उसने कहा था कहानी की व्याख्या | चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी उसने कहा था
उसने कहा था कहानी की व्याख्या
- लड़की भाग गई। लड़के ने घर की राह ली। रास्ते में एक लड़के को मोरी में ढकेल दिया, एक छावड़ी वाले की दिनभर की कमाई खोयी, एक कुत्ते पर पत्थर मारा और एक गोभी वाले के ठेले में दूध उड़ेल दिया। सामने नहाकर आती हुई किसी वैष्णवी से टकराकर अन्धे की उपाधि पायी, तब कहीं पर पहुंचा।
शब्दार्थ- राह – रास्ता, मार्ग। मोरी – नाली। उपाधि पदवी
प्रसंग – प्रस्तुत गद्य- खण्ड चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ से लिया गया है। इस गद्य खण्ड में लेखक ने लड़के की उस दशा को प्रकट किया है, जब उसने अपनी आशा के विरुद्ध लड़की से यह उत्तर सुना कि मेरी कुड़माई हो गई।
व्याख्या – कल हो गई। देखते नहीं हो, यह रेशम का कढ़ा हुआ सालू, तो उसे खित्रता हुई रास्ते में जाते समय देखकर न चलने के कारण उसने एक लड़के नाली में ढकेल दिया, एक खोमचे वाले को धक्का देकर उसकी दिन-भर की कमाई नष्ट कर दी, एक कुत्ते को पत्थर मारा, स्नान करके आती हुई वैष्णव धर्म को मानने वाली एक स्त्री से टकराकर अन्धा होने की पदवी प्राप्त की। तब कहीं वह अपने मामा के घर पहुंचा। उसका चित चंचल हो गया। उसे अपने शरीर की सुधि-बुधि न रही।
विशेष- (1) लड़के की गतिविधि से स्पष्ट है कि लड़की की कुड़माई अर्थात् सगाई होना उसे बहुत बुरा लगा। (2) भाषा सरल सुबोध होने पर भी भाव प्रकट करने में समर्थ है।
- बड़े-बड़े शहरों के इक्के-गाड़ी वालों की जबान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गयी है और कान पक गये हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बोली का मरहम लगावें। जब बड़े-बड़े शहरों की चौड़ी सड़कों पर घोड़े की पीठ को चाबुक से धुनते हुए, इक्के वाले कभी घोड़े की नानी से अपना निकट सम्बन्ध स्थिर करते हैं, कभी राह चलते पैदलों की आँखों के न होने पर तरस खाते हैं, कभी उनके पैरों की अंगुलियों के पोरों को चीधकर अपने ही को सताया हुआ बताते हैं और संसार भर की ग्लानि, निराशा, क्षोभ के अवतार बने नाक की सीध चले जाते हैं, तब अमृतसर में उनकी बिरादरी वाले तंग चक्करदार गलियों में हर एक लड्डी वाले के लिए ठहरकर सब का समुद्र उमड़ाकर ‘बचो खालसाजी।’ ‘हटो माईजी!’, ‘ठहरना भाई’, ‘आने दो लालाजी’, हटो बाछा’ कहते हुए सफेद फेंटों, खच्चरों, बत्तकों और गन्ने, खोमचे और भारे वालों के लिए जंगल में से राह खेते हैं। क्या मजाल है, कि ‘जी’ और ‘साहब’ बिना सुने किसी को हटना पड़े। यह बात नहीं कि उनकी जीभ चलती ही नहीं है, पर मीठी छुरी की तरह महीन मार करती हुई।
प्रसंग – प्रस्तुत वतरण ‘उसने कहा था’ नामक कहानी से उद्धृत किया गया है। इसके रचित कहानी-साहित्य के प्रथम सफल लेखक चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ हैं। यहाँ पर कहानी के वातावरण को रेखांकित किया गया है।
व्याख्या – बड़े-बड़े नगरों में ताँगे, इक्के और गाड़ी चलाने वाले सड़कों पर जाते हुए पैदल यात्रियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते। वे अपने मुख से अनेक अपशब्दों का प्रयोग करते हैं। इनका यह व्यवहार सुनने वालों को असह्य हो उठता है। लेखक का कथन है कि जो इनकी शब्दावली को सुनकर ऊब चुके हैं, वे अमृतसर के तांगे-इक्के वालों की मीठी शब्दावली सुनें। बड़े- बड़े नगरों के इक्के-गाड़ी वाले राह चलते व्यक्तियों को कभी आँखे न होने का उपालम्भ देकर अंधा बताते हैं, कभी अपने घोड़े को बुरी-बुरी गालियाँ देते हैं। इस प्रकार हृदय में क्षुब्ध, क्रोधित और ग्लानि से पूर्ण होकर वे सीधे चले जाते हैं। उस समय अमृतसर में उनके साथी तांगे वाले बड़े धैर्य के साथ अपना कार्य करते हैं।
- एक किलकारी और अकाली सिक्खाँ दी फौज आई। वाहे गुरू दी की फतह, वाहे गुरू दा खालसा। सत श्री अकाल पुरुष। और लड़ाई खत्म हो गयी। तिरसठ जर्मन या तो खेत रहे थे या कराह रहे थे। सिक्खों में पन्द्रह के प्राण गये। सूबेदार के दाहिने कंधे में गोली आर-पार निकल गयी। लहना सिंह की पसली में गोली लगी। उसने घाव को खन्दक की गीली मिट्टी से पूर लिया और बाकी को साफा कसकर कमर बन्द की तरह लपेट लिया। किसी को खबर न हुई कि लहना को दूसरा घाव भारी घाव लगा है।
प्रसंग – यह गद्यांश भारतेन्दु युग के कहानीकार चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की प्रसिद्ध कहानी ‘उसने कहा था’ से लिया गया है। जर्मन गुप्तचर ने सिख सैनिको का लेफ्टिनेण्ट बनकर सूबेदार और अधिकांश सैनिकों को जर्मन खाई पर आक्रमण करने का आदेश देकर खाई से बाहर भेज दिया। लहना सिंह ने नकली लेफ्टीनेण्ट को पहचान कर वजीरा सिंह को चुपचाप भेज दिया था कि वह सूबेदार हजारा सिंह और उनके साथ गये सैनिकों को वापस ले आवे। इतने में सत्तर जर्मन सैनिक सिक्खों की खाई में घुस गये। लहना सिंह और उसके साथियों ने उन पर गोलियां बरसाईं। तभी सूबेदार हजारा सिंह अपने सैनिकों के साथ आ गये और उन्होंने जर्मन सैनिकों पर आक्रमण कर दिया। इसके बाद की घटना इस गद्यांश में है।
व्याख्या – सिक्ख सैनिकों ने हर्ष भरे स्वर में एक किलकारी मारी और कहा- “अकाली सिक्खों की सेना आ गयी है। आदरणीय गुरू गोविन्द सिंह की विजय हो। आदरणीय गुरूजी का अधिकार हो। श्री अकाल अर्थात् मृत्यु रहित पुरुष ब्रह्म की सत्ता रहे।” सिख सैनिकों के इस विजयनाद के साथ मुहिम समाप्त हो गया। सत्तर में से तिरसठ जर्मन सैनिक या मारे गये थे अथवा गंभीर रूप से घायल होकर कराह रहे थे। सिक्ख सैनिकों में से पन्द्रह मर गये थे। सूबेदार हजारा सिंह के कंधे में गोली लगी थी और आर-पार निकल गयी थी। एक गोली लहनासिंह की पसली में लगी थी। लहना सिंह ने अपनी पसली का घाव खाई की गीली मिट्टी से भर लिया था। इस बात का पता किसी को नहीं चल सका था कि लहना सिंह को जो दूसरा घाव भी लगा है वह भारी है।
विशेष-(1) सिक्खों की लड़ाकू प्रकृति और गुरु गोविन्द सिंह पर दृढ़ विश्वास का पता चलता है। लहना के धैर्य पर प्रकाश पड़ता है कि जांघ में गोली लगने के बाद उसने पसली में लगी गोली के भारी घाव का किसी को पता नहीं चलने दिया।
(2) भाषा सरल, सहज खड़ी बोली है, जिसे सिक्खों का नारा, अवसर और पात्रों के अनुकूल बना रहा है। शैली वर्णनात्मक है।
- लड़ाई के समय चाँद निकल आया था। ऐसा चाँद, जिसके प्रकाश से संस्कृत कवियों का दिया हुआ ‘क्षयी’ नाम सार्थक होता है और हवा ऐसी चल रही थी, जैसी बाणभट्ट की भाषा में ‘दन्त वीणोपदेशाचार्य’ कहलाती है। वजीरासिंह कह रहा था कि कैसे मन-मन भर फ्रांस की भूमि मेरे बूटों से चिपक रही थी, जब मैं दौड़ा-दौड़ा सूबेदार के पीछे गया था। सूबेदार लहनासिंह से सारा हाल सुन और कागजात पाकर उसकी तुरन्त बुद्धि को सराह रहे थे और कह रहे थे कि तू न होता तो आज सब मारे जाते।
प्रसंग – यह गद्यांश भारतेन्दु युग के कुशल कहानीकार पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की प्रसिद्ध कहानी ‘उसने कहा था’ से लिया गया है। जर्मन गुप्तचर की योजना के अनुसार अकाली सिक्खों की खाई पर सत्तर जर्मन सैनिकों ने धावा बोला, आगे से खाई में नियुक्त सिक्ख सैनिकों और पीछे से सूबेदार हजारासिंह के सैनिकों ने तिरसठ जर्मन सैनिकों को मार डाला। इसके बाद के वातावरण और गतिविधि का वर्णन इस गद्यांश में है।
व्याख्या – जिस समय जर्मन सैनिकों और सिक्ख सैनिकों के बीच युद्ध हो रहा था, उस समय आकाश में चन्द्रमा निकल आया था। वह चन्द्रमा ऐसा था, जिसके प्रकाश के कारण संस्कृत के कवियों द्वारा दिया हुआ क्षयी नाम अर्थ वाला होता था। क्षयी शब्द का अर्थ है-क्षय अर्थात् टी.बी. के रोग वाला। जिस प्रकार टी.बी. के रोग वाले मनुष्य के शरीर का तेज समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार लड़ाई के समय निकले चन्द्रमा का प्रकाश धीमा और कम जान पड़ता था कि चन्द्रमा का प्रकाश बहुत मन्द है। उस समय अधिक ठंडी हवा चल रही थी। संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध गद्यकार बाणभट्ट की भाषा इस हवा को दाँतों रूपी वीणा का उपदेश देने वाला आचार्य कहा जा सकता था। तात्पर्य यह है कि इस समय ऐसी ठंडी हवा चल रही थी जो दांतों को इस प्रकार कम्पित कर रही थी, जैसे कोई आचार्य वीणा बजाना सिखाता है। जो सैनिक सूबेदार हजारासिंह को लौटा लाने के लिए चुपचाप खाई से निकलकर भागा, वह कह रहा था कि जब वह सूबेदार हजारासिंह के पीछे गया था तो एक-एक मन फ्रांस की गीली मिट्टी उसके बूटों से लिपट गयी थी। सूबेदार हजारासिंह ने लहना सिंह से पूरा हाल सुन लिया था और जान लिया था। सूबेदार ने वे कागज प्राप्त कर लिये थे, जिन्हें लहनासिंह ने जर्मन गुप्तचर से प्राप्त किया था। वे लहनासिंह की तुरन्त निश्चय करने वाली बुद्धि की प्रशंसा कर रहे थे और कह रहे थे कि अगर आज लहनासिंह न होता तो हम सभी मारे गये होते। जो लोग बचे हैं, वे लहनासिंह के कारण बचे हैं।
विशेष- (1) चन्द्रमा और शीतल पवन का चित्रात्मक वर्णन है। लहनासिंह की तुरन्त निश्चय करने वाली बुद्धि की प्रशंसा की गयी है। (2) भाषा प्रारम्भिक दो वाक्यों की संस्कृत तत्सम प्रधान और शेष की सरल व्यावहारिक खड़ी बोली है। शैली वर्णनात्मक है।
- मृत्यु के कुछ समय पहले……. हट जाती है।
सन्दर्भ- पूर्ववत् ।
प्रसंग – लहना लेटा है। खून चारों ओर बह रहा है। उसने अपना कमरबन्द खोल दिया है। वजीरा से पानी मांग रहा है और अचेतावस्था में अपने समस्त सपनों को देखता है। स्वप्नों के उसी प्रारूप को यहाँ पर विस्तार प्राप्त है।
व्याख्या – कहा जाता है कि मृत्यु के कुछ समय पहले व्यक्ति की स्मरण शक्ति अत्यधिक साफ हो जाती है। मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त की समस्त घटनाएं क्रमशः उसके स्मृति पटल पर आती रहती हैं। ऐसी-ऐसी छोटी से बड़ी घटनाएँ उसे याद आने लगती हैं जो उसक जीवन में कभी याद नहीं आयीं। साफ-सुथरे हृदय पर तमाम घटनाओं के विविध रंग स्वतः ही चढ़ जाया करते हैं। मृतप्राय व्यक्ति उन समस्त घटनाओं को एक बार पुनः याद करने लगता है। समय रूपी धुन्ध समाप्त हो जाती है। कहने का तात्पर्य यह है कि अरसे से घटित घटनाओं का कुछ भी अता-पता नहीं रहता है। ये इतने पहले घटित होती हैं कि धुन्ध में पड़ जाती हैं। बड़ी ही अस्पष्ट हो जाती है और थोड़ा भी जोर देने पर भी याद नहीं आतीं। लेकिन मरने के कुछ समय पूर्व ऐसी स्थिति नहीं रहती। धुंधली से धुंधली याद्दाश्त की तस्वीर भी बड़ी साफ नजर आने लगती है।
- तुम्हें बोधा की कलम.……..तर हो रहा है
सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्य खण्ड गुलेरी जी की कहानी ‘उसने कहा था’ से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में उस समय का चित्र अंकित किया गया है जब सूबेदार के कन्धे से गोली निकल गयी और लहना सिंह बोधा तथा सूबेदार को गाड़ी पर भेजना चाहता था।
व्याख्या – सूबेदार लहना को छोड़कर गाड़ी पर जा नहीं रहे थे इस पर लहनासिंह कहता है- सूबेदार तुम्हें बोधा की कसम है और सूबेदारिनी की कसम तुम इस गाड़ी से जाकर अपना इलाज करवा लो और ठीक हो जाओ। इस पर सूबेदार लहनासिंह से जाने के बारे में पूछता है कि तुम क्यों नहीं चलते। इस बात पर वह कहता है कि तुम वहाँ पहुँच कर मेरे लिए गाड़ी भिजवा देना और वैसे भी जर्मन मुर्दो के लिए गाड़ी आती ही होगी। अपने लिए वह कहता है मेरा हाल बुरा नहीं है। लहना विश्वास दिलाने के लिए कहता है कि देखिए मैं आपके सामने खड़ा हूँ और वजीरा भी तो मेरे साथ ही है।
सूबेदार लहनासिंह की बात मान जाते हैं और बोधा को गाड़ी पर लिटा दिया। इस पर लहना ने सूबेदार को भी गाड़ी पर चढ़ जाने के लिए कहा। सूबेदार की गाड़ी चलते-चलते लहना से रहा नहीं गया और बोला सुनिये सूबेदारिनी हीरा को चिट्ठी लिखी तो मेरा मत्था टेकना लिख देना और जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो उन्होंने कहा वह मैंने कर दिया।
गाड़ियाँ चल पड़ीं। गाड़ी चलते ही सूबेदार ने लहना का हाथ पकड़ कर कहा लहना तूने मेरे और बोध के प्राण बचाये हैं और तुम लिखने की बात कर रहे हो – यह लिखना कैसा। मैं तुम्हारे साथ ही घर चलूंगा। अपनी सूबेदारिनी से तू ही सब कुछ बताना कि उसने क्या कहा था? इसके बाद लहनासिंह पुनः संकेत करता है कि आप गाड़ी पर चढ़ जाइये और जल्दी से जाकर अपना इलाज कराओ। मैंने जो कहा है उसे लिख देना और मेरी ओर से कह देना। इसी के बाद गाड़ी चल देती है और लहना वहीं लेट जाता है और फिर बोला वजीरा पानी पिला दे कमरबन्द खोल दे तर हो रहा है। अर्थात् उसके पसली के घाव का खून और फैल चुका है। उसमें अब उठने का साहस नहीं है। उसके समस्त बन्धन को ढीला कर दो और पानी दे दो- इसके बाद वह सदा के लिए मृत्यु की गोदी में सो गया।
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