शिक्षाशास्त्र

सरकार द्वारा संचालित सतत् शिक्षा के अभिकरण | सतत् शिक्षा में राज्य एवं स्वेच्छा से संचालित अभिकरणों का कार्य | राज्य या सरकार द्वारा संचालित अभिकरणों का संरचनात्मक प्रारूप | राज्य द्वारा संचालित अभिकरण

सरकार द्वारा संचालित सतत् शिक्षा के अभिकरण | सतत् शिक्षा में राज्य एवं स्वेच्छा से संचालित अभिकरणों का कार्य | राज्य या सरकार द्वारा संचालित अभिकरणों का संरचनात्मक प्रारूप | राज्य द्वारा संचालित अभिकरण

सरकार द्वारा संचालित सतत् शिक्षा के अभिकरण

सतत् शिक्षा में राज्य एवं स्वेच्छा से संचालित अभिकरणों का कार्य

(Role of State and Voluntary Agencies in Continuing Education)

सतत शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी, अर्ध-सरकारी एवं स्वयंसेवी संस्थाओं का महत्वपूर्ण स्थान है।

राज्य या सरकार द्वारा संचालित अभिकरणों का संरचनात्मक प्रारूप

(Structural Frome of Government Agencies)

सतत् शिक्षा राष्ट्रीय योजना के रूप में स्वीकृत है अतः राज्य ने इसके विकास एवं प्रचार के लिए प्रयत्न किए हैं। इसके लिए औपचारिकेतर शिक्षा की योजना स्वीकृत है। इसके लिए सरकारों अभिकरण एवं उनके दायित्व निम्नलिखित हैं-

(1) केन्द्र सरकार- केन्द्र सरकार नीति निर्धारण योजना का अनुमोदन, बजट का निर्माण, धन का आवटन एवं अन्तर्राष्ट्रीय अभिकरणों से सम्पर्क एवं समन्वय का कार्य करती है।

(2) राज्य सरकार- उपर्युक्त कार्य एवं केन्द्रीय सरकार से सम्पर्क एवं समन्वय ।

(3) निदेशक : प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा राज्य में औपचारिकेतर शिक्षा- रात में औपचारिकेत्तर शिक्षा कार्यक्रम का नियोजन, अनुमोदन, धन का आवंटन एवं नियंत्रण करना, प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय, राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, अन्य प्रशिक्षण संस्थाओं, जिला शिक्षा अधिकारी आदि के कार्यों, दायित्वों का निर्धारण एवं समन्वय करने का कार्य करना।

(4) निदेशक प्रौढ़ शिक्षा- योजना के विस्तार, क्रियान्वयन, प्रगति का आकलन और शिक्षण सामग्री की मण्डल तक पहुंचाना।

(5) राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान (SIERT) – प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय की मदद से पाठ्यक्रम और पाठ्य सामग्री का निर्माण करना, एवं कार्यकर्त्ताओं को प्रशिक्षण देना, मूल्याँकन व निरीक्षण का प्रारूप तैयार करना।

(6) राज्य पाठ्य पुस्तक मण्डल- सार्वजनिक शिक्षा हेतु निर्मित पुस्तकों के प्रकाशन का दायित्व निभाना।

(7) जिला शिक्षा अधिकारी- यह जिला स्तर का अधिकारी होता है। यह प्रौढ़ शिक्षा निदेशक एवं (SIERT) से मार्ग दर्शन प्राप्त करता है। अनुदेशकों का प्रशिक्षण एवं कार्यक्रम का जिलास्तरीय मूल्यांकन करना इसका कार्य है।

(8) विकास अधिकारी- पंचायत समिति स्तर तक कार्यक्रम का संचालन केन्द्र खोलने का कार्य, अनुदेशकों की नियुक्ति, मानदेय भुगतान, पर्यवेक्षणों का सहयोग तथा पंचायत समिति के अन्य अभिकरणों से सहयोग प्राप्त करने का कार्य करता है।

राज्य द्वारा संचालित अभिकरण

सतत् प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रम संचालन का उत्तरदायित्व केन्द्र सरकार के ऊपर तथा राज्य सरकारों पर है। योजना का क्रियान्वयन एवं वित्त प्रबन्ध उन्हीं की जिन्मेदारी है। शिक्षा मन्त्रालय अन्य मन्त्रालयों की सहायता इस कार्य में लेता है। सरकार द्वारा चलाये जाने वाले कुछ कार्यक्रम निम्नलिखित हैं-

(1) ग्रामीण क्रियात्मक साक्षरता परियोजना (Rural Functional literacy Project : RFLP) – यह केन्द्र द्वारा संचालित कार्यक्रम है। इसका शत प्रतिशत खर्च सरकार वहन करती है। इस समय देश में लगभग 452 परियोजनाएँ चल रही हैं जिनका उद्देश्य प्रौढ़ शिक्षा प्रकल्पों का आयोजन, प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र खोलना आदि है इसकी वित्तीय व्यवस्था केन्द्र सरकार परन्तु प्रशासनिक व्यवस्था राज्य सरकारों को होती है।

(2) राज्य प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम State Adult Education Programme : SAEP)- यह कार्यक्रम राज्य सरकारों के आधीन है। अब राज्य निरक्षरता उन्मूलन एवं ग्रामीणों की समन्वित शिक्षा की ओर ध्यान दे रही है। पहल का चली आने वाली योजनाओं के साथ-साथ नये प्रकल्प लिए गये । पिछड़े क्षेत्रों की शिक्षा, महिलाओं की शिक्षा तथा अनुसूचित जाति व जनजाति तक साक्षरता पहुँचाने हेतु राज्य सरकारें प्रयत्नशील हैं।

(3) महिलाओं एवं बालिकाओं के लिए औपचारिकतर शिक्षा (Non formed Education for Women and Girls)- सरकार ने यूनीसेफ (UNICEF) की  सहायता से महिलाओं और बालिकाओं की औपचारिकेतर शिक्षा की विशिष्ट योजना चला रही है। इसका उद्देश्य पारिवारिक जीवन के घटकों तथा मातृ-शिशु कल्याण पर ध्यान देना है।

इस योजना के अन्तर्गत निन्नलिखित क्रिया-कलापों को मुख्य स्थान दिया गया है-

(I) मातृ-शिशु कल्याण से सम्बन्धित विषयों पर दृश्य सामग्रियों का विकास करना।

(II) विभिन्न स्तर के कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण सामग्रियों का निर्माण करना।

(III) राज्य संसाधन केन्द्रों और प्रौढ़ शिक्षा की क्षमता को सुदृढ़ करना।

(IV) केन्द्रों पर महिलाओं की उपस्थिति में सुधार लाने हेतु शिशु कल्याण सुविधाओं को चलाना।

(V) केन्द्रों और सामग्रियों की प्रभावकारिता ज्ञात करने हेतु, अनुसन्धान एवं मूल्याँकन कार्यो को करना।

(4) समन्वित बाल विकास सेवा योजना (Integrated Child Development Service Scheme: ICDS) – सन् 1975 में अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष के अवसर पर प्रौढ महिलाओं के लिए क्रियात्मक साक्षरता का कार्यक्रम सरकार द्वारा समन्वित बाल विकास सेवा परियोजना के अन्तर्गत चलाया गया है। इस कार्यक्रम में महिलाओं को-(i) स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य विज्ञान के तत्त्व, (ii) भोजन और पोषाहार, (iii) गृह प्रबन्ध और शिशु पालन, (iv) नागरिक शिक्षा, और (v) व्यावसायिक और रोजगार सम्बन्धी कौशलों की शिक्षा दी जाती है। इस कार्यक्रम का संचालन समाज कल्याण मन्त्रालय कर रहा है।

(5) प्रौढ़ महिला शिक्षा प्रोत्साहित पुरस्कार परियोजना (Incentive Awards Scheme for Formal Adult Literacy)

महिला प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम में प्रोत्साहन पुरस्कार परियोजना 1983-84 में आरम्भ की गयी। परियोजना का मुख्य उद्देश्य 15 से 35 आयु वर्ग की महिलाओं को साक्षरता प्रदान करना था। इस परियोजना में तीन श्रेणी के पुरस्कार हैं–(1) प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र स्तर; (2) जिला स्तर और (3) राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश स्तर केन्द्र स्तर के पुरस्कार सिलाई मशीनों, बुनाई मशीना, हस्त करघे, पुस्तकों और अन्य पाठ्य सामग्रियों के क्रम के लिए है। राज्यस्ता के पुरस्कार बहुउद्देशीय उपयोगी के लिए वाहन खरीदने हेतु हैं। राज्य स्तर का पुरस्कार महिला कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण केन्द्र खोलने के हेतु हैं। विभिन्न राज्यों में पुरस्कार के लिए प्रतियोगितात्मक भावना बनी रहे इसलिए साक्षरता की दृष्टि से लगभग समान स्तर के राज्यों का अलग-अलग समूह बनाये गए।

प्रत्येक समूह से राज्यस्तरीय पुरस्कार के लिए एक सर्वोत्तम राज्य को चुना जाता है। उसी प्रकार केन्द्र शासित में से एक को पुरस्कार के लिए चुना जाता है।

(6) श्रमिक विद्यापीठ- यह कार्यक्रम शिक्षा मन्त्रालय ने श्रमिकों की सतत् ‘शिक्षा के लिए चलाये गये हैं। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत आरम्भ में नागपुर और इन्दौर में श्रमिक विद्यापीठ की स्थापना की गयी। आज देश में इस प्रकार के लगभग 80 श्रमिक विद्यापीठ हैं। इनका उद्देश्य विभिन्न श्रेणी के शहरी श्रमिकों को शिक्षा और प्रशिक्षण देना है। इनके मुख्य उद्देश्य हैं, (1) उत्पादन बढ़ाने के लिए श्रमिकों को व्यावसायिक योग्यता में सुधार करना (2) उनके ज्ञान का विस्तार करना तथा (3) उनके जीवन को समृद्ध बनना है। ये विद्यापीठ संगठित और अर्ध संगठित क्षेत्र के उद्योगों में कार्य करने वाले शहरी क्षेत्र के मजदूरों के लिए औपचारिकेतर सतत् शिक्षा केन्द्रा के रूप में कार्य करते हैं।

(7) केन्द्रीय श्रमिक शिक्षा परिषद् (Central Board for Workers Education) – केन्द्र सरकार द्वारा संचालित यह परिषद् खान, कपड़ा आदि उद्योगों में कार्य करने वाले मजदूरों को साक्षर बनाने तथा उनमें क्रियात्मक सुधार लाने के लिए संगठित है। इस परिषद् ने निम्नस्तरीय कार्यक्रम चलाये।

प्रथम स्तर- पर पूर्णकालिक अधिकारियों के लिए चार माह का पाठ्क्रम है, इस पाठ्यक्रम के लिए वाणिज्य, अर्थशास्त्र तथा समाजशास्त्र के स्नातक अर्ह है।

द्वितीय स्तर- पर चुने हुए श्रमिकों को तीन माह का कोर्स कराया जाता है और उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि जिस स्थानों पर वे कार्यरत हैं वहाँ अध्ययन समूहों का संगठन करेंगे।

तृतीय स्तर- पर अध्ययन समूह आते हैं जिन्हें इकाई स्तर कक्षा (Want Level Class) भी कहते हैं।

इस पाठ्क्रम का मुख्य उद्देश्य मजदूर संघों का संगठन व कार्य, औद्योगिक सम्बन्धों की जानकारी, श्रम सम्बन्धी कानून, सामाजिक सुरक्षा, तथा नागरिक के रूप में उनकी भूमिका की जानकारी देना है।

साक्षरता उपरान्त और अनुवर्ती कार्यक्रम- ऐसे केन्द्रों पर जहाँ प्रौढ़ शिक्षा द्वारा साक्षरता प्रदान करने का कार्य पूरा हो चुका है वहाँ सतत् शिक्षा के कार्यक्रमों को संचालित करने के लिए अनुवर्ती कार्यक्रम की योजना सरकार द्वारा अपनायी गयी है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य लक्ष्य समूहों की साक्षरता को स्थायित्व प्रदान करने के साथ-साथ आत्म-निर्भरता एवं कार्य कुशलता प्रदान करना है। इस कार्यक्रम की सफलता के लिए प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय, राज्य सरकार, और राज्य संसाधन केन्द्र सम्मिलित प्रयास कर रहे हैं।

स्वैच्छिक अभिकरण (Voluntary Agencies)

इस श्रेणी के अभिकरणों के अन्तर्गत गैर सरकारी अभिकरण आते हैं। स्वैच्छिक अभिकरण क्रियात्मक साक्षरता, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण ग्रामीण विकास और ग्रामोद्योग के क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रहे हैं। इसके द्वारा बहुत से राज्यों में प्रौद शिक्षा केन्द्र चलाये जा रहे हैं। कुछ राज्यों में स्वैच्छिक संगठनों ने शिक्षण और अधिगम सामग्रियों के विकास का दायित्व लिया है। प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों पर साक्षरता अर्जित करने के पश्चात् नवसाक्षरों को शिक्षा के मार्ग पर और आगे बढ़ाने में इन स्वैच्छिक संस्थाओं का बहुत बड़ा योदान है। इन संगठनों द्वारा आर्थिक और अन्य विकास को गतिविधियों में ग्रामीणों की सहभागिता बढ़ाने का कार्य किया जाता है।

‘राष्ट्रीय साक्षरता मिशन’ के दस्तावेज में स्वैच्छिक अभिकरणों से सतत् शिक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित कार्यों को करने की अपेक्षा की गयी है-

(I) निरक्षरता उन्मूलन के लिए पूर्ण परिभाषित क्षेत्रों के लिए प्रोजेक्ट बनाना और उसको कार्यान्वित करना।

(II) जन शिक्षण निलयम और सतत् शिक्षा के अन्य कार्यक्रमों को संचालित करना।

(III) अनुदेशकों और पर्यवेक्षकों के लिए प्रशिक्षण कार्य संचालित करना।

(IV) अधिगम सामग्रियों का निर्माण और प्रकाशन करना।

(VII) समुचित वातावरण के निर्माण में सहायता प्रदान करना।

सन् 1972-73 में प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाली स्वैच्छिक अभिकरणों की संख्या 29 थी। 1984-85 में यह संख्या बढ़कर 502 हो गयी। इनके द्वारा 26,500 प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र चलाये जा रहे थे। सतत् शिक्षा के क्षेत्र में कुछ स्वैच्छिक अभिकरण निम्नलिखित हैं-

इण्डियन एडल्ट एजूकेशन एसोसिएशन (IAEA)

प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वैच्छिक अभिकरण जिसने अत्यन्त प्रशंसनीय कार्य किया है, वह है इण्डियन एडल्ट एजूकेशन एसोसियेशन। इसने देश के शिक्षित पुरुषों एवं महिलाओं की जनशक्ति को दशे के दूर-दराज इलाकों एवं पर्वतीय क्षेत्रों में निरक्षरता उन्मूलन के लिए अल्पकालीन अभियान चलाने के लिए ‘नेशनल वालेन्टीयर कार्प फार लिटरेसी (National Volunteer Corp for Literacy: NVCL) को संगठित किया है। एसोसियेशन क्रियात्मक साक्षरता कार्यक्रम को एक जन आन्दोलन का स्वरूप देना चाहता है। समय-समय पर सम्मेलनों और सेमिनार का आयोजन करती रही है। इण्डियन जनरल ऑफ एडल्ट एजूकेशन और ‘प्रौढ़ शिक्षा’ नाम को पत्रिकाएँ यह प्रकाशित करती है। एसोसियेशन ने अब तक प्रौढ़ शिक्षा से सम्बन्धित अंग्रेजी और हिन्दी में 150 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की है। इसने अनुसन्धान, प्रकल्प सर्वेक्षण, और मूल्यांकन सम्बन्धी अनेक अध्ययन किये हैं। इसने प्रौढ़ के क्षेत्र शिक्षा के क्षेत्र में बहुत सक्रिय भूमिकाएँ निभाई हैं।

नेहरू युवक केन्द्र (Nehru Yuvak Kendra)

प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों में शिक्षित युवकों का सहयोग प्राप्त करने के लिए नेहरू युवक केन्द्रों की स्थापना की गयी है। इन केन्द्रों को सरकारी सहायता मिलती है और इनके माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है। नेहरू युवक केन्द्र, प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र को ‘चेतना संघ’ के रूप में संगठित करते हैं। इन केन्द्रों पर खेल-कूद एवं मनोरंजन, समाज सेवा, क्रिया कलापों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, चर्चा मण्डलों, आदि की व्यवस्था रहती है। नेहरू युवक केन्द्र, युवकों को आवश्यकताओं के अनुरूप समुचित प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित एवं संचालित करने में लगे हुए हैं। 1984 तक 230 नेहरू युवक केन्द्रों को प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों का संचालन, नेशनल सर्विस वालेन्टीयर के द्वारा देश में चलाने के लिए धन आवंटित किया गया। इन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में 2 हजार 5 सौ प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र चलाये जिससे 17 हजार ग्रामीण प्रौढ़ों को शिक्षा का लाभ मिला।

सतत् प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले सक्रिय अभिकरणों को निम्नलिखित सूची  राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के दस्तावेज मिशन के दस्तावेज में प्रस्तुत को गयी है-

(1) मानव संसाधन विकास मन्त्रालय (नोडल अभिकरण Nodal Agencies)

(2) सहयोगी अभिकरण (60 से अधिक अभिकरण)

(3) काउन्सिल ऑफ साइन्टिफिक इण्डस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) की प्रयोगशालाएं

(4) डिपार्टमेंट ऑफ नॉन कान्वेन्शनल एनर्जी सोर्सेज (DNES)

(5) इलेक्ट्रानिक्स कमीशन

(6) इण्डस्ट्रियल, रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट लैबोरेटरीज विश्वविद्यालय, आई० आई० टी० और इन्जिनियरिंग कालेज

(7) कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विज्ञान केन्द्र

(8) आल इण्डिया रेडियो, दूरर्शन और अन्य माध्यम अभिकरण

(9) लँगवेज रिसर्च इन्स्टीट्यूसन्स

(10) स्टटे रिसोर्स सेन्टर

सन् 1978-85 के बीच देश में औपचारिकेतर अभिकरणों द्वारा संचालित सतत् प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रमों का मूल्यांकन निम्नलिखित अभिकरणों के माध्यम से किया गया-

(i) मद्रास इन्स्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट, स्टडीज, मद्रास

(ii) इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद

(iii) टाटा इन्स्टीट्यूट ऑफ सोसल साइंसेज, बम्बई

(iv) सेन्टर ऑफ एडवांस स्टडीज इन एजूकेशन, एम० एस० यूनिवर्सिटी, बड़ौदा

(v) सरदार पटेल इन्स्टीट्यूट ऑफ इक्नामिक एण्ड सोसल रिसर्च

(vi) जेवियर, लेवर, रिलेसन्स, इन्स्टीट्यूट, जमशेदपुर

(vii) ए० एन० सिन्हा इन्स्टीट्यूट आफ सोशल स्टडी, पटना

इन अभिकरणों द्वारा किये गये मूल्यांकनोसरदार पटेल इन्स्टीट्यूट ऑफ इक्नामिक एण्ड सोसल रिसर् शिक्षा कार्यक्रम निम्नलिखित कारणों से वांछित सफलता एवं लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सका है-

(i) इस क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण निम्नस्तरीय था।

(ii) संचालन और नेतृत्व प्रणाली में विश्वसनीयता का अभाव था। उनके द्वारा प्रदत्त रिपोर्ट त्रुटिपूर्ण थे।

(iii) प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों पर अधिगम वातावरण निम्न कोटि का था तथा प्रकाश को व्यवस्था अच्छी नहीं थीं।

(iv)  जनसंचार के माध्यमों ने समुचित प्रयोग नहीं प्रदान किया।

(v) स्वैच्छिक अभिकरणों को राज्य सरकारों की ओर से सहयोग नहीं मिला।

(vi) अधिगम कार्यकर्ताओं की बीच में ही केन्द्र छोड़ देने की मात्रा बहुत अधिक थी।

(vii) साक्षरता में उपलब्धि सामान्यतः बहुत निम्नस्तर की थी और क्रियात्मकता के अन्य घटकों की उपेक्षा की गयी थी।

(viii) साक्षरता प्राप्त कर लेने के पश्चात् सतत् शिक्षा की व्यवस्था का अभाव था।

(ix) राज्य सरकारों और पंचायत राज्य संस्थाओं द्वारा निरन्तर राजनैतिक एवं प्रशासनिक सहारा नहीं प्राप्त हुआ।

सतत शिक्षा की सफलता के मार्ग में आने वाली उपरोक्त समस्याओं एवं बाधाओं को दूर किए बिना इस कार्यक्रम को सफल नहीं बनाया जा सकता है। सतत शिक्षा के कार्यक्रमों का सफल बनाने के लिए निश्चित सुनियोजित ब्यूह रचनाओं (Strategy) का प्रयोग आवश्यक है।

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Pankaja Singh

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