शिक्षाशास्त्र

शिक्षित बेरोजगारी की समस्या | शिक्षित बेरोजगारी के कारण | शिक्षित बेरोजगारी दूर करने के उपाय

शिक्षित बेरोजगारी की समस्या | शिक्षित बेरोजगारी के कारण | शिक्षित बेरोजगारी दूर करने के उपाय

शिक्षित बेरोजगारी की समस्या

(Problem of Educated Unemployment)

शिक्षित बेरोजगारी की समस्या एक प्रकार से उच्च शिक्षा से ही सम्बन्धित है। स्नातक तथा स्नातकोत्तर डिग्री लेने के बाद युवक जब बेरोजगार होते हैं तो उन्हें शिक्षित बेरोजगार कहा जाता है। भारत में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है किन्तु रोजगार के अवसर उस अनुपात में नहीं बढ़ रहे हैं। शिक्षा की भाषा में जिन लोगों को अपनी योग्यतानुसार काम मिल जाता है उन्हें रोजगार में लगा हुआ माना परन्तु जिन लोगों को योग्यतानुसार काम नहीं मिलता उन्हें अल्प या अर्द्ध रोजगार में माना जाता है। उदाहरणार्थ, जिन पदों के लिये वांछित शैक्षिक योग्यता हाई स्कूल है उन पदों पर बी. ए. या एम. ए. नियुक्त होते हैं तो उन्हें शिक्षित अर्द्ध बेरोजगार कहा जाता है।

प्रायः लोग इसका मुख्य कारण शिक्षा का रोजगारोन्मुख न होना मानते हैं। परन्तु वास्तव में तो अनेक रोजगारपरक शिक्षा प्राप्त व्यक्ति इन्जीनियर, डॉक्टर, वैद्य, हकीम और शिक्षक भी इस समय बेरोजगार हैं। हमारी दृष्टि में इसके मुख्य कारण हैं-उच्च शिक्षा का आवश्यकता से अधिक विस्तार और देश की बेरोजगारी बढ़ाने वाली आर्थिक नीति, बड़े उद्योगों को प्रोत्साहन और छोटे उद्योगों पर कहर ।

शिक्षित बेरोजगारी के कारण

(Causes of Educated Unemployment)

शिक्षित बेरोजगारी की समस्या बड़ी गम्भीर है। शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ इनकी संख्या में भी निरन्तर वृद्धि हो रही है। अंग्रेजी शासनकाल में बाबू पैदा करने वाली शिक्षा का यही दुष्परिणाम होता था, जिसमें व्यक्ति अपने स्वयं का कोई परिश्रम वाला काम न करके केवल नौकरी करना चाहता है। शिक्षित बेरोजगारी के अनेक कारण हैं जिनमें प्रमुख निम्न प्रकार हैं-

(1) उच्च शिक्षा के लिए जनता की बढ़ती माँग (Increasing demand of public for Higher Education) – पहले उच्च शिक्षा उच्च वर्ग के लिए ही सुरक्षित रहती थी परन्तु स्वाधीनता के बाद मध्यम वर्ग के लोगों में शिक्षा के प्रति रुचि तथा चेतना जागृत हुई है। मध्यम वर्ग के लोग उच्च शिक्षा दिलाकर अपने बच्चों को नौकरी दिलाने के इच्छुक रहते हैं परन्तु नौकरियों में स्थान कम होने के बाद उन्हें बेकार घूमना पड़ता है।

(2) शिक्षा की विस्तार नीति (Expansion Policy of Education)- स्वाधीनता के बाद उच्च शिक्षा के प्रसार की ओर अधिक ध्यान दिया गया जिससे स्नातक एवं परास्नातक परीक्षा उत्तीर्ण युवकों की संख्या में अचानक वृद्धि हो गयी। बढ़ी हुई संख्या को रोजगार न मिल पाने के कारण बेरोजगारी की समस्या बढ़ी है।

(3) औद्योगिक विकास का अभाव (Lack of Industrial Development)- देश में औद्योगि विकास जिस गति और जिस मात्रा में होना चाहिए उतना नहीं हो सका। औद्योगिक विकास के लिए धन की आवश्यकता होती है। सरकार के पास उद्योग में धन लगाने की सामर्थ्य नहीं है। पूंजीपति धन लगाते समय रोजगार का कम तथा आर्थिक लाभ का अधिक ध्यान रखते हैं। इस कारण औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार के अवसर अधिक नहीं बढ़ पाये हैं और नौकरियों की ओर अधिक दौड़े रहे हैं जिससे बेरोजगारी की समस्या और बढ़ी है।

(4) जनसंख्या में वृद्धि (Population Increase)- जनसंख्या वृद्धि के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या में स्वाभाविक वृद्धि हुई है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद इतनी बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिल पाना असम्भव है। अतः नौकरी और पढ़े-लिखे लोगों की संख्या में जो असन्तुलन आया है उससे लोगों को अनुमान है कि आगे भी कई वर्षों तक बेरोजगारी की समस्या का कोई समाधान नहीं सूझ रहा

(5) दोस्त पांडे शिक्षा प्रणाली (Defective Education system) शिक्षित बेरोजगारी के लिए भारत की दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली कम जिम्मेदारी नहीं है। यहाँ की शिक्षा प्रणाली सैद्धान्तिक है व्यावहारिक नहीं। यहाँ शिक्षा को उत्पादक बनाने का प्रयास ठीक ढंग से नहीं किया गया, जिससे यहाँ का युवक शारीरिक श्रम को हेय समझता है और एम० ए० ,बी० एकी डिग्री लेकर बाबू की नौकरी करना चाहता है। उसे कार्यालय में कम पैसे में काम करना पसन्द है। वह वर्कशाप में काम करना पसन्द नहीं करता।

(6) नियोजन का अभाव (Lack of Planning)- भारत में आर्थिक विकास के लिए कृषि, वाणिज्य, औद्योगिक परिवहन आदि अनेक क्षेत्रों में विशिष्ट कार्य प्रारम्भ किये गये परन्तु इन क्षेत्रों में कार्य करने के लिये आवश्यक जनशक्ति की संख्या का न अनुमान किया गया और न शिक्षा में इस दृष्टि से परिवर्तन किये गये। इसका परिणाम यह हुआ कि जिन कार्य क्षेत्रों में प्रशिक्षित कार्यक्रमों की माँग थी वहाँ अभाव बना रहा और जहाँ माँग नहीं थी वहाँ प्रशिक्षित व्यक्तियों की संख्या बढ़ती गयी। नियोजन के इस अभाव के कारण लाखों की संख्या में प्रशिक्षित नवयुवक बेरोजगार रहकर सड़क पर घूमते दिखाई देने लगे।

शिक्षित बेरोजगारी दूर करने के उपाय

(Way to Remove Educational Unemployment)

शिक्षित बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिये कुछ उपाय निम्न प्रकार हो सकते हैं-

(1) माँग पूर्ति के सिद्धान्त के आधार पर शिक्षा नियोजन (Planning of Education on Demand and Supply basis)- देश में औद्योगीकरण की प्रक्रिया चल रही है। इस प्रक्रिया में माँग और पूर्ति का सही ढंग से तालमेल किया जाये तो इस समस्या को काबू किया जा सकता है। इसके लिए औद्योगिक विकास की दर को बढ़ाना आवश्यक होगा। यदि औद्योगिक दर में दस प्रतिशत की वृद्धि कर दी जाये तो शीघ्र ही सभी स्नातक रोजगार पा सकते हैं। ऐसी योजनाएं शुरू की जानी चाहियें जिनसे स्वरोजगार के अवसरों में बढ़ोत्तरी हो। ग्रामीण क्षेत्र में कृषि, पशुपालन, वन विकास, मत्स्य पालन तथा इसी तरह की अन्य योजनाओं को बड़े स्तर पर चालू किया जाये तो बेरोजगारी के साथ-साथ बड़े नगरों की ओर दौड़ पर नियंत्रण किया जा सकता है।

(2) शिक्षा नीति में परिवर्तन (Change in Educational Policy) – शिक्षा नीति का निर्धारण कुछ इस प्रकार किया जाये कि स्नातकों की बहुत बड़ी फौज बनने से रुके। माध्यमिक स्तर पर ही छात्र रोजगार पाने में सफल हो सकें। प्राथमिक शिक्षा और प्रौढ़ शिक्षा पर अधिक बल दिया जाना चाहिए जो सीधे रोजगार से जुड़ती हों। विश्वविद्यालयों में औपचारिक शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन किया जाना चाहिए। इसके लिए पत्राचार तथा संध्याकालीन शिक्षा व्यवस्था प्रारम्भ करनी चाहिए।

(3) शिक्षा का व्यवसायीकरण (Vocationalization of Education) – शिक्षा के प्रत्येक स्तर के बाद व्यावसायिक प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध करायी जाये जिससे उच्च स्तर की शिक्षा पर संख्या बोझ अधिक न हो तथा उच्च स्तर पर भी व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था हो तो नौकरियों की तलाश करने वाले युवकों की संख्या में अपने आप कमी आयेगी।

(4) उत्पादनोन्मुखी शिक्षा की व्यवस्था (Arrangement of Productive Education)- शिक्षा के द्वारा उन कुशलताओं और योग्यताओं का विकास किया जाये जो उत्पादन की दृष्टि से सार्थक हों। ऐसी शिक्षा युवकों को शिक्षा काल में ही उत्पादन से जोड़ देगी और उत्पादन कुशलता प्राप्त युवक उसी उत्पादन में लग जायेंगे और बेकार नहीं रहेंगे।

(5) उच्च शिक्षा पर नियंत्रण (Control on Higher Education)- बेरोजगारी रोकने और उसे धीरे-धीरे दूर करने के लिए उच्च शिक्षा में प्रवेश पर नियंत्रण लगाया जाना चाहिए। उच्च शिक्षा में केवल योग्य, प्रतिभाशाली तथा सक्षम विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जाना चाहिए जिससे वे शिक्षा प्राप्त कर अपनी योग्यता और क्षमता के आधार पर रोजगार प्राप्त कर सकें और उन्हें रोजगार के लिए भटकना न पड़े।

(6) कुटीर और लघु उद्योगों को प्रोत्साहन (Encouragement to Cottage and Small Industries)- आज औद्योगिक क्षेत्र में बड़े-बड़े कारखाने तथा फैक्टरियाँ खुल रही हैं जहाँ स्वचालित मशीनों से कार्य हो रहा है, जिससे रोजगार के अवसर कम हुए हैं । ग्रामीण स्तर पर कुटीर तथा लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देकर हम युवकों को रोजगार देने में सक्षम हो सकते हैं।

इसी प्रकार बेरोजगारी को दूर करने के अन्य उपायों को भी उपयोग में लाया जा सकता है, जैसे-देश में विकास कार्यों की दूरी बढ़ाकर, श्रम के प्रति हेय भाव को समाप्त करके आदि। वास्तव में शिक्षा और रोजगार को अलग-अलग रखकर विचार करना चाहिए। शिक्षा बालक के बहुमुखी विकास की प्रक्रिया है इसका सीधा सम्बन्ध रोजगार या नौकरी से नहीं है। यह धारणा शिक्षित व्यक्तियों में स्पष्ट की जानी चाहिए।

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Pankaja Singh

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