सातवाहन कौन थे? | सातवाहन वंश | सातवाहन जाति का परिचय | सातवाहनों का मूल निवास स्थान

सातवाहन कौन थे? | सातवाहन वंश | सातवाहन जाति का परिचय | सातवाहनों का मूल निवास स्थान

सातवाहन कौन थे?

पुराणों में सातवाहन वंश के राजाओं के लिए ‘आन्ध्र’ शब्द का प्रयोग किया गया है, जबकि अपने अभिलेखों में वे अपने को सर्वदा और सर्वत्र सातवाहन अथवा शातकर्णी घोषित करते हैं। इन अभिलेखों में ‘आन्ध्र’ शब्द कहीं नहीं मिलता। परन्तु आन्ध्र और सातवाहनों के पारस्परिक सम्बन्ध का निश्चय करने के पूर्व आन्ध्र जाति के प्राचीन इतिहास का ज्ञानार्जन आवश्यक प्रतीत होता है। आन्ध्र लोग गोदावरी और कृष्णा नदियों के बीच की तेलुगू देश में बसने वाली जाति के थे। ऐतरेय ब्राह्मण में सबसे पहले इस जाति का उल्लेख पाया जाता है। इस जाति को आर्य संस्कृति के प्रभाव से मुक्त बताया गया है। इस ग्रन्थ के अनुसार विश्वामित्र के वंशजों ने गोदावरी और कृष्णा के बीच के प्रदेश में जाकर आर्येतर जातियों से विवाह किया। इन विवाहों के परिणाम स्वरूप जिस जाति का उद्भव हुआ उसे ‘आन्ध्र’ की संज्ञा मिली। चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में आन्ध्र जाति की राजनीतिक शक्ति काफी बढ़ी-चढ़ी थी। मेगस्थनीज ने उनकी प्रचण्ड सैन्यशक्ति का उल्लेख किया है। प्लिनी ने लिखा है कि कलिंग के राजा के पास 60000 पदाति, 1000 अश्वारोही और 700 गज सेना थी। सम्भवतः मेगस्थनीज की ‘इण्डिका’ के ही आधार पर प्लिनी ने यह विवरण दिया है। अशोक के शिलालेख में भी इस जाति का उल्लेख मिलता है। अशोक ने आन्ध्रों का उल्लेख उन जातियों के अन्तर्गत किया है जो उसके राजनीतिक प्रभाव के अन्तर्गत थीं। यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि अशोक के बाद इस जाति की क्या दशा हुई परन्तु यह सोचना कुछ अधिक समीचीन जान पड़ता है कि वे स्वतन्त्र हो गये।

सातवाहन वंश-

अब प्रश्न यह उठता है कि आन्ध्रों और सातवाहनों में क्या पारस्परिक सम्बन्ध था। सातवाहन-नरेश अपने को कभी भी आन्ध्र जाति का नहीं बताते जबकि पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार उनके वंश का संस्थापक सिमुक या शिशुक या सिन्धुक ‘आन्ध्रजातीय’ था। सातवाहन राजाओं के अभिलेखों में जिनके नाम मिलते हैं वे ही नाम पुराणों में भी प्राप्त होते हैं। परन्तु क्या कारण है कि सातवाहन राजा अपने को कभी ‘आन्ध्र’ नहीं कहते, जबकि ‘वायु पुराण’ उनके वंश के संस्थापक को आन्ध्र ही कहता है। इस परस्पर विरोधी मत में किस प्रकार सामजस्य स्थापित किया जा सकता है? सातवाहन अपने को ब्राह्मण कहते हैं किन्तु आन्धों को प्राचीन ग्रन्थों में आर्य-संस्कृति के प्रभाव से मुक्त कहा गया है जिससे स्पष्ट होता है कि आन्ध लोग द्रविड़ मूल के थे। वास्तव में आन्ध्रों और सातवाहनों में कोई सम्बन्ध नहीं था। वे लोग आन्धों से सर्वथा भिन्न थे और महाराष्ट्र प्रदेश के निवासी थे। आन्ध्र लोग, जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, गोदावरी और कृष्णा नदियों के बीच के प्रदेश के रहने वाले थे। सातवाहनों ने अपनी शक्ति का विकास महाराष्ट्र-प्रदेश से ही किया और आन्ध्र प्रदेश में अपना उपनिवेश स्थापित किया। परन्तु कुछ समय के बाद शक-आभीरों के आक्रमणों के फलस्वरूप उनकी सत्ता केवल आन्ध्र-प्रदेश तक ही सीमित रह गई और पश्चिमी प्रान्तों पर उनका अधिकार नहीं रह गया। इस प्रकार आन्ध्र ही तक सीमित रह जाने के कारण सातवाहन लोग आन्ध्र कहलाये। इस सम्बन्ध में स्वर्गीय प्रोफेसर एन० एन० घोष का कथन सर्वथा मान्य प्रतीत होता है, “ऐसा प्रतीत होता है कि जिस समय पुराण लिखे जा रहे थे उस समय सातवाहनों ने अपने उत्तरी और पश्चिमी अधिकार क्षेत्र खो दिये थे, और आन्ध्र देश के रहने वालों के साथ इस प्रकार मिल-जुल गये थे, क्योंकि शासक के रूप में उन्हें आन्ध्रों के साथ निकटतम सम्पर्क में आने का अवसर यों ही मिल गया था कि पुराणकार ने उस प्रदेश के शासकों को भी आन्ध्र ही कहना उचित समझा और तद्नुसार प्रथम सातवाहन नरेश सिमुक को आन्ध्र वंश का संस्थापक बना दिया।’

सातवाहन जाति का परिचय

सातवाहन कौन थे और किस जाति के थे? इतिहासकारों में इस विषय पर काफी मतभेद हैं। पुराणों में सातवाहनों को आन्ध्र जाति का कहा गया है। इसीलिए सातवाहन वंश को आन्ध्र वंश भी कहा गया है। आन्ध्र एक जाति का नाम था, जो गोदावरी तथा कृष्णा नदियों के बीच के भाग में निवास करती थी। आन्ध्र लोग आर्य थे या अनार्य, यह भी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता इस सम्बन्ध में विद्वानों के अग्र चार मत द्रष्टव्य हैं-

(1) आन्ध्र या सातवाहन अनार्य थे- कुछ इतिहासकारों का मत है कि आन्ध्र लोग अनार्य थे, परन्तु आर्यों के सम्पर्क में आकर आर्यों की सभ्यता और संस्कति अपना लेने से ये आर्य जैसे हो गये। श्री निवासचारी और आयंगर के मतानुसार, “इस प्रकार आन्ध्र लोग अनार्य प्रजाति के थे, जो धीरे-धीरे आर्य बना लिए गये और वे दक्षिण के उत्तर-पूर्वी भाग में निवास करते थे और काफी शक्तिशाली थे।”

(2) सातवाहन ब्राह्मणों तथा नागों की मिश्रित सन्तान थे- डॉ. हेमचन्द्र राय चौधरी ने सातवाहन राजाओं को आन्ध्र भृत्य बतलाया है। उन्हीं के शब्दों में, “यह विश्वास करने योग्य बात है कि आन्ध्र भृत्य अर्थात् सातवाहन राजा ब्राह्मण थे, जिनमें कुछ में नाग रक्त का सम्मिश्रण था।’ इस मत के अनुसार सातवाहन ब्राह्मणों तथा नागों के मिश्रित रक्त वाला कुल था।

(3) सातवाहन ब्राह्मण थे- अधिकांश विद्वानों के अनुसार सातवाहन ब्राह्मण थे। “नासिक अभिलेख’, में गौतमीपुत्र शातकर्णि को एक ब्राह्मण (अर्थात् एक विशिष्ट ब्राह्मण) कहा गया है। इनके नामों के पूर्व गौतमीपुत्र, वासिष्ठीपुत्र आदि शब्द ब्राह्मणों के गोत्र मात्र हैं। इनसे सातवाहन राजाओं का ब्राह्मण वंशी होना सिद्ध होता है।

(4) ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार सातवाहन आर्यों और द्रविड़ों की मिश्रित जाति थी- आन्ध्र या सातवाहन जाति का सर्वप्रथम उल्लेख हमें ऐतरेय ब्राह्मण में मिलता है, जिसके अनुसार यह दक्षिण की दस्यु जाति थी। इस जाति का इतिहास बहुत प्राचीन है। इन्हें आन्ध्र या सातवाहन दोनों नामों से पुकारा जाता है। यह एक बहुत शक्तिशाली जाति थी। उनकी उत्पत्ति के विषय में विद्वानों के विभिन्न मत हैं। ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार यह आर्यों और द्रविड़ों के सम्मिश्रण से उत्पन्न हुई एक जाति थी। नासिक लेख के अनुसार आन्ध्र ब्राह्मण थे। आरम्भ में ये लोग कृष्णा और गोदावरी नदी के बीच के प्रदेश में बसे हुए थे, परन्तु बाद में उन्नति करके इन्होंने आन्ध्र प्रदेश को विजित कर लिया, जिससे इनका नाम भी आन्ध्र पड़ गया। अशोक के बाद इनका राज्य ही सबसे अधिक शक्तिशाली था।

सातवाहनों का मूल निवास स्थान

सातवाहनों की जाति की भाँति ही इनके मूल निवास स्थान के बारे में विद्वानों में काफी मतभेद हैं और उनकी जाति के विवाद की तरह उनके मूल निवास स्थान के बारे में विवाद आज तक सुलझ नहीं पाया है। इस सम्बन्ध में निम्न प्रमुख मत द्रष्टव्य हैं-

(1) आंध्र प्रदेश- डॉ० जायसवाल, प्रभाकर शास्त्री आदि विद्वानों के मतानुसार सातवाहनों का मूल निवास स्थान दक्षिण भारत में कृष्णा और गोदावरी नदियों के बीच का आन्ध्र प्रदेश ही था।

(2) तमिलनाडु का बेलारी जिला- कुछ अन्य विद्वान् इनका मूल स्थान आज के तमिलनाडु के बेलारी जिला को बतलाते हैं।

(3) विदर्भ- कुछ और विद्वान आज के विदर्भ को इनका मूल निवास स्थान कहते हैं।।

(4) मध्य प्रदेश का दक्षिणी भाग- डॉ० हेमचन्द्र राय चौधरी कहते हैं कि सातवाहनों का मूल निवास स्थान मध्य प्रदेश का दक्षिणी भाग था।

(5) महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश- प्रारम्भ के सातवाहन राजाओं के अभिलेखों, सिक्कों और सातवाहनों के समकालीन कलिंग के शासक खारवेल के “हाथी गुम्फा अभिलेख” के अनुसार बहुत से इतिहासकारों ने मान लिया है कि सातवाहनों का मूल निवास स्थान आज का महाराष्ट्र था और बाद में उन्होंने आन्ध्र प्रदेश को जीत लिया।

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