अर्थशास्त्र

सकल वस्तु-विनिमय व्यापार की शर्ते | व्यापार की आय शर्ते | इसकी आलोचनाएँ

सकल वस्तु-विनिमय व्यापार की शर्ते | व्यापार की आय शर्ते | इसकी आलोचनाएँ

सकल वस्तु-विनिमय व्यापार की शर्ते (Gross Barter Terms of Trade)

सकल वस्तु-विनिमय व्यापर-शर्ते किसी देश के आयातों तथा निर्यातों की कुल मात्राओं के बीच अनुपात है। प्रतीकात्मक रूप में, Tg-Qx जहाँ Tg सकल व्यापार शर्तों को व्यक्त करता है और Qm आयातों की मात्राओं तथा Qx निर्यातों की मात्राओं को प्रदर्शित करते हैं। आयातों तथा निर्यातों की मात्राओं के बीच अनुपात जितना अधिक होगा, सकल व्यापार की शर्ते उतनी ही बेहतर होंगी। निर्यातों के उतने ही परिमाण के बदले आयातों की अधिक माता प्राप्त की जा सकती है। किसी अवधि पर्यन्त सकल वस्तु विनिमय व्यापर की शर्तों में परिवर्तनों को मापने के लिए, आधार अवधि और अवधि के अन्त में आयातों तथा निर्यातों की मात्राओं के सूचकांकों को एक दूसरे से सम्बद्ध किया जाता है। इसके लिए सूत्र है:

Tg= Qm1/Qm0 | Qx1/Qx0

1971 को आधार वर्ष मानकर और भारत के आयातों तथा निर्यातों दोनों की मात्राओं को 100 मानकर, यदि हम देखें कि 1981 में मात्रा-आयातों का सूचक बढ़कर 160 हो गया  है और मात्रा निर्यातों का सूचक 120 हो गया है, तो सकल, वस्तु विनिमय व्यापार-शर्तों में निम्नलिखित परिवर्तन हुआ।

Tg=160/100 | 120/100 =133.33

इसका मतलब है कि 1971 के मुकाबले 1981 में भारत की सकल वस्तु-विनिमय व्यापार-शों में 33 प्रतिशत सुधार हुआ।

यदि मात्रा आयाता सूचक बढ़कर 130 और मात्रा निर्यात सूचक 180 हो जाता तो सकल वस्तु विनिमय व्यापार की शर्ते 72.22 होतीं। इसका मतलब है कि 1971 के मुकाबले 1981 में व्यापार की शर्ते 28 प्रतिशत खराब हो गई हैं।

इसकी आलोचनाएँ (Its Criticisms)-

सकल वस्तु-विनिमय व्यापार-शर्तो के सिद्धान्त की इस बात के लिए आलोचना की गई है कि यह निर्यातों और आयातों के सूचकांको में सभी प्रकार के वस्तु एवं पूंजी भुगतानों तथा प्राप्तियों को एक वर्ग के रूप में इकट्ठा कर देता है। ऐसी कोई इकाइयाँ नहीं हैं जो चावल तथा इस्पात पर पूंजी के निर्यात (अथवा आयात) और अनुदान के भुगतान (अथवा प्राप्ति) पर समान रूप से लागू होती हों। इसलिए लेन-देन के उन विविध प्रकारों के अन्तर करना सम्भव नहीं है जिन्हें सूचक में इकट्ठा कर दिया गया हैं। इसलिए हैबरलर, वाइनर तथा अन्य अर्थशास्त्रियों ने सकल वस्तु-विनिमय व्यापार शर्तो के सिद्धान्त को यह कहकर रद्द कर दिया है कि सांख्यिकीय सूचक के रूप में यह सिद्धान्त अयथार्थिक एवं अव्यावहारिक है। वाइनर केवल निवल वस्तु-विनिमय-शर्तों की संधारणा को काम में लाता है जबकि अन्य अर्थशास्त्री वस्तु- विनिमय व्यापार-शर्तो के रूप में केवल निर्यात-आयात कीमत अनुपात को प्रयोग करते है। इसलिए अर्थशास्त्रियों ने इस सिद्धान्त को अस्वीकार कर दिया है।

व्यापार की आय शर्ते (Income Terms of Trade)-

डोरेन्स (Dorrence) ने व्यापर की आय शर्तों का सिद्धान्त प्रस्तुत करके निवल वस्तु-विनिमय व्यापार-शर्तों की संधारणा को संशोधित किया। यह सूचक किसी देश के निर्यातों और उसकी निर्यात एवं आयात कीमतों (निवल वस्तु- विनिमय व्यापार-शर्तों) पर ध्यान देता है। यह किसी देश के निर्यातों में परिवर्तनों के अनुपात में उसकी परितर्तित होती हुई आयात क्षमता को प्रदर्शित करता है। इस प्रकार व्यापार की आयात शर्ते किसी देश की निवल वस्तु-विनिमय व्यापार-शर्तों तथा उसके निर्यात मात्रा सूचक का गुणनफल होती है। इसें यों व्यक्त किया जा सकता है।

Ty= Tc.Qx = PxQx/Pm = निर्यात कीमतों का सूचक निर्यात मात्रा / आयात कीमतों का सूचक

( Te=Px/Pm)

जहाँ Ty व्यापार की आय शर्ते हैं, Tc वस्तु-विनिमय व्यापार-शर्ते और Qx निर्यात मात्रा सूचक हैं।

ए. एच. इम्लाह (A.H.Imlah) ने निर्यातों के मूल्य के सूचक को आयातों की कीमत के सूचक से विभाजित करके यह सूचक निकाला है। इसे उसने ‘व्यापार सूचक से निर्यात लाभ’ कहा है।

व्यापार की आय शर्तों का सूचक बढ़ने का मतलब है कि देश अपने निर्यातों के बदले अधिक वस्तुएं आयात कर सकता है। देश की व्यापार की आयात शर्ते बेहतर हो सकती हैं परन्तु हो सकता है कि उसकी वस्तु-विनिमय व्यापार-शर्ते प्रतिकूल हो जाएं। यह मान लेने पर कि आयात कीमतें स्थिर रहती हैं, यदि निर्यात कीमतें गिर जाएं तो विक्रम बढ़ेगें और निर्यातों का मूल्य बढ़ेगा। इस प्रकार हो सकता है कि जहाँ व्यापार कीआय शर्ते बेहतर हो गई हों, वहां वस्तु-विनिमय व्यापार- शर्ते प्रतिकूल हो गई हों।

व्यापार की आयात शर्तों को आयात करने की क्षमता कहा जाता है। यह आवश्यक है कि दीर्घकाल में, किसी देश के कुल निर्यातों का मूल्य उसके आयातों के मूल्य के बराबर हो अर्थात PxQx=PmQm अथवा PxQx|Pm=Qm l इस प्रकार PxQm|Pm हीQm को निर्धारित करता है जो कि कुल मात्रा है जिसे कोई देश आयात कर सकता है। किसी देश की आयात क्षमता बढ़ सकती है बशर्ते कि अन्य बातें अपरिवर्तित रहेंः (i) निर्यातों की कीमत (Px) बढ़ जाती है, अथवा (ii) आयातों की कीमत (Pm) गिर जाती है, अथवा (iii) निर्यातों की मात्रा (Qx) बढ़ जाती है। इस प्रकार जिन विकासशील देशों की आयात क्षमता कम है उनके लिए व्यापार की आय-शर्तों की संधारण का व्यावहारिक मूल्य बहुत अधिक है।

इसकी आलोचनाएँ (Its Criticisms) –

लेकिन व्यापार की आय शर्तो का सूचक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभ या हानि सही-सही मापने में असमर्थ रहता है। जब किसी देश की आयात क्षमता बढ़ती है तो इसका मतलब केवल यह होता है कि वह पहले से अधिक निर्यात भी कर रहा है। वास्तव में निर्यातों में किसी देश के वास्तविक संसाधन भी सम्मिलित रहते हैं। जिन्हें लोगों का जीवन-स्तर सुधारने के लिए घरेलू रूप से प्रयोग किया जा सकता है।

और फिर, व्यापार की आय शर्तों का सूचक आयात करने की निर्यात आधारित क्षमता से सम्बन्ध रखता है, न कि किसी देश की आयात की कुल क्षमता से, जिसमें देश की विदेशों से विनिमय प्राप्तियां भी सम्मिलित होती हैं। उदाहरणार्थ, यदि किसी देश के व्यापार की आय शर्तों का सूचक गिर गया है परन्तु इसकी विदेशी विनिमय प्राप्तियां बढ़ गई हैं, तो वास्तव में इस देश की आयात क्षमता बढ़ जाती है, भले ही सूचक गिरावट को प्रदर्शित करे। यही कारण है कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से होने वाले लाभ को मापने के लिए व्यापार की आय शर्तों के सिद्धान्त के मुकाबले व्यापर की वस्तु-विनिमय शर्तों की संधारणा को प्राथमिकता दी जाती है।

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Pankaja Singh

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