स्विट्जरलैण्ड में व्यवस्थापिका | स्विट्जरलैण्ड में व्यवस्थापिका की शक्तियाँ और कार्य
स्विट्जरलैण्ड में व्यवस्थापिका
स्विट्जरलैण्ड की व्यवस्थापिका को संघीय सभा कहते हैं। यह द्विसदनात्मक है। इसके एक सदन को राष्ट्रीय परिषद् और दूसरे को राज्य परिषद कहा जाता है।
राष्ट्रीय परिषद्
रचना- स्वीटजरलैंड में राष्ट्रीय परिषद् और राज्य परिषद् दोनों का संगठन अलग-अलग ढंग से होता है। राष्ट्रीय परिषद् की रचना स्विट्जरलैण्ड की जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों से होती है। इसकी सदस्य संख्या निश्चित नहीं होती तथा वह जनसंख्या के आधार पर बदलती रहती है। 24 हजार की जनसंख्या पर एक पतिनिधि होता है। प्रत्येक कैन्टन अथवा अर्द्ध- कैन्टन में से एक प्रतिनिधि अवश्य होता है। स्विट्जरलैण्ड का कोई भी नागरिक, जिसकी आयु 20 वर्ष हो चुकी है, राष्ट्रीय परिषद् का सदस्य हो सकता है। परन्तु पादरी, संघीय या राज्य परिषद् के सदस्य और सरकार के प्रमुख कर्मचारी परिषद् के सदस्य नहीं हो सकते । निर्वाचन गुप्त मतदान द्वारा होता है। 1918 के संविधान के आधार पर राष्ट्रीय परिषद् के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली को अपनाया जाता है।
कार्य-काल- 1931 के पूर्व इसका कार्यकाल 3 वर्ष का होता था। किंतु 1931 में इसे 4 वर्ष कर दिया गया है और इस प्रकार अब राष्ट्रीय परिषद का गठन 4 वर्ष के लिये किया जाता है।
राज्य परिषद्
राज्य-परिषद् मे गंध ही इकाइयों के प्रतिनिधि होते हैं। यहाँ पर कैंटनों की कुल संख्या 25 है। इनमें 19 पूर्ण कैंटन और 6 अर्द्ध कैंटन हैं। पूर्ण कैंटनों से दो प्रतिनिधि और अर्द्धकैंटनों से एक प्रतिनिधि राज्य-परिषद् के लिए चुने जाते हैं।
कार्य-काल- राज्य परिषद् का कार्यकाल भी 4 वर्ष होता है। कैन्टन अपना प्रतिनिधि किसी समय तक के लिये राज्य परिषद में भेज सकती है; जैसे-एक वर्ष, दो वर्ष, तीन वर्ष या चार वर्ष के लिए।
राष्ट्रीय परिषद् और राज्य परिषद् दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं। परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से राष्ट्रीय परिषद् का महत्व राज्य परिषद् की अपेक्षा कुछ अधिक हो जाता है।
स्विट्जरलैण्ड में व्यवस्थापिका की शक्तियाँ और कार्य
स्विट्जरलैण्ड में व्यवस्थापिका को संघीय सभा कहते हैं। नीचे हम इसके अधिकारों और कार्यों का वर्णन करेंगे:-
(i) विधायिनी कार्य- संविधान में जो विषय संघीय सरकार के अधीन रखे गये हैं उन सब पर कानून बनाने का अधिकार संघीय सभा को है, जैसे- न्याय एव पुलिस व्यवस्था, यातायात, डाकतार तथा रेलों की व्यवस्था।
संघीय सभा द्वारा बनाये गये कानूनों पर राष्ट्रपति को निषेधाधिकार प्राप्त नहीं है; परन्तु यहाँ की जनता को यह अधिकार अवश्य प्राप्त है कि वह अपने अधिकारों का प्रयोग कर किसी विधेयक को कानून बनने से रोक सकती है। यहाँ की संघीय सभा अमरीका की कांग्रेस की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली है।
(ii) वित्तसम्बन्धी कार्य- संघीय सभा का संघ के वित्त पर पूर्ण अधिकार एवं नियन्त्रण होता है। प्रत्येक वर्ष के प्रारम्भ में संघीय सभा ही वह अजट पारित. करती है जिसे संघीय परिषद् द्वारा उसके. समक्ष रखा जाता है। कोई भी कर संघीय सभा की अनुमति के बिना नहीं लगाया जा सकता है।
(iii) प्रशासनसम्बन्धी कार्य-संघीय सभा को प्रशासनिक अधिकार एवं शक्तियाँ भी प्राप्त हैं। संघीय परिषद् का अध्यक्ष संघीय सभा द्वारा नियुक्त किया जाता है। सरकारी सेवाओं पर भी इसका नियन्त्रण, रहता है। प्रशासकीय विवादों का निर्णय संघीय सभा ही करती हैं। किसी देश के साथ सन्धि अथवा युद्ध की घोषणा करने का अधिकार भी संघीय सभा को है।
(iv) चुनावसम्बन्धी कार्य- संघ सरकार के दो मुख्य पदों के उच्च अधिकारियों की नियुक्ति संघीय सभा द्वारा ही की जाती है। संघ न्यायालय के न्यायाधीश, चांसलर सेना का उच्चतम सेनापति आदि की नियुक्ति इसी के द्वारा की जाती है।
(v) न्यायपालिकासम्बन्धी कार्य- संघ न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति, संघीय. सभा ही करती है। देश में न्यायपालिका का नियमन संघीय सभा द्वारा ही होता है। संघीय सभा को अपराधियों को क्षमा करने का भी अधिकार प्राप्त है।
(vi) विधान में संशोधन का अधिकार- संविधान में संशोधन के लिए आवश्यक है कि संघीय सभा के दोनों सदन इस आशय के प्रस्ताव को स्वीकृत करके जनता की स्वीकृति हेतु भेजें। इस प्रकार अन्तिम निर्णय जनता पर निर्भर करता है। उसकी इच्छा के वित्त कोई संशोधन नहीं हो सकता किन्तु संधाय मत को भी संशोधन के सम्बन्ध में अधिकार प्राप्त हैं।
महत्त्व-
संघीय सभा विशेष महत्व रखती है। यह महत्त्व सदस्यों की कर्मठता के फलस्वरूप और भी बढ़ गया है। ये ईमानदारी और देश-प्रेम से प्रभावित होकर कार्य करते हैं। ये बेकार के ओजस्वी भाषण नहीं देते। इनके भाषणों की प्रशंसा या आलोचना नहीं होती। इसमें राजनीतिक दलबन्दी का प्रभाव होता है। यहाँ अनुशासनहीनता के मामले नहीं होते।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि स्विट्जरलैण्ड की व्यवस्थापिका अन्य देशों के लिए आदर्श है। वहाँ प्रत्यक्ष जनतंत्र होने पर भी व्यवस्थापिका का महत्त्व है।
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