शिक्षाशास्त्र

उच्च शिक्षा में चुनाव तथा प्रवेश की समस्या | Problem of Selection and Admission in Higher Education in Hindi

उच्च शिक्षा में चुनाव तथा प्रवेश की समस्या | Problem of Selection and Admission in Higher Education in Hindi

उच्च शिक्षा में चुनाव तथा प्रवेश की समस्या

(The Problem of Selection and Admission in Higher Education)

उच्च शिक्षा में चुनाव और प्रवेश की समस्या दिनों-दिन विकराल होती जा रही है। एक ओर शिक्षा के अधिकार को भौतिक अधिकारों में सम्मिलित किये जाने की बात हो रही है तो दूसरी ओर शिक्षण शुल्क में बढ़ोत्तरी और शिक्षा में प्रवेश के लिये चुनाव और प्रवेश परीक्षा की माँग बढ़ रही है। जहाँ तक उच्च शिक्षा या विश्वविद्यालय शिक्षा का प्रश्न है, इसके लिए पूर्व आयोगों ने कुछ दिशा निर्देश दिये हैं। डॉ. राधाकृष्णन कमीशन ने शिक्षण विश्वविद्यालयों की कला तथा विज्ञान कक्षाओं में 3000 और सम्बद्ध कॉलेजों में 1500 से अधिक छात्र न भरी किये जाने की सिफारिश की है और कहा है कि 18 वर्ष से कम आयु के छात्रों को विश्वविद्यालय में प्रवेश न दिया जाये । कोठारी आयोग ने प्रवेश के सम्बन्ध में सिफारिश की है कि (1) उच्च शिक्षा में प्रवेश विद्यार्थी की योग्यता, प्रवेश स्थान तथा प्राध्यापकों की संख्या के आधार पर दिया जाये, (2) प्रत्येक विश्वविद्यालय इस समस्या के लिए विश्वविद्यालय प्रवेश समिति स्थापित करे, (3) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग प्रवेश की उचित कसौटियों का प्रतिपादन करें।

चुनाव और प्रवेश की समस्या उत्पन्न होने के कई कारण हैं जिन पर विचार करना आवश्यक है-

(1) जनसंख्या वृद्धि (Increase in Population)-

भारतीय जनसंख्या की वृद्धि अन्य देशों की अपेक्षा तीव्रतर है। आज इसकी वार्षिक वृद्धि गति 2.5 प्रतिशत है जबकि स्वतंत्रता के पूर्व यह गति केवल 1.4 प्रतिशत थी। 1951 में भारत की जनसंख्या 36 करोड़ थी,जो 1991 में बढ़कर 84 करोड़ हो गयी और इस शताब्दी के अन्त तक यह एक अरब होने वाली है। जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश लेने वाली जनसंख्या में वृद्धि होना स्वाभाविक है।

(2) विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालयों की संख्या में कमी (Less number of Universities and Colleges)-

जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में प्रयत्न पूर्वक विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिए थी परन्तु स्वतंत्रता के बाद इस पर उतना ध्यान नहीं दिया गया। वैसे विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों की संख्या में वृद्धि हुई है परन्तु जनसंख्या के अनुपात में अपेक्षित वृद्धि नहीं की गयी है।

(3) उच्च शिक्षा में बढ़ती हुई रुचि (Increasing Interest in Higher Education)-

स्वाधीनता के बाद शिक्षा में आम जनता की रुचि बढ़ी है। प्रत्येक अभिभावक अपनी सन्तानों को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए प्रयत्नशील है तथा किशोर युवक भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर अपना भविष्य सुधारने के लिए प्रयास करना चाहते हैं। इस तरह वो तथा अभिभावकों दोनों में सच्च शिक्षा प्राप्त करने के प्रति रूचि जाग्रत हुई है जिसके कारण उच्च शिक्षा केन्द्रों में प्रवेश के लिये गोड लगने लगी है।

(4) आय में वृद्धि (Increase in Income)-

वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास के कारण मध्यम वर्गीय समाज की आय में वृभिर हुई है जिसके कारण वे अपने बच्चों पर पैसा खर्च कर सकने की स्थिति में हैं। अत: अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने के लिये अधिक प्रयत्नशील हुये हैं जिस कारण उच्च शिक्षा केन्द्रों पर भीड़ बढ़ रही है।

इन तथा इसी तरह के और कारणों से उच्च शिक्षा में भीड़ बढ़ रही है जिससे शिक्षक विद्यार्थी अनुपात दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है तथा विद्यार्थियों की संख्या में वृद्धि के कारण सुविधाओं में कमी होती जा रही है। अध्यापकों तथा विद्यार्थियों के बीच का सम्पर्क का हो रहा है और शिक्षा से अपेक्षित परिणाम की प्राप्ति नहीं हो पा रही है। अतः प्रश्न उठता है कि उच्च शिक्षा में प्रवेश हेतु चयन की प्रक्रिया क्या हो? किसे प्रवेश दिया जाये ? तथा प्रवेश हेतु बढ़ती हुई भीड़ के लिये क्या व्यवस्था की जाये। इसके लिये कुछ व्यवस्था निम्न प्रकार की जा सकती हैं-

(i) इण्टर परीक्षा उत्तीर्ण सभी छात्रों को उच्च शिक्षा हेतु अधिकारी न माना जाये। इसके लिए योग्यता और रुचि के आधार पर परीक्षा लेकर उनका चयन किया जाये।

(ii) प्रत्येक कक्षा में प्रवेश की अधिकतम सीमा निर्धारित कर दी जाये।

(iii) अध्यापक विद्यार्थी अनुपात निश्चित कर दिया जाय तथा इसका कड़ाई से पालन किया जाये।

(iv) छोटी तथा मध्यम कोटि की सेवाओं के लिए विश्वविद्यालय की डिपी आवश्यक न मानी जाये।

(v) खुले विश्वविद्यालय की शाखाएँ बढ़ाकर केवल योग्यता वृद्धि हेतु उच्च शिक्षा के इच्छुक छात्रों को उनमें प्रवेश दिया जाये।

(vi) प्रवेश प्रक्रिया को लम्बा न चलाया जाये।

(vii) प्रवेश परीक्षाओं की विश्वसनीयता को प्रत्येक स्थिति में कायम रखा जाये। इसमें किसी दबाव या अनुचित साधन की सम्भावना न हो।

(viii) निर्धारित नियमों का उल्लंघन करने वाली संस्थाओं तथा व्यक्तियों को दण्डित करने की व्यवस्था हो ।

अन्त में शिक्षा सलाहकार बोर्ड का मत उल्लेखनीय है कि “उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी को अधिकतर इस बात को देखकर निर्णय करना चाहिए कि उसमें उच्च शिक्षा पाने की प्रतिभा है या नहीं, और वह उससे लाभान्वित होगा या नहीं।”

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Pankaja Singh

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