हिन्दी

रेणु के रचनाकार की विशेषता | ‘तीसरी कसम’ कहानी के वातावरण के निर्माण में रेणु जी की सफलता | कहानीकार प्रसाद जी की कहानी कला

रेणु के रचनाकार की विशेषता | ‘तीसरी कसम’ कहानी के वातावरण के निर्माण में रेणु जी की सफलता | कहानीकार प्रसाद जी की कहानी कला

रेणु के रचनाकार की विशेषता

वर्तमान युग के कहानीकारों में श्री फणीश्वरनाथ रेणु शीर्ष स्थान पाने के अधिकारी हैं। कुछ प्रमुख कहानीकार जो प्रेमचंदयुगीन कथा-साहित्य को विकसित करने वाले हैं, उनमें आपका प्रमुख स्थान हैं। आपके कई एक प्रकाशित उपन्यासों ने हिंदी उपन्यास जगत् में विशेष ख्याति प्राप्त की। ‘मैला आँचल’ आपका पहला महत्त्वपूर्ण उपन्यास है। आंचलिक उपन्यासों के क्षेत्र में इस उपन्यास ने विशेष ख्याति प्राप्त की। ‘परती परिकथा’ भी आपका आंचलिक उपन्यास है।

नवीन शिल्प-विधान की कहानियों लिखने में रेणु जी अपनी समता नहीं रखते। उनकी कहानियों में विषय-वस्तु, भाव और भाषा की दृष्टि से आंचलिकता पायी जाती है। उनकी कहानियाँ किसी विशेष गाँव-स्थान या भू-भाग की भाषा और विशेष वस्तु लेकर लिखी गयी हैं। इनमें ग्राम की संस्कृति सजीव हो उठी है। उनके समस्त कथा-साहित्य की भाषा पर आंचलिकता का गहरा प्रभाव मिलता है। इनमें चिर-परिचित चरित्रों का समय चिवत्र सामने आ गया है। रेणु जी की कुछ कहानियाँ ऐसी भी हैं, जिनमें आंचलिक भाषा का प्रयोग कम हुआ है। ठेस’ कहानी ऐसी कहानियों का प्रतिनिधित्व करती है। इसमें ग्राम्य-जीवन की यथार्थ झाँकी प्रस्तुत हो गयी है।

‘तीसरी कसम’ कहानी के वातावरण के निर्माण में रेणु जी की सफलता

रेणुजी ने ‘तीसरी कसम’ कहानी के वातावरण की सृष्टि में ग्राम्यांचल के परिवेश को आधार बनाया है। आंचलिक कहानी में रचनाकार अंचल विशेष की संस्कृत, वहां के रहन-सहन, बोली-वानी, वेष, भूषा, खान-पान, पहनावा- ओढ़ावा आदि को स्थापित करता है। इस कहानी में रेणुजी ने बड़ी कुशलता से पूर्णिमा जनपद की आंचलिकता का सुंदर वर्णन किया है। किसी भी अंचल का सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भौगोलिक महत्त्व अलग-अलग होता है। लेखक ने उसे क्षेत्र विशेष तथा उसके आस-पास केक्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति के साथ-साथ वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों, यथा-नदी, पहाड़, घाट, कुहासे आदि को भी बड़ी कुशलता के साथ निरूपित किया है। वहाँ के जन-जीवन और रहन-सहन में परिव्याप्त आत्मीयता को भी लेखक ने अपनी कहानी में बखूबी पिरोया है। इतना ही नहीं उस अंचल में आयोजित होने वाले मेले-तमाशे तथा उनकी पृष्ठभूमि में उपस्थित आस्थाओं, अंधविश्वासों, पर्वो, उत्सवों, त्योहारों आदि का निरूपण भी रेणुजी ने किया है। अंचल विशेष में प्रचलित गीत तथा वहाँ की भाषाई अभिव्यक्तियों को अत्यंत्र सजीवता एवं मार्मिकता के साथ अंकित करने में लेखक को पर्याप्त सफलता मिली है। अतः वातावरण-सृजन की दृष्टि से यह कहानी उच्चकोटि की है, जिसमें अंचल विशेष का वातावरण व्यापकता एवं समग्रता के साथ निरूपित है।

कहानीकार प्रसाद जी (प्रसाद की कहानी कला)

हिंदी साहित्य के मौलिक कहानी-लेखकों में ‘प्रसाद’ अग्रणी हैं। उनकी पहली कहानी ‘ग्राम’ अगस्त 1910 ई. में ‘इंदु’ में प्रकाशित हुई थी। इसके पश्चता ‘प्रसाद’ की कहानियों का प्रथम संग्रह  ‘छाया’ नाम से 1912 ई. में प्रकाशित हुआ। उनके कुल पाँच कहानी-संग्रह प्रकाशित हुए हैं। ‘छाया’ नाम के अतिरिक्त शेषचार संग्रहों के नाम है- ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाश-दीप’, ‘आँधी’ और ‘इंद्रजाल’। सभी पाँच संग्रहों का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित हैं-

छाया- इसमें उनकी पाँच कहानियाँ संकलित थीं। दूसरे संस्करण में छ: और कहानियाँ बढ़ा दी गयीं। इस तरह ‘छाया’ में कुल ग्यारह कहानियां हो गयीं। बाद की सभी कहानियाँ ऐतिहासिक हैं। इससे स्पष्ट होता है कि उस समय तक प्रसादजी की रूचि इतिहास के अध्ययन में हो गयी थी।

प्रतिध्वनि- इसमें कुछ पंद्रह कहानियाँ हैं। सब में लेखक का कवि रूप विशेष रूप से उभर कर सामने आया है। नियतिवादी दृष्टिकोण, दार्शनिकता का पुट, अतीतकी भव्य कल्पनात्मक पृष्ठभूमि, भावपरकता तथा रसात्मकता इन कहानियों की प्रमुख विशेषताएँ हैं। ‘वस्तु’ और ‘चरित्र विकास’ की ओर ‘प्रसाद’ ने अधिक ध्यान नहीं दिया है।

आकाशदीप- इसमें कुल उन्नीस कहानियाँ हैं, जिसमें ‘आकाशदीप’, ‘ममता’ और ‘स्वर्ण के खंडहर’, ऐतिहासिक हैं। यहाँ तक पहुँचते-पहुंचते ‘प्रसाद’ की कहानी-कला पूर्ण विकसित रूप में सामने आती है। भाव-संघर्ष, काल्पनिक-चित्रण एक प्रकार की मसृण तरलता, संवेदनशील वातावरण, नाटकीय-विधान तथा रहस्यमय खंड-चित्र इनकी प्रमुख विशेषताएँ हैं।

आँधी- इसमें कुल ग्यारह कहानियाँ हैं, जिनमें ‘मधुआ’, ‘घीसू’, ‘बेड़ी’, और ‘नीरा’ यथार्थवादी भूमि पर चित्रित की गयी हैं। जीवन में आने वाले छोटे-छोटे सामान्य पात्रों को नायकत्व प्रदान किया गया है। इन पात्रों का बड़ा ही मनोवैज्ञानिक चित्रण ‘प्रसाद’ ने किया है। ‘मधुआ तो प्रेमचंद्रजी को बहुत ही पंसद थी।

इंद्रजाल- इसमें कुल चौदह कहानियाँ हैं। इन कहानियों में ‘प्रसाद’ का दृष्टिकोण बौद्धिक, मनोवैज्ञानिक एवं यथार्थवादी होने लगा था। ‘इंद्रजाल’, ‘सलीम’ तथा ‘गंडा’ इस दृष्टि से बहुत सुंदर बन पड़ी हैं।

उपर्युक्त सभी कहानियों को वस्तु और शिल्प की दृष्टि से निम्नलिखित वर्गों में विभक्त किया जा सकता है- ऐतिहासिक, यथार्थवादी, मनोवैज्ञानिक, प्रतीकात्मक, प्रेममूलक, स्वच्छंदतावादी, भावात्मक।

ऐतिहासिक कहानियों में ‘सिंकदर की पराजय’, ‘चित्तौड़ का उद्धार’, ‘अशोक’, ‘जहाँआरा’, ‘चक्रवर्ती का स्तम्भ’, आदि प्रमुख हैं। यथार्थवादी कहानियों में ‘सलीम’, ‘कलावती की शिक्षा’, इंद्रजाल’, ‘गुंडा’, आदि सुंदर बन पड़ी हैं। मनोवैज्ञानिक कहानियों में प्रतिमा’, ‘पाप की पराजय’ ‘परिवर्तन’, ‘सुनहला साँप’, ‘मधुआं’, ‘संदेह’ आदि प्रधान हैं। रोमाण्टिक या स्वच्छंदतावादी कहानियों में ‘रसिया बालम’, ‘मदन मृणालिनी’ ‘बनजारा’, ‘आकाशदीप’, ‘चंद्रा’, ‘पुरस्कार’, आदि प्रधान हैं। भावात्मक कहानियों में रहस्यमयी भावना का प्रधान्य है। इस वर्ग में ‘खण्हर की लिपि’, ‘उस पार का योगी’, ‘हिमालय का पथिक’, आदि प्रमुख हैं। प्रतीकात्मक कहानियों में ‘समुद्रसंतरण’, ‘प्रलय’, ‘कला’, ‘पत्थर की पुकार’, ‘वैरागी’, ‘ज्योतिषमती’ उल्लेखनीय हैं।

हिन्दी – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!