उन्नीसवीं शताब्दी का धार्मिक पुनर्जागरण | religious renaissance of the nineteenth century in Hindi
उन्नीसवीं शताब्दी का धार्मिक पुनर्जागरण
उन्नीसवीं शताब्दी ई० के धार्मिक पुनर्जागरण द्वारा जिन परिस्थितियों,समस्याओं अन्धविश्वासों तथा कुरीतियों आदि को स्थानापन्न करके, नबीन मान्यताओं तथा सुधारों की स्थापना की गई उनके परिणामस्वरूप भारतीय संस्कृति की केवल रक्षा ही नहीं हुई, अपितु उसको नवजीवन तथा निरन्तरता की भी प्राप्ति हुई। पुनर्जागरण के फलस्वरूप जिन परिणामों की प्राप्ति हुई, उनका विवेचनात्मक विश्लेषण निम्नलिखित रूप से किया जा सकता है।
(1) नवीन जागृति-
पुरातन धार्मिक मान्यताओं के अनुयायियों ने नवीन परिस्थितियों के अनुरूप तथा आधुनिकीकरण के सन्दर्भ में गुरुकुलों के समान ऋषिकुलों की स्थापना की तथा वेदों, उपनिषदों, संहिताओं तथा पुराण आदि के अनुरूप पठन-पाठ की पद्धति का नवीनीकरण किया। ब्रह्म समाज, आर्य समाज, प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन आदि ने नवीन विचारों को जन्म दिया तथा इन विचारों की प्रतिष्ठापना एवं प्रतिपादन द्वारा भारतीय संस्कृति को पुनरुज्जीवन प्राप्त हुआ।
(2) जनसाधारण में नवीन उत्साह का संचार-
तथागत की प्रचार पद्धति के अनुरूप उनीसवीं शताब्दी के धार्मिक आन्दोलनकारियों ने तर्क द्वारा अपने मत का पक्षपोषण किया। इस पद्धति का अनुसरण करते हुए, अनेक आन्दोलनकारियो ने शास्त्रार्थ, व्याख्यानों, सम्मेलनों तथा प्रचार यात्रा आदि के माध्यम से अपना सन्देश जनसाधारण में पहुँचा कर, उनमें सत्यासत्य के विवेचन तथा विश्लेषण की शक्ति उत्पन्न की। अनेक आर्य समाजी तथा सनातनी भजन, कीर्तन, शास्त्रार्थ आदि के माध्यम द्वारा अशिक्षित एवं जनसाधारण वर्ग को धर्म एवं सुधार के तत्वों से अवगत कराने में पूर्ण सफल हुए।
(3) जनकल्याणकारी संस्थाओं का जन्म-
पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप अनेक जनकल्याणकारी संस्थाओं की स्थापना की गई। जनसाधारण को अपनी ओर आकृष्ट करने के लिये चिकित्सालय, अनाथाश्रम, विधवाश्रम, शिक्षण संस्थाएं तथा धार्मिक संस्थाएं आदि द्वारा जनहितकारी कार्य किये जाने लगे। ‘सर्वेण्ट्स आफ इण्डिया सोसाइटी’, ‘सर्वेण्ट्स आफ पीपुल्स सोसाइटी’ आदि संस्थाओं द्वारा देश सेवा की भावना का विस्तार किया गया।
(4) धार्मिक तथा सामाजिक नैतिकता की प्रतिष्ठापना-
पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप जनसाधारण में धार्मिक तथा सामाजिक नैतिकता की वृद्धि हुई। सती प्रथा, शिशु हत्या, दहेज प्रथा, बाल-विवाह, अन्धविश्वासों तथा कुरीतियों को असामाजिक घोषित कर दिये जाने के कारण लोगों में सामाजिक चेतना आ गई।
निष्कर्ष
धार्मिक पुनर्जागरण के परिणामों के उपरोक्त विवेचनात्मक विश्लेषण द्वारा हमें इस निष्कर्ष की प्राप्ति होती है कि अपनी अनेकानेक उपलब्धियों द्वारा पुनर्जागरण ने भारतीय संस्कृति को अद्भुत स्फूर्ति तथा चेतना प्रदान की। धार्मिक पुनर्जागरण के फलस्वरूप राष्ट्रीय चेतना, देशप्रेम की भावना तथा विदेशी आधिपत्य से मुक्ति पाने के संकल्प का दृढ़ीकरण हुआ।
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