स्थानीय सरकार के कार्य | स्थानीय सरकारों की आय के साधन | स्थानीय सरकारों का क्षेत्र एवं बनावट | Functions of local government in Hindi | Sources of income of local governments in Hindi | Area and structure of local governments in Hindi
स्थानीय सरकार के कार्य
(Functions of the Local Self Government)
केन्द्रीय, प्रान्तीय और स्थानीय सरकारों में विषयों के विभाजन के लिए कोई बड़े नियम नहीं हैं और विभिन्न देशों में विभिन्न विषय केन्द्र, प्रान्त और स्थानीय सरकारों को सुपुर्द किये गये। हैं। परन्तु इन विषयों का विभाजन करते समय यह अवश्य ध्यान रखा गया है कि जो विषय, मुख्य रूप से समसत देश से सम्बन्धित हैं, उन्हें केन्द्रीय सरकार को दिया गया, जैसे वैदेशिक सम्बन्ध, प्रतिरक्षा, रेल, तार, डाक, मुद्रा एवं नोट आदि जो विषय प्रान्तीय हित के हैं, उन्हें राज्य सरकारों को सौंपा गया है। जैसे कृषि, पुलिस, जेल आदि और जो विषय स्थानीय व क्षेत्रीय हैं उन्हें स्थानीय सरकारों को दिया गया है जैसे स्थानीय शिक्षा, सफाई और स्वास्थ्य की देख-भाल आदि।
स्थानीय संस्थाओं में नगरपालिकाएं, नगर निगम, जिला परिषद और ग्राम पंचायतें आदि आती हैं। यह संस्थाएं जो कार्य करती हैं, उनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं-
(1) प्रारम्भिक शिक्षा का प्रबन्ध स्थानीय संस्थाओं के हाथ में ही होता है। ये संस्थायें बालकों की शिक्षा का प्रबन्ध तो करती ही हैं, कभी-कभी स्थानीय वयस्कों को शिक्षा के हेतु रात्रि पाठशालाएं भी खोलती हैं।
(2) नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा का उत्तरदायित्व भी इन संस्थाओं का होता है। ये संस्थाएं इस बात का प्रयास करती हैं कि रोग न फैलने पाये और इस हेतु ये नगर की सफाई आदि का समुचित प्रबन्ध करती हैं तथा चेचक, हैजा आदि संक्रामक रोगों के टीके लगवाती हैं। पार्कों और औषधालयों का प्रबन्ध करना भी इन स्थानीय संस्थाओं का कार्य है।
(3) सड़कों और गलियों की सफाई और मरम्मत आदि की जिम्मेदारी भी स्थानीय संस्थाओं के ऊपर है। ये संस्थाएं ही इस बात का प्रबन्ध करती हैं कि सड़कों और गलियों आदि में रात्रि के समय पर्याप्त प्रकाश रहे।
(4) स्थानीय संस्थाएँ बाजारों की भी व्यवस्था करती हैं। नगर के अन्दर आने वाले माल पर नगरपालिकाएँ चुंगी लेती हैं। दुकानदारों से कर वसूल करना भी स्थानीय संस्थाओं का कार्य है। ये संस्थाएँ आग बुझाने और दुर्घटनाओं से रक्षा करने का प्रबन्ध करती हैं।
स्थानीय सरकारों की आय के साधन
(Sources of Income of Local Self Government)
विभिन्न कार्यों को सम्पन्न करने के लिए स्थानीय संस्थाओं को धन की आवश्यकता होती है। इस धन की पूर्ति दो साधनों से होती है। सर्वप्रथम, सरकार द्वारा स्थानीय संस्थाओं को अनुदान दिया जाता है। द्वितीय, संस्थायें स्थानीय साधनों से धन एकत्र करती हैं। आय के स्थानीय साधनों में निम्नलिखित मुख्य हैं-
(1) हाउस टैक्स,
(2) व्यवसाय कर
(3) स्थानीय संस्थाओं की निजी सम्पत्ति से प्राप्त आय
(4) पानी, बिजली तथा ट्राम आदि से प्राप्त आय
(5) दुकानों के लाइसेन्सों से आमदनी
(6) चुंगी तथा मण्डियों से प्राप्त कर
(7) मण्डियों और मेलों में पशुओं की बिक्री पर कर
(8) मण्डियों के कमीशन, एजेन्टों, दलालों और तौलने वालों को लाइसेन्स देने की आमदनी
(9) स्थानीय दर (Local Rates) जो कुछ परिस्थिति में भूमिकर के साथ ही वसूल की जाती है।
स्थानीय सरकारों का क्षेत्र एवं बनावट
(Area and Structure of Local Self Government)
स्थानीय सरकार का अर्थ है कि राज्य का प्रादेशिक आधार पर उप-विभाजन कर दिया जाये। ये उप-विभाजन किन आधारों पर किया जाना चाहिए, यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रश्न है। साथ ही स्थानीय सरकार की कौन-कौन सी इकाइयाँ होनी चाहिए यह भी एक अत्यनत पेचीदी समस्या है। स्थानीय सरकार के क्षेत्र को निश्चित करने का अर्थ केवल स्थानीय सरकार के आकार को निश्चित करना ही नहीं है, बल्कि यह भी देखना है कि स्वीकृत इकाइयों की बनावट किस प्रकार की हो।
स्थानीय सरकार के आकार का कोई सार्वभौमिक मापदण्ड नहीं बनाया जा सकता। निश्चित भू-भाग के आधार पर भी स्थानीय सरकार की इकाई का गठन किया जा सकता है और जनसंख्या के आधार पर भी परन्तु इस सम्बन्ध में यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि उसके अधिकार क्षेत्र में इतना बड़ा क्षेत्र न आ जाये कि उस संस्था का स्थानीय सरकार को चलाना दुष्कर हो जाये।
यह ठीक है कि स्थानीय सरकार की बनावट और उसके ढाँचे के विषय में विभिन्न विद्वानों में मतभेद हैं। परन्तु स्थानीय सरकार की बनावट के हेतु हम कुछ आधारभूत कसौटियों के निर्धारण अवश्य कर सकते हैं –
(1) प्रशासकीय लक्ष्य- स्थानीय सरकार की रचना या बनावट का मूल लक्ष्य प्रशासकीय होना चाहिए। स्थानीय शासन इस प्रकार का होना चाहिए कि प्रशासन का कार्य ठीक प्रकार से चल सके और लोगों को अधिक सुविधा प्राप्त हो सके। स्थानीय शासन की सफलता लोगों की कार्य-कुशलता पर निर्भर करती है अतएव अधिकारी कार्यकुशल होने चाहिए। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि स्थानीय संस्थाओं के संगठन के हेतु प्रशासकीय दृष्टिकोण से विचार किया जाना चाहिए।
(2) जनता का आर्थिक हित- स्थानीय संस्थाओं का गठन आर्थिक आधार पर होना चाहिए। स्थानीय संस्थाएं इस प्रकार संगठित की जानी चाहिए कि साधारण जनता के आर्थिक हितों की पूर्ति हो सके और साधारण जनता कम से कम खर्चे में अधिक सुविधायें प्राप्त कर सके।
(3) क्षेत्र- स्थानीय सरकार की बनावट का तीसरा प्रमुख तत्व क्षेत्र है। स्थानीय सरकार का क्षेत्र न तो इतना बड़ा होना चाहिए कि अधिकतर जनता प्रशासकीय कार्यों में भाग न ले सके और न ये क्षेत्र इतना छोटा होना चाहिए कि स्थानीय सरकार न रहकर एक मोहल्ला समिति बनाई जाय। सेवा की प्रकृति के आधार पर स्थानीय संस्थाओं का क्षेत्र निर्धारण करते समय संतुलनकारी दृष्टिकोण को अपनाया जाय।
(4) जनता तथा प्रतिनिधियों में संपर्क– स्थानीय शासन के संगठन में इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि मतदाताओं और निर्वाचित सदस्यों के मध्य सम्बन्ध बना रहे और मतदाता अपने प्रतिनिधियों पर यथासम्भव रख सकें। ऐसा होने पर ही नौकरशाही और लाल फीताशाही आदि दोषों का निवारण किया जा सकेगा।
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