अर्थशास्त्र

सेन्ट साइमन के आर्थिक विचार | रोबर्ट ओवन के आर्थिक विचारों

सेन्ट साइमन के आर्थिक विचार | रोबर्ट ओवन के आर्थिक विचारों

सेन्ट साइमन के आर्थिक विचार

(Economic Ideas of Saint Simonian)

सेन्ट साइमन का जन्म फ्रांस के एक उच्च कुल में सन् 1760 में हुआ था। इन्होंने अमरीका के स्वतन्त्रता संग्राम में भी भाग लिया, जिसके फलस्वरूप उन्हें जेल में डाल दिया गया। जेल से छूटने के बाद वे एक नये औद्योगिक समाज की रचना में लीन हो गये। उनका देहान्त सन् 1825 में हुआ। इन पर यूरोप की औद्योगिक क्रान्ति, अमरीका के स्वतन्त्रता संग्राम, सन् 1789 की फ्रांसीसी क्रान्ति एवं Sismondi, Godwin, Fourier आदि समकालीन विद्वानों का बहुत प्रभाव पड़ा। इनकी प्रमुख पुस्तकें निम्न हैं – Industry (1817), The Industrial System (1821) तथा Questions and Answers on Industry (1823)। सेन्ट साइमन के तीन मुख्य आर्थिक विचार हैं, यथा- (1) सामाजिक वर्ग, (2) समाज के दो वर्ग तथा (3) औद्योगिक सरकार।

(1) समाज के दो वर्ग-श्रमिक वर्ग एवं निठल्ला वर्ग

सेन्ट साइमन का कहना था कि समाज दो वर्गों में बँटा है-श्रमिक वर्ग एवं सम्पत्तिधारी वर्ग। ‘श्रमिक’ में उन्होंने उद्योग-धन्धों में काम करने वाले लोगों के अतिरिक्त उद्योगपति, कलाकार, सरकारी कर्मचारी, किसान आदि को सम्मिलित किया था। उनकी सम्पत्ति में ये लोग उत्पादक हैं। किन्तु दूसरे वर्ग के लोग (जैसे-राजनैतिक नेता, नोबुल्स आदि) अनुत्पादक तथा समाज पर भार- स्वरूप हैं। इस प्रकार साइमन ने समाज को पूँजीपति एवं श्रमिक वर्गों में बाँटने के बजाय इसके दो वर्ग-‘श्रमिक वर्ग’ एवं ‘बेकार वर्ग’ रखे थे। इनके हित परस्पर विरोधी हैं। उसने श्रमिक वर्ग के लोगों को श्रेष्ठ प्रमाणित किया और बताया कि समाज में सामन्तों व धनी लोगों का अधिक ध्यान रखा जाता है, जबकि वे कुछ काम नहीं करते; किन्तु वास्तविक काम करने वालों (अर्थात् श्रमिकों) की उपेक्षा की जाती है। अत: सेन्ट साइमन ने सामाजिक संगठन को सुधारने का प्रस्ताव रखा।

(2) औद्योगिक समाज

सेन्ट साइमन जिस समाज की स्थापना करना चाहता था उसका आधार औद्योगीकरण था। यह ऐसा समाज था, जो उद्योग के विकास के लिए प्रयल करेगा, क्योंकि उद्योग ही वास्तविक सम्पत्ति का स्रोत है। ऐसे समाज में नोबुलों, पादरियों आदि के लिए कोई स्थान न होगा, क्योंकि ये लोग निठल्लों के वर्ग में आते हैं, किन्तु मजदूर, श्रमिक, दस्तकार, निर्माता, बैंकर, कलाकार एवं वैज्ञानिक उक्त समाज के प्रमुख नागरिक होंगे। सेन्ट साइमन के समाज में सब लोगों के साथ समानता का व्यवहार होगा और सबको उन्नति के बराबर अवसर मिलेंगे। प्रत्येक व्यक्ति अपनी उत्पादन क्षमता के अनुसार उपार्जन करेगा। पूँजी का भी उसको समुचित हिस्सा मिलेगा। स्पष्ट है कि नवीन समाज में प्राइवेट सम्पत्ति का उन्मूलन नहीं किया जाता था। हाँ, सेन्ट साइमन वर्ग सम्बन्धी भेद-भाव को समाप्त करना चाहता था।

(3) औद्योगिक सरकार

सेन्ट साइमन की कल्पना के नये औद्यागिक समाज की सरकार अनिवार्यतः किसी अन्य प्रकार को राजनैतिक सरकार से भिन्न है। उनका कहना था कि सारा देश एक आदर्श भौगोलिक वर्कशाप के नमूने पर संगठित किया जाय। नये औद्योगिक समाज में साहसियों, श्रमिक एवं उपभोक्ताओं के हितों का समन्वय होना चाहिए। नई सरकार का मुख्य कार्य पब्लिक वर्क्स का निर्माण, उत्पादकों की सुरक्षा करना तथा अनुत्पादक तत्वों को दबाये रखना होगा। न्याय सुरक्षा की व्यवस्था करना नहीं, वरन् सरकार के संचालन के लिए दो लेजिसलेटिव चेम्बर्स और एक चेम्बर ऑफ डिपुटीज होने चाहिए। एक लेजिसलेटिव चेम्बर उद्योग, विज्ञान एवं व्यापार का प्रतिनिधि होगा। ये जो प्रस्ताव करेंगे उन्हें अन्तिम रूप से चेम्बर ऑफ डिपुटीज द्वारा स्वीकृत या अस्वीकृत किया जावेगा। समस्त सन्नियम का उद्देश्य राष्ट्रीय सम्पत्ति का विकास करना होगा। इस प्रकार, सरकार के संगठन का स्वरूप आर्थिक रखा गया है, राजनैतिक नहीं। वह शक्ति या आज्ञा के बजाय प्रबन्ध और निर्देशन का भार ग्रहण करेगी।

सेन्ट साइमन के उद्योगवाद के अध्ययन से ऐसा प्रतीत होता है कि इसका संगठन समाजवादी सिद्धान्तों पर किया गया है, अत: यह एक समाजवादी संगठन है। परन्तु यह धारणा गलत है,क्योंकि उसमें सम्पत्ति साधनों पर प्राइवेट सम्पत्ति को समाप्त नहीं किया जाना था। वास्तव में यह एक सामूहिक संगठन (collective organisation) है, जिसका नियोजन एवं नियन्त्रण एक केन्द्रीय सत्ता के हाथ में है। उसके समुदायवाद सम्बन्धी विचार ने ब्ला व अन्य फ्रांसीसी समाजवादियों को बहुत प्रभावित किया। यही कारण है कि इन्होंने भी राज्य का संगठन एक कारखाने की भाँति करना चाहा। मार्क्स और ऐन्जिल भी उससे बहुत प्रभावित हुए थे। प्रोधों पर भी उसका काफी प्रभाव पड़ा।

रोबर्ट ओवन के आर्थिक विचार

(C) (Robert Owen) रोबर्ट ओवन (1771-1858)

महान समाज सुधारक रोबर्ट ओवन का जन्म इंग्लैण्ड में सन् 1771 में हुआ था। वे एक साधारण शिल्पी परिवार से थे। उन्होंने अपने जीवन में जो प्राप्त किया वह अपने परिश्रम से ही किया। पहले वे एक कपड़े के कारखाने में काम करते थे। अपनी योग्यता के बल पर शीघ्र ही के न्यूलेनार्क मिल्स के सहयोगी, स्वामी और संचालक बन गये। उन्हें ‘अंग्रेजी समाजवाद का जनक’ कहा जाता है।

रोबर्ट ओवन के काल में कारखाना प्रणाली काफी विकास कर चुकी थी। पूँजीपति श्रमिकों का खुला शोषण कर रहे थे। सरकार ने निर्बाधावाद की नीति अपनाई हुई थी, जिसका दुखद परिणाम यह हुआ कि पूँजीपतियों और शक्ति सम्पन्न लोगों का देश में बहुत प्रभाव बढ़ गया। श्रमिकों की दशा सुधारने के लिए सरकार ने कोई प्रयत्न नहीं किया। रोबर्ट ओवन ने इन दुष्परिणामों को अपनी आँखों से देखा और उन पर विचार किया तथा वे इसे बदलने के लिए प्रयत्नशील हुए। उन्होंने इस सम्बन्ध में सैद्धान्तिक विचार व सुझाव ही नहीं दिये वरन् कुछ क्रियात्मक कदम भी उठाये। अपने कारखाने में उन्होंने श्रमिकों के हितार्थ कई कदम उठाये. जैसे-कार्य के घण्टे घटना, बच्चों को काम पर लगाने पर निषेध करना, श्रमिकों के लिए सस्ती वस्तुओं की व्यवस्था, उनके लिए लघु आवासों का निर्माण, मामूली त्रुटियों पर दण्ड देने बन्द करना और श्रमिक बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था।

उपर्युक्त कार्यों ने रोबर्ट ओवन को एक सुधारक के रूप में प्रसिद्ध बना दिया। उनकी न्यूलेनार्क फैक्ट्री एक आदर्श संस्था बन गई, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से समाज सुधारक लोग आये थे। 1815 में रोबर्ट ओवन ने अपना न्यूलेनार्क का व्यवसाय छोड़कर सामुदायिक प्रयोगों की योजना बनाई। सन् 1825 में इंडियाना (अमेरिका) में न्यू हारमनी कोलोनी, स्काटलैण्ड में आरविस्टन तथा हैम्पशायर में अपने उपनिवेशों की स्थापना की। उन्होंने 1832 में एक राष्ट्रीय श्रम संघ गठित किया तथा नेशनल इक्विटेबिल लेबर एक्सचेन्ज स्थापित किया। सन् 1814 से 1850 तक वे कारखाना सुधारों पर लेख लिखते रहे, जिनको काफी प्रसिद्धि मिली।

रोबर्ट ओवन के प्रमुख आर्थिक विचारों की झाँकी आगे करायी गई है-

(1) श्रम कानून- रोबर्ट ओवन का विश्वास था कि मनुष्य अपने वातावरण से प्रभावित होता है। यदि वातावरण को सुधार दिया जाय तो निश्चित रूप से उसकी मानसिक एवं नैतिक उन्नति होगी। इसी विश्वास के कारण उन्होंने अपने कारखाने में अनेक सुधार किये, जिसके अच्छे परिणाम हुए। किन्तु अन्य उद्योगपतियों ने इन सुधारों से प्रेरणा लेने के बजाय उनकी कटु आलोचना की। रोबर्ट ओवन ने इनको आलोचनाओं का उत्तर देते हुए स्पष्ट किया कि श्रमिकों की कार्य- दशायें सुधारने और उन्हें पर्याप्त पुरस्कार देने से उनकी कार्यकुशलता बहुत बढ़ जायेगी। वे वास्तव में उत्तम यन्त्र हैं, जिनके रख-रखाव पर समुचित ध्यान देने से वे कहीं अधिक उत्पादन कर सकते हैं। उनको उत्तम दशा में रखना और उसके साथ उत्तम व्यवहार करना आवश्यक है। उनके विचारों, सुझावों एवं सुधारों को अनदेखा कर दिया गया। इस पर भी ओवन ने श्रम विधान (Labour Legislation) के निर्माण के लिए मार्ग बना ही दिया। कई श्रम कानून उनके विचारों पर आधारित थे।

(2) बस्तियों के निर्माण की योजना- अपने प्रयत्नों की न्यून सफलता से रोबर्ट ओवन हतोत्साहित नहीं हुए, वरन् उन्होंने अधिक क्रान्तिकारी कदम उठाने की योजना बनाई। उन्होंने बदले हुए वातावरण के सुपरिणाम को सजीव रूप से प्रदर्शित करने हेतु अपनी ही पूँजी से दो बस्तियों का निर्माण किया। किन्तु इनका यह प्रयोग भी असफल हुआ, क्योंकि इनमें रहने वाले लोग बड़े स्वार्थी, अनपढ़ और जिद्दी स्वभाव के थे।

(3) लाभ का विरोध और श्रम पत्र एवं श्रम बाजार की योजना-ओवन का विश्वास था कि लाभ समस्त बुराइयों की जड़ है। लाभ को ध्यान में रखकर उत्पादन किया जाता हैं. उपभोक्ताओं के हित का नहीं। लाभ से आशय उस राशि का है जो कि लागत व्यय से अतिरिक्त प्राप्त की जाती है। लाभ के कारण ही श्रमिक अपने श्रम के मूल्य के बराबर वस्तु नहीं खरीद पाता है। लाभ की प्राप्ति के लिए व्यापारी लोग वस्तु का मूल्य बढ़ा देते हैं। लाभ ही आर्थिक संकटों और बेरोजगारी का मूल है।

लाभ की समाप्ति के लिए वे प्रतियोगिता को समाप्त करने के पक्ष में थे। उनका कहना था कि ‘लाभ और प्रतियोगिता अभिन्न हैं। अर्थात् प्रतियोगिता को समाप्त किये बिना लाभ की समाप्ति असम्भव है।’ उनके मतानुसार सोना और द्रव्य लाभ को बढ़ावा देते हैं, क्योंकि लाभ की प्राप्ति द्रव्य या सोने के रूप में की जाती है। अत: मनुष्य को सुखी करने के लिए द्रव्य को समाप्त करना होगा। इस सम्बन्ध में उन्होंने श्रम पत्रों का विचार (concept of labour notes) प्रस्तुत किया।

श्रम पत्रों के विचार को कार्य रूप देने हेतु उन्होंने सन् 1832 में नेशनल ईक्विटेबल लेबर एक्सचेन्ज (श्रम बाजार) स्थापित किया। इस बाजार का प्रत्येक सदस्य अपनी बनाई हुई वस्तु को वहाँ जमा करा देता था। बदले में उसे किए गए कार्य घण्टों के हिसाब से श्रम पत्र मिल जाते थे। इन श्रम पत्रों की सहायता से वह बाजार से अन्य वस्तुएँ खरीद सकता था। इस प्रकार उत्पादन और उपभोक्ता के बीच दूरी कम हो गई और मध्यस्थ समाप्त कर दिये गये। दुर्भाग्यवश श्रम बाजार योजना भी असफल रही, जिसके निम्नांकित कारण थे-

(i) अधिक श्रम पत्र पाने के लोभ से सदस्यगण अपनी वस्तु का अधिक श्रम मूल्य बनाते थे।

(ii) अच्छी वस्तुओं को तो वे खुले बाजारों में बेच देते थे और निकम्मी वस्तुएँ बाजार में लाते।

(iii) श्रम पत्रों पर श्रमिक विशेष का नाम न लिखा होने से इन्हें व्यापारियों द्वारा खरीद लिया जाता था, जो फिर इनके बदले श्रम बाजार से वस्तुयें सस्ती ले आते और जब श्रमिक उनके पास वस्तुएँ लेने पहुंचते, तो श्रम नोटों को स्वीकार नहीं करते थे।

(iv) वस्तु के मूल्य को श्रम के द्वारा मापने का प्रभाव यह हुआ कि कुशल श्रम के स्थान पर अकुशल श्रम को प्रोत्साहन मिला।

आलोचनात्मक मूल्यांकन

(Critical Evaluation)

असफल होने के बावजूद रोबर्ट ओवन को आर्थिक विचारों के इतिहास में सदैव सम्मानित स्थान दिया जायेगा। उनको श्रम कानूनों का जन्मदाता, रोग निदान श्रम का संस्थापक कहा जाता है। उनके वातावरण सम्बन्धी विचारों से साम्यवादियों को नवीन समाज को स्थापना के लिए प्रेरणा मिली। श्रमिकों को मजदूरी आवश्यकतानुसार मिलनी चाहिए योग्यतानुसार नहीं, यह कह कर उन्होंने लोगों का ध्यान सामाजिक समानता के प्रति आकर्षित किया। उनके लाभ विरोध से प्रेरणा लेते हुए साम्यवादियों ने आगे चलकर लाभ और द्रव्य को समाप्त करने का प्रयत्न किया। उनके श्रम मूल्य सिद्धान्त को कार्ल मार्क्स ने पूंजीवाद पर आक्रमण करने का शस्त्र बनाया। श्रमिकों, शिल्पियों और उपभोक्ताओं के सहयोग से लाभ को समाप्त करके उन्होंने सहकारी आन्दोलन के लिए मार्ग बनाया। वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने साम्यवाद शब्द का प्रयोग किया।

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Pankaja Singh

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