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सिरी उपमा जोग कहानी की समीक्षा | कहानी कला के तत्वों के आधार परा ‘सिरी उपमा जोग’ कहानी की समीक्षा

सिरी उपमा जोग कहानी की समीक्षा | कहानी कला के तत्वों के आधार परा ‘सिरी उपमा जोग’ कहानी की समीक्षा

सिरी उपमा जोग कहानी की समीक्षा

कथानक या कथावस्तु-

प्रस्तुत कहानी गाँव की ऐसी नारी के त्याग, संघर्ष और पति निष्ठा की कहानी है जो अत्यन्त श्रम से अपने पति को प्रशासनिक अधिकारी बनवा देती है, किन्तु अपनी अशिक्षा गवारपन के फलस्वरूप पति द्वारा त्याग दी जाती है। ए.डी.एम, के पद पर कार्यरत उसके पति का जब गौना हुआ था उस समय उन्होंने इण्टर की परीक्षा पास की थी। बलिष्ठ कद काठी वाली पत्नी ने दिन-रात खेतों में काम करके उनके सुख सविधा की व्यवस्था की थी। अपने जेवर बेचकर पति की पढ़ाई के लिए फीस व कितावें जुटाई थीं। अपनी बेटी कमला तथा अपने सुख की उसने कभी चिन्ता नहीं की। उसी की तपस्या तथा आस्था का परिणाम था कि उसका पति एक ही बार में सेलेक्शन पा गया। कार्यकाल के प्रारम्भिक वर्षों में शनिवार एवं रविवार को वह गाँव आ जाया करते थे। पत्नी को पढ़ाने की व्यवस्था भी की थी। लेकिन घर गृहस्थी के अथवा काम में व्यस्त रहने के कारण पत्नी न पढ़ सकी न आधुनिक नागरिक बन सकी। फलतः अधिकारी पति के मन में उसके प्रति विकर्षण होने लगा। अब पति को उसके शरीर से भूसे की तीखी गन्ध आने लगी थी। पत्नी, पति की बेबसी देखकर उन्हें मैम से शादी कर लेने की सलाह दे देती है। अधिकारी पति महोदय ने जिला न्यायाधीश की बेटी ममता से विवाह कर लेते हैं। पहली पत्नी जो गांव पर रहती है, उससे उन्हें एक लड़का लालू था। जब काफी समय तक ए.डी.एम, पति महोदय गाँव नहीं गये तो उनके चाचा लालू की माँ को बहुत सताने लगे और घर से निकालने की साजिश करने लगे। बहुत दुःखी होकर पत्नी ने अपने लड़के लालू के हाथ अधिकारी पति के पास एक पत्र भेजा, इस ताकीद के साथ कि पत्र अकेले में साहब को देना। लड़के में दिन भर प्रतीक्षा के बाद दौरे पर जाते हुए साहब को पत्र दिया। लड़के से कोई बात किये बिना साहब ने रास्ते जब पत्र खोला तो पत्नी का सारा दुखद अतीत साकार हो गया। साहब की दुनिया दस वर्षों में बदल चुकी थी। अन्दर नई पत्नी से उत्पन्न बेटी टी.वी. देख रही थी। बाहर पुरानी पत्नी का बेटा लालू मच्छरों का दंश झेलता चबूतरे पर रात भर पड़ा रहा। छोटी बच्ची की माँ तथा सौतेली माँ की पुकार के बावजूद वह वहीं पड़ा था। वह मार खाकर भी रोया नहीं। ममता साहब से कड़े शब्दों में पूछती है कि वह लड़का कौन था। साहब की हिम्मत नहीं थी कि सच को बता सके। सुबह लालू चबूतरा छोड़कर चला गया। इस तरह अधिकारी पति अपनी गंवार पत्नी व गाँव से मुक्त हो गया।

पात्र चरित्र चित्रण-

प्रस्तुत कहानी में मुख्य चरित्र है, ए.डी.एम. बने अधिकारी महोदय का उनकी पहली पत्नी गांव की है तथा आधुनिक समाज में ढल नहीं पाई है। कहानी के पात्र आधे गांव तथा आधे शहरी जीवन के हैं। कहानीकार ने इन सभी पात्रों को आवश्यकतानुकूल स्वाभाविक और सजीव बनाकर चित्रित किया है। बौद्धिक तटस्थता को फलस्वरूप प्रस्तुत कहानी में किसी प्रकार का सैद्धान्तिक आग्रह नहीं मिलता।

देशकाल एवं वातावरण-

प्रस्तुत कहानी का महानगरी व वातावरण यथार्थवादी है। आधुनिक नगरीय विशेषकर महानगरी वातावरण तथा गांव का सजीव चित्र प्रस्तुत कहानी में स्पष्ट परिलक्षित होता है। आधुनिक जीवन में आस्थावान नारी के सम्मुख किस प्रकार का प्रोत्साहित करने वाली परिस्थितियाँ है। इसका कहानीकार ने बड़े सुन्दर ढंग से वर्णन किया है। कहानी में नागरिक जीवन के विभिन्न रूपों के चित्रण के साथ-साथ ग्रामीण समाज का विश्वसनीय चित्रण भी कहानीकार ने किया है।

कथोपकथन या संवाद-

कहानीकार ने अपने पात्रों के वार्तालाप को एक नये रूप में प्रस्तुत किया है। किस प्रकार से एक निश्चित और सन्तुलित कथोपकथन के द्वारा कथा का विकास और उद्देश्य सफल होता है, इसकी जानकारी बखूबी कहानीकार को है। उनके कथोप- कथनों की प्रमुख विशेषताओं के प्रतीकात्मक कतिपय उदाहरण देखिए-

वाश बेसिन की तरफ बढ़ते हुए वे ममता से पूछते हैं कौन था ?

“शायद आपके गाँव से आया है। भेट नहीं हुई।

“नाम नहीं बताता था, काम नहीं बताता था, कहता था, सिर्फ साहब को बताऊंगा। फिर  लड़के तंग करने लगे तो बाहर चला गया।“

“कुछ खाना-पीना”

“पहले यह बताइए वह है कौन ? एकाएक ममता का स्वर कर्कश और तेज हो गया” उस चुड़ैल की औलाद तो नहीं, जिसे आप गाँव का राज-पाट दे आए हैं? ऐसा हुआ तो खबरदार जो उसे गेट के अन्दर भी लाए, खून पी जाऊंगी।

वे चुपचाप ड्राइंगरूम में आकर सोफे पर निहाल पड़ गये हैं। चक्कर आने लगा है। शायद रक्त चाप बढ़ गया है।

बाहर फागुनी जाड़ा बढ़ता जा रहा है।

सवेरे उठकर वे देखते हैं- चबूतरे पर “गाँव” नहीं हैं। वे चैन की सांस लेते हैं।

भाषा शैली-

शिवमूर्ति की कहानियों की भाषा स्वाभाविक सरल, सहन तथा स्पष्ट है। आप अपनी कहानियों को नाटकीय मोड़ देना तथा चरमावस्था की परवाह किये बिना सहज अन्त कर देना ही पसन्द करते हैं। इनकी कहानियाँ व्यंग्यात्मक शैली में लिखी गई है। करारे तथा चुभते व्यंग्य और मीठी-मीठी चुटकियाँ आपकी कहानी को नवीनता तथा विशिष्टता प्रदान करती हैं।

उद्देश्य-

कहानीकार ने अपनी कहानी में उस भारतीय समाज का सजीवांकन किया है जो सर्वथा अपेक्षित होते हुए भी उपेक्षित रहा है। मध्यवर्गीय समाज की कंटकाकीर्ण स्थिति का ज्वलंत प्रमाणिक चित्रण उपस्थित कहानीकार का प्रमुख उद्देश्य रहा है।

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Pankaja Singh

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