उच्च शिक्षा के उद्देश्य | उच्च शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व
भारत में उच्च शिक्षा के उद्देश्य
(Objectives of Higher Education in India)
भारत में विभिन्न स्तरों की शिक्षा के उद्देश्य निश्चित करने का कार्य सर्वप्रथम वुड के घोषणा पत्र (1854) में किया गया। इसके बाद भारत में जो भी शिक्षा आयोग गठित हुए सभी ने विभिन्न स्तरों की शिक्षा के उद्देश्य स्पष्ट करने का कार्य जारी रखा। 1948 में भारत सरकार ने राधाकृष्णन आयोग का गठन किया। इसने उच्च शिक्षा के जो उद्देश्य निश्चित किए उन्हें निम्नलिखित रूप में क्रमबद्ध किया जा सकता है-
(1) व्यक्तियों के आनुवांशिक गुणों को ज्ञात कर उनका विकास करना।
(2) ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करना जो दूरदर्शी, बुद्धिमान और बौद्धिक दृष्टि से श्रेष्ठ हों और समाज सुधार के कार्यों में सहयोग दे सकें।
(3) ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करना जो शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ एवं मानसिक दृष्टि से प्रबुद्ध हों।
(4) ऐसे विवेकशील नागरिक तैयार करना जो प्रजातन्त्र को सफल बनाने के लिए शिक्षा का प्रसार करें, ज्ञान की सदैव खोज करें, व्यवसाय का प्रबन्ध करें और देश में भौतिक अभावों की पूर्ति करें।
(5) विद्यार्थियों का चरित्र निर्माण करना।
(6) ऐसे नवयुवकों का निर्माण करना जो अपनी सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करें, उसमें योगदान दें।
(7) ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करना जो राजनीति, प्रशासन, व्यवसाय, उद्योग और वाणिज्य के क्षेत्र में नेतृत्व कर सकें।
(8) विद्यार्थियों में राष्ट्रीय अनुशासन की भावना का विकास करना।
(9) विद्यार्थियों का आध्यात्मिक विकास करना।
(10) विद्यार्थियों में प्रजातान्त्रिक मूल्यों समानता, स्वतन्त्रता, भ्रातृत्व और न्याय का संरक्षण एवं संवर्द्धन करना।
(11) विद्यार्थियों में विश्वबन्धुत्व और अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव का विकास करना ।
इसके बाद कोठारी आयोग (1964-66) ने उसके द्वारा प्रतिपादित उद्देश्यों को अपेक्षाकृत कुछ संक्षिप्त रूप में व्यक्त किया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में उच्च शिक्षा के उद्देश्यों के विषय में कहा गया है कि उच्चशिक्षा उच्च ज्ञान की प्राप्ति और नवीन ज्ञान की खोज, राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों के लिए विशेषज्ञों की तैयारी, युवकों में विस्तृत दृष्टिकोण के विकास और राष्ट्र के बहुमुखी विकास का साधन है। आज भारत में उच्च शिक्षा के ये ही उद्देश्य हैं। इन उद्देश्यों को हम निम्नलिखित रूप में क्रमबद्ध कर सकते हैं-
(1) राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों के लिए विशेषज्ञों-प्रशासक, संगठनकर्ता,डॉक्टर, वकील,वैज्ञानिक, इंजीनियर और तकनीशियन आदि का निर्माण करना।
(2) युवकों में विस्तृत दृष्टिकोण- सामाजिक समानता, सांस्कृतिक एवं धार्मिक सहिष्णुता और अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध का विकास करना।
(3) युवकों को उच्च ज्ञान की प्राप्ति कराना और उन्हें नए ज्ञान की खोज करने और सत्य की पहचान करने योग्य बनाना।
(4) युवकों को राष्ट्र के बहुमुखी विकास के लिए तैयार करना ।
(5) युवकों में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने की कुशलता और नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता का विकास करना।
उच्च शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व
(Need and Importance of Higher Education)
उच्च शिक्षा के इस महत्त्व को हम निम्नलिखित रूप में देख-समझ सकते हैं-
(1) युवकों में विस्तृत दृष्टिकोण का विकास-
सामान्य शिक्षा मनुष्य को सामान्य ज्ञान कराती है, उच्च शिक्षा युवकों को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के विषयों का ज्ञान कराती है और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का ज्ञान कराती है। जितना विस्तृत ज्ञान, उतना विस्तृत दृष्टिकोण । उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति संकुचित क्षेत्र से निकलकर विस्तृत क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, संकीर्णता से निकलकर सहिष्णुता के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, उनमें सामाजिक समानता, सांस्कृतिक एवं धार्मिक सहिष्णुता और अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध का विकास होता है। आज के अन्तर्राष्ट्रीय युग में तो उच्च शिक्षा का और भी अधिक महत्त्व है, उसकी और भी अधिक आवश्यकता है।
(2) विशेषज्ञों का निर्माण-
उच्च शिक्षा द्वारा जीवन के विभिन्न क्षेत्रों-धर्म,दर्शन,ज्ञान,विज्ञान, इंजीनियरिंग, मेडिकल, विधि, अध्यापन, संगठन और प्रशासन आदि के लिए विशेषज्ञ तैयार किए जाते हैं, उच्चतम श्रेणी के मानव संसाधन तैयार किए जाते हैं, उच्च शिक्षा के अभाव में यह सब सम्भव नहीं है। इस दृष्टि से भी उच्च शिक्षा का बड़ा महत्त्व है, उसकी बड़ी आवश्यकता है।
(3) राष्ट्र का बहुमुखी विकास-
किसी भी राष्ट्र के किसी भी क्षेत्र में विकास करने के लिए दो मूलभूत साधनों की आवश्यकता होती है-प्राकृतिक संसाधन और मानव संसाधन । उच्च शिक्षा उच्च स्तर के मानव संसाधनों का निर्माण करती है। यह देखा गया है कि जिस राष्ट्र में उच्चस्तरीय मानव संसाधन की जितनी अधिक उपलब्धता होती है, वह उतनी ही अधिक तेजी से विकास करता है। किसी राष्ट्र के किसी भी क्षेत्र में विकास के लिए उच्च स्तर के मानव संसाधन की आवश्यकता होती है। राष्ट्र का आर्थिक विकास तो औद्योगीकरण पर ही निर्भर करता है और औद्योगिकरण निर्भर करता है वैज्ञानिक एवं तकनीशियनों पर, इंजीनियर और प्रशासकों पर, और इनका निर्माण किया जाता है उच्च शिक्षा द्वारा । इस प्रकार उच्च शिक्षा किसी भी राष्ट्र के बहुमुखी विकास का साधन होती है। यही कारण है कि राष्ट्रीय जीवन में इसका बड़ा महत्त्व होता है, इसकी बड़ी आवश्यकता होती है।
(4) उच्च ज्ञान की प्राप्ति, नए ज्ञान की खोज और सत्य की पहचान-
उच्च शिक्षा में युवकों को मानविकी, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान और अन्य क्षेत्रों का उच्च ज्ञान कराया जाता है और उन्हें नए ज्ञान की खोज और वास्तविक तथ्यों का पता लगाने के अवसर दिए जाते हैं। इसके द्वारा युवकों को ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में नए-नए आविष्कार करने योग्य बनाया जाता है । इस दृष्टि से उच्च शिक्षा का बड़ा महत्त्व है,उसकी बड़ी आवश्यकता है।
(5) कार्य कुशलता और नेतृत्व शक्ति का विकास-
उच्च शिक्षा द्वारा युवकों को अपनी रुचि, रुझान, योग्यता और क्षमता के अनुसार किसी कार्य को कुशलतापूर्वक करने योग्य बनाया जाता है। उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति ही प्राय: जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान करते हैं। इस दृष्टि से भी उच्च शिक्षा का बड़ा महत्त्व है उसकी बड़ी आवश्यकता है।
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