अर्थशास्त्र

संरक्षण | संरक्षण के पक्ष में तर्क | संरक्षण के विरोध में तर्क/दोष

संरक्षण | संरक्षण के पक्ष में तर्क | संरक्षण के विरोध में तर्क/दोष

संरक्षण (Protection)

अमरीकी राजनीतिज्ञ एलेक्जेण्डर हेमिल्टन ने सन् 1791 में यह मत व्यक्त किया कि यदि कोई देश तेजी से आर्थिक विकास करना चाहता है, अपने यहाँ रोजगार के नये स्रोतों का सृजन करना चाहता है तो उसे अपने उद्योगों को संरक्षण प्रदान करना चाहिए। जर्मन अर्थशास्त्री फ्रेडरिक लिस्ट, जिन्हें संरक्षण सम्बन्धी नीति का जन्मदाता माना जाता है, हेमिल्टन के विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुए। 19वीं शताब्दी में हेनरी चार्ल्स चैरी के नेतृत्व में संरक्षणवादियों की एक शक्तिशाल शाखा का प्रादुर्भाव हुआ। प्रथम विश्व युद्ध के पूर्व तक यूरोप के अधिकांश देश स्वतन्त्र व्यापार के समर्थक थे। परन्तु द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अधिकांश देशों, यहाँ तक कि स्वतन्त्र व्यापार के प्रबल समर्थक इंग्लैण्ड तक ने स्वतन्त्र व्यापार नीति का परित्याग कर दिया।

संरक्षण का सिद्धान्त यह स्पष्ट करता है कि किस प्रकार राजकीय नियमन द्वारा घरेलू उद्योगों को बाहरी प्रतियोगिता से बचाया जा सकता है। विगत वर्षों के अनुभव से यह स्पष्ट हो गया है कि अर्द्ध-विकसित देशों में सामान्य रूप से तथा विकसित देशों में विशिष्ट रूप से घरेलू उद्योगों का विकास उस समय तक नहीं हो सकता जब तक कि सरकार इन उद्योगों को विभिन्न प्रकार से संरक्षण प्रदान कर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों तथा विदेशी कम्पनियों की कड़ी प्रतियोगिता से घरेलू उद्योगों की रक्षा न करें। प्रो० टासिग के अनुसार, “प्रारम्भ में घरेलू उत्पादक कठिनाइयों एवं विदेशी प्रतियोगिता का सामना नहीं कर पाते, परन्तु बाद में जब वे उत्पादन की प्राविधियों की जानकारी प्राप्त कर लेते हैं तो विदेशी वस्तुओं से अधिक सस्ती वस्तुएँ बेचने में समर्थ हो जाते हैं।”

संरक्षण के पक्ष में तर्क (Arguments in Favor of Protection)

स्वतन्त्र व्यापार के समर्थन में दिये जाने वाले तर्क स्पष्ट हैं तथा इन्हें व्यापारिक नीति पर लागू करना भी सुगम है किन्तु संरक्षण के तर्कों के बारे में ऐसा नहीं है। इसके समर्थन में दिये जाने वाले तर्क एक ओर तो परस्पर-विरोधी हैं और दूसरी ओर, यदि इन्हें स्वीकार भी कर लिया जाय, तो व्यावहारिक दृष्टि से उनका कार्य और प्रभाव भी स्पष्ट नहीं है।

संरक्षण के पक्ष में जो तर्क दिये जाते हैं उन्हें गैर-आर्थिक (Non-economic) एवं आर्थिक (Economic) तर्कों में विभक्त किया जा सकता है।

(अ) संरक्षण के पक्ष में गैर-आर्थिक तर्क (Non-economic Arguments)

गैर-आर्थिक दृष्टिकोण से (जिस पर कोई विशेष ध्यान भी न दिया जाय, तो कोई हर्ज नहीं है) संरक्षण के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जाते हैं-

  1. राष्ट्र रक्षा तर्क- जैसा कि भारत को चीन और विशेषत: पाकिस्तान के आक्रमण से अनुभव हुआ है, किसी विदेशी देश पर अपनी रक्षा के लिए निर्भर रहना खतरनाक है। देश के पास अपने रक्षा उद्योग होने चाहिए चाहे इसके लिए उसे भूखों मरना पड़े।
  2. राष्ट्रीय आत्म-निर्भरता का तर्क- कुछ आवश्यक वस्तुओं के सम्बन्ध में देश को आत्म-निर्भर होना चाहिए तथा अन्य देशों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, क्योंकि ऐसी निर्भरता युद्धकाल में, जबकि विदेशी व्यापार सीमित हो जाता है, बहुत ही हानिकारक प्रमाणित होती है।
  3. देश भक्ति- देश भक्ति के दृष्टिकोण से भी संरक्षण की नीति महत्त्वपूर्ण है। यदि कुछ तात्कालिक हानि उठाकर घरेलू उद्योगों का विकास होता है तो इसका लाभ देश एवं देशवासियों को ही होगा। इसलिए घरेलू उद्योगों को संरक्षण प्रदान किया ही जाना चाहिए। इसके लिए विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं पर सभी प्रकार की रोक लगाना न्यायसंगत है।

उपरोक्त दशाओं में लोग जानबूझ कर संरक्षण की नीति अपनाते हैं, भले ही ऐसा करने में उन्हें कुछ आर्थिक लाभों से वंचित रहना पड़ता है।

(ब) संरक्षण के पक्ष में आर्थिक तर्क (Economic Arguments)

स्वतन्त्र व्यापार के समर्थक भी यह स्वीकार करते हैं कि गैर-आर्थिक दृष्टिकोण से संरक्षण एक उचित नीति है किन्तु एक सीमा तक ही। आर्थिक दृष्टिकोण से तो वे स्वतन्त्र व्यापार को ही- श्रेष्ठ नीति बताते हैं। परन्तु संरक्षण के समर्थकों का स्पष्ट रूप से यह मानना है कि यदि स्थानीय उद्योगों को विकसित करना है तो उन्हें विदेशी प्रतियोगिता से बचाना ही होगा। यही कारण है कि ये विद्वान आर्थिक कारणों से संरक्षण की नीति का समर्थन करते हैं । यहाँ हम उन आर्थिक तकों पर विचार करेंगे जिनके आधार पर संरक्षण के समर्थक संरक्षण को ही उचित ठहराते हैं।

  1. आय वृद्धि तर्क- अविकसित देशों में पूँजी की बहुत कमी होती है। अतः सरकार पर ही यह भार पड़ता है कि वह आर्थिक विकास के लिए सामाजिक पूँजी का निर्माण करे। इस दृष्टि से संरक्षण करों को ठीक समझा जाता है क्योंकि वे सरकार की आय में वृद्धि करते हैं।

किन्तु, जैसा कि हैबरलर का कहना है, संरक्षण और आय प्राप्त करने के उद्देश्य परस्पर असंगत हैं। कारण, जो कर अच्छी आय प्रदान करते हैं वे संरक्षण नहीं दे सकते और जो संरक्षण दे सकते हैं उनसे आय अल्प होती है।

  1. गृह बाजार के सृजन एवं विवरण का तर्क- कहा जाता है कि संरक्षण देश में गृह- बाजार का विस्तार करने में सहायक होगा। किन्तु, यह भी सच है कि यदि एक ओर गृह-बाजार बढ़ता है, तो दूसरी ओर निर्यात बाजार संकुचित होता है, क्योंकि आयात कम होने के फलस्वरूप निर्यात में कमी आ जाती है।
  2. व्यापार की शर्तों के सुधार का तर्क- यदि कोई देश किसी आयातित वस्तु का प्रमुख आयातक है, तो संरक्षण-कर लगाने से इसकी कीमत में कमी की जा सकती है। इससे देश के लिए व्यापार की शर्तों में सुधार हो जायेगा।

किन्तु ऐसी दशा में यह डर है कि कहीं अन्य देश प्रतिरोधात्मक कार्यवाही न करें।

  1. श्रम हित रक्षा तर्क- प्रगतिशील देश यह तर्क देते हैं कि इन देशों में ऊँची मजदूरी पाने वाले श्रमिकों को संरक्षण के अभाव में सस्ते विदेशी श्रम के कारण खतरा उत्पन्न हो जाता है। अतः श्रम के हितों की रक्षा के लिए संरक्षण की नीति अपनाई जानी चाहिए।

किन्तु यह तर्क सही नहीं है, क्योंकि इसका आधार यह भ्रान्त धारणा है कि स्वतन्त्र व्यापार से समस्त विश्व में मजदूरियों का समानीकरण जाता है। वास्तव में, स्वतन्त्र व्यापार होते हुए भी मजदूरियों का सामना होना सम्भव नहीं है क्योंकि देशों के मध्य श्रम-गतिशील होता है।

  1. बदले की भावना सम्बन्धी तर्क- संरक्षण के पक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि प्रतिरोधी संरक्षण अन्य देशों द्वारा संरक्षण-कर लगाने के कुप्रभावों का सामना करने में सहायक होगा।

किन्तु, यह तर्क भी बहुत ठोस नहीं है, क्योंकि, कुछ देशों की संरक्षण नीति के परिणाम- स्वरूप विश्व व्यापार के लाभ पहले ही कम हो गये हैं और यदि अन्य देशों ने भी वही नीति अपनाई तो लाभ और भी कम हो जायेंगे।

  1. रोजगार वृद्धि का तर्क- संरक्षण की बेकारी की समस्या सुलझाने का सबसे प्रभावशाली साधन बताया जाता है। यदि गहराई से इस तर्क की परीक्षा करें तो पता चलेगा कि संरक्षण से बेकारी में कुछ कमी अल्पकाल में अवश्य आयेगी किन्तु दीर्घकाल में नहीं।
  2. आर्थिक स्थायित्व का तर्क- कभी-कभी संरक्षण का समर्थन इस आधार पर किया जाता है कि यह संरक्षित अर्थव्यवस्था को आर्थिक अस्थिरता एवं विश्व के अन्य भागों में उपस्थित होने वाले व्यापार चक्रों के कुप्रभावों से सुरक्षित रखेगा।

वास्तव में, ऊँचे-नीचे संरक्षण करों से व्यापार चक्र के मार्ग में कोई बाधा नहीं पड़ती है। फिर व्यापार चक्र का समाधान केवल संरक्षण नीति ही तो नहीं है।

  1. व्यापार सन्तुलन का तर्क- देश में स्वर्ण के प्रवाह को आकर्षित करने के लिए अनुकूल सन्तुलन बनाये रखना चाहिए। इस हेतु आयात की अपेक्षा निर्यात की अधिकता होनी आवश्यक है और निर्यात आधिक्य तब ही उपलब्ध हो सकता है जबकि एक उचित संरक्षण नीति अपनाई जाए।

यह तर्क भी भ्रमात्मक है। कारण, यदि सभी देश इस नीति को अपना लें तो अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में बहुत कमी हो जायेगी और यदि किसी देश के पास विशाल स्वर्ण कोष भी एकत्र हो जाये तो अन्य देशों के माल क्रय करने के अतिरिक्त उसका अन्य उपयोग क्या किया जा सकेगा।

  1. क्रय शक्ति सम्बन्धी तर्क- आयातों में कमी होने से क्रय-शक्ति को बचत (Economy in purchasing power) होती है क्योंकि देश का धन बाहर कम जाता है।

लेकिन यह तर्क भी भ्रमपूर्ण है, क्योंकि लोगों को वस्तुओं की आवश्यकता होती है न कि द्रव्य की और फिर अन्तिम रू में आयातों का भुगतान निर्यातों के द्वारा ही होता है।

  1. प्रशुल्क सम्बन्धी तर्क- कुछ देशों में उत्पत्ति लागतों के नीची होने के भय से ऊँची लागत वाले देश यह तर्क देते हैं कि देश और विदेश में उत्पत्ति लागतों में समानता की स्थापना के लिए प्रशुल्क कर लगाये जाने चाहिए ताकि उचित प्रतियोगिता हो सके।

यदि इस तर्क को स्वीकार कर लिया जाय तो अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार बिल्कुल ही न हो सकेगा, क्योंकि वस्तु-व्यापार लागत-भिन्नताओं (Cost differences) के कारण उदय होता है।

  1. राशिपातन रोकने का तर्क- कभी-कभी विदेशी उद्योगपति स्वदेश के विकासोन्मुख (Developing) उद्योगों को समाप्त करने के लिए अपनी वस्तु को लागत से भी कम मूल्य पर बेचते हैं, ताकि जब बाजार उनके अधिकार में आ जाय, तो वे मनमानी कीमत वसूल करके लाभ उठाएं। ऐसी देशा में गृह उद्योग को संरक्षण देना उचित बताया गया है।
  2. उद्योगों की विविधता का तर्क- कहा जाने लगा है कि अपने प्रसाधनों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक देश को चाहिए कि वह अपनी अर्थव्यवस्था को विविधीकृत (diverified) बनाये। कारण, विशिष्टीकरण के अन्तर्गत देश की अर्थ-व्यवस्था कुछ उद्योगों पर ही निर्भर हो जाती है। यह निर्भरता मन्दी व युद्धकाल में हानिकारक हो सकती है। आजकल यह भी देखा जाता है कि व्यापार की शर्ते प्राथमिक उत्पादकों के लिए अधिकाधिक प्रतिकूल होती जा रही हैं। अतः उन्हें अन्य साधनों से अपनी आय बढ़ानी चाहिए। रोजगार बढ़ाने की दृष्टि से भी अनेक प्रकार के धन्धे होना आवश्यक है।

विविधीकृत अर्थव्यवस्था के पक्ष में रखे गये तर्क अतिशयोक्तिपूर्ण प्रतीत होते हैं। उदाहरण के लिए, कच्चे माल व खाद्यान्न के स्रोत रातों-रात तो सूख नहीं जायेंगे। इनके सूखने में कुछ समय लगेगा और इस बीच उपचार किये जा सकते हैं।

  1. राष्ट्रीय साधनों के सदुपयोग का तर्क- स्वतन्त्र व्यापार राष्ट्र के प्रसाधन जल्दी खत्म होने लगते हैं। अत: राष्ट्रीय साधनों की रक्षा (Conservation of national resources) के लिए संरक्षण की नीति अपनाना आवश्यक है। स्मरणीय है कि यदि सीमित सामग्री का निर्यात ‘कच्ची दशा’ में किया जाय तो निर्माण सम्बन्धी लाभ देश से बाहर चला जायेगा। अत: देश को पक्के माल के रूप में सामग्री का निर्यात करने से लाभ होगा।
  2. मूल उद्योग तर्क- लौह एवं इस्पात जैसे बुनियादी उद्योग स्वदेश की अर्थव्यवस्था को बहुत दृढ़ता प्रदान करते हैं। अतः इनमें देश को यदि तुलनात्मक लाभ न भी हो, तो भी इनका विकास करना जरूरी है। संरक्षण की सहायता से यह उद्देश्य सहज ही पूरा हो सकता है।
  3. शिशु उद्योग तर्क- इसके अनुसार विकसित देशों के मजबूत वयस्क उद्योगों की प्रतियोगिता के विरुद्ध एक विकासोन्मुख देश के शिशु उद्योगों को संरक्षण देना चाहिए अन्यथा उनकी अकाल मृत्यु का डर है। क्योंकि विकासशील देशों के शिशु उद्योगों में प्रारम्भ में प्रति इकाई लागत ऊंची होती है, वस्तु की गुणवत्ता भी निम्न होती है। इसलिए इन्हें विदेशों से आयातित सस्ती तथा अच्छी वस्तुओं की तुलना में कम पसन्द किया जाता है । घरेलू उद्योगों में निर्मित वस्तुओं का सुरक्षित बाजार उपलब्ध कराने का एक ही मार्ग है और वह है, आयातित वस्तुओं पर ऊँचा कर लगाकर मँहगा कर देना या फिर उसके आयात को बिल्कुल ही बन्द कर देना।

किन्तु इस सम्बन्ध में यह नहीं भूलना चाहिए कि शिशु उद्योग वयस्क’ होने पर भी शिशु बने रहना चाहते हैं जिससे देश पर अनावश्यक संरक्षण को बोझ पड़ने लगता है।

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि संरक्षण के पक्ष में दिये जाने वाले तर्क, गहराई से परीक्षा करने पर, थोथे निकलते हैं।

संरक्षण के विरोध में तर्क/दोष

1930 की विश्वव्यापी मन्दी के दौरान संरक्षण की नीति की तीखी आलोचना की गयी। प्रो० कीन्स ने कहा, “संरक्षणवादियों का यदि यह तात्पर्य हो कि उनकी नीतियों से अधिक श्रम एवं प्रतिफल की प्राप्ति होगी तो मैं उनकी नीति को स्वीकार कर लेता हूँ, परन्तु आयातों को कम करके हम भले ही अपने कुल कार्य एवं उत्पादन में वृद्धि कर लें, परन्तु इस प्रक्रिया के अन्तर्गत हमें कुल मजदूरी भी कम करनी होगी। संरक्षणवादियों को यह सिद्ध करना होगा कि उसने केवल कार्य ही नहीं किया बल्कि इससे राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि हुई है। आयात हमारी प्राप्तियाँ हैं तथा निर्यात हमारे भुगतान हैं। कोई देश अपनी प्राप्तियों में कमी करके अपनी दशा में सुधार लाने की आशा किस प्रकार कर सकता है। क्या आयात कर कोई ऐसा कार्य भी कर सकते हैं जिसे भूचाल अच्छी प्रकार नहीं कर सकते।”

संरक्षण की नीति प्रत्येक दशा में अच्छी नहीं हो सकती। उदाहरणार्थ, यदि देश में उत्पादित न की जाने वाली या आवश्यकता से कम उत्पादित की जाने वाली उपभोक्ता वस्तुओं के आयात को प्रतिबन्धित किया जाता है तो इससे देश में स्फीति को प्रोत्साहन मिलता तथा सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की स्थिरता को भारी खतरा उत्पन्न हो जाता है। औद्योगिक उत्पादन के लिए आवश्यक मशीनरी, बुनियादी कच्चे माल के आयात पर प्रतिबन्ध लगा देने का अर्थ है देश के आर्थिक विकास को अवरुद्ध कर देना। प्राय: यह भी देखा गया है कि आयातों पर प्रतिबन्ध लगाने से देश में एकाधिकारी शक्तियों ने जन्म ले लिया तथा इसका नुकसान उपभोक्ताओं को उठाना पड़ा।

उपर्युक्त के अतिरिक्त, संरक्षण की नीति के निम्न नकारात्मक दोष भी हैं-

(1) निहित स्वार्थ स्थापित हो जाते हैं, जो एक बार संरक्षण मिलने पर, इसे फिर एक अधिकार के रूप में जारी रखने की माँग करते हैं।

(2) यह उद्योगपतियों में निष्क्रियता एवं आलस्य की वृद्धि करता है।

(3) इसमें भ्रष्टाचार के लिए बहुत अवसर हैं।

(4) एकाधिकार स्थापित होने की भी आशंका है।

(5) इसके अन्तर्गत धनियों का पक्षपात किया जाता है वे अधिकाधिक धनी बनते जाते हैं किन्तु निर्धन वर्ग उत्तरोत्तर निर्धन होने लगता है।

(6) कीमतें बढ़ने से उपभोक्ताओं को भी हानि होती है।

(7) संरक्षण के कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहारों में संघर्ष और प्रतिकार की भावनाओं को बढ़ावा मिलता है।

(8) अन्तर्राष्ट्रीय श्रम विभाजन को ठेस पहुँचती है तथा उत्पत्ति साधन सर्वोत्तम प्रयोग में न लाये जाने के कारण विश्व-उत्पादन घटने लगता है।

निष्कर्ष (Conclusion)- 

कुल पर, सैद्धान्तिक दृष्टि से स्वतन्त्र व्यापार सर्वोत्तम है, किन्तु व्यापार में संरक्षण की नीति अपनाना आवश्यक हो जाता है। विशेषत: अल्पविकसित देशों के लिए संरक्षण की नीति बहुत उपयोगी है। अधिक सही शब्दों में, विशेष परिस्थितियों में संरक्षण की नीति ही, स्वतन्त्र व्यापार की उपेक्षा अधिक लाभदायक प्रमाणित होती है।

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Pankaja Singh

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