समाज शास्‍त्र

सामाजिक परिवर्तन के कारक | सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक | सामाजिक परिवर्तन के  आर्थिक कारक

सामाजिक परिवर्तन के कारक | सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक | सामाजिक परिवर्तन के  आर्थिक कारक

सामाजिक परिवर्तन के कारक

किसी भी परिवर्तन के लिए कुछ न कुछ कारक उत्तरदायी होते हैं अगर हम किसी परिवर्तन के कारक को जान पाते हैं तो उससे सबंधित परिणामों के बारे में सचेत हो जाते हैं। लुक्रेटियस का कहना है कि वह व्यक्ति ज्यादा सुखी है जो किसी परिवर्तन के कारण को जान लेता है।

सामाजिक परिवर्तन के अनगिनत कारक हैं पर विभिन्न कारकों की महत्ता देश और काल में प्रभावित होती है। जिन कारणों से आज सामाजिक परिवर्तन हो रहे हैं। उनमें से बहुत से कारक प्राचीन काल में मौजूद नहीं थे। परिवर्तन के जिन कारकों की महत्ता प्राचीन मध्यकाल में रही है, आज उनकी महत्ता उतनी नहीं रह गयी है। समय के साथ परिवर्तन का स्वरूप और कारक दोनों बदलते हैं। विभिन्न विद्वानों ने सामाजिक परिवर्तन के लिए विभिन्न कारकों को उत्तरदायी माना जैसे मार्क्स ने आर्थिक कारक को, कॉम्ट ने बौद्धिक विकास को, स्पेन्सर ने विभेदीकारण की सार्वभौमिक प्रक्रिया को वेबर ने धर्म को सोरोकिन ने संस्कृति को तथा ऑगबर्न ने सांस्कृतिक पिछड़न को सामाजिक परिवर्तन के लिए उत्तरदायी माना है।

जनसंख्यात्म कारक (Demographic Factors)- जनसंख्या का सामाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण योगदान है। इस विषय पर सर्वप्रथम चर्चा टी.आर. माल्थस ने 1798ई. में अपने एक लेख (Essay on the principles of population) में किया है। माल्थस का कहना है कि किसी देश की जनसंख्या ज्यामितीय दर से अर्थात् 1, 2, 4, 8, 16, 32…… जबकि खाद्यान्न उत्पादन अंकगणितीय दर से अर्थात् 1,2,3,4… बढ़ती है, इससे किसी भी देश की जनसंख्या 25 वर्षों में दुगुनी हो जाएगी। जनसंख्या के असंतुलित होने से समाज में भुखमरी, अशिक्षा, बेरोजगारी, गरीबी आदि समस्याएं अधिक हो जाती है। वर्तमान समय में भारत जनसंख्या विस्फोट का मुख्य कारण मृत्युदर में अधिकारिक कमी है।

वैसे तो जनांकिकीय (Demography) एक पृथक विज्ञान है लेकिन इसके द्वारा समाज प्रभावित होता है इसलिए इसका भी अध्ययन समाजशास्त्र के एक शाखा में रूप में किया जाता है जब किसी समाज में जनसंख्या अधिक होती है तो संघर्ष बढ़ता है। इसके विपरीत, जन्मदर घट जाती है और मृत्यु दर बढ़ जाती है जिसके फलस्वरूप देश की जनसंख्या घटती चली जाती है जिससे समाज में कार्यशील व्यक्तियों की कमी हो जाती है और उपलब्ध प्राकृतिक साधनों का समुचित प्रयोग नहीं हो पाता । उससे उस समय की आर्थिक दशा गिरती जाती है। फलस्वरूप परिवार छोटे होते चले जाते हैं, जिसका अंतिम परिणाम सामाजिक व पारिवारिक संबंधो में परिवर्तन के रूप में होता है।

हम समाज में जनंसख्या कभी घटती है तो कभी बढ़ती है कभी एक समान नहीं रहती। जनसंख्या की वृद्धि एवं ह्रास हमारे समाज के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन को प्रभावित करता है। जैसे हमारे देश (भारत) में जनसंख्या की वृद्धि समाज की गरीबी का कारण है अतः यहाँ जनसंख्य वृद्धि रोकने की चिंता है जबकि दूसरे देश में जनसंख्या की कमी से समस्याएं उत्पन्न हो रही है, जैसे- रूस और जर्मनी में। यहाँ गर्भपात कानूनी अपराध माना जाता है। जनसंख्या का एक प्रभाव नगरीकरण पर भी पड़ता है, जिस पर नगर में जितनी आबादी रहती है, वहाँ की सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था उतनी ही प्रभावित होती है। इस प्रकार बड़े-बड़े शहरों के निर्माण में जनसंख्या ही प्रधान कारण है।

आर्थिक कारक (Economic Factors)-  मार्क्स का कहना है कि समाज में परिवर्तन सिर्फ आर्थिक कारकों के द्वारा होता है। उनका कहना है कि आर्थिक आधार पर समाज में दो वर्ग बनते हैं रहे हैं जैसे कि वर्तमान समय में हमारे समाने दो वर्ग है- पहला पूजीपति वर्ग (बुर्जुआ वर्ग) तथा, दूसरा, मजदूर वर्ग (सर्वहारा)। मार्क्स का कहना है कि इन दोनों वर्गों के निर्माण का आधार सिर्फ आर्थिक है। इन दोनों वर्गों में संघर्ष के फलस्वरूप ही समाज में परिवर्तन होता है। इसलिए मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन संबंधी विचार को आर्थिक निर्धारणवाद कहा जाता है।

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Pankaja Singh

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