संगठनात्मक व्यवहार

समूह गत्यात्मकता की परिभाषा | समूह गत्यात्मकता की अवधारणा | समूह के विभिन्न वर्ग

समूह गत्यात्मकता की परिभाषा | समूह गत्यात्मकता की अवधारणा | समूह के विभिन्न वर्ग | Definition of Group Dynamics in Hindi | Concept of Group Dynamics in Hindi | Different classes of group in Hindi

समूह गत्यात्मकता की परिभाषा

(Definition of Group Dynamics)

समूह गत्यात्मकता की प्रमुख विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) कीथ डेविस (Keith Davis) के अनुसार, “समूह गत्यात्मकल एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति छोटे-छोटे समूहों में प्रत्यक्ष अन्तर्किया सम्पन्न करते हैं।”

(2) कास्ट एवं रोजन्जविंग (Kast and Rosenzing) के अनुसार, “समूह के सदस्यों के मध्य होने वाली अन्तर्किया समूह गत्यात्मकता कहलाती है।”

(3) शहरमरहार्न (Schermerharn) के अनुसार, “समूह गत्यात्मकता से आशय उन शक्तियों से है जो समूहों में कार्यरत रहती हैं, सदस्यों को सन्तुष्टि प्रदान करती हैं एवं कार्य निष्पादन को प्रभावित करती हैं।”

(4) फ्रेड लूभांस (Fred Luthans) के अनुसार, “समूह गत्यात्मकता सामाजिक परिवेश में समूह के सदस्यों के मध्य अन्तर्कियाओं तथा शक्तियों से सम्बन्धित है। जब इस अवधारणा का संगठनात्मक व्यवहार में प्रयोग किया जाता है तो इसका सम्बन्ध संगठन में औपचारिक तथा अनौपचारिक समूहों की गत्यात्मकता से होता है।

(5) कुर्ट लेविन (Kurt Lewin) के अनुसार, “समूह गत्यात्मकता में यह अध्ययन किया जाता है कि किस प्रकार से किन परिस्थितियों में और किस दिशा में समूह में परिवर्तन होता है।”

(6) श्री, आर, एस. द्विवेदी (R.S, Dwivedi) के अनुसार, “समूह गत्यात्मकता से आशय समूहों में होने वाले परिवर्तनों से है तथा इनका सम्बन्ध एक विशेष सामाजिक परिस्थिति में समूह के सदस्यों के मध्य घटित होने वाली पारस्परिक क्रियाओं तथा उन्हें प्रभावित करने वाली शक्तियों से है।

निष्कर्ष- उपयुक्त परिभाषा (Conclusion-Suitable Definiton)

उपरोक्त परिभाषाओं तथा अन्य विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् निष्कर्ष रूप में समूह गत्यात्मकता की परिभाषा निम्न शब्दों में दी जा सकती है- “समूह गत्यात्मकता एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत मानव समूहों की संरचना, स्वरूप, क्रिया तथा अन्तर्क्रिया में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है।’’

समूह गत्यात्मकता की अवधारणा

(Concept of Group Dynamics)

विभिन्न विद्वानों ने समूह गत्यात्मकता की अवधारण को विभिन्न सन्दर्भों में स्पष्ट किया है। प्रथम अवधारणा के अनुसार, समूह गत्यात्मकता की अवधारणा इस बात का उल्लेख करती है कि समूह कैसे बनते हैं एवं संचालित होते हैं। इसमें प्रजातन्त्रीय नेतृत्व, भागिता एवं सहयोग सम्मिलित हैं। दूसरी अवधारण के अन्तर्गत समूह गत्यात्मकता से आशय समूह में सदस्यों की भूमिका में होने वाले परिवर्तन तथा इसके लिए उत्तरदायी विभिन्न दशाओं से लगाया जाता है। इस अवधारणा के अनुसार समूह में व्यक्तियों की भूमिका से उत्पन्न नवीन दशाओं तथा उनसे किये जाने वाले अनुकूलन करने की दशा का अध्ययन समूह गत्यात्मकता के अन्तर्गत किया जाता है। तीसरी अवधारणा के अनुसार समूह गत्यात्मकता कुछ ऐसी तकनीकों का समूह है जिसमें समूह भूमिका, नेतृत्व रहित समूह भूमिका, भावनात्मक प्रशिक्षण आदि को सम्मिलित किया जाता है। चौथा अवधारण के अनुसार समूह गत्यात्मकता समूहों की आन्तरिक प्रकृति, उनका निर्माण, संरचना, प्रक्रियाएँ एवं व्यक्तिगत सदस्यों, अन्य समूह तथा संगठन को प्रभावित करने की विधि है।

समूह के विभिन्न वर्ग

समूह के विभिन्न वर्ग निम्नलिखित है-

(1) आन्तरिक समूह तथा बाह्य समूह (In-groups and Out-groups)- ऐसे, व्यक्तियों का समूह जो समाज की प्रचलित मान्यताओं के प्रति आस्थावान हो, आन्तरिक समूह के नाम से जाना जाता है। ये व्यक्ति संख्या में अधिक होते हैं और सामाजिक क्रिया-कलापों में इनकी भूमिका प्रभावशाली होती है। इसके विपरीत, ऐसे व्यक्तियों का झुण्ड (समूह) जिनका समूह की संस्कृति में गौण स्थान है या जिन्हें हम बोलचाल की भाषा में ‘अल्पमत’ के नाम से जानते हैं, प्रस्तुत वर्गीकरण की दृष्टि से बाह्य समूह के नाम से जाने जाते हैं। पाठकों को यह स्पष्ट होगा कि इस प्रकार के समूहों में अन्तर्द्वन्द्व होना स्वाभाविक है।

(2) मूल समूह तथा गौण समूह (Primary and Secondary Groups) – उन व्यक्तियों, जिनसे प्रत्यक्ष एवं प्रगाढ़ सम्बन्ध होते हैं मूल समूह कहलाते हैं। ये समूह स्थायी प्रकृति के होते हैं। इनकी तुलना में गौण समूहों में पारस्परिक सम्बन्ध परोक्ष प्रकृति के होते हैं। सम्बन्धों में प्रगाढ़ता का अभाव पाया जाता है। हमारे अध्ययन की दृष्टि से मूल समूह ही अधिक महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

(3) समादेश समूह तथा कृत्यक समूह (Command Groups and Task Group) जहाँ समूह के सदस्यों के मध्य प्रवर एवं अधीनस्थ (Superior and Subordinate) के सम्बन्ध हों, समादेश समूह कहलाते हैं।

इन समूहों की सदस्यता संगठन चार्ट के माध्यम से दर्शायी जाती है। इसके विपरीत कृत्यक समूह औपचारिक रूप से गठित एक ऐसा समूह है जिसका गठन किसी कार्य विशेष के लिए किया गया है। समिति इस प्रकार के समूह का एक उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करती है। उपर्युक्त वार्णित समूह, क्रमशः पूर्व वर्णित संगठनात्मक इकाई समूह तथा कार्य टीम समूह से मिलते-जुलते हैं।

(4) खुले और बन्द समूह (Open and Closed Groups) – खुले समूह वे समूह होते हैं जिनकी सदस्यता के द्वारा नये सदस्यों के लिए खुले रहते हैं। इस प्रकार के समूहों की सदस्यता में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। बन्द समूह, इसके विपरीत नये सदस्यों को सदस्यता प्रदान नहीं करते सदस्यों के समूह को छोड़कर जाने की स्थिति में समूह का विघटन हो जाता है। इस प्रकार के समूहों में सदस्यता का परिवर्तन एक अपवाद ही माना जाना चाहिए। जहाँ समूह का उद्देश्य गोपनीय प्रकृति का हो, वहाँ बन्द समूह का निर्माण किया जाता है।

(5) सदस्यता तथा सन्दर्भ समूह (Membership and Reference Group) – जिन समूहों की निश्चित सदस्यता होती है, उसके सदस्यों को सदस्यता समूह कहते हैं लेकिन जब एक व्यक्ति एक सदस्यता समूह का सदस्य होते हुए भी किसी दूसरे समूह का सदस्य बन जाता है तो वह दूसरा समूह सन्दर्भ समूह कहलाता है।

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Pankaja Singh

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