स्वतन्त्र व्यापार से आशय | स्वतन्त्र व्यापार के पक्ष में तर्क | स्वतन्त्र व्यापार के विरोध में तर्क

स्वतन्त्र व्यापार से आशय | स्वतन्त्र व्यापार के पक्ष में तर्क | स्वतन्त्र व्यापार के विरोध में तर्क

स्वतन्त्र व्यापार से आशय

(Meaning of Free Trade)

एडम स्मिथ (Adam Smith) के अनुसार-“स्वतन्त्र व्यापार व्यावसायिक नीति का वह रूप है जिसके अन्तर्गत देशी और विदेशी वस्तुओं में कोई भेदभाव नहीं किया जाता और इसलिए न तो विदेशी वस्तुओं पर कर लगाये जाते हैं और न स्वदेशी उद्योगों को कोई विशेष सुविधाएँ दी जाती हैं।” यदि कोई कर लगाये जाते हैं तो इनका उद्देश्य सार्वजनिक आय में वृद्धि करना होता है माल के व्यापार को रोकना नहीं। किन्तु, जब स्वदेशी उद्योगों की विदेशी वस्तुओं की प्रतियोगिता से रक्षा के लिए विदेशी व्यापार पर कानूनी रोक लगायी जाती है या भारी आयात कर लगाये जाते हैं, तब व्यवसायिक नीति के इस रूप को ‘संरक्षण’ कहा जाता है। केयरवेस के अनुसार, “यदि विशेष लाभ के लिए राष्ट्र यापार करते हैं, तो उनका स्वतन्त्र व्यापारिक क्रियाओं में हस्तक्षेप करना लाभों से वंचित रहना होगा।” बेस्टवेल के अनुसार, “स्वतन्त्र व्यापार का व्यावहारिक नियम विदेशी व्यापार सिद्धान्त से लिया हुआ है, जिसमें, किसी उद्योग विशेष को दिये जाने वाले प्रोत्साहन एवं समस्त प्रतिबन्ध समाप्त कर दिये जाते हैं, कर केवल आय के उद्देश्य को ध्यान में रखकर लगाये जाते हैं, किसी अन्य उद्देश्य से नहीं, जहाँ तटकर अनिवार्य रूप से लगाये गये हों, उनके बराबर उत्पादन कर लगाये जाते हैं।”

स्वतन्त्र व्यापार के पक्ष में तर्क

(Arguments in Favor of Free Trade)

स्वतन्त्र व्यापार के पक्ष का आर्थिक तर्क एक अखण्डनीय (Irrevocable) सामान्य सिद्धान्त- ‘तुलनात्मक लागत सिद्धान्त’ (Theory of Comparative Costs)—पर आधारित है। स्वतन्त्र व्यापार के समर्थकों को कहना है कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के द्वारा भौगोलिक श्रम विभाजन व विशिष्टीकरण के लाभ को स्वतन्त्र व्यापार की नीति अपनाने पर ही प्राप्त किया जा सकता है। कैरनस (Carines) के शब्दों में-“यदि राष्ट्र व्यापार में केवल तब भाग ले जबकि ऐसा करने से उन्हें लाभ प्राप्त हो, तो व्यापार सम्बन्धी उनकी कार्य स्वतन्त्रता में कोई भी हस्तक्षेप केवल यही प्रभाव डालेगा कि उसको लाभ से वंचित कर दे।” एल्सवर्थ (Elsworth) के अनुसार- ‘एक  देश भौगोलिक विशिष्टीकरण की सम्भावनाओं का पूर्ण लाभ स्वतन्त्र व्यापार के अन्तर्गत ही उठा सकता है।

इंग्लैण्ड स्वतन्त्र व्यापार का सबसे प्रबल समर्थक रहा। औद्योगिक क्रान्ति के क्षेत्र में अग्रणीय होने के कारण इस नीति का सर्वाधिक लाभ उसी को हुआ। वह कच्चा माल और खाद्यान्न विदेशों में मंगाना चाहता था, ताकि उद्योग चल सकें और साथ ही अपने औद्योगिक उत्पादन के लिए उसे विदेशी बाजार सुगमता से प्राप्त हो जाता था। ऐसी स्थिति में उसके लिए यह लाभप्रद था कि वह स्वतन्त्र व्यापार की नीति को अपनाये। किन्तु इसी नीति को उसने अपने उपनिवेशों पर लागू किया जिनके लिए यह नीति बहुत ही हानिप्रद प्रमाणित हुई। इससे स्पष्ट हो गया कि देश के लिए वही व्यापारिक नीति लाभप्रद हो सकती है जोकि उसकी परिस्थितियों के अनुकूल हो। जो देश पिछड़े हुए हैं और अपने यहाँ उद्योग-धन्धों का विकास करना चाहते हैं वे स्वतन्त्र व्यापार को नहीं अपना सकते आज तो स्वतन्त्र व्यापार का केवल सैद्धान्तिक महत्त्व रह गया है क्योंकि प्रायः सभी देशों में विदेशी व्यापार पर अनेक प्रतिबन्ध लगाये हुए हैं।

स्वतन्त्र व्यापार के पक्ष में समय-समय पर जो तर्क प्रस्तुत किये हैं वे संक्षेप में निम्नवत् हैं-

  1. अधिकतम सामाजिक उत्पादन– स्वतन्त्र व्यापार के अन्तर्गत भौगोलिक श्रम-विभाजन और विशिष्टीकरण को अपनाना सम्भव होता है। इससे प्रत्येक देश में उपलब्ध साधनों का अधिकतम उपयोग किया जाने लगता है और विश्व में उत्पादन चरम सीमा पर पहुँच जाता है। यह स्वतन्त्र व्यापार के पक्ष का सबसे प्रबल और वैज्ञानिक तर्क है। केवल इसी के आधार पर उसे उचित ठहराया जा सकता है। अन्य तर्क राजनैतिक प्रचार के लिए भी हो सकते हैं।
  2. उत्पादन की कार्यक्षमता में वृद्धि- तुलनात्मक लागत सिद्धान्त के अनुसार उत्पत्ति साधनों का आदर्श वितरण स्वतन्त्र व्यापार के अन्तर्गत सम्भव होने के अतिरिक्त यह भी देखने में आता है कि विदेशी प्रतियोगिता का भय प्रत्येक देश में उत्पादकों को सदा सतर्क रखता है और वे उत्पादन-विधियों में सुधार करते रहते हैं। यदि वे ऐसा न करें तो शीघ्र ही उनको समाप्त हो जाना पड़ेगा। इस प्रकार उत्पादन कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
  3. भौगोलिक श्रम-विभाजन को प्रोत्साहन- व्यापार की स्वतन्त्रता होने पर ही प्रत्येक देश के लिए अपने साधन भण्डार (Resources endowment) के अनुरूप वस्तुओं का उत्पादन करने पर ध्यान देना सम्भव होता है। ऐसे श्रम-विभाजन से अनेक लाभ होते हैं।
  4. विस्तृत बाजार उपलब्ध होना- उत्पत्ति वृद्धि नियम के लागू होने के अन्तर्गत उत्पादन बढ़ाने पर लागत व्यय कम होते हैं किन्तु उत्पादन बढ़ाना तब ही सार्थक रहेगा जबकि उसके लिए बाजार विस्तृत (Extensive market) हो। स्वतन्त्र व्यापार विदेशों में बाजार खोलकर देश का उत्पादन बढ़ाना और इसके फलस्वरूप उत्पादन लागतें घटने से अधिक सापेक्षिक लाभ उठाना सम्भव बनाता है।
  5. हानिकारिक एकाधिकारी पर रोक- स्वतन्त्र व्यापार के अन्तर्गत चूँकि विदेशी वस्तुओं के आवागमन पर कोई रोक नहीं होती इसलिए किसी भी देश में एकाधिकारी शक्तियाँ सक्रिय नहीं हो पाती। यदि ऐसा न हो तो अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर लगे प्रतिबन्धों का लाभ उठाकर कुछ उद्योग एकाधिकारी शक्ति प्राप्त करके भारी लाभ प्राप्त कर सकते हैं परन्तु इससे नागरिकों को अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।
  6. उपभोक्ताओं को सस्ती व विविध वस्तुएँ मिलना- स्वतन्त्र व्यापार व्यवस्था में अक्षम इकाई (Inefficient unit) समाप्त हो जाती है और सक्षम इकाइयों का विस्तार होता है। वे‌ कम लागत पर अधिक उत्पादन करती हैं और फिर जिस देश से वस्तुएँ सस्ती मिल सकती हैं वहाँ से उनका आयात करना सम्भव होता है। इस प्रकार उपभोक्ताओं की न केवल सस्ती वरन् विविध प्रकार की वस्तुएँ उपलब्ध हो जाती हैं।
  7. अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना में वृद्धि- स्वतन्त्र व्यापार देशों को एक-दूसरे के निकट ला देता है और प्रतिबन्ध की नीति ईर्ष्या एवं असहयोग उत्पन्न करती है।
  8. अविकसित देशों का आर्थिक विकास- हैबरलर का विचार है कि स्वतन्त्र व्यापार व्यवस्था के अन्तर्गत तेजी से आर्थिक विकास कर सकते हैं। उनके अनुसार, “स्वतन्त्र व्यापार अल्पविकसित राष्ट्रों के आर्थिक विकास की दर में त्वरित गति में वृद्धि करने के लिए सहायता करता है।” स्वतन्त्र व्यापार होने की दशा में अल्प-विकसित देश विदेशों से कच्चा माल, अत्याधुनिक मशीनें, उत्पादन प्राविधियों एवं नवीन तकनीकी का आयात सुगमतापूर्वक कर सकते हैं। स्वतन्त्र व्यापार में चूँकि शुद्ध प्रतिस्पर्धा का माहौल होता है इसलिए अल्पविकसित देशों को विकास के लिए आवश्यक साधन सस्ते मूल्य पर ही उपलब्ध हो जाते हैं।
  9. संरक्षण के दोषों का निवारण- स्वतन्त्र व्यापार के अन्तर्गत संरक्षण के दोषों का स्वतः निवारण हो जाता है। संरक्षण के वे दोष निम्न प्रकार हैं जिनका निराकरण स्वतन्त्र व्यापार के अन्तर्गत हो जाता है। संरक्षण के अन्तर्गत-

(i) कमजोर एवं दुर्बल उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाना,

(ii) प्रतियोगिता न होने से साहसी आलसी हो जाते हैं,

(iii) वर्ग विशेष को लाभ पहुँचाना,

(iv) राजनीतिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है,

(v) प्रशुल्क अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के परिणाम को कम कर देते हैं,

(vi) प्रशुल्क के कारण वस्तुओं की कीमतों से वृद्धि हो जाती है,

(vii) उत्पादित वस्तुएँ निम्नकोटि की होती हैं।

स्वतन्त्र व्यापार के विरोध (या संरक्षण के पक्ष ) में विचार

(Arguments Against Free Trade or in Favour of Protection)

स्वतन्त्र व्यापार के विरोध में बहुत कुछ कहा गया है। स्वतन्त्र व्यापार के विरोध में दिये गये तर्क वही हैं जो कि संरक्षण का समर्थन करते हुए दिये जाते हैं। वे तर्क निम्न प्रकार हैं-

(1) राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से अन्य देशों पर बहुत अधिक निर्भर रहना ठीक नहीं है।

(2) राष्ट्र के विशिष्ट गुणों को सुरक्षित रखने के लिए विदेशियों से बहुत सम्पर्क न रखना चाहिए।

(3) कुछ व्यवसायों और जनवर्गों (जैसे-कृषक जनता) की सुरक्षा आर्थिक ही नहीं वरन् राजनैतिक एवं सामाजिक आधारों पर भी आवश्यक है। कृषक वर्ग जनसंख्या में सन्तुलन व नैतिक एकता को बनाये रखने में सहायता देता है। यह समाज का निष्ठावान अंग होता है। स्वतन्त्र व्यापार अपनाने से इस वर्ग को हानि पहुँच सकती है।

(4) स्वतन्त्र व्यापार की नीति शिशु उद्योगों (Infant industries) को नष्ट कर सकती है, क्योंकि वे शक्ति सम्पन्न विदेशी उद्योगों की प्रतियोगिता में नहीं टिक सकते।

(5) सन्तुलित आर्थिक विकास (Balanced economic growth) के लिए देश में विभिन्न प्रकार के उद्योगों का होना आवश्यक है, जो स्वतन्त्र व्यापार के अन्तर्गत सम्भव नहीं है।

(6) आधार उद्योगों का विकास औद्योगिक विकास के स्वयं चालित हो सकने के लिए आवश्यक है किन्तु स्वतन्त्र व्यापार की नीति इनके विकास में बाधा डाल सकती है।

(7) स्वतन्त्र व्यापार व्यवस्था में विशिष्टीकरण के कारण देश अपने सभी प्राकृतिक साधनों का उचित उपयोग नहीं कर पाता हैं।

(8) स्वतन्त्र व्यापार और विशिष्टीकरण को अपनाने से श्रम और पूंजी आदि साधन भी बेकार पड़े रह सकते हैं।

(9) स्वतन्त्र व्यापार की नीति के फलस्वरूप देश का द्रव्य बाहर जाता है।

(10) स्वतन्त्र व्यापार के अन्तर्गत देश में हानिकारक व विलासिता की वस्तुओं का आवागमन होता है, जिनसे अपव्यय होता है और जनता के स्वास्थ्य को ठेस पहुँचती है।

(11) स्वतन्त्र व्यापार की नीति एकपक्षीय रूप से नहीं अपनाई जा सकती। जब अन्य देशों में प्रतिबन्धात्मक नीति अपनाई जा रही है तो हमारे द्वारा स्वतन्त्र व्यापार का अनुसरण करना घातक हो सकता है। स्वतन्त्र व्यापार की सफलता अन्य देशों द्वारा वैसी ही नीति अपनाए जाने पर निर्भर है।

निष्कर्ष-

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि नियोजन के द्वारा आर्थिक विकास के लिए प्रयत्न कर रहे अर्द्ध-विकसित देशों के लिए स्वतन्त्र व्यापार की नीति न तो व्यवहारिक है और न उपयुक्त ही। स्वतन्त्र व्यापार के पक्ष में जो तर्क दिये गये हैं वे वास्तव में विकसित देशों के दृष्टिकोण से अधिक सही उतरते हैं। स्वतन्त्र व्यापार वस्तुतः विकासशील देशों के लिए लाभकर नहीं है क्योंकि उनके विकास में बाधा पड़ती है जिससे कि वे सदैव अविकसित ही बने रहेंगे और उन्हें विकास का अवसर नहीं मिल पायेगा। सम्भवतः इसी कारण विश्व की नीति इन उद्योगों को संरक्षण देने की है।

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