शिक्षाशास्त्र

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 | राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 एवं संशोधित शिक्षा नीति 1992 का प्रभाव

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 | राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 एवं संशोधित शिक्षा नीति 1992 का प्रभाव

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 एवं संशोधित शिक्षा नीति 1992 का प्रभाव

(Impact of National Education Policy, 1986 and Revised Education Policy, 1992)

वर्तमान में देश में इसी नीति का पालन हो रहा है और नीति के तहत शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर प्रसाद एवं उन्नयन दोनों कार्य किए जा रहे हैं । इस नीति के तहत अब तक जो विशेष हुआ है उसे निम्नलिखित रूप से क्रमबद्ध किया जा सकता है-

1) पूरे देश में 10 + 2 + 3 शिक्षा संरचना लागू हो गई है, यह बात दूसरी है कि प्रथम 10 वर्षीय आधारभूत पाठ्यचर्या अभी तक लागू नहीं हो पाई है।

(2) शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में तो क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं,2003 तक 492 ‘जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (DIETs) स्थापित किए जा चुके थे, 86 शिक्षक शिक्षा महाविद्यालयों को शिक्षक शिक्षा केन्द्रों'(CTEs) में समुन्नत किया जा चुका था और 38 शिक्षक शिक्षा कॉलिजों को शिक्षा उच्च अध्ययन केन्द्रों’ (CASE) में समुन्नत किया जा चुका था।

(3) प्राथमिक शिक्षा का तेजी से प्रसार एवं उन्नयन हो रहा है। ब्लैकबोर्ड योजना के तहत अब तक लगभग 75% प्राथमिक स्कूलों की दशा में सुधार किया जा चुका है, लगभग 2 लाख नए कमरों का निर्माण किया जा चुका है, लगभग 5.5 लाख स्कूलों को शिक्षण अध्ययन सामग्री दी जा चुकी है, लगभग 1.5 लाख शिक्षकों की नियुक्ति द्वितीय शिक्षक के रूप में और लगभग 1 लाख शिक्षकों की नियुक्ति तृतीय शिक्षक रूप

में की जा चुकी है। कार्य योजना,1992 के तहत लगभग 1.4 लाख उच्च प्राथमिक स्कूलों को शिक्षण सामग्री हेतु 40-40 हजार रुपये दिए जा चुके हैं और लगभग 80 हजार नए शिक्षक नियुक्त किए जा चुके हैं

(4) वैसे तो शैक्षिक अवसरों की समानता के लिए जो भी कदम उठाए गए हैं वे वोट की राजनीति पर आधारित हैं परन्तु इससे स्त्री शिक्षा, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यकों के बच्चों की शिक्षा में विस्तार हुआ है, उनका नामांकन बढ़ा है। कुछ विद्यालय अपंग एवं मन्दबुद्धि बच्चों, किशोरों और युवकों के लिए भी खोले गए हैं।

(5) लगभग सभी प्रान्तों में + 2 पर व्यावसायिक पाठ्यक्रम भी शुरू किए गए हैं, यह बात अलग है कि इनमें सफलता नहीं मिल पा रही है।

(6) केन्द्र और प्रान्तों के शिक्षा बजटों में बढ़ोत्तरी शुरू हुई है, यह बात दूसरी है कि अभी तक भी केन्द्र के बजट में शिक्षा पर 6% व्यय सुनिश्चित नहीं किया जा सका है।

(7) इस बीच प्रौढ़ शिक्षा एवं सतत शिक्षा कार्यक्रमों के लिए भी अतिरिक्त धनराशि उपलब्ध कराई गई है जिससे इस क्षेत्र में भी कार्य की गति बढ़ी है। 2001 में हमारे देश में साक्षरता प्रतिशत 65.38 हो गया था।

(8) शिशुओं की देखभाल और पोषण तथा पूर्व प्राथमिक शिक्षा के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं, देश में 2 लाख से अधिक तो आँगनबाड़ियाँ और बालवाड़ियाँ स्थापित की जा चुकी हैं और इनमें 2 करोड़ से अधिक बच्चे हैं, कितने लाभान्वित हो रहे हैं, यह एक अलग तथ्य है।

(9) माध्यमिक शिक्षा के प्रसार के प्रयत्नों में तेजी आई है। इस हेतु इस स्तर पर खुली शिक्षा का भी विस्तार किया गया है, अकेले राष्ट्रीय खुले विद्यालय में 4 लाख से अधिक छात्र-छात्राएँ पंजीकृत हैं। गति निर्धारक विद्यालयों के रूप में 2003 तक 491 नवोदय विद्यालय खोले जा चुके थे।

(10) उच्च शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और प्रबन्ध शिक्षा, सभी के विकास एवं उन्नय के लिए प्रयत्न जारी हैं। इस बीच उच्च शिक्षा के प्रसार हेतु दूर शिक्षा (खुली शिक्षा) का काफी प्रसार किया गया है और इसके उन्नयन के लिए अद्यतन एवं स्तरीय पाठ्यक्रम तैयार एवं लागू किए गए हैं। साथ ही स्ववित्तपोषित उच्च शिक्षा संस्थाओं को खुले हाथ मान्यता दी गई है। इससे उच्च शिक्षा का प्रसार तो अवश्य हुआ है पर उसके स्तर में गिरावट हो रही है।

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Pankaja Singh

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