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यू. जी. सी. की स्थापना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि | यू. जी. सी. की स्थापना एवं संगठन | यू. जी. सी. की वर्तमान संरचना

यू. जी. सी. की स्थापना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि | यू. जी. सी. की स्थापना एवं संगठन | यू. जी. सी. की वर्तमान संरचना | Historical Background of the Establishment of U. G. C. in Hindi | Present Structure of U.GC. in Hindi

यू. जी. सी. की स्थापना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

(Historical Background of the Establishment of U. G. C.)

सर्वप्रथम सन् 1919 में कलकत्ता विश्वविद्याल आयोग ने एक सिफारिश में अन्तर्विश्वविद्यालय परिषद गठित करने को कहा है। यह परिषद, विविध विश्वविद्यालयों को समझने-समझाने में मदद करे। इंग्लैण्ड की परम्पराओं के अन्तर्गत विश्वविद्यालय अपने पाठ्यक्रम, परीक्षा व प्रशासन के सम्बन्ध में पूर्व स्वायत्त संस्था होती है। प्रथम कुलपति सम्मेलन का आयोजन सन् 1924 में शिमला में हुआ इस सम्मेलन में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि अन्तर्विधविद्यालय परिषद् को गठित किया जाये। परिषद् ने आशानुरूप विश्वविद्यालयों में आपसी समन्वय एवं सहयोग स्थापित करने के साथ ही साथ सरकार एवं विश्वविद्यालयों को सलाह देने का कार्य किया। डॉ. अमरनाथ झा ने सन् 1936 में बैठक में यूनीवर्सिटी ग्रांट कमेटी को पृथक-पृथक राज्यों के लिए गठित करने को कहा किन्तु विभिन्न कारणवश इसका गठन न किया जा सका। सन् 1944 में सार्जेण्ट योजना की सलाह पर सन् 1945 में भारत सरकार ने इसका गठन किया। स्वतंत्रता के पश्चात् सन् 1953 में इसका नाम परिवर्तित करके विश्वविद्यालय अनुदान आयोग कर दिया गया।

सन् 1956 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को संसद के अधिनियम द्वार कानूनी जामा पहनाया गया । इसमें एक चेयरमैन व सचिव के अलावा 9 सदस्य होते हैं। इन सदस्यों में दो केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि, तीन विश्वविद्यालयों के कुलपति तथा चार प्रसिद्ध शिक्षाविद् होते हैं। इस सम्बन्ध में कोठारी आयोग का कथन है कि “सम्पूर्ण उच्चतर शिक्षा को एक ही अभिन्न इकाई माना जाना चाहिए तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को अन्ततः उच्चतर शिक्षा का सर्वागीण प्रतिनिधित्व करना चाहिए।” इसके प्रधान चेयरमैन डॉ. डी. देशमुख थे। दूसरे डॉ. डी. एस. कोठारी थें वर्तमान में डॉ. हरिगौतम इसके चेयरमैन हैं।

यू. जी. सी. की स्थापना एवं संगठन-

यह भारत शासन की एक स्वायत्तशासी संस्था (Autonomous body) हैं जो विश्वविद्यालयीय शिक्षा के उन्नयन तथा समायोजन और उसके शिक्षण, परीक्षण तथा शोध के मापदण्डों का निश्चयन एवं संरक्षण करती है।

सन् 1945 ई. में सरकार ने 4 सदस्यों की एक विश्वविद्यालय अनुदान समिति’ (University Grants Committee) की नियुक्ति इस दृष्टिकोण से की थी कि यह समिति केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को अनुदान देने के सम्बन्ध में परामर्श दे सके। इस समय इस समिति का अध्यक्ष (Chairman) अंशकालीन अवैतनिक व्यक्ति होता था।

सन् 1949 ई. में राधाकृष्णन् आयोग के सुझावानुसार इस समिति का सम्बन्ध अन्य विश्वविद्यालयों से भी कर दिया गया और इसे अधिकार दिया गया कि यह केवल वित्त मंत्रालय (Finance ministry) को विश्वविद्यालयों के लिये अनुदान देने की संस्तुति ही न करे वरन्  विश्वविद्यालयों के लिए धनराशि भी नियत करे। इस प्रकार इस समिति का क्षेत्र अधिक व्यापक हो गया।

सन् 1953 ई. में भारत सरकार ने सरकारी प्रस्ताव द्वारा इस विश्वविद्यालय अनुदान समिति’ को ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’, (University Grants Commission) का नाम दिया। इसका अध्यक्ष पूर्णकालीन वैतनिक रखा गया। अध्यक्ष की सहयतार्थ एक सचिव नियुक्त किया गया और अन्य 8 सदस्य नियुक्त किये गये।

यू. जी. सी. की वर्तमान संरचना

(Present Structure of U.GC.)

सन् 1956 ई. में भारत सरकार ने एक विधेयक पास करके इसको संवैधानिक रूप दे दिया। इसके अध्यक्ष सहित 9 सदस्य होते हैं। इन सभी सदस्यों की नियुक्ति भारत सरकार ही करती है, जो इस प्रकार है-

  1. एक अध्यक्ष
  2. तीन विश्वविद्यालय के कुलपति
  3. दो केन्द्रीय सरकार के अधिकारी
  4. शेष शिक्षाविद

इसका प्रधान कार्यालय नई दिल्ली में है, जिसको संभालने के लिए-

  1. एक सचिव
  2. दो संयुक्त सचिव
  3. दो संयुक्त सचिव
  4. चार विकास अधिकारी
  5. अन्य अधिकारी

जनवरी और जून को छोड़कर प्रत्येक माह के पहले बुधवार को आयोग की बैठक होता है।

कालान्तर में 1956 के उपर्युक्त अधिनियम में 1972 में कुछ संशोधन किये गये। वर्तमान एवं आयोग की संरचना सन् 1972 के संशोधित अधिनियम पर ही आधारित है। इस प्रकार अब सन् 1972 के अधिनियम के अनुरूप आयोग का एक अध्यक्ष एवं एक उपाध्यक्ष तथा दस सदस्य होते हैं। इसका अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होता है जो राज्य या केन्द्र सरकार में अधिकारी न हो। अध्यक्ष का कार्यकाल 5 साल का होता है तथा उपाध्यक्ष तथा सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्ष निश्चित किया गया है। सभी नियुक्तियाँ केन्द्र सरकार के द्वारा ही की जाती है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सदस्यों के मध्य आयोग के कार्यों का कोई विभाजन नहीं किया गया है। अध्यक्ष केवल आयोग की बैठकों में सम्मिलित होकर विचारार्थ प्रस्तुत विषयों पर सामूहिक रूप से निर्णय लेते हैं। इस प्रकार सदस्यों की स्थिति पूर्णकालिक नहीं होती है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की संरचना में सुधार हेतु सन् 1974 में गाठित पुनर्वेक्षण समिति ने 1977 में अपने प्रतिवेदन में सुझाव दिया कि आयोग के सदस्यों की संख्या 12 से बढ़ाकर 18 कर दी जाए। समिति ने 6 अतिरिक्त सदस्यों की भी सिफारिश की थी। यह सदस्य निम्नानुसार होंगे-

  1. दो सदस्य महाविद्यालयों के प्राध्यापकों में से जिनमें प्राचार्य भी सम्मिलित हैं/ हों, उनमें से एक महिला महाविद्यालय हो,
  2. एक सदस्य माध्यमिक शिक्षा क्षेत्र से हो,
  3. एक सदस्य औपचारिकेतर शिक्षा का विशेषज्ञ हो,
  4. एक ग्रामीण उच्च शिक्षा का विशेषज्ञ हो,
  5. योजना आयोग का सचिव इस आयोग का पदेन सदस्य हो।

इस समिति ने आयोग के कार्यों को दो भागों में विभाजित करने की सिफारेश की है- 1. शैक्षिक आयोजन और नीति प्रभाग एवं 2. प्रशासन एवं अनुदान प्रभाग। यद्यपि सरकार ने इन सिफारिशों पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है।

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Pankaja Singh

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