अर्थशास्त्र

सुसम्बद्ध आर्थिक प्रणाली के विकास में प्रकृतिवादियों का योगदान | दुर्बलताओं के बावजूद निर्बाधावादियों के योगदान की महत्ता कम नहीं | निर्बाधावादियों को ‘अर्थशास्त्र का संस्थापक’ कहने का औचित्य

सुसम्बद्ध आर्थिक प्रणाली के विकास में प्रकृतिवादियों का योगदान | दुर्बलताओं के बावजूद निर्बाधावादियों के योगदान की महत्ता कम नहीं | निर्बाधावादियों को ‘अर्थशास्त्र का संस्थापक’ कहने का औचित्य

सुसम्बद्ध आर्थिक प्रणाली के विकास में प्रकृतिवादियों का योगदान

(Physiocrats’’ Contribution in Developing of a Coherent Economic System)

आगामी लेखकों के लिए मार्ग का निर्माण

आर्थिक सिद्धान्तों के इतिहास में निर्वाधावादियों का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे अर्थशास्त्रियों के सबसे पहले सम्प्रदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, अर्थात् सर्वप्रथम निर्बाधावादियों ने एक सुसम्बद्ध आर्थिक प्रणाली का चिन्तन किया। उनसे पूर्व आर्थिक विचार अन्य विचारों से घुले- मिले रहते थे। वणिकवादियों ने यद्यपि स्पष्ट आर्थिक विचार दिये तथापि ये बहुत अव्यवस्थित थे। निर्बांधावादियों ने एक सुसम्बद्ध आर्थिक प्रणाली की कल्पना की जिसका संचालन प्राकृतिक व्यवस्था के द्वारा होता है। उन्होंने अर्थशास्त्र को नीतिशास्त्र, न्यायशास्त्र और अन्य विज्ञानों से पृथक् एक वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। उन्होंने एक ऐसे मार्ग का निर्माण किया जिस पर स्मिथ व अन्य अर्थशास्त्री आने वाले वर्षों में चले। अन्य शब्दों में बहुत वर्षों तक निर्बाधावादी विचारों ने मार्गदर्शन किया। निर्बाधावादियों के ऐसे महत्वपूर्ण विचार निम्नांकित हैं-

(1) उन्होंने जीवन की भौतिक वस्तुओं से सम्बन्धित सामाजिक उत्पादन और वितरण के केन्द्रीय विषय पर ध्यान केन्द्रित किया और उन मौलिक नियमों का पता लगाने की चेष्टा की, जो कि इन क्रियाओं को शासित करते हैं। उनके इसी कार्य को एडम स्मिथ ने आगे बढ़ाया।

(2) उन्होंने विशुद्ध उत्पत्ति सम्बन्धी विचार दिया, जो बाद में आधिक्य-धारणा (concept of surplus) में विकसित कर लिया गया और आजकल यह आर्थिक विश्लेषण का एक सशक्त उपकरण (effective tool) बना हुआ है।

(3) उन्होंने एक उत्पत्ति साधन के रूप में भूमि की उपयोगिता पर बल दिया, जिसमें साधनों के वर्गीकरण के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ।

(4) उनका करारोपण सिद्धान्त और पूँजी का विश्लेषण प्रारम्भिक होते हुए भी ठोस था।

 (5) निजी सम्पत्ति के समर्थन में उन्होंने जो तर्क दिया वह तब से ‘क्लासिक’ (classic) बन गया है।

(6) स्वतन्त्रता की नीति एवं सरकारी हस्तक्षेप को सीमित रखने के निर्बाधावादी विचार ने प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों को मार्गदर्शन प्रदान किया।

(7) निर्बाधावादी आर्थिक सिद्धान्त में संख्यात्मक विश्लेषण की जो भावना प्रवाहित है, वह इसे आधुनिक अर्थशास्त्र से जोड़ देती है। फ्रांसीसी अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक प्रक्रिया को एक चक्र- प्रवाह के रूप में अनुभव किया और इसे ठोस संख्यात्मक शब्दों में व्यक्त करने का प्रयास किया। ऐसा प्रयास उनकी आर्थिक तालिका है। तालिका एक ‘बन्द अर्थव्यवस्था’ (closed economy) में राष्ट्रीय आय का सामान्य साम्य (general equilibrium) प्रदर्शित करती है। इस तालिका ने संख्यात्मक सिद्धान्त के प्रयोग के लिए मार्ग प्रशस्त किया और इस बात के प्रमाण उपलब्ध हैं कि निर्बाधावादियों के नेता डा० केने ने धन के प्रवाह को एक सरसरे रूप से सांख्यिकी सहायता से सिद्ध करने की चेष्टा की थी। इस प्रकार निर्बाधावादी आधुनिक अर्थशास्त्र की तीन शाखाओं (इकॉनामेट्रिक्स, राष्ट्रीय आय विश्लेषण और सामान्य विश्लेषण) के अग्रणी बने।

दुर्बलताओं के बावजूद निर्बाधावादियों के योगदान की महत्ता कम नहीं

नि:संदेह निर्बाधावादियों की कुछ दुर्बलतायें भी थीं, क्योंकि वे व्यापारवाद की आलोचना करने में बहुत आगे निकल गये थे। उन्हें मूल्य का सही ज्ञान न था। इसीलिए तो वे स्थूल पदार्थों के सृजन को ही उत्पादन समझ बैठे और उन्होंने यह धारणा बना ली कि कृषि ही उत्पादक है, उद्योग व्यापार आदि अनुत्पादक हैं । व्यक्तिवाद की धुन में उन्होंने सामूहिक कार्य की आवश्यकता को दृष्टि-ओझल कर दिया। प्रकृतिवाद ने उन्हें निरपेक्षवादी बना दिया अर्थात् वे अपने विचारों को सार्वभौम समझते थे, जिनमें स्थान व समय की आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं थी।

किन्तु इन दुर्बलताओं के कारण ही उनके महान् योगदान की उपेक्षा नहीं की जा सकती, क्योंकि क्रिया-प्रतिक्रिया के द्वारा विज्ञान का विकास होता है। हैने के शब्दों में, “विश्व अपने विचारों में हेर-फेर द्वारा उसी प्रकार प्रगति करता है, जिस प्रकार से कि जहाज, जो कि पवनोमुख चलता है, सीधे मार्ग से कभी दायें, कभी बायें झूलता हुआ आगे बढ़ता रहता है। निर्बाधावादियों ने कृषक को महत्व दिया और एक नवीन मार्ग पर चल पड़े, जो कि प्रगति के लिए आवश्यक भी था।

एडम स्मिथ के अनुसार, “यह प्रणाली (निर्बाधावाद) अपनी समस्त त्रुटियों के बावजूद राजनैतिक अर्थव्यवस्था पर अभी तक प्रकाशित शायद सत्य के सबसे अधिक निकट विचारधारा है और इसी कारण यह उस व्यक्ति के लिए जो कि उसे बहुत ही महत्वपूर्ण विज्ञान के सिद्धान्तों का सावधानी से अध्ययन करना चाहता है, ध्यान देने योग्य है।”

निर्बाधावादियों को ‘अर्थशास्त्र का संस्थापक’ कहने का औचित्य

निर्बाधावादियों ने सुसम्बद्ध आर्थिक चिन्तन को शुरुआत की। यह ऐसी महत्वपूर्ण बात है जो कि निर्वाधावादियों को अर्थशास्त्र के संस्थापक’ कहलाने का अधिकारी बनाती है। किन्तु ब्रिटिश अर्थशास्त्रियों वे एडम स्मिथ को ‘अर्थशास्त्र का संस्थापक’ माना है और निर्बाधावादियों को केवल ‘अग्रदूत’ या उदघोषक’ (herakts) बताया, जिन्होंने ही विज्ञान के जन्म लेने की पूर्व घोषणा की।

जोड एवं रिस्ट ने लिखा है कि यह विषमता इस कारण उत्पन्न हुई कि फ्रांसीसी अर्थशास्त्रियों में निर्वाधावादियों के दावे पर पर्याप्त बल नहीं दिया और ब्रिटिश दृष्टिकोण को स्वीकार करने के लिए तत्पर हो गये। वास्तव में, एडम स्मिथ स्वयं निर्बाधावादी प्रणाली से प्रभावित था और उसने इनको रूपरेखा के अनुसार कार्य किया। उसने उनके बुनियादी दृष्टिकोण को सभी आर्थिक घटकों और विभिन्न वर्गों में जो परस्पर निर्भरता होती है, उसको स्वीकार किया और इसमें केजत इतना सुधार किया जिससे यह कृषि के साथ-साथ व्यापार व उद्योग पर भी लागू हो सके। जोड एवं रिस्ट सो यहाँ तक कहते हैं कि “यदि केने दो वर्ष तक और जीवित रहता, तो एडम स्थिम ने अपनी पुस्तक बैल्थ ऑफ नेशन्स (जो केने की मृत्यु के दो वर्ष बाद प्रकाशित हुई) केने को समर्पित को होतो।”

किन्तु एक संतुलित दृष्टिकोण (balanced approach) से हम यह समझते हैं कि निबांधावादियों को ‘अर्थशास्त्र का संस्थापक’ कहने के बजाय ‘कल्पना करने वाले ओजस्वी अग्रदूत’ कहना अधिक उचित है, क्योंकि उनके विचारों में स्पष्टतया व निरन्तरता का अभाव था।

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Pankaja Singh

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