अर्थशास्त्र

सीमा प्रशुल्क की माप | सीमा प्रशुल्क के प्रभाव | measurement of customs duty in Hindi

सीमा प्रशुल्क की माप | सीमा प्रशुल्क के प्रभाव | measurement of customs duty in Hindi

सीमा प्रशुल्क की माप

(Measurement of the height of Tariffs)

प्रशुल्क स्तर ही सीमा प्रशुल्क की ऊंचाई (The Height of Tariffs) कहलाती है। किसी देश में सीमा प्रशुल्क कम लगाये गये हैं अथवा अधिक। इसकी माप करने हेतु कोई उपाय ढूंढना चाहिए।

सीमा प्रशुल्क की ऊंचाई को मापने का एक सरल एवं संभव उपाय यह है कि आयात करों से प्राप्त कुल राशि की आयात की गई वस्तुओं के कुल मूल्य से विभाजित करके एवं प्रतिशत के रूप में ज्ञात किया जाना चाहिए अर्थात्-

आयात करों से प्राप्त राशि/आयातित वस्तुओं का कुल मूल्य x 214

सीमा प्रशुल्क के प्रभाव

(Effects of Tariffs)

सीमा प्रशुल्क प्रभावों का सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के संदर्भ में या किसी एक वस्तु विशेष के संबंध में भी अध्ययन किया जा सकता है। सीमा प्रशुल्कों का आयात की मात्रा, कीमतों, उत्पादन व उपभोग पर काफी प्रभाव पड़ता है। व्यापार की शर्ते व भुगतान संतुलन भी प्रशुल्क दरों से प्रभावित होते हैं। सीमा प्रशुल्कों के विभिन्न प्रभावों का अध्ययन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-

  1. संरक्षणात्मक प्रभाव (The Protective Effect)- सीमा प्रशुल्क घरेलू उद्योगों को संरक्षण देने तथा आयात की मात्रा को नियन्त्रित करने के लिए एक प्रतिशोधात्मक उपाय (Restrictive method) है।

सीमा प्रशुल्क के संरक्षणात्मक प्रभाव को निम्न रेखाचित्र से समझाया जा सकता है।

चित्र में सीमा प्रशुल्क से पूर्व मूल्य OP पर Q1, Q4 आयात की मात्रा दिखाई गई है। सीमा प्रशुल्क P1 का विदेशी प्रस्तुत मूल्य पर कोई प्रभाव नहीं दिखाया गया है क्योंकि मूल्य OP पर आयात की पूर्ति में अपरिमित लोच है। संरक्षणात्मक प्रभाव को घरेलू उत्पादन वृद्धि QQ1 द्वारा दिखाया गया है। उपभोग प्रभाव (Consumption Effect) कुल उपभोग में कमी Q3Q4 के रूप में व्यक्त किया गया है। सीमा प्रशुल्क लग जाने से घरेलू कीमतें OP से बढ़कर OP1 हो जाती है। कीमतों में वृद्धि के परिणामस्वरूप घरेलू उत्पादकों को उत्पादन OQ1 से बढ़ाकर OQ1 करना संभव हो जाता है। घरेलू उत्पादन QQ1 की वृद्धि सीमा प्रशुल्क संरक्षणात्मक प्रभाव की माप है।

सीमा प्रशुल्क के संबंध में संरक्षणात्मक प्रभाव की मात्रा का निर्धारण पूर्ति वक्र की लोच से लिया जाता है। चित्र में न्यूनतम सीमा प्रशुल्क के कारण P2 कीमत पर किसी प्रकार का आयात नहीं होगा।

  1. राजस्व प्रभाव (Revenue Effect)- राजस्व के लिए लगाया गया सीमा प्रशुल्क वह होता है जिसके अन्तर्गत संरक्षणात्मक तथा पुनर्वितरण प्रभावव नहीं होते हैं। सीमा प्रशुल्क की इस मान्यता पर विदेशों में इससे कीमतें गिरती हैं, उपभोग प्रभाव समाप्त हो जाता है तथा इसके परिणामस्वरूप प्रभाव के रूप में कर भार विदेशी उत्पादकों द्वारा वहन करने पड़ेंगे। राजस्व की प्राप्ति हेतु सीमा प्रशुल्क उन्हीं वस्तुओं पर लगाए जाते हैं जिनका देश में उत्पादन नहीं किया जा सकता अथवा देशी उत्पादन पर समान कर लगाया जाता है ताकि संरक्षणात्मक एवं पुनर्वितरण प्रभाव को समाप्त किया जा सके।

चित्र से राजस्व प्रभाव का अध्ययन किया जा सकता है। यदि सरकार PP2 आयात कर लगाती है तो यह दर अत्यधिक ऊंची होने से आयात बन्द हो जायेंगे तथा सरकार को कोई भी राजस्व प्राप्त नहीं होगा। दूसरे शब्दों में इस सीमा प्रशुल्क का कोई भी राजस्व प्रभाव नहीं होगा। परन्तु याद सीमा प्रशुल्क की दर बहुत ऊँची नहीं रखी जाती है, उदाहरणार्थ यदि यह PP1 रखी जाती है तो आयात की मात्रा Q1Q3 होगी। इस चित्र मे MBRN आयात सीमा प्रशुल्क के राजस्व प्रभाव को प्रदर्शित किया गया है।

  1. उपभोग प्रभाव (Consumption Effect)- सीमा प्रशुल्क लगाने से वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं तथा इससे उपभोग की मात्रा में कमी हो जाती है। उपभोग प्रभाव सामान्यतः हमेशा प्रतिकूल होता है। उपभोग की कमी माँग की लोच पर निर्भर होती है। उपभोक्ता जिस वस्तु या मद का सदैव क्रय करता है, सीमा प्रशुल्क में वृद्धि के कारण इस पर उसे अधिक व्यय करना पड़ता है। चित्र में सीमा प्रशुल्क लगने से उपभोग Q3Q4 मात्रा के बराबर कमी होती है।

प्रशुल्क के कारण उपभोक्ताओं की सन्तुष्टि की हानि PP1 BC क्षेत्र के द्वारा प्रदर्शित की गई है। उपभोक्ता की सन्तुष्टि की हानि, सीमा प्रशुल्क लगने से पहले कम मूल्य पर वस्तु की अधिक मात्रा के उपभोग से प्राप्त सन्तुष्टि तथा सीमा प्रशुल्क लगाने के पश्चात् अधिक मूल्य पर वस्तु की कम मात्रा के उपभोग से प्राप्त सन्तुष्टि के अन्तर बराबर होती है।

उपभोक्ता की सन्तुष्टि की कुल हानि. में से सरकारी आय NMBR तथा उत्पादकों को हस्तान्तरित की गई बचत PP1 MN को घटाने पर समाज को होने वाली शुद्ध हानि LMN तथा BRC दो त्रिकोणों से प्रदर्शित है।

  1. पुनर्वितरण प्रभाव (Redistribution Effect)- सीमा प्रशुल्क लगाने से घरेलू कीमतों में वृद्धि होने की प्रवृत्ति होती है। इससे उत्पादकों की आय में वृद्धि होती है तथा उपभोक्ताओं को प्राप्त बचत अथवा आधिक्य (Surplus) घटने लग जाता है। दूसरे शब्दों में उपभोक्ताओं की वास्तविक आय में कमी हो जाती है। सीमा प्रशुल्क का यह प्रभाव स्थानान्तरण प्रभाव (Transfer Effect) कहलाता है। उत्पादकों की आय में वृद्धि सीमान्त लागतों के ऊपर प्राप्त बचत है जो उपभोक्ताओं की बचत में से घटाकर निकाली जाती है। यह उत्पादकों के लिए एक प्रकार से आर्थिक लगान (Economic Rent) है। चित्र में PLMP1 द्वारा इस प्रभाव को प्रदर्शित किया गया है।
  2. व्यापार शर्तों पर प्रभाव (Terms of Trade Effect)- सीमा प्रशुल्क को किसी भी देश की व्यापार शर्तों पर पड़ने वाले प्रभाव के संबंध में अर्थशास्त्रियों में मतैक्य नहीं रहा है। परम्परावादी अर्थशास्त्री सीमा प्रशुल्क का विरोध करते थे और उनके अनुसार स्वतन्त्र व्यापार से श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण के माध्यम से उत्पादकता में वृद्धि होती है। इससे सभी देशों को लाभ प्राप्त होता है। नव-प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों (New-classical Economits) के मतानुसार सीमा प्रशुल्क से कुछ पस्थितियों में ही व्यापार की शर्तों में सुधार होता है। परन्तु प्रो० मार्शल का कहना उचित है कि कोई अकेला देश सीमा प्रशुल्कों के माध्यम से व्यापार की शर्तों में सुधार नहीं कर सकता है। इसीलिये उनके अनुसार व्यापार शर्तों को सुधारने में सीमा प्रशुल्क एक महत्त्वहीन उपकरण है।

परन्तु आधुनिक अर्थशास्त्री जैसे कालडोर, सैम्युल्सन तथा साइरोवस्की आदि उपर्युक्त दोनों ही विचारों से सहमत नहीं हैं। इनके अनुसार सीमा प्रशुल्कों को व्यापार शर्तों में सुधार करने के एक उपकरण के रूप में काम में लाया जा सकता है।

प्रो० मेटजलर ने भी सीमा प्रशुल्कों के व्यापार की शर्तों पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करके निम्नांकित निष्कर्ष निकाले हैं-

(i) यदि संबंधित देश के निर्यातों की माँग की लोच से अनन्त है तो सीमा प्रशुल्कों से व्यापार की शर्तों में सुधार नहीं होगा। इससे उत्पादन के साधनों का आवण्टन विछिन्न हो जायेगा तथा वास्तविक आय में कमी हो जायेगी। लेकिन आयात प्रतिस्थापन उद्योगों को प्रोत्साहन मिलेगा क्योंकि निर्यात के देशी मूल्यों की तुलना में आयातों के देशी मूल्य बढ़ जायेंगे।

(ii) यदि सीमा प्रशुल्क लगाने वाले राष्ट्र के निर्यातों की मांग लोचदार है तो आयातों के विश्वमूल्य घट जायेंगे परन्तु निर्यातों के मूल्य नहीं बढ़ेगे। इससे व्यापार की शर्ते सुधर सकेंगी।

(iii) यदि सीमा प्रशुल्क लगाने वाले देश के निर्यातों की मांग बेलोचदार है तो इससे व्यापार की शर्तों में सुधार होगा तथा देश की वास्तविक आय में भी वृद्धि होगी।

व्यापार शर्तों पर सीमा प्रशुल्क के प्रभाव को निम्न चित्र द्वारा प्रदर्शित किया गया है-

उपरोक्त चित्र में सीमा प्रशुल्क लगाने से पूर्व दोनों ही देशों में (आयातक देश व निर्यातक देश) कीमत P है और सीमा प्रशुल्क के पश्चात् कीमतें दोनों देश में P1 हो जाती है अर्थात् निर्यातक देश में कीमत में थोड़ी कमी तथा आयातक देश में वृद्धि होगी क्योंकि दोनों ही देशों में मांग और पूर्ति की लोच लगभग समान ही है। जब निर्यातक देश में कीमतें कम हो जाती हैं तो स्पष्टतः वहां सस्ती दर पर वस्तुएं उपलब्ध हो सकेंगी। इसके विपरीत आयातक देश में कीमतों में वृद्धि होने से आयातकर्ता देश के उपभोक्ताओं को अधिक कीमतें देनी पड़ेगी। परन्तु राजस्व प्रधान (Revenue Effect) के माध्यम से आयात में उसकी क्षतिपूर्ति हो जाती है। चित्र से स्पष्ट है कि आयातकर्ता देश पर सीमा प्रशुल्क का भार अपेक्षाकृत अधिक है।

परन्तु जब निर्यातक देश (A)में पूर्ति अपेक्षाकृत बेलोचदार होती है तथा आयातकर्ता देश (B) में मांग लोचदार होती है जैसा कि चित्र में प्रदर्शित किया गया है तो निर्यातकर्ता देश को सीमा प्रशुल्क के भारी मांग को स्वयं ही वहन करना होगा। इसका अर्थ यह हुआ कि व्यापार की शर्ते आयातकर्ता देश के पक्ष में हो जायेंगी क्योंकि सीमा प्रशुल्क के कारण आयातों में कोई अधिक परिवर्तन नहीं होगा और साथ ही वस्तुओं को सस्ती कीमतों पर आयात किया जा सकेगा।

  1. भुगतान संतुलन के प्रभाव (Balance of Payment Effect)- सीमा प्रशुल्क आयातों तथा मूल्यों को प्रभावित करता है। अत: इससे भुगतान सन्तुलन प्रभावित हो जाता है। जब किसी देश का भुगतान सन्तुलन भी विपक्ष या घाटे में होता है तो इसे सीमा प्रशुल्क की सहायता से सन्तुलन की स्थिति में लाया जा सकता है। एक देश आयात कर प्रतिबंधों की सहायता से अपने भुगतान सन्तुलन की असामयता को दूर किया जा सकता है। परन्तु इस प्रकार से प्राप्त भुगतान सन्तुलन की साम्यता की प्रक्रिया की आलोचना की जाती है।

सीमा प्रशुल्क लगाने से आयातों की कीमतें बढ़ जाती हैं जिससे उनकी माँगें घट जाती हैं तथा वे कम मात्रा में आयात किये जाते हैं । इस प्रकार इनसे व्यापार की शर्तों में सुधार हो सकता है तथा भुगतान सन्तुलन में साम्यात प्राप्त की जा सकती है।

  1. उत्पादन के साधनों पर प्रभाव (Effects on Means of Production)- उत्पादन के साधनों पर आयात कर लगाने से उनकी कीमतों में वृद्धि हो जाती है। इससे उन वस्तुओं तथा सेवाओं की लागत में वृद्धि हो जाती है। जिनमें इन साधनों का प्रयोग किया जा रहा है।
  2. वस्तु के मूल्य एवं विक्रय पर प्रभाव- सीमा प्रशुल्क का देश की कीमतों, उत्पादन व विक्रय पर भी प्रभाव पड़ता है जिसे आयात कर के प्रत्यक्ष प्रभाव (Direct Effects) भी कहते हैं।

सीमा प्रशुल्क का प्रत्यक्ष प्रभाव वस्तु के मूल्य और इसके विक्रय पर पड़ता है किन्तु यह प्रभाव कितना और कैसे पड़ता है, यह उत्पादन के नियमों और मांग की लोच पर निर्भर करता है।

(i) वृद्धिमान लागत नियम- इस स्थिति में निम्न चित्र से स्पष्ट किया गया है-

चित्र में SS वक्र (पूर्ति वक्र) आयात कर लगाने से पूर्व की स्थिति तथा S1S1 आयात कर लगाने के बाद की स्थिति को प्रदर्शित करते हैं। DD मांग वक्र है। आयात कर लगाने से पूर्व मांग वक्र (DD) और पूर्ति वक्र (SS) E बिन्दु पर काटते हैं। इस बिन्दु पर कीमत OP तथा विक्रय की जाने वाली वस्तु की मात्रा OQ है। परन्तु आयात कर लगाने पर इसकी कीमत में वृद्धि हो जाती है। कीमत OP1 तथा वस्तु की मात्रा OQ1 है। कीमत में वृद्धि आयात कर की मात्रा से कम है लेकिन वस्तु की विनिमय की जाने वाली मात्रा में अपेक्षाकृत अधिक कमी आई है क्योंकि वह 0Q से घटकर OQ1 हो गई है।

(ii) ह्रासमान लागत नियम (Law of Decreasing Cost)- के अन्तर्गत होने पर यदि देश आयात की जाने वाली वस्तु पर आयात कर लगाया जाता है तो आयात कर के कारण आन्तरिक मूल्यों में वृद्धि सामान्यतः आयात कर की राशि से कुछ अधिक होगी। इसका प्रभाव यह होगा कि ऊंचे मूल्यों के कारण आयात की मात्रा कम हो जायेगी। इसे चित्र से स्पष्ट किया गया है-

चित्र में SS तथा S1S1 क्रमशः आयात कर लगने से पूर्व तथा बाद के पूर्ति वक्रों को प्रदर्शित करते हैं। DD मांग वक्र है। कर लगाने से पूर्व मांग और पूर्ति वक्र E बिन्दु पर एक-दूसरे को काटते हैं इस बिन्दु पर विक्रय की जाने वाली वस्तु की मात्रा OQ तथा कीमत OP है। परन्तु वस्तु पर आयात कर लगाने के पश्चात् कीमत बढ़कर OP1 हो जाती है जबकि विनिमय की जाने वाली वस्तु की मात्रा घटकर OQ से OQ1 हो जाती है। चित्र से स्पष्ट है कि आयात कर की मात्रा में हुई वृद्धि की तुलना में कीमत स्तर में अधिक वृद्धि हुई है।

(iii) स्थिर लागत नियम (Law of Constant Cost)- के अन्तर्गत उत्पादन होने पर आयात कर लगाने से आन्तरिक कीमतों में कर की राशि के बराबर ही वृद्धि होगी। ऐसी स्थिति में देश की सम्पूर्ण पूर्ति आयातों द्वारा की जाएगी। यद्यपि ऊँची कीमतों के कारण आयात की मात्रा कम हो जाएगी। इसे चित्र सं० 17.6 से प्रदर्शित किया गया है-

चित्र में SS तथा S1S1 क्रमशः आयात कर लगाने से पूर्व वक्र तथा आयात कर लगाने के बाद का पूर्ति वक्र है। DD मांग वक्र है। आयात कर लगाने से पूर्व E सन्तुलन बिन्दु है जिस पर वस्तु की कीमत OP है तथा विनिमय की जाने वाली वस्तु की मात्रा OQ है। आयात कर लगाने के पश्चात सन्तुलन बिन्दु E1 है जिस पर वस्तु की विनिमय की जाने वाली मात्रा OQ1 तथा कीमत OP1 है चित्र से स्पष्ट है कि जितनी मात्रा कर की लगाई गई है उसी अनुपात में कीमत में वृद्धि होती है।

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Pankaja Singh

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