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समस्या समाधान विधि | समस्या समाधान विधि की परिभाषाएँ | समस्या समाधान विधि के सिद्धान्त | समस्या समाधान विधि के गुण | समस्या समाधान विधि के दोष | समस्या समाधान विधि के सोपान | समस्या समाधान व प्रायोजना विधि में अन्तर

समस्या समाधान विधि | समस्या समाधान विधि की परिभाषाएँ | समस्या समाधान विधि के सिद्धान्त | समस्या समाधान विधि के गुण | समस्या समाधान विधि के दोष | समस्या समाधान विधि के सोपान | समस्या समाधान व प्रायोजना विधि में अन्तर | problem solving method in Hindi | Definitions of problem solving method in Hindi | Principles of Problem Solving Method in Hindi | Properties of problem solving method in Hindi | Defects of problem solving method in Hindi | Steps of Problem Solving Method in Hindi | Difference between problem solving and project method in Hindi

समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method)

इस पृथ्वी पर जितने भी जीवधारी हैं उनमें सबसे बुद्धिमान प्राणी मनुष्य है। मनुष्य जन्म के कुछ समय बाद ही सामाजिक एवं पर्यावरणीय समायोजन की समस्या का अनुभव करने लगता है और वह इसमें किस प्रकार समायोजित हो इस हेतु समाधान के सम्बन्ध में चिन्तन करने लग जाता है। इन्हीं समस्याओं के परिणाम स्वरूप मनुष्य तनाव, द्वन्द्व, संघर्ष, विफलता, निराशा आदि का. शिकार हो जाता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति जीवन से मुख मोड़ने का भी प्रयास कर सकता है लेकिन इन सभी समस्याओं का समाधान एक आदर्श शिक्षक कर सकता है।

इस विधि के प्रवर्तक अमरीकी शिक्षाशास्त्री जॉन डीवी को माना गया है। यह विधि बहुत ही प्राचीन है। इसका प्रयोग सुकरात एवं सेन्ट थॉमस ने भी किया, ऐसा शिक्षाविदों का मानना है। सुकरात ने आध्यात्मिक संवादों में इसका प्रयोग किया एवं सेन्ट थॉमस ने ‘Summa Theologica’ में इसका प्रयोग किया लेकिन वर्तमान समय के शिक्षाशास्त्रियों ने इसे शैक्षिक साधन के रूप में स्वीकार किया है।

समस्या समाधान विधि की परिभाषाएँ (Definitions of Problem Solving Method)-

इस विधि के अर्थ को स्पष्ट करते हुए विभिन्न विद्वानों ने इस विधि की अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

  1. रिस्क (Risk) के अनुसार, “समस्या समाधान किसी कठिनाई अथवा जटिलता का एक पूर्ण सन्तोषजनक हल प्राप्त करने के उद्देश्य से किया नियोजित कार्य है जिसमें मात्र तथ्यों का संग्रह करना अथवा किसी अधिकृत विद्वान के विचार की तर्क रहित स्वीकृति निहित नहीं है, वरन् यह एक विचारशील चिन्तन की प्रक्रिया है।”
  2. सी.वी.गुड (C.V. Good) के अनुसार, “समस्या पद्धति निर्देशन की वह विधि है जिसके द्वारा सीखने की प्रक्रिया को उन चुनौती पूर्ण परिस्थितियों की सृजना द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है, जिनका समाधान करना आवश्यक है।”
  3. योकम एवं सिम्पसन (Yokam and Sympson) के अनुसार, “समस्या समाधान अथवा चिन्तन स्तर का शिक्षण एक ऐसी मानसिक प्रक्रिया है जिसकी ओर सीखने सम्बन्धी सभी क्रियाएँ अग्रसर होती है तथा दी हुई समस्या का समाधान करती है।
  4. वैसले एवं रानास्की (Wesley and Ranasky)- के अनुसार, “समस्या एक ऐसी चुनौती है जिसका सामना करने के लिए अध्ययन तथा खोज की अवश्यकता पड़ती है।
  5. जेम्स एम. ली (James M. Lea)- “समस्या समाधान शैक्षिक प्रणाली है जिसके द्वारा शिक्षक किसी एक महत्वपूर्ण शैक्षिक कठिनाई के समाधान अथवा स्पष्टीकरण के लिए सचेत होकर एवं नियोजित ढंग से पूर्ण संलग्नता के साथ प्रयास करते है। समस्या समाधान एक विशेष शिक्षण प्रविधि की अपेक्षा एक सामान्य शिक्षा विधि है।

प्रो. त्यागी एवं सिंह (Prof. Tyagi and Singh)- के अनुसार, जो बात तुच्छ अथवा सामान्य होने पर भी मस्तिष्क को इस प्रकार बेचैन कर और चुनौती दे कि विश्वास भी अनिश्चित बन जाये, उसमें वास्तविक समस्याएँ निहित हैं और ऐसी समस्या का समाधान स्वाभाविक परिस्थितियों में विद्यार्थियों द्वारा स्वयं अथवा शिक्षक के निर्देशन में खोजना ही समस्या समाधान विधि है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस विधि के द्वारा शिक्षक- शिक्षार्थी दोनों ही किसी समस्या का निदान नियोजित एवं सोद्देश्य प्रयास द्वारा खोजते हैं। इसमें किसी समस्या का विशेष परिस्थितियों में वैज्ञानिक ढंग से हल खोजने का प्रयास किया गया है।

समस्या समाधान विधि के सिद्धान्त (Principles of Problem Solving Method) –

समस्या समाधान विधि के प्रमुख सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं-

(1) मनोवैज्ञानिक आधार का सिद्धान्त (Principles of psychological basic)

(2) ज्ञान की पूर्णता का सिद्धान्त (Principle of whole knowledge)

(3) क्रियाशीलता का सिद्धान्त (Principle of activity)

(4) वास्तविकता का सिद्धान्त (Principle of reality)

(5) सामाजिक आधार का सिद्धान्त (Principle of sociological basis)

समस्या समाधान विधि के गुण (Merits of problem solving Method) :

समस्या समाधान विधि के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-

(1) यह विधि उच्च कक्षाओं के छात्रों के लिए विशेष उपयोगी है।

(2) यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुकूल है।

(3) इस विधि में छात्र स्वाध्याय द्वारा ज्ञानर्जन करते हैं।

(4) इस विधि के द्वारा छात्र तथ्यों के संकलन एवं प्राप्त तथ्यों के विश्लेषण में सूक्ष्म हो जाते है।

(5) इस विधि के प्रयोग से छात्रों की मानसिक शक्तियाँ विकसित होती हैं क्योंकि इसमें छात्रों को चिन्तन, तुलना, मूल्यांकन एवं निर्णय करने हेतु पर्याप्त अवसर प्राप्त होते हैं।

(6) इस विधि में छात्र किसी समस्या का समाधान परस्पर मिलकर करते हैं अत: सामाजिकता के गुण प्रेम, सौहार्द्र, सहयोग आदि विकसित होते हैं।

(7) छात्र भावी जीवन से सम्बन्धित समस्याओं का हल करना सीख लेते हैं।

(8) इस विधि के द्वारा छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होता है।

(9) यह विधि छात्रों में मानसिक शक्तियों, चिन्तन, तर्क एवं कल्पना शक्ति विकसित करती है।

(10) इस विधि के द्वारा कथागत एवं व्यक्तिगत शिक्षण सम्भव है।

(11) यह विधि छात्रों में स्वावलम्बन, अविश्वास तथा आत्मनिर्भरता आदि गुण विकसित करती है।

समस्या समाधान विधि के दोष (Demerits of Problem Solving Method)-

समस्या समाधान विधि के लाभ होने के साथ-साथ इसमें कुछ दोष भी परिलक्षित होते हैं जो हैं-

(1) यह विधि निम्नस्तर के छात्रों के लिए उपयोगी नहीं है क्योंकि इस स्तर पर छात्रों का विकास समस्याओं के समाधान हेतु पर्याप्त विकसित नहीं होता।

(2) समय अधिक लगाने के कारण यह विधि मितव्ययी नहीं है।

(3) इस विधि में छात्रों की रुचियों का कोई विशेष ध्यान नहीं रखा जाता है। अतः सामान्य छात्र इस विधि में ऊब महसूस करते हैं।

(4) कुशल शिक्षकों के अभाव में इस विधि की सफलता संदिग्ध प्रतीत होती है।

(5) इस विधि द्वारा सभी शिक्षण विषयों का शिक्षण सम्भव नहीं

(6) समस्या समाधान विधि के माध्यम से शिक्षण कराने से पाठ्यक्रम समय पर पूर्ण नहीं होगा।

(7) इस विधि के द्वारा निरन्तर एवं क्रमिक अध्ययन किया जाना सम्भव नहीं है।

(8) समस्या अधिक कठिन होने पर छात्रों में निराशा के भाव उतपन्न हो जाते हैं।

समस्या समाधान विधि के सोपान (Steps of Problem Solving Method) –

इस विधि के द्वारा शिक्षण हेतु निम्नलिखित सोपानों से गुजरना होता है-

  1. समस्या की उत्पत्ति एवं चयन
  2. समस्या का परिभाषीकरण
  3. समस्या सम्बन्धी आवश्यक तथ्यों का संगठन
  4. परिकल्पनाओं की निर्माण एवं जाँच
  5. तथ्यों का संकलन एवं विश्लेषण
  6. विश्लेषण कर निष्कर्ष निकालना
  7. निष्कर्षों की सत्यता का मूल्यांकन
  8. सुझाव

समस्या समाधान व प्रायोजना विधि में अन्तर (Difference between Problem solving and Project Method) :

इन दोनों विधियों में निम्नलिखित अन्तर देखने में आते हैं-

(1) इस विधि में बालक मानसिक स्तर पर समस्याओं का समाधान खोजता है। जबकि प्रायोजन विधि में मानसिक व शारीरकि क्रियाओं पर बल दिया जाता है।

(2) इस विधि में मौलिक तथा सृजनात्मक चिन्तन को प्रधानता दी जाती है। जब कि प्रायोजना विधि में विषयवस्तु की जानकारी एवं उसका बोध कराया जाता है।

(3) इस विधि में आलोचनात्मक व सृजनात्मक चिन्तन को अधिक महत्व दिया जाता है। जबकि प्रायोजना विधि में ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण को

(4) इस विधि मनोवज्ञान की आधुनिक विचारधारा पर आधारित है जबकि प्रायोजना विधि प्रयोजनवादी विचारधारा पर आधारित है।

(5) इस विधि में परिणाम समस्या के लिए समाधान के निष्कर्ष के रूप में होता है जबकि प्रायोजना विधि का परिणाम उत्पादन के रूप में होता है।

(6) इस विधि में सीखे हुए ज्ञान के आधार पर वह उस क्षेत्र की मौलिक समस्याओं का अध्ययन करके अपने मौलिक विचार दे सकते हैं जबकि प्रायोजना विधि में जीवन से हीसम्बन्धित समस्या के समाधान के द्वारा विषयों का ज्ञान प्रदान किया जाता है।

उपरोक्त असमानताओं अथवा अन्तर होते हुए भी दोनों में कुछ समानताएँ भी हैं जैसे- बालक के जीवन से जुड़ी हुई समस्याएँ समाधान हेतु ली जाती है, दोनों समस्या केन्द्रित विधि है, दोनों छात्र केन्द्रित विधि हैं आदि।

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