से बढ़ना आवश्यक होता है।

प्रदेश में प्राथमिक क्षेत्र की वृद्धि दर पाँचवीं और छठी योजना को छोड़कर प्रायः हमेशा ही कम रही है। नवीं तथा दसवीं योजना में तो प्राथमिक क्षेत्र की वृद्धि दर जनसंख्या वृद्धि दर से भी कम रह गयी। इन्हीं दो योजनओं को अधिक प्रमुखता इसलिए दी जा रही है क्योंकि इन योजनाओं के पहले की योजनाओं की विकास दर इन दो योजनाओं से बेहतर थी। प्रथम चार योजनाओं में विकास दर अवश्य सबसे कम थी क्योंकि उस समय कृषि के लिए कोई विशेष रणनीति नहीं अपनाई गई थी।

औद्योगिक क्षेत्र की तुलना में काफी बेहतर विकास किया है किन्तु यह क्षेत्र भी कई तरह की कमजोरियों का शिकार था। आठवीं योजना में औद्योगिक क्षेत्र की विकास दर काफी कम हो गयी तथा नवीं योजना में भी इसमें निराशा ही हाथ लगी। नवीं योजना में ऐसा पहली बार हुआ कि औद्योगिक क्षेत्र की वृद्धि दर ऋणात्मक हो गयी तथा विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर अत्यधिक ऋणात्मक हो गयी। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रदेश में औद्योगिक क्षेत्र की विनिर्माण क्षेत्र से पर्याप्त सहयोग नहीं मिल पा रहा है क्योंकि विनिर्माण क्षेत्र तेजी से बढ़ा नहीं है। साथ ही तृतीयक या सेवा क्षेत्र में भी वृद्धि दर धीमी दर से बढ़ रही है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर इसमें तीव्र वृद्धि देखने को मिलती है। राष्ट्रीय स्तर पर सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था के विकास का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है और राष्ट्रीय आय में इसका भाग 50 प्रतिशत से भी काफी अधिक हो गया है जबकि उत्तर- प्रदेश में राज्य आय में इसका भाग अभी 46 प्रतिशत के आस-पास ही है। इस प्रकार क्षेत्रवार प्रगति देखने से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश की राज्य आय के सभी क्षेत्र कहीं न कहीं शिथिलता के शिकार बने हुए हैं। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि प्रदेश की आय को तीव्र गति से बढ़ाने के लिए सुदृढ़ रणनीति बनाई जाए जिससे राज्य के विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों को समुचित रूप से प्रोत्साहित किया जाए।

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Pankaja Singh

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