अर्थशास्त्र

साख निर्माण | साख निर्माण के प्रकार | साख निर्माण की प्रक्रिया | साख सृजन के उद्देश्य | साख सृजन की सीमाएँ

साख निर्माण | साख निर्माण के प्रकार | साख निर्माण की प्रक्रिया | साख सृजन के उद्देश्य | साख सृजन की सीमाएँ | बहु-साख सृजन | साख निर्माण शक्तियों की सीमायें | व्यापारिक बैंक का साख निर्माण

साख निर्माण

वर्तमान युग में मुद्रा की पूर्ति के अन्तर्गत विधिग्राह्य मुद्रा के अलावा साख मुद्रा को भी सम्मिलित करते हैं। इसे बैंक मुद्रा भी कह सकते हैं। आपको मालूम होगा कि विधिग्राह्य मुद्रा का सृजन केन्द्रीय बैंक तथा सरकार के द्वारा होता है, जबकि साख मुद्रा का निर्माण केन्द्रीय बैंक (भारत में रिजर्व बैंक आफ इण्डिया) एवं सरकार द्वारा किया जाता है लेकिन साख मुद्रा का निर्माण बैंकों द्वारा होता है। इस सम्बन्ध में अर्थशास्त्री सेयर्स का कथन है कि “बैंक मुद्रा जुटाने वाली संस्था मात्र नहीं बल्कि महत्वपूर्ण अर्थ में मुद्रा की निर्माता भी है।”

साख निर्माण के प्रकार

साख निर्माण दो प्रकार से होता है-

(1) पत्र मुद्रा द्वारा साख निर्माण- यह सर्वविदित है कि जब बैंक पत्र मुद्रा का निर्गमन करते हैं तो उससे साख निर्माण भी होता है। 19वीं शताब्दी में देश के सम्पूर्ण बैंकों को पत्र मुद्रा निर्गमन का अधिकार प्राप्त था। वर्तमान समय में यह अधिकार केवल केन्द्रीय बैंक (R.BI.) को प्राप्त है। इस प्रकार केन्द्रीय बैंक पत्र मुद्रा निर्गमन करके साख सृजन करता है। क्योंकि नोट निर्गमित करते समय केन्द्रीय पत्र मुद्रा के पीछे शत प्रतिशत धातु को कोष में नहीं रखता, बल्कि पत्र मुद्रा निर्गमन के पीछे मात्र एक निश्चित अंश धातु के रूप में रखकर शेष पत्र मुद्रा के बदले प्रतिभूतियों को सुरक्षित किया जाता है। इस प्रकार पत्र मुद्रा का यह भाग साख के आधार पर ही चलता है। बैंकों द्वारा निक्षेप क्रिया दो प्रकार की होती है जिसे प्रारम्भिक निक्षेप एवं व्युत्पन्न निक्षेप कहते हैं।

(1) प्रारम्भिक निक्षेप- बैंकों में प्रारम्भिक निक्षेप उसे कहते हैं जब बैंक का ग्राहक अथवा खाताधारक बैंक में अपना पैसा जमा करता है तो वह जो कागजी नोट बैंक को देता है वह प्रारम्भिक निक्षेप कहलाता है। इसे नकद जमा कहते हैं। जैसे- यूको बैंक का खाता धारक 2000 रु. जमा करे तो उसे प्रारम्भिक अथवा नकद जमा कहते हैं।

(2) व्युत्पन्न जमा- व्युत्पन्न जमा को साख जमा या निक्षेप भी कह सकते हैं क्योंकि जब कोई बैंक किसी व्यक्ति के खाते में किसी चैक के बदले निर्धारित राशि उसके खाते में जमा कर देता है तो इसे साख जमा अथवा व्युत्पन्न निक्षेप कह सकते हैं। जैसे- एक व्यक्ति बैंक से 10 लाख रु0 का ऋण लेता है तो बैंक उसे एक चैक बुक देकर उसके खाते में 10 लाख रु० जमा दिखा देती है और वह व्यक्ति आवश्यकता पड़ने पर बैंक की चैक द्वारा दूसरों को भुगतान करता रहता है। इसे साख जमा कह सकते हैं। प्रो० हॉम का मत है कि “व्युत्पन्न जमा का निर्माण ही साख का सृजन है।”

साख निर्माण की प्रक्रिया

साख निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन करने पर यह ज्ञात होता है कि प्रत्येक बैंक जनता से प्राप्त प्रारम्भिक जमा। मान लीजिए 2000 रु0 कोई व्यक्ति बैंक में जमा करता है तो बैंक के नियम के अनुसार 20% नकद कोष में रखने के बाद 1600 रु0 का ऋण दे देता है और 400 रु० नकद कोष में जमा कर लेता है। इस प्रकार बैंक द्वारा 1600 रु0 का ऋण एवं निवेश का भुगतान दूसरी बैंक के पास पहुँच जाता है। यह बैंक पुनः 20% नकद कोष 320 रु० अपने नकद कोष में जमा कर लेती है अर्थात् दूसरी बैंक में जमा हुई कुल 1600 रु० की राशि का 1/5 हिस्सा नकद कोष में रखकर वह किसी अन्य बैंक को 4/5 भाग अर्थात् 1280 रु० ऋण एवं निवेश के लिए दे देती है। इस प्रकार बैंक की स्थिति का विवरण निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है-

प्रथम बैंक में जमा एवं ऋण तथा निवेश की स्थिति

प्रथम बैंक में बैंक के ग्राहक द्वारा जमा की गई कुल धनराशि रु0 2000/-

नकद कोष – रु0 400/- (20%)

ऋण एवं निवेश – 1600 रुपये

ऋण एवं निवेश का धन जब दूसरी किसी भी बैंक में पहुँचता है तो वह प्रथम बैंक की व्युत्पन्न जमा अर्थात् साख निर्माण दूसरे बैंक की प्रारम्भिक जमा समझी जाती है। यह दूसरी बैंक भी उसी नियम का पालन करते हुए अर्थात् 1600 रु0 कुल जमा का 20% नकद कोष में जमा करती है जो रु० 320 होता है तथा नये ऋण एवं निवेश के लिए रु0 1280 स्वतन्त्र रूप से दे देती है।

दूसरे बैंक की स्थिति विवरण

परिसम्पत्तियाँ

नकल कोष में जमा रु0 320/-

ऋण एवं निवेश रु0 1280/-

योग 1600/-

दायित्व

प्रारम्भिक जमा रु0 1600/-

योग 1600

उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि प्रथम बैंक ने साख मुद्रा का निर्माण करते हुए द्वितीय श्रृंखला के बैंक को 1600 रु० साख जमा करने हेतु दे दिये। इसका तात्पर्य है कि द्वितीय श्रृंखला की बैंक अब 1280 रु० नयी जमा राशि के रूप में प्राप्त करेगी और वह उक्त धनराशि का 20% नकल कोष में जमा करके अर्थात् 256 रुपये शुद्ध रूप से जमा कर लेगी और शेष 1024 रु० को किसी चौथी बैंक को दे देगी और इस प्रकार तीसरी बैंक का स्थिति विवरण निम्न होगा।

बैंक को ऋण एवं निवेश हेतु रु0 1280 प्राप्त हुए जिसमें उसने 20% अर्थात् नकद कोष में 256 जमा कर लिये और 1024 रुपये को ऋण के रूप में चौथी बैंक को दे दिया।

तीसरी बैंक का स्थिति विवरण

कुल जमा प्राप्त हुए रु० एव ऋण तथा निवेश की स्थिति-

परिसम्पत्तियाँ

नकद कोष में जमा (20%) रु0 256/-

ऋण एवं निवेश हेतु रु0 1024/-

योग 1280/-

दायित्व

प्रारम्भिक जमा रु0 1280/-

योग 1280

इस प्रकार तीसरी बैंक द्वारा निर्माण की गई साख मुद्रा चौथे बैंक में पहुँचेगी तो वह रु० 1024/- होगी जिसमें वह 20% अर्थात 204 रु0 नकद कोष में जमा करेगी और शेष धनराशि को ऋण एवं निवेश हेतु रु0 818/- पाँचवीं बैंक को दे देगी।

यही क्रम निरन्तर चलता रहता है और बैंक साख का निर्माण करती रहती है। मजे की बात यह है कि प्रथम बैंक के पास किसी ग्राहक द्वारा मात्र रुपये 2000 जमा होते हैं और यदि उपभोक्ता अनुसार इसी धनराशि का दस बैंकों में साख निर्माण की प्रक्रिया को ज्ञात करें तो आश्चर्य होगा कि सभी दस बैंकों में कुल नकद कोष 20% के आधार पर रु0 1785.26 जमा हुआ और रु0 7141 का शाख निर्माण हुआ।

क्या आप जानते हैं कि साख निर्माण बैंकों के लिए कितना बड़ा वरदान है कि एक बैंक में मात्र 2000 रु० किसी ग्राहक के जमा होते हैं और वह उसका 20% अपने नकद कोष में रखने के पश्चात् शेष धनराशि को दूसरी बैंक को ऋण एवं निवेश हेतु प्रदान कर देती है और उसक बदले में ब्याज भी प्राप्त करती है। यह प्रक्रिया केवल दूसरी बैंक तक ही सीमित नहीं रहती, बल्कि उक्त 10 बैंकों तक जब पहुँच जाती है तो नकद कोष का जमा रु० बैंकों के पास 1785.26 रु० कागजों में जमा हो जाता है और 7141 रु० ऋण एवं निवेश में तैरता है, जबकि वास्तव में प्रथम बैंक के ग्राहक ने मात्र 2000 रु0 जमा किया था। जरा सोचिये कि बैंक साख का निर्माण

कितने गुना तक करती चली जाती है। इसका सारणी निम्न होगी-

बैंकों द्वारा साख निर्माण की प्रक्रिया

बैंक का नाम

नई जामा राशि

नकद कोष 20%

ऋण एवं निवेश या व्युत्पन्न जमा

यूको बैंक

Rs. 2000/-

Rs. 400/-

Rs. 1600/-

SBI बैंक

Rs. 1600/-

Rs. 320/-

Rs. 1280/-

बैंक ऑफ बड़ौदा

Rs. 1280/-

Rs. 256/-

Rs. 256/-

पंजाब नेशनल बैंक

Rs. 1024/-

Rs. 204/-

Rs. 818/-

यूनियन बैंक

Rs. 818/-

Rs. 163.84/-

Rs. 655.36/-

सेन्ट्रल बैंक

Rs. 655.36/-

Rs. 121.08/-

Rs. 524.28/-

बीकानेर बैंक

Rs. 524.28/-

 Rs. 104.84/-

Rs. 418.28/-

इलाहाबाद बैंक

Rs. 418.28/-

Rs. 83.90/-

Rs. 335.54/-

गिन्डलेज बैंक

Rs. 335.54/-

Rs. 67.12/-

Rs. 268.44/-

ग्रामीण बैंक

Rs. 268.44/-

Rs. 53.70/-

Rs. 214.74/-

कुल योग

Rs. 8,941.90/-

Rs. 1785.26/-

Rs.7141/-

उपरोक्त सारणी से 10 बैंकों की साख निर्माण प्रक्रिया स्पष्ट करती है कि प्रथम बैंक यूको बैंक ऑफ इण्डिया में ग्राहक ने केवल 2000 रु0 की नकद राशि जमा की थी जिसका 400 रु० यूको बैंक ने नकद कोष में रखने के बाद 1600 रु0 ऋण दे दिया। उसका ड्राफ्ट मान लीजिए ऋण प्राप्तकर्ता ने स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया जिसका वह खाताधारक है उसमें जमा कर दिया। इस प्रकार बैंक ऑफ इण्डिया के पास ड्राफ्ट द्वारा 1600 रु0 की नई जमा राशि प्राप्त हुई जिसका 20% अर्थात् 320 रु0 नकद कोष में रखने बाद सृजन किया जिसके अन्तर्गत नकद रूप में मात्र 2000 रु० जमा हुए, लेकिन 10 बैंकों की जमाराशियाँ 8941.90 रु0 रही जबकि नकद कोष में 1785.26 रु0 और नवीन ऋण एवं निवेश 7141 रु० दिये गये। इससे सिद्ध होता है कि एक बैंक 1 रु0 की नकद जमा प्राप्त होने पर 5 रु0 से 7 रु0 तक बैंक मुद्रा का निर्माण कर सकता है।

साख सृजन के उद्देश्य-

यदि साख सृजन के उद्देश्यों पर ध्यान दें तो कह सकते हैं कि बैंक की जितनी नकद जमा क्षमता होती है, उससे कई गुना ऊँची साख मुद्रा का सृजन करके औद्योगिक विकास उत्पादन वृद्धि, सेवाओं की अभिवृद्धि जैसी आर्थिक क्रियाओं को जन्म देती है। व्यापारिक बैंकों के साख सृजन का उद्देश्य मौलिक रूप से लाभार्जन तो है ही लेकिन प्रमुख उद्देश्य ग्राहकों को ऋण सुविधा देकर विकास कार्य को गतिशील बनाना भी है। अर्थशास्त्रियों का मत है कि व्यापारिक बैंकों का ज्यों-ज्यों तीव्र विकास हो रहा है, आर्थिक विकास की धुरी शहरों से लेकर गाँवों तक तेजी से चल पड़ी है। साख सृजन का मूल उद्देश्य तरल मुद्रा की मात्रा में वृद्धि करने के लिए साख की मात्रा बढ़ाना है, जिससे गुणात्मक विकास हो।

साख सृजन की सीमाएँ-

भारत में साख-नियंत्रण के प्रश्न से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अर्द्धविकसित अर्थव्यवस्थाओं में किस श्रेणी का देश है। क्योंकि अर्द्धविकसित अर्थव्यवस्थाओं की विशेषताओं के आधार पर भारत एक अर्द्धविकसित देश दिखाई पड़ता है, क्योंकि 3/4 विशेषताएँ अक्षरशः लागू होती हैं। अतः अर्थशास्त्री एक निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था विकासशील है जो विकसित देशों की तरह बनना चाहती है। अतः अर्द्धविकसित देश जहाँ बैंकिंग का पूर्ण विकास नहीं हुआ हो, अर्थात् वित्तीय संस्थाएँ या व्यापारिक बैंकों का अभाव हो, परिणामतः मुद्रा एवं पूँजी बाजार अविकसित हो, वहाँ केन्द्रीय बैंक साख नियंत्रण का स्वप्न देखे तो अनुपयुक्त ही समझा जायेगा। क्योंकि ऐसी अर्थव्यवस्था में प्रथम संगठित बैंकिंग प्रणाली उपलब्ध होना आवश्यक है।

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Pankaja Singh

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